नरोडा पाटिया. नाम तो सुना ही होगा आपने.
वह 28 फरवरी, 2002 का खौफनाक दिन था. नरोडा पाटिया में सब कुछ सहमा सा. माहौल में तनाव था. बच्चे घर में दुबके हुए थे. यह अहमदाबाद की ऐसी बस्ती है, जिसमें मुसलमान अच्छी संख्या में हैं.
28 फरवरी. गुजरात बंद. लगभग 5,000 की हथियारबंद भीड़ नरोडा पाटिया पर चढ़ आई. नेतृत्व कर रही थी राज्य की महिला विकास मंत्री माया कोडनानी और बजरंग दल के बाबू बजरंगी. मंत्री दंगाइयों का नेतृत्व करे तो पुलिस के पास करने को कुछ नहीं रह जाता. नरेंद्र मोदी सरकार की दंगाइयों को खुली छूट थी. नरोडा पाटिया में 10 घंटे तक मारकाट, आगजनी और तमाम अत्याचार चलते रहे.
आखिरकार जब लाशें गिनी गईं तो 97 का आंकड़ा बना. 36 महिलाएं. 35 बच्चे.
यह गुजरात दंगों का सबसे बड़ा नरसंहार था. इस पर सवार होकर नरेंद्र मोदी लगातार मजबूत होते चले गए.
सुप्रीम कोर्ट ने नरोडा पाटिया नरसंहार की जांच के लिए 2008 में स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम गठित की. स्पेशल कोर्ट ने 2012 में 32 लोगों को सजा सुनाई. माया कोडनानी को 28 साल और बाबू बजरंगी को उम्र कैद.
खराब सेहत के कारण माया कोडनानी 2014 से जमानत पर जेल से बाहर हैं.
इसी नरोडा पाटिया में दलितों और लोकतांत्रिक लोगों ने 27 जुलाई, 2016 तो एक विशाल जुलूस निकाला और संघ और विश्व हिंदू परिषद की राजनीति को खारिज कर दिया. जिस सड़क पर दंगा हुआ था, वहीं दलित – मुस्लिम एकता का संदेश दिया गया. यह सब हुआ बाबा साहेब की तस्वीर को साथ लेकर.
फोटो 1. दलित उत्पीड़न के खिलाफ नरोडा पाटिया में मौन जुलूस, 27 जुलाई, 2016
फोटो 2. नरोडा पाटिया का दर्द जानने पहुंचे तत्कालीन राष्ट्रपति महामहिम एपीजे अब्दुल कलाम.
फोटो 3. माया कोडनानी और बाबू बजरंगी