‘मेक इन इंडिया’ और उद्योगों को बढ़ावा देने के तमाम दावों के बावजूद 11 महीनों के दौरान देश में 17 कॉटन मिल्स बंद हो गई हैं। ये मिलें नकदी की कमी, घटते मुनाफे और बढ़ती उत्पादन लागत से जूझ रही थीं और आखिरकार अपना वजूद बचाने में नाकाम रहीं। यह स्थिति देश के टेक्सटाइल सेक्टर की चुनौतियों को उजागर करती है।
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लोकसभा में सांसद राजू शेेट्टी और प्रो॰ यविन्द्र विश्वनाथ गायकवाड़ द्वारा पूछे गए सवाल के जवाब में कपड़ा राज्य मंत्री अजय टम्टा ने जून, 2016 से मई, 2016 के दौरान देश में 17 सूती/मानव निर्मित फाइबर टेक्सटाइल मिलों (गैर-एसएसआई) के बंद होने की जानकारी दी है। टम्टा ने बताया कि इन सूती मिलों के बंद होने की प्रमुख वजह पूंजी की कमी, नकदी का अभाव, बढ़ती उत्पादन लागत और घटना मुनाफा है।
हैरानी की बात तो यह है कि ‘मेक इन इंडिया’ और उद्योगों को बढ़ावा देनेे का दावा कर रही केंद्र सरकार के पास बंद कॉटन मिलों के पुनरूद्धार के लिए वित्त और तकनीकी सहायता की कोई योजना नहीं है। यह बात भी कपड़ा राज्य मंत्री अजय टम्टा ने लोकसभा में दिए अपने जवाब में स्वीकार की है।
सांसदों ने यह भी पूछा था कि क्या सरकार नए टेक्सटाइल/स्पिनिंग मिल्स कलस्टरों की स्थापना करने जा रही है? इसके जवाब में टम्टा ने बताया कि सरकार आमतौर पर नई टेक्सटाइल यूनिटें स्थापित नहीं करती। बल्कि उद्याेेगों और निजी उद्यमियों को बढ़ावा देने वाली नीतियां और माहौल सुनिश्चित करती है।
गौरतलब है कि इस समय देश में 1420 सेती/मानव निर्मित फाइबर टेक्सटाइल मिलें हैं। बंद हुईं 17 मिलों में से 6 तमिलनाडु, 3 आंध्र प्रदेश, 3 कर्नाटक और एक-एक तेलंगाना, हरियाणा, महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में हैं। फिलहाल देश में 14 सौ से ज्यादा कॉटन या मैन मेड फाइबर टेक्सटाइल मिल्स हैं।
जारी रहेगा कपास की कीमतों में तेजी का रुख
घरेलू उत्पादन में कमी के चलते इस साल कपास का भाव करीब 30-35 फीसदी ज्यादा हैं। अक्टूबर में नई फसल आने तक कपास की कीमतों में तेजी का रुख बने रहने के आसार हैं। हाल ही में केंद्र सरकार ने कॉटन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया को अपना सारा कॉटन स्टॉक छोटे व लघु उद्योगों को बेचने के निर्देश दिए थे। इसके बावजूद क्रेडिट एजेंसी इंडिया रेटिंग का मानना है कि नई कपास बाजार में आने तक कीमतों में तेज गिरावट के आसार नहीं हैं।
गौरतलब है कि इस साल कपास की उपज का क्षेत्र कम रहने की आशंका जताई जा रही है। इसके अलावा पंजाब सहित कई क्षेत्रों में सफेद कीट के प्रकोप की वजह से उत्पादन में कमी आ सकती है। इस वजह से भी कपास की कीमतों में तेजी रह सकती है।
इंडिया रेटिंग की रिपोर्ट के अनुसार, लगातार दो वर्षों से कमजोर मानसून और कई राज्यों में कपास पर कीटों के प्रकोप की वजह से कपास उत्पादन गिरा है। वर्ष 2015-16 सीजन में देश का कपास उत्पादन 7.4 फीसदी घटकर 352 करोड़ बेल्स रहने का अनुमान है। विश्व स्तर पर भी कपास उत्पादन 18 फीसदी गिरने के आसार हैं।
Courtesy: aslibharat.com