आपके पुराने नोटों से बन रहे है प्लाईवुड, अब घरों में लागई नोटों वाले दरवाजे

नई दिल्ली। नोटबंदी के फैसले के बाद बैन हो चुके 500 और 1000 रुपये के पुराने नोटों को बैंक में जमा करवाने के लिए बैंको के बाहर लोगों की जमकर भीड़ लगी हुई है। लेकिन क्या आर जानते है कि जिन पुराने नोटों को बैंक में जमा करा रहे हैं, उनका क्या होता है? अगर कोई आपसे बोले की जो नोट आप जमा करवा रहे हैं उनका प्रयोग प्लाईवुड बनाने में किया जाता है तो आपकी सोच क्या होगी?

note door
 
जी हां, ईटी की खबर के अनुसार पुराने नोटों को देश के कई हिस्सों में स्थित आरबीआई के सेंटरों में भेजे जाते हैं। वहां मशीन से इनके टुकड़े-टुकड़े किए जाते हैं। उसके बाद इन्हें बोरी में भरकर री-साइक्लिंग या ईंट बनाने के लिए कुछ डीलरों के पास भेजा जाता है। इन नोटों को केरल के कन्‍नूर जिले में वालापट्टनम नदी के किनारे स्थित वेस्टर्न इंडिया प्लाईवुड (डब्ल्यूआईपीएल) के यार्ड में भी पहुंचाया जा रहा है, जहां इनसे पल्प बनाया जाएगा।
 
तैयार किया जाता है पल्प 
इस मामले पर डब्ल्यूआईपीएल के मैनेजिंग डायरेक्टर पीकेएम मोहम्मद ने बताया, 'हमें पिछले तीन हफ्तों में 500 और 1,000 रुपये के 140 टन के नोट मिले हैं।' प्लाईवुड, हार्ड बोर्ड्स और लेमिनेट्स बनाने वाली 70 साल पुरानी कंपनी को 8 नवंबर को नोटबंदी के ऐलान से कुछ दिनों पहले आरबीआई ने खुद चुना था।
 
मोहम्मद ने बताया, 'रिजर्व बैंक ने पहले ट्रायल बेसिस पर हमें 10-15 बैग नोट दिए थे, जिससे हमने पल्प तैयार किया। हमारा काम देखने के बाद आरबीआई ने नोटों का बड़ा कंसाइनमेंट भेजने का वादा किया, तब हमें पता नहीं था कि आगे क्या होने वाला है।' रिजर्व बैंक डब्ल्यूपीआईएल को ऐसे अधिक नोट देना चाहता है, लेकिन कंपनी हफ्ते में 40 टन नोट ही ले रही है। इसके साथ ही एक टन नोट के लिए कंपनी सेंट्रल बैंक को 250 रुपये चुकाती है।
 
बनाते हैं कई प्रॉडक्ट्स
बता दें कि डब्ल्यूआईपीएल के पास स्वीडन में बनी हाई एनर्जी पल्पिंग प्रेस है। कंपनी इनकी मदद से मिनटों में पल्प से वुड चिप्स और दूसरे री-साइकल्ड प्रॉडक्ट्स बनाती है। मोहम्मद ने बताया, 'हमारे करंसी नोट टॉप क्वॉलिटी पेपर से बने होते हैं। इसे न्यूजप्रिंट या क्राफ्ट पेपर कंपनियों के नॉर्मल प्रोसेस से री-साइकल नहीं किया जा सकता।'
 
 
लंबे वक्त तक चलते हैं इस तरह के प्रॉडक्ट्स
बता दें कि डब्ल्यूआईपीएल में नोटों के टुकड़ों को वुड चिप्स के साथ मिलाया जाता है और उसके बाद उसे प्रेस में डाला जाता है। 100 किलो के पल्प को प्रेस करने में सात किलो नोट का इस्तेमाल होता है, बाकी वुड टिप्स होते हैं। कंपनी के यार्ड में नोटों की बोरियां लगातार आ रही हैं, लेकिन डब्ल्यूआईपीएल इस रेशियो को आगे भी मेंटेन रखेगी।
 
मोहम्मद ने बताया, 'हमारे पल्प की फाइबर डेंसिटी पर बुरा असर ना हो, इसलिए हमने रेशियो को मेंटेन रखने का फैसला किया है। हम इस पल्प की मदद से लंबे समय तक चलने वाले कई प्रॉडक्ट्स बनाते हैं।' कुछ दशक पहले तक दुनिया भर के सेंट्रल बैंक पुराने नोटों को जलाते थे। हालांकि, पर्यावरण को लेकर चिंता बढ़ने के बाद उन्होंने ऐसा करना बंद कर दिया।

Courtesy: National Dastak

Trending

IN FOCUS

Related Articles

ALL STORIES

ALL STORIES