दिल्ली के नए उप-राज्यपाल पर उठे सवाल, आखिर क्या है भगवा कनेक्शन?

नई दिल्ली। दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग ने 22 दिसंबर को उपराज्यपाल पद से इस्तीफ़ा दे दिया था। इसके बाद रिटायर्ड आइएएस अधिकारी अनिल बैजल को दिल्ली का नया उप राज्यपाल नियुक्त किया गया है। केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय राजधानी के इस अहम पद के लिए अनिल बैजल का चयन किया है। लेकिन उनके नाम की नियुक्ति पर केंद्र सरकार पर एक बार फिर से सवाल उठने लगे हैं। 

Anil baijal
 
2014 में मोदी सरकार आने के बाद जिन भी संस्थाओं में नियुक्ति हुई है उन सबकी नियुक्ति में सरकार पर भगवाकरण के आरोप लगते रहे हैं। विपक्षी दल सरकार पर सभी संस्थानों और नियुक्तियों में संघ के लोगों को बैठाने का आरोप लगाते रहे हैं। यही आरोप दिल्ली के उप-राज्यपाल की नियुक्ति पर भी उठ रहे हैं।
 
अनिल बैजल 1969 बैच के आईएएस अफसर हैं और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के दौरान केंद्रीय गृह सचिव रह चुके हैं। लेकिन उनके साथ जो विवाद की वजह है कि वह विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन में एक्जिक्यूटिव कौंसिल के सदस्य भी रह चुके हैं।

बैजल सन 2006 में शहरी विकास मंत्रालय के सचिव पद से रिटायर हुए थे। इसके बाद वे विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन की कार्यकारिणी समिति के सदस्य बने। इस संस्थान से पहले भी कई सदस्यों को सीनियर पदों पर लाया जा चुका है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनने से पहले अजीत डोभाल भी इस समिति के सदस्य रह चुके हैं।
 
आपको बता दें कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद एक संस्था बेहद तेजी से चर्चा में आई है, वह है विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन (वीआईएफ)। दिल्ली के चाणक्यपुरी इलाके में स्थित यह फाउंडेशन वैसे तो 2009 से ही सक्रिय था लेकिन इसके बारे में कहीं कोई खास चर्चा सुनाई नहीं देती थी। लेकिन आज यह संस्थान राजनीतिक-प्रशासनिक गलियारों में चर्चा का केंद्र बना हुआ है।  
 
दिल्ली के सत्ता गलियारों में यह कहा जाने लगा है कि सरकार के लिए वीआईएफ एक ऐसा नियुक्ति केंद्र बन गया है जहां संघ और मोदी के मनमाफिक लोगों की एक पूरी फौज है। सरकार की हर जरूरत का आइडिया और इंसान वीआईएफ में मौजूद है। 
 
यहीं से यह प्रश्न खड़ा होता है कि ऐसा क्या है वीआईएफ में जिसने इसे पीएम मोदी का चहेता बना दिया है? क्या काम करती है यह संस्था? कौन लोग इससे जुड़े हैं?
 
दरअसल वीआईएफ अजित डोवाल के दिमाग की उपज है। 2005 में आईबी प्रमुख के पद से रिटायर होने के बाद 2009 में डोवाल ने इसकी स्थापना की थी। इसका उद्घाटन उस साल दिसंबर माह में माता अमृतानंदमयी और न्यायमूर्ति एमएन वेंकटचलैया ने किया था।
 
वीआईएफ कन्याकुमारी स्थित उस विवेकानंद केंद्र से संबद्ध है जिसकी स्थापना 1970  में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाहक एकनाथ रानाडे ने की थी। दिल्ली के चाणक्यपुरी इलाके में 1993 में तत्कालीन नरसिम्हा रॉव सरकार ने दिल्ली में भी इस संस्थान को जमीन आवंटित की थी। बाद में यहीं वीआईएफ की स्थापना हुई।
 
संस्था अपने विजन और मिशन के बारे में बताते हुए लिखती हैं,  ‘वीआईएफ एक स्वतंत्र और निष्पक्ष संस्थान है जो गुणवत्तापूर्ण अनुसंधान और गहन अध्ययन को बढ़ावा देता है। संस्था का काम उन सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक गतिविधियों पर नजर बनाए रखना है जो भारत की एकता और अखंडता पर असर डाल सकती है।’
 
वीआईएफ ने पिछले सालों में सबसे बड़ा काम यूपीए सरकार के खिलाफ माहौल बनाने का किया है। यूपीए-2 के कार्यकाल में कांग्रेस पार्टी और सरकार के खिलाफ जो आक्रामक माहौल बना उसे तैयार करने में फाउंडेशन की भी एक महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

Courtesy: National Dastak
 

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