ABVP के पूर्व कार्यकर्ता का खुलासा, रोहित वेमुला की हत्या में ABVP की थी भूमिका

हैदराबाद। यूनिवर्सिटी ऑफ हैदराबाद के छात्र रोहित वेमुला की हत्या में एबीवीपी की भूमिका को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है। यह खुलासा किसी और ने नहीं बल्कि रोहित वेमुला के प्रतिद्वंदी रहे एबीवीपी के शिवा साईं राम ने किया है। दलित छात्र रोहित वेमुला को एबीवीपी ने किस तरह से निशाना बनाया और उसके किस तरह से अत्याचार और दुर्व्यवहार किया गया। इसका खुलासा एबीवीपी के पूर्व कार्यकर्ता शिवा ने अपनी एक फेसबुक पोस्ट में किया है। जिसका देव्यानी भारद्वाज ने हिंदी में अनुवाद किया है। हिमांशु पांड्या ने अपनी फेसबुक पोस्ट में इसे साझा किया है।   
 

नीचे पढ़ें शिवा साई राम का फेसबुक पोस्ट का हिंदी अनुवाद-

 
अतीत की एक घटना की कचोट मेरा पीछा नहीं छोड़ती। "गणेश चतुर्थी" ने फिर इसकी याद दिला दी। यह घटना वर्ष 2013 की है। उन दिनों में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् से जुड़ा था। इस घटना का सम्बन्ध रोहित और उसकी संस्थानिक हत्या के लिए ज़िम्मेदार (सुशील कुमार) से है। उन दिनों हैदराबाद विश्वविद्यालय में गणेश चतुर्थी उत्सव के आयोजन और दक्षिणपंथी संगठनो द्वारा प्रचारित किये जा रहे छद्म विज्ञान को लेकर फेसबुक पर विभिन्न समूहों में बहसें छिड़ी थीं। एक कट्टर धार्मिक व्यक्ति के रूप में मैंने उन बहसों में उत्सव के आयोजन का भरपूर पक्ष लिया। उस बहस में मेरे प्रतिपक्ष में अनेक लोग शामिल थे, रोहित में उनमें से एक था। एबीवीपी के काम करने के रहस्यमय तरीकों का एक प्रमाण था हमारा समूह "गणेश उत्सव समिति"। इस समूह के रूप में हम रोहित और अन्यों की नास्तिक सोच से परिचित थे। यह बहस हमारे हाथ से छूटती जा रही थी क्योकि इस उत्सव का विरोध करने वालों की संख्या हम से कहीं अधिक थी। और तब एबीवीपी ने अपना वह दांव खेला जिसमें इसे महारथ हासिल है। जिसे अंग्रेजी में "विच हंटिंग" कहा जाता है।

मैं तब तक संगठन में नया था (लगभग दो महीने) और नहीं जनता था कि यह लोग परदे के पीछे किस तरह काम करते हैं। यह तय किया गया कि यह लोग बहस में उनका विरोध करने वालों को सबक सिखाने के लिए उनके खिलाफ "ईश-निंदा" का मुक़दमा दायर करेंगे। मुझसे कहा गया कि मैं इस लोगों के पोस्ट और कमेंट के स्क्रीन शॉट ले कर कुछ लोगों को मेल कर दूं। यह लोग विद्यार्थी नहीं थे (इनमें से एक सुशील का भाई भी था)। मैंने उनकी बात मान कर स्क्रीन शॉट लिए और बताये गए लोगों की मेल कर दिए। इन लोगों के बीच हुई गोपनीय चर्चाओं में यह तय किया गया कि वे रोहित इकलौता लक्ष्य होगा। उनकी शिकायत का आधार रोहित की टाइम लाइन पर पोस्ट की गयी एक कविता को बनाया गया जो मूलतः हिन्दू देवता गणेश पर तेलुगु लेखक श्री श्री की लिखी कविता थी। इसी तरह एक और पोस्ट को निशाना बनाया गया जिसमें रोहित ने मजाक के लहजे में यह प्रश्न किया था की जिस तरह हम विनायक चतुर्थी मनाते हैं, उसी तरह सुपरमैन और स्पाइडरमैन जैसे सुपर सितारों के जन्मदिन क्यों नहीं मनाते? (दोनों स्क्रीन शॉट संलग्न हैं)

इस शिकायत का परिणाम यह हुआ कि रोहित को गिरफ्तार कर लिया गया और (जहाँ तक मुझे याद है) उसे दो दिन तक स्थानीय पुलिस की हिरासत में रखा गया। "रोहित को सबक सिखाने" में मिली इस सफलता को लेकर एबीवीपी के छात्र नेताओं में काफी उत्साह का माहौल था। रोहित को बाद में छोड़ दिया गया (इस प्रकरण की पूरी जानकारी उपलब्ध नहीं है) और उसने बाद में उसकी आवाज़ को जिस तरह दबाने की कोशिश की गयी उसे लेकर एक पोस्ट भी लिखा।

एबीवीपी के सदस्य के रूप में ऐसी असंख्य घटनाएं हैं जिनमें अपनी भागीदारी को लेकर में शर्मिन्दा हूँ, लेकिन यह एक घटना ऎसी है जो मेरे लिए सबसे अधिक पीड़ादायी है और जो मेरा पीछा नहीं छोड़ती है क्योंकि इसमे रोहित को जिस तरह निशाना बनाया गया उसमे मेरी भी सीधी भागीदारी रही थी। यह ऐसी अकेली घटना नहीं थी जिसमे रोहित को निशाना बनाया गया था। रोहित जिस किसी भी राजनीतिक दल से जुड़ा रहा वहां उसके निर्भीक और मुखर रवैये को लेकर एबीवीपी के वरिष्ठ सदस्यों में रोहित के प्रति जबरदस्त गुस्सा और नफ़रत थी। यही वजह थी कि वह लगातार ऑनलाइन और ऑफलाइन हमलों के निशाने पर रहता था। आज इसके बारे में माफ़ी नहीं माँगी जा सकती क्योंकि रोहित अब इस दुनिया में नहीं है, लेकिन जिस अवसर पर इस अपराध को अंजाम किया गया ठीक उसी दिन इस घृणा को जग जाहिर करना, जिसका शिकार उसे बनाया गया मुझे उस अपराध बोध से बाहर आने में मदद करता है जो मुझे इस दक्षिण पंथी संगठन से जुड़े रहने और इसके कृत्यों में शामिल होने के लिए कचोटता रहता है। मैं अपनी बातों के प्रमाण के रूप में विभिन्न स्क्रीन शॉट भी संलग्न कर रहा हूँ।
 
वे लोग जो आज इस बात को मानने से इनकार करते हैं की हिन्दुत्ववादी ताकतों ने रोहित को आत्महत्या के लिए मजबूर किया वे शायद यह नहीं जानते होंगे कि उसे लगातार किस तरह की गालियों, दुर्व्यवहारों और उत्पीड़नों का सामना करना पड़ता था जिनके चलते उसने संघ परिवार की जातिवादी-साम्प्रदायिक-फासीवादी राजनीति का डट कर मुकाबला करने का निर्णय लिया। इस तरह एक "संस्थागत क़त्ल" को अंजाम दिया गया। इस तरह दलित, आदिवासी और धार्मिक अल्पसंख्यकों जैसे हाशिये के समूहों को राज्य, पुलिस और हिन्दुत्ववादी समूह मिल कर "विच हंट" करते हैं। इन समूहों की हरकतों को सामने लाना और इनकी घृणा की राजनीति के विरुद्ध आवाज़ उठाने में शामिल होने के लिए अभी भी बहुत देर नहीं हुई है।

This article was first published on Nationaldastak.com
 

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