दिल की बात जुबां पर आ जाना इसे ही कहते हैं. आरएसएस के प्रमुख नेता और बीजेपी के महासचिव मुरलीधर राव इस कार्यक्रम में आए तो थे दलितों के उत्थान के बारे में बात करने. सम्मेलन का विषय था इंटरप्रिन्योरशिप के जरिए दलितों का विकास. लेकिन मुरलीधर राव ने अपना पूरा भाषण वहां जमा दलितों को यह समझाने के लिए दिया कि दलितों को मुसलमानों से क्यों बचकर रहना चाहिए.
इसके लिए उन्होंने ये तर्क दिया कि मुसलमानों के साथ मिलकर रहोगे तो मिट जाओगे. इस संदर्भ में उन्होंने पाकिस्तान की मिसाल दी. उन्होंने कहा कि दलितों और मुसलमानों की एकता न कभी बनी थी, न कभी बनेगी. और बनेगी तो नुकसान दलितों का होगा.
यह अजीब बात है. एक संगठन जिसका दावा है कि वह राष्ट्रीय एकता के लिए काम करता है, को इस बात पर एतराज है कि दो समुदाय करीब क्यों आ रहे हैं. अगर ये दो समुदाय, जैसा कि मुरलीधर राव का कहना है, इतिहास में कभी दोस्त नहीं रहे, अब अगर नई दोस्ती करना चाहते हैं, तो किसी को जलन क्यों होनी चाहिए?
लेकिन यह जलन है और धुआं भरपूर उठ रहा है.
इस जलन की वजह है उत्तर प्रदेश का चुनाव.
उत्तर प्रदेश में दलित यानी अनुसूचित जाति की आबादी 20.5 परसेंट है. राज्य में मुस्लिम आबादी 19.26 परसेंट है. दोनों को मिलाकर 40 परसेंट का आंकड़ा बनता है.
यूपी के पिछले लोकसभा चुनाव को देखें तो समाजवादी पार्टी को 29.13 परसेंट वोट मिले थे और 403 सदस्यों वाली विधानसभा में 224 सीटें लेकर उसने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी.
ऐसे में 40 परसेंट वोट के एकजुट होने का मतलब आप समझ सकते हैं, अगर यह हुआ तो बीजेपी के लिए 20 एमएलए जिताना भी भारी पड़ेगा. अगर बीजेपी यूपी में इतनी बुरी तरह पिटती है, तो अमित शाह के लिए नौकरी बचाना मुश्किल हो जाएगा. केंद्र की सरकार के लिए भी इसके गहरे मायने होंगे.
2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की जीत की एक बड़ी वजह मुसलमान मतों का विभाजन भी था. यह बात बीजेपी समझ रही है.
आप समझे या न समझें. आरएसएस के मुरलीधर राव तो भलीभांति समझ रहे हैं. आरएसएस ने मुरलीधर राव पर यूपी का काफी जिम्मा सौंप रखा है. वे समझदार आदमी हैं. वे सब समझ रहे हैं. इसलिए वे दलितों और मुसलमानों में मतभेद पैदा करना चाहते हैं. इसी लिए बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह कहते हैं कि बीजेपी का मुख्य मुकाबला समाजवादी पार्टी से है.
(Dilip Mandal is Consultant Editor with SabrangIndia)