22 जनवरी सुप्रसिद्ध मार्क्सवादी विचारक -लेखक अंतोनियो ग्राम्शी (1891 -1937) का जन्मदिन है .उन्हें सजा देते हुए इटली की फासिस्ट हुकूमत के कोर्ट कहा था -' for twenty years we must stop this brain from working ' (हमें इस दिमाग को 20 साल तक काम करने से रोक देना चाहिए).
यह 1928 की बात है .ग्राम्शी तब इटली की संसद के सदस्य भी थे . उन्हें बीस साल और आठ महीने की सजा सुनाई गई . पहले से ही रुग्ण -हाल ग्राम्शी की जेल में कठिनाइयों का हम अनुमान ही लगा सकते हैं . इस हाल में भी उन्होंने प्रिजन नोट बुक लिखा . 1937 में दर्दनाक स्थितियों में उनकी मृत्यु हुई .
ग्राम्शी की जीवन गाथा दिल दहलाने वाली है .इतनी विपरीत स्थितियों में भी इंसान महत्तम विमर्श कर सकता है ,इस बात पे आश्चर्य होता है . उनके लेखन से दुनिया लंबे समय तक अनजान रही . 1957 में अंग्रेजी में पहली दफा modern prince आया ,1971 में prison notebooks . भारत में उन्हें 1980 के बाद ही जाना गया . नामवर सिंह ने अपनी किताब 'दूसरी परंपरा की खोज 'में उन्हें उद्धृत किया है .
ग्राम्शी को पढ़ते हुए मुझे बार बार फुले -आंबेडकर याद आते हैं और लेखक मुक्तिबोध भी . ग्राम्शी ने मार्क्सवाद की जड़ता को दूर करने का प्रयास किया और बतलाया कि केवल आर्थिक शक्तियां नहीं ,सांस्कृतिक वर्चस्व भी वैश्विक घटनाओं को तय करते हैं . यह भी कि परिवर्तन बैठे -बिठाये नहीं ,प्रयास करने से ही संभव होगा . और कि इसे औद्योगिक मज़दूर वर्ग ही नहीं ,पारंपरिक दस्तकार -किसान तबका भी संभव कर सकेगा .
ग्राम्शी के विचार पूरी दुनिया के लिए प्रासंगिक है ,लेकिन हमारे भारत के लिए कुछ ज्यादा ही . आज भारत में फासिस्ट प्रवृतियां सत्ता पर काबिज हो चुकी हैं और वाम -जनवादी ताकतों को वैचारिक लकवा मार गया है . इस परिप्रेक्ष्य में नए वैचारिक आवेग और राजनितिक ध्रुवीकरण की सख्त ज़रूरत है . ग्राम्शी के विचार हमें रास्ता दिखा सकते हैं . इसलिए वह आज खास तौर पर याद आरहे हैं . जन्मदिन पर उन्हें सलाम .
(साहित्यकार और चिंतक)