नई दिल्ली। चुनाव आयोग ने सोमवार को आपराधिक मामलों में दोषी ठहराए जाने वाले सांसदों-विधायकों को तुरंत अयोग्य घोषित करने की मांग की। चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वह आपराधिक मामलों में दोषी पाए गए सांसदों-विधायकों को तुरंत अयोग्य घोषित करने के पक्ष में है। लेकिन चुनाव संबंधी कानून के प्रावधान इसमें रोड़ा अटकाते हैं। आयोग ने कहा कि दोषी नीति निर्माता लोकसभा या राज्यसभा और संबंधित विधानसभाओं के प्रधान सचिव द्वारा अयोग्यता और इसके कारण सीट खाली होने की अधिसूचना जारी करने के समय तक दोषी विधिनिर्माता सांसद और विधायक के रूप में अपना दर्जा कायम रखते हैं।
चुनाव आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मीनाक्षी अरोड़ा ने चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ के सामने यह दलीलें पेश कीं। मीनाक्षी अरोड़ा ने पीठ से कहा कि इस चरण में जाकर चुनाव आयोग का काम आता है और उस खास रिक्त सीट का चुनाव कार्यक्रम घोषित होता है। पीठ उस स्थिति के बारे में जानना चाहती थी जब निचली अदालत के आदेश पर रोक या निलंबन होगा।
आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई, 2013 को आदेश जारी कर कहा था कि आपराधिक कृत्य के लिए दोषी करार दिए जाने पर किसी निर्वाचित जनप्रतिनिधि को तत्काल आयोग्य घोषित कर दिया जाय।
इस पीठ में न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव भी शामिल थे। जब पीठ ने अतिरिक्त सालिसिटर जनरल मनिंदर सिंह से मदद मांगी तो सिंह ने कहा कि विधिनिर्माता को उस सूरत में राहत मिल सकती है अगर ऊपरी अदालत दोष सिद्धि पर रोक लगाती है या निलंबित करती है लेकिन केवल सजा पर निलंबन दोषी सांसदों या विधायकों की मदद नहीं कर पाएगा।
बेंच ने पूछा कि अगर निचली अदालत के आदेश पर ऊपरी अदालत रोक लगा दे तो क्या होगा? इस पर एडिशनल सॉलिसीटर जनरल मनिंदर सिंह ने कहा, ‘ऊपरी अदालत सांसद-विधायक को बरी कर देती है तो उसे राहत मिल सकती है। पर केवल सजा पर निलंबन दोषी सांसदों या विधायकों की मदद नहीं कर पाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने आयोग से इस मामले में 4 हफ्ते में हलफनामा दायर करने को कहा।
Courtesy: National Dastak