चांदनी चौक की तमाम गलियों में सन्नाटा पसरा है। ज़्यादातर दुकानें बंद हैं। जो खुली हैं उन पर इक्के-दुक्के ग्राहक हैं। सोना चांदी की भी कई दुकानें बंद नज़र आईं।
रंग-रसायन और मसाले के बाज़ार में भी दुकानों के शटर गिरे मिले। सत्तर से नब्बे फीसदी दुकानें बंद हैं।
मैं आराम से तेज़ी से चलता हुआ, इस गली से उस गली होता हुआ खारी बावली पहुंच गया। वहां कुछ ठेले पर सामान लदे हैं मगर ज्यादातर ठेलों पर मज़दूर ख़ाली बैठे हैं। किसी को समझ नहीं आ रहा है कि वो क्या कहें। इत्र से लेकर मसाले बेचने वालों की छोटी-छोटी दुकानें ख़ाली हैं। चाट-पकौड़ी की दुकाने भी बंद हैं। ऐसा लगता है कि आज कोई हड़ताल होगी लेकिन पता चला कि नगद की कमी और सेल्स टैक्स के छापे के डर से सबने बंद किया है। पैसा है नहीं तो ग्राहक नदारद हैं। खुदरा व्यापारी ने भी आना बंद कर दिया है। चांदनी चौक कुल मिलाकर ठप है।
मुझे देखते ही भीड़ साथ-साथ चलने लगती है। कई लोग करीब आकर बहुत कुछ कहना चाहते हैं मगर सबको एक दूसरे से डर लग रहा है। वो कहते-कहते चुप हो जाते हैं। यह बेहद भयावह है। इसमें न तो सरकार ठीक से जान सकती है कि समर्थन कितना है और न ही विपक्ष का विरोध कितना है। बात यह है कि कोई पूरी बात कहता ही नहीं। बहुत कम लोग साहस कर भावुक हो उठे कि चार दिन से कोई कमाई नहीं हुई है। खाने के पैसे नहीं है। जो पैसे हैं उसे बदलवाने के लिए बैंकों में पूरा दिन निकल गया। दो-दो बार लौट कर आया हूं। बनिया भी पैसे नहीं दे रहा है।
जैसे ही वो कहता है, बगल से आवाज़ आती है, मोदी ने जो किया, बहुत सही किया। सत्तर साल में किसी ने नहीं किया। सिर्फ एक आवाज़ पूरी भीड़ को डरा देती है। जो अपनी बात कह रहा होता है, वो फिर से टेप रिवाइंड करता है और उसी पंक्ति से शुरू करता है जिसे आप चैनलों पर बार-बार सुन चुके हैं। मोदी जी ने बहुत सही किया है। हम मानते हैं कि देश का भला होने वाला है लेकिन…. यही वो ‘लेकिन’ है जिसके सहारे वो अपने डर से आज़ाद होने की कोशिश करता है मगर हार जाता है। फिर वो पूरी तरह फैसले का स्वागत करने लगता है।
क्या जनता को जनता से ही डर लगने लगा है। क्या लोगों को यह लगता है कि कोई भेदिया आ जाएगा। ऐसी स्थिति मैंने कभी नहीं देखी। काला धन के ख़िलाफ़ कार्रवाई का कोई विरोध कैसे कर सकता है। वो अपने लिए मज़दूरी और कमाई की बात करना चाहता है। काला धन के निर्माण में उसका न तो कोई योगदान है न ही उसे तुरंत कोई फायदा होने वाला है। उसे क्यों इतनी तकलीफ हो रही है। चांदनी चौक में कारोबार ठप सा होने से बड़ी संख्या में मज़दूरों पर संकट आया है। वे असहाय हैं. सरकार और बीजेपी को समझना चाहिए कि ये परेशान लोग विपक्ष के नहीं हैं। उन्हीं के अपने हैं।
आखिर लोग इस बात के लिए किसे दोष दें, कि पैसे नहीं हैं। मज़दूरी नहीं मिल रही है। कब से मिलनी शुरू होगी, किसी को पता नहीं। उनका दर्द छलक नहीं पा रहा है क्योंकि जैसे ही छलकता है, कोई आकर कह देता है कि सरकार ने साहसिक फैसला लिया है। फिर वो भी कहने लगता है कि हम भी वही कह रहे हैं लेकिन….. अब इस लेकिन का इतना दबाव है कि कोई यह भी नहीं कह पाता कि भूखा है।
चांदनी चौक के व्यापारियों को सेल्स टैक्स और इनकम टैक्स के छापों ने डरा दिया है। कइयों ने कहा कि छापे के नाम पर हमें डरा दिया गया है ताकि खुलकर विरोध न कर सकें. व्यापारी कहते हैं कि हम तो बिल्कुल ही विरोध में नहीं हैं। लेकिन हम ये तो बोल सकते हैं न कि हमारा बिजनेस चौपट हो गया है। एक रुपये में एक पैसे का भी कारोबार नहीं बचा है। हमारे लिए कोई इंतज़ाम नहीं किया गया है। मज़दूर और व्यापारी दोनों बैंक की कतार में हैं। ग्राहक और खुदरा व्यापारी ने आना बंद कर दिया है। इसके बाद भी हम शादियों के मौसम में लोगों की मदद कर रहे हैं। उधार पर माल देकर हम भी योगदान कर रहे हैं।
नोटबंदी के फैसले के बाद मीडिया ने सदर बाज़ार की तरफ दौड़ लगाई थी। मैंने कई व्यापारी से पूछा कि आपकी छवि ऐसी क्यों हैं। आप सब की पहुंच सभी राजनीतिक दलों में है। फिर भी आप कब तक इस तरह की छवि को ढोते रहेंगे। प्रधानमंत्री ने भी ग़ाजीपुर में कहा था,” मेरा निर्णय ज़रा कड़क है। जब मैं छोटा था तो ग़रीब लोग होते थे वो मुझे खास कहते थे कि मोदी जी चाय ज़रा कड़क बनाना। ग़रीब को कड़क चाय ज़्यादा अच्छी लगती है। हमें तो बचपन से आदत है। तो निर्णय मैंने ज़रा कड़क लिया. अब ग़रीब को तो कड़क चाय ज़रा भाती है लेकिन अमीर का मूड बिगड़ जाता है।” प्रधानमंत्री ने यह भी कहा, ”इस फैसले से ग़रीब चैन से सो रहा है। अमीर नींद की गोली ख़रीदने के लिए बाज़ार के चक्कर लगा रहा है।
उनके इस बयान ने काले धन को लेकर समाज का एक तरह से बंटवारा कर दिया है। संदेश गया है कि ग़रीब चैन से है और अमीर चोर है। तमाम जनता के बीच अमीर तबका संदिग्ध हो गया है। व्यापारियों को भी अब अपनी इस छवि के बारे में सोचना चाहिए। उन्होंने अपनी कमाई से न जाने कितने दलों को सींचा है। अब वक्त आ गया है वे अपने धंधे को सींचे। उसे पहले से बेहतर करें और उस रास्ते पर चलें जिस पर कोई दल उनका आर्थिक और भावनात्मक दोहन करने के बाद उनका शोषण न करें। उन्हें लांछित न करे। आज़ादी के आंदोलन में व्यापारियों का योगदान ऐतिहासिक है। उन्हें राष्ट्रवादी मर्यादा के साथ देखा और सराहा गया। लेकिन इस बार के राष्ट्रवादी आंदोलन में उन्हें शक की निगाह से देखा जा रहा है। करोड़ों की कमाई हो और प्रतिष्ठा ऐसी, यह तो उसी वर्ग को तय करना है कि किस लिए और किसके लिए।
पूरे देश में तमाम वर्गों के साथ व्यापारी वर्ग भी शक के दायरे में है कि वही काले धन को सफेद करने में लगा है। चांदनी चौक के व्यापारी इस सवाल पर चुप हो जाते हैं। कहते हैं कि हमें बताइये कि हम कैसे अपना व्यापार करें। नगद हमारे कारोबार का हिस्सा रहा है। हम पक्के नोट का कारोबार करते हैं। सबके पास काला धन नहीं है। कितनी छोटी-छोटी दुकानें हैं। क्या सभी के पास काला धन है। क्या पांचों अंगुलियां बराबर हो सकती हैं। फिर भी हम तैयार हैं कि जो प्रक्रिया सरकार तय करे उस पर चलेंगे लेकिन क्या सरकारी विभाग हमसे रिश्वत लेना बंद कर देंगे। क्या कोई सरकार ये बंद करवा देगी।
बहरहाल चांदनी चौक के व्यापारी सरकारी डंडे से डरे हुए हैं। उन्हें सोचना चाहिए कि ऐसे वक्त में जब काला धन नष्ट करने का कथित रूप से राष्ट्रवादी अभियान चल रहा हो, उनका नाम सम्मानित स्वर में क्यों नहीं लिया जा रहा है। क्यों वे डरे-डरे से हैं. क्यों उनकी दुकानों के शटर गिरे हैं। क्या उन्होंने ईमानदार राजनीति का पोषण किया है। यह सवाल भी उन्हें अपने आप से पूछना चाहिए. जो कल की बात है वो कल की बात है। कल भी ये बात न रहे, चांदनी चौक के व्यापारियों को सोचना होगा. बताना होगा कि उनके धंधे का राज़ क्या है और उनके चंदे का राज़ क्या है। वर्ना जब भी यह बात सुनाई देगी कि अमीर नींद की गोलियां ख़रीदने के लिए चक्कर लगा रहे हैं, मीडिया चांदनी चौक के चक्कर लगाने लगेगा।
Courtesy: teesrijungnews.com