बंगलुरू पुलिस ने गोरक्षकों के चंगुल से मुस्लिम परिवार को बचाया

गुजरात पुलिस गोरक्षकों से मोहम्मद अयूब को तो नहीं बचा पाई लेकिन ग्रामीण बंगलुरू पुलिस ने वक्त पर कदम उठा कर एक मुस्लिम परिवार को इन लोगों के हाथ में पड़ने से बचा लिया।

पिछले दिनों बंगलोर डेवलपमेंट अथॉरिटी (बीडीए) के एक पूर्व अधिकारी और एचएसआर लेआउट में रहने वाले 66 वर्षीय मोहम्मद नजीर अहमद ने परिवार के साथ अपने फार्महाउस में बकरीद मनाने का फैसला किया और वहां पहुंच गए। नजीर अहमद के साथ उनकी पत्नी नाइदा खानम और तीन बेटे थे। इनमें से एक बेटा ऑस्ट्रेलिया से सीधे बकरीद मनाने पहुंचा था।
 
गोरक्षक शायद इस परिवार का हाल भी 13 सितंबर में मारे गए मोहम्मद अयूब जैसा करते लेकिन बंगलुरू की ग्रामीण पुलिस ने समय पर कार्रवाई करके इसे बचा लिया। गोरक्षकों ने 13 सितंबर को अहमदाबाद में पीट-पीट कर बुरी तरह घायल कर दिया था। 16 सितंबर को इन चोटों की वजह से अस्पताल में उसकी मौत हो गई थी।
 
डेक्कन क्रॉनिकल की रिपोर्ट के मुताबिक अहमद फैमिली पिछले बुधवार की दोपहर को बकरीद मनाने अनेकल तालुक में पड़ने वाले बंगलुरू के बाहरी इलाके स्थित गांव बघेली पहुंची थी। यहां इस फैमिली का एक फार्महाउस है।
 
बकरीद के अगले दिन यहां इस परिवार ने दो बैलों की कुर्बानी दी। उनका इरादा कुछ मीट का इस्तेमाल करना और बाकी गरीबों में बांट देने का था। कानून के मुताबिक उन्होंने कोई अपराध नहीं किया था क्योंकि उन्होंने गाय की नहीं बैल की कुर्बानी दी थी। लेकिन गोरक्षकों की हिम्मत इतनी बढ़ गई है इस तरह की कोई भी खबर मिलने पर आ धमकते हैं और लोगों के साथ मारपीट करने लगते हैं। देश में भाजपा सरकार के आते ही इनकी हिम्मत बेहद बढ़ गई है।

बैलों की कुर्बानी देने की भनक अहमद परिवार के पड़ोसियों को लग गई और उन्होंने इलाके के कथित गोरक्षकों को खबर कर दी। देखते-देखते बड़ी तादाद में लोगों ने इस परिवार को घेर लिया। उनका कहना था कि वे एक हिंदू संगठन से जुड़े गोरक्षक हैं।  
 
अहमद परिवार के सदस्यों का कहना है कि जैसे ही दोनों बैलों की कुर्बानी दी गई कथित गोरक्षकों ने उन्हें घेर लिया। इससे पहले ये गोरक्षक फार्महाउस के इर्द-गिर्द मंडरा रहे थे।

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक फार्महाउस के नजदीक रहने वाले एक मारवाड़ी परिवार ने गोरक्षकों को इस कुर्बानी के बारे में खबर कर दी थी। गोरक्षकों की यह बताया कि अहमद परिवार गाय की कुर्बानी देने वाला है। हिंसक गोरक्षकों और आम लोगों की मिलीभगत का एक बेहतरीन उदाहरण है।
 
खतरे को भांपते ही नजीर अहमद ने फार्महाउस को अंदर से बंद कर लिया और बन्नेरूघट्टा पुलिस थाने की ओर से निकल गए। वहां से एक पुलिस कांस्टेबल के साथ घर पहुंचते ही उन्होंने देखा कि सैकड़ों लोग उनके फार्महाउस में घुस चुके हैं। उन्होंने नजीर के बेटे फतेह के साथ मारपीट की थी और उनकी कार के शीशे तोड़ डाले थे।
 
नजीर का परिवार खुद को बचाने के लिए कमरों में बंद हो चुका था। कुर्बानी की अफवाह पर वहां पहुंचते ही कथित गोरक्षकों ने उन्हें यह कह कर धमकाना शुरू किया कि वे बाहर नहीं निकले तो फार्महाउस में आग लगा देंगे। तब तक कांस्टेबल ने अपने आला अफसरों को फोन कर दिया था और नजीर परिवार को वहां से बचा कर निकाल लिया गया। फार्महाउस को गोरक्षकों की दया पर छोड़ दिया गया। वे लोग कहीं से एक जेसीबी ले आए और फार्महाउस में गड्ढा खोद कर कुर्बानी किए गए बैलों को इसमें डाल दिया।
 
नजीर कहते हैं कि कानून की अनदेखी कर उनके खिलाफ गोकशी का मामला दर्ज कर दिया गया। नजीर ने कहा कि उन्होंने अफसरों को बैलों की तस्वीर दिखाई। उनका कहना था कि उन्हें इस बारे में कानून पता है और पुलिस चाहे तो गड्ढे से बैलों को निकाल कर जांच कर सकती है।

इस हमले की वजह से नजीर अहमद के पूरे परिवार को दोपहर ढाई बजे से रात 11 बजे तक थाने में बैठे रहना पड़ा। बाहर गोरक्षक उनका इंतजार कर रहे थे। उनका इरादा परिवार के फोटो खींच कर मीडिया को सौंपना था।
 
बन्नेरूघट्टा पुलिस थाने के सब-इंस्पेक्टर मुरली का कहना था कि बुधवार को बड़ी संख्या में गोरक्षक फार्महाउस के बाहर जमा हो गए थे। कावेरी विवाद से पैदा हिंसा को नियंत्रित करने के लिए बड़ी संख्या में पुलिस बल लगाया था और उसके पास कर्मियों की कमी पड़ गई थी। लेकिन हमारे दिमाग में पहली बात यही आई कि गोरक्षकों से घिरे परिवार को बचाना है। नजीर अब उन हमलावरों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने जा रहे हैं, जिन्होंने उनके बेटे के साथ मारपीट की थी।
 

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