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आने वाली पीढ़ी के लिए लड़ाई जारी रखूंगी : राधिका वेमुला

17 जनवरी को रोहित वेमुला की पहली पुण्यतिथि है। इस बीच उनकी मां राधिका वेमुला की दुनिया ठहर गई है। वह आर्थिक और मानसिक कठिनाइयों के दौर से गुजर रही हैं लेकिन दलितों पर होने वाले अत्याचारों के खिलाफ लड़ने का उनके जज्बे में कोई कमी नहीं आई है।

Radhika Vemula
Image: Indian Express

17 जनवरी को रोहित वेमुला की पहली पुण्यतिथि है। पुण्यतिथि की पूर्व संध्या पर राधिका वेमुला की दुनिया ठहर गई है। संघर्ष और प्रतिरोध की प्रतीक बन चुकीं राधिका को अभी भी हर दिन कमाना पड़ता है। दूसरी ओर, संवेदनहीन सरकार उनके बेटे की जाति तय करने में जुटी हुई है।

राधिका कई महीनों तक विरोध और संघर्ष की प्रतीक बनी रहीं। चाहे वह दिल्ली हो, मुंबई हो केरल हो या गुजरात का उना, राधिका हर जगह पहुंचीं और अत्याचार और दमन के खिलाफ आवाज बुलंद की। वह रोहित के खिलाफ हुए अत्याचारों पर लगातार बोलती रहीं। वह क्रूर विश्वविद्यालय प्रशासन के हाथ रोहित वेमुला की सांस्थानिक हत्या के खिलाफ देश भर में आवाज उठाती रहीं । रोहित की हत्या उस क्रूर विश्वविद्यालय प्रशासन ने की जिसका नेतृत्व (निलंबित वाइस चासंलर) अप्पा राव पोडाइल कर रहे थे। सरकार की ओर से वाइस चासंलर के पद से नवाजा गया यह शख्स अपनी अकादमिक योग्यता में बेहद निम्न उपलब्धियों वाला है और शैक्षणिक चोरी (नकल) का भी आरोपी है। आश्चर्य है कि ऐसे दागी शख्स को हाल में पीएम ने ‘अवार्ड ऑफ एक्सलेंस’ (3 जनवरी, 2017 को पोडाइल को इससे नवाजा गया) से नवाजा।

राधिका वेमुला ने कपड़े सिल कर अपने बच्चों को पढ़ाया था। रोहित की मृत्यु से पहले तक वह यह काम करती थीं। लेकिन रोहित की मृत्यु के बाद उन्होंने यह काम छोड़ दिया और देश के विश्वविद्यालयों में रोहित और छात्रों के खिलाफ अत्याचारों पर बोलते हुए छात्र-छात्राओं के बीच एकता की अपील करती रहीं, ताकि वे अन्याय से लड़ सकें। वे शैक्षणिक संस्थानों में छात्र-छात्राओं के खिलाफ होने वाले अत्याचारों के खिलाफ लड़ने का आह्वान करती रहीं।

रोहित वेमुला के निधन को एक साल हो गया है। 17 जनवरी को उनकी पहली पुण्यतिथि है। इस बीच राधिका वेमुला की दुनिया उसी पुराने दौर में लौट चुकी हैं। अब उन्होंने फिर सिलाई का काम शुरू कर दिया है। वही अब उनकी रोजी-रोटी का साधन है। दैनिक मजदूरी से अब वह एक दिन में 350 से 500 रुपये कमाती हैं।

राधिका कहती हैं, रोहित के निधन के बाद हमारे लिए आर्थिक कठिनाइयां शुरू हो गईं। राजा ऑटोनगर में दैनिक मजदूरी करने लगा। मैं बीमार थी। स्वस्थ होते ही मैंने दिसंबर सिलाई का काम दोबारा शुरू कर दिया।

राधिका बताती हैं – रोहित की मौत के बाद मेरा परिवार लगभग निर्वासित जीवन जी रहा है। लोगों की नजरों से बचने के लिए हमें शहर से दूर रहना पड़ रहा है। इस बीच, अफसरों और समाज के लोगों ने हमें खूब अपमानित किया। हमें किराये पर मकान नहीं मिला। कोई भी हमें अपना घर देने  के लिए तैयार नहीं था।

मंगलवार को रोहित की पहली पुण्यतिथि है। राधिका वेमुला के बेटे के निधन को एक साल हो जाएगा। राधिका कहती हैं जब तक केंद्र सरकार की विचारधारा और लोगों की मानसिकता नहीं बदलेगी, मेरी जैसी तमाम मांएं इसी तरह आंसू बहाती रहेंगी।

हालांकि राधिका इन दुखों से टूटने वाली नहीं हैं। वह यूनिवर्सिटी में भेदभाव खत्म करने के लिए ‘रोहित एक्ट’ लागू करने के प्रति दृढ़संकल्प हैं। वह इसके लिए लड़ना जारी रखेंगी।

राधिका कहती हैं, चाहे गुंटुर प्रशासन ने रोहित को पिछड़ा वर्ग का घोषित कर दिया हो लेकिन मैं इसे अपनी इस लड़ाई में बाधा नहीं बनने दूंगी। अगर हमारी पीढ़ी के लोग इस तरह के अन्याय के खिलाफ लड़ते तो रोहित हमारे साथ होता। यही वजह है कि मैं आने वाली पीढ़ी के लिए यह लड़ाई लड़ रही हूं ताकि भविष्य में और कोई दलित छात्र या छात्रा अन्याय का शिकार न हो।

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