इस महीने 19 तारीख को असम का नगांव जिला प्रशासन काजीरंगा नेशनल पार्क के नजदीक बंदरडुबी के सैकड़ों किसान परिवारों को उनकी जगह से बेदखल करने जा पहुंचा।
Assam protest (Representational Image) DNA
पिछले साल गुवाहाटी कोर्ट ने इन लोगों से यह जमीन खाली कराने आदेश दिया था ताकि काजीरंगा नेशनल पार्क को और बड़ा किया जा सके। हाईकोर्ट ने कहा था कि जमीन खाली कराने से पहले इसके लिए जरूरी कानूनी प्रक्रियाएं पूरी की जाएं। इसके बाद ही जमीन खाली कराने का कदम उठाया जाए। किसान परिवार 1980 से ही यहां बसे हुए हैं और उन्हें इन जमीनों का पट्टा भी दिया गया है।
इस साल हुए असम चुनाव के प्रचार में भाजपा ने बड़े जोर-शोर से यह कहा था कि सरकार में आने पर वह इन परिवारों को यहां से हटा देगी ताकि काजीरंगा नेशनल पार्क को बचाया जा सके।
पिछले कुछ दिनों के दौरान असम की बीजेपी सरकार ने लोगों को जमीन से बेदखल करने की अपनी कवायद शुरू कर दी है। कुछ दिन पहले असम के वित्त मंत्री हेमंत विस्वसर्मा ने इलाके के किसान परिवारों को इकट्ठा कर कहा कि उन्हें पहले जमीन छोड़नी होगी इसके बाद ही मुआवजा देने पर विचार किया जाएगा। लेकिन जब किसान परिवारों ने कहा कि बगैर मुआवजा लिये वे यहां से नहीं हटेंगे तो सरकार ने कहर ढाना शुरू कर दिया।
चंद दिनों पहले केएमएसएस ( किसान मुक्ति संघर्ष समिति) ने एक प्रेस कांफ्रेंस कर किसानों को मुआवजा देने और उनक हक के मुद्दों को सुलझाने की मांग की थी। संगठन ने किसानों की जीविका के सवाल को सांप्रदायिक रंग देने से बाज आने की भी अपील की थी। लेकिन 19 सितंबर की सुबह असम पुलिस और सीआरपीएफ के 1000 जवान जेसीबी और हाथियों के साथ इलाके में पहुंच गए और किसानों के घरों को जलाना शुरू कर दिया। जब किसान परिवारों ने इसका विरोध किया तो पुलिस ने उन पर गोलियां चला दीं। इस फायरिंग में दो महिललाओं के घटनास्थल पर ही मारे जाने की खबर है। दस लोग गंभीर रूप से घायल हो गए हैं।
इसके बाद भी पुलिस नहीं रुकी और किसानों के घरों को जलाती रही। इससे किसानों की संपत्ति को भारी नुकसान हुआ। किसानों की संपत्तियों को हाथियों से कुचलवा दिया गया।
(कृषक मुक्ति संग्राम समिति, असम (केएमएसएस) के अध्यक्ष अखिल गोगोई की ओर भेजी गई रिपोर्ट पर आधारित)