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अब कोई और रामनरेश यादव नही पैदा होगा…..

आजमगढ़ के फूलपुर के पास आंधीपुर में जन्मे रामनरेश यादव जी सचमुच आंधी-तूफान ही थे वंचितों के हितलाभ हेतु,उन्होंने गालियों की परवाह किये बिना जो किया वह यूपी में पिछडो हेतु किया गया ऐतिहासिक काम है जिसे कोई भी समझदार पिछड़ा कभी भूल नही सकता है।

Ram Naresh Yadav

दूसरे पिछड़ा वर्ग आयोग(मण्डल कमीशन) को तत्कालीन प्रधानमंत्री स्मृतिशेष श्री मोरार जी भाई ने सोशलिस्टों के अत्यंत दबाब में अनमने ढंग से गठित किया था लेकिन धन्य हैं रामनरेश यादव जी जिन्होंने मण्डल साहब की सिफारिशों से पहले ही नेहरू साहब द्वारा रिजेक्ट कर दिए गए प्रथम पिछड़ा वर्ग आयोग (काका कालेलकर आयोग) की सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए न केवल सरकारी नौकरियों में 15% आरक्षण/विशेष अवसर के संवैधानिक प्राविधान अनुच्छेद 340 को क्रियान्वित कर दिया वरन उन्होंने उसे पदोन्नति में भी प्रदान कर दिया।

अम्बेडकर महासभा लखनऊ के अध्यक्ष और सचिवालय के अफसरों की यूनियन के अध्यक्ष रहे श्री डा लालजी प्रसाद निर्मल जी ने उस शासनादेश को दिखाया है जिसमे 26 अगस्त 1977 को पिछडो को 15% सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने के बाद रामनरेश जी ने दूसरा शासनादेश जारी कर 13 जनवरी 1978 को यह भी निश्चित कर दिया कि अब पदोन्नतियों में भी sc/st की तरह पिछडो को 15%आरक्षण देय होगा।

देश के इतिहास में बिहार के मुख्यमंत्री श्री कर्पूरी ठाकुर और यूपी के इतिहास में रामनरेश यादव जी पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिन्हें यथास्थितिवादियों ने जी भरके गालियां दी हैं।रामनरेश जी को कहा गया कि ""रामनरेश वापस जाओ,लाठी लेकर भैंस चराओ" तो कर्पूरी जी को कहा गया कि "कर्पूरी-करपूरा, चलाओ छूरा",कर्पूरी वापस जाओ,छूरा लेकर बाल बनाओ।'

देश के इतिहास में शायद रामनरेश जी व कर्पूरी जी पहले व्यक्ति होंगे जिन लोगो ने अपने-अपने प्रदेशो में मनुवाद को लाठी लेकर हांका था और उसकी जड़ हो चुकी व्यवस्था की हजामत बनायी थी।रामनरेश जी ने लाठी में कलम बांधकर अनुच्छेद 340 के प्राविधानों को मूर्त रूप दिया था तो कर्पूरी जी ने उस्तरे में कलम बांधकर अनुच्छेद 340 पर उग आए झाड़-झंखाड़ को काट डाला था।

रामनरेश जी की कलम की लाठी ने कुछ मुट्ठी भर अभिजात्य मानसिकता के लोगो को इतना चोटिल किया था ककि वे भूल बैठे थे कि यह रामनरेश यादव भैंस चराने वाला यादव नह है बल्कि आजमगढ़ कचहरी में काला कोट पहनके संविधान की ब्याख्या करने वाला कलम की लाठी रखने वाला यादव है।उन्हे शायद अहसास नही था कि यह यादव जब कलम की लाठी चलायेगा तो सर नही फटेगा,खून नही रिसेगा बल्कि जड़ व्यवस्था की चूलें हिल जाएंगी।हजार वर्ष जे ठहरे हुए पानी में ज्वार-भाटा आ जायेगा,मूक लोग वाचाल हो जाएंगे,जमीन पर बैठने वाले लोग कुर्सियों पर बैठ जाएंगे,हुजूर कहने वाले लोग खुद हुजूर बन जाएंगे।रामनरेश यादव की कलम की लाठी ने खेत में करने वाली भैंस की नही बल्कि आफिस में करने वाले एक वर्ग विशेष जे साँढ़ों को खदेड़ डाला और यूपी में सामाजिक न्याय की पौधशाला तैयार कर डाली।

रामनरेश जी 22 नवम्बर 2016 को हम सबके बीच से अनन्त में समाहित हो गए लेकिन उनके कार्य,उनका आदर्श,उनके द्वारा बनाया गया इतिहास हमारे बीच अनन्त काल तक जीवित रहेगा।रामनरेश जी हम पिछड़ों-वंचितों की वर्तमान में खड़ी मीनार में नीव की ईंट के रूप में सदैव मौजूद रहेंगे।

नमन है महामानव स्मृतिशेष श्री रामनरेश यादव जी को…..

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