शुक्रवार को एनसीआरबी ने जेल में रहने वाले कैदियों पर एक रिपोर्ट जारी किया है। एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार जेल में रहने वाले तीन में से दो कैदी दलित, पिछड़े और कम पढ़े-लिखे तबके के लोग हैं। एनसीआरबी ने ये आंकड़े तब जारी किए हैं जब देश के पांच राज्यों में चुनाव होने हैं और इन राज्यों में धर्म और जाति के आधार पर अक्सर वोटों का ध्रुवीकरण देखने को मिलता है।
एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार देश की जेलों में बढ़ रहे कैदियों की संख्या आंकड़ों को भयावह बनाती है। दिल्ली 226 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी के साथ देश में बढ़ रहे कैदियों की संख्या में तीसरे नंबर पर है। दादर एवं नगर हवेली पहले और छत्तीसगढ़ दूसरे नंबर पर है। एनसीआरबी की आंकड़ों के अनुसार 95 प्रतिशत भारतीय कैदी पुरुष होते हैं। वहीं आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश में महिला कैदियों की संख्या पुरुष कैदियों के रेशियो में सबसे अधिक है।
सबसे ज्यादा चकित करने वाले आंकड़े विचाराधीन कैदियों के हैं। देश की जेलों में बंद 67 प्रतिशत यानि की 4,19623 संख्या विचाराधीन कैदियों की है। देश के 67.2 प्रतिशत विचाराधीन कैदियों में बिहार में विचाराधीन कैदियों का अनुपात सबसे ज्यादा 82.4 प्रतिशत तो उत्तराखण्ड में अनुपात सबसे कम 52.7 प्रतिशत है।
एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश में कैदियों की संख्या सबसे ज्यादा है। उसके बाद मध्य प्रदेश दूसरे और महाराष्ट्र तीसरे नंबर पर है। वहीं लक्षदीप में कैदियों की सबसे कम संख्या है। देश के उत्तरी राज्यों में अनुसूचित जाति के कैदियों की संख्या सबसे ज्यादा है। एनसीआरबी की आंकड़ों के अनुसार पांच में से एक कैदी मुसलमान है जबकि 70 प्रतिशत कैदी हिन्दू हैं।
एनसीआरबी के ये आंकड़े दलितों के उस बात को सच साबित करती हुई प्रतीत होती है जिसमें पूरे भारत में दलितों की ये शिकायत रहती है कि अक्सर पुलिस और कानून द्वारा उनके साथ जातिगत भेदभाव किया जाता है।
Courtesy: National Dastak
Image Courtesy: Times of India