लखनऊ। मेडल क्वीन व आयरन गर्ल के नाम से सुविख्यात अन्तर्राष्ट्रीय खिलाड़ी निधि सिंह पटेल ने एक बार फिर से विदेश की धरती पर अपने देश की प्रतिनिधित्व करते हुए भारतीय तिरंगा लहराया। निधि ने उजबेकिस्तान में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय एशिया बेन्च प्रेस पावरलिफ्टिगं चैम्पियनशिप में 57 किलोग्राम भार वर्ग में अपने प्रतिद्वंद्वियों से कड़ा मुकाबला करते हुए 87.5 किलो भार उठा कर रजत पदक पर कब्जा जमाते हुए एक बार फिर से विदेश में मिर्जापुर के साथ उत्तर प्रदेश व देश का नाम विश्व पटल पर रोशन किया है।
उज्बेकिस्तान के एशिया चैम्पियनशिप में निधि ने बहुत ही कडी मुकाबला करते हुए बहुत ही मामुली अंकों से कजाकिस्तान की सेलिवा इरिना के गोल्ड से चुक गईं। सेलिवा इरिना ने 105.98 अंक के साथ गोल्ड, वहीं निधि सिंह पटेल ने 105.32 अंक के साथ भारत की झोली में रजत पदक डाल दिया। वहीं कजाकिस्तान की कुरिशेवाओल्गा ने 87.69 अंक के साथ तीसरे स्थान पर रही।
गरीब परिवार से आने वाली निधी सिंह पटेल अब जीत के बाद भी अपने अगले लक्ष्य को लेकर काफी निराश हैं। कई उपलब्धियों के बावजूद केंद्र और राज्य सरकार से उन्हे्ं कोई मदद नहीं मिली है। अगले महीने नवंबर में कनाडा में होने वाले पावर लिफ्टिंग कॉमनवेल्थ गेम में शामिल होने के लिए उन्हें दो लाख 40 हजार रुपए की जरूरत है, लेकिन इसका इंतजाम नहीं हो सका है। इससे उनके इस खेल पर भी ग्रहण लगने वाला है। ऐसे में इस खेल को अलविदा कहने का वे मन बना रही हैं।
निधि ने कहा कि आर्थिक तंगी और चंदे के कारण खेल से मुंह मोड़ना मजबूरी बन गई है। उन्हें इस बात का मलाल है कि आखिर कब तक वह चंदे के पैसे से विदेश की धरती पर जाकर खेलेंगी। विदेशी धरती पर सम्मान और अपने ही प्रदेश में अपमान और उपेक्षा से वह दुखी हैं। उन्होंने कहा कि चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी पद से रिटायर्ड हुए पिता पर वह कब तक बोझ बनी रहेंगी।
निधि का जन्म यूपी के मिर्जापुर जिले में चुनार तहसील क्षेत्र के पचेवरा गांव में गरीब परिवार में हुआ है। खेल के प्रति उनके लगाव का आकलन इस बात से लगाया जा सकता है कि बेंच प्रेस के लिए वह चकरी बांधकर उठाती थीं। 2009 में उन्होंने प्रदेश और देश के लिए खेलना शुरू किया। 2010 में वह फिलीपींस में जनसहयोग से खेलने गईं और सिल्वर मेडल जीता। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। हर साल वह देश के साथ ही विदेशी धरती पर अपने जौहर से पदक बटोरती रहीं। इतनी प्रतिभा होने के बावजूद प्रदेश सरकार ने अब तक उनकी कोई मदद नहीं की है।
Courtesy: National Dastak