कारोबारियों को नहीं दलित जोतदारों को जमीन दिलाना हमारा मिशन – जिग्नेश मेवानी

वकील और सामाजिक कार्यकर्ता जिगनेश मेवानी का नाम इस साल जुलाई महीने में पूरे देश में छा गया। दल‌ितों को जमीन का अधिकार दिलाने के ल‌िए अदालती लड़ाई लड़ने वाला यह युवक उना कांड के बाद उभरे आंदोलन का नेतृत्व कर रहा था। उना में चार दल‌ित युवकों की सिर्फ इसलिए बर्बरता से पिटाई की गई थी वे मरे हुए जानवरों की खाल निकालने का अपना काम कर रहे थे।
 
इस घटना के बाद मेवानी ने देश के स्वतंत्रता दिवस पर इसके विरोध में दलितों के मार्च के नेतृत्व किया था। अहमदाबाद से उना तक निकाली गई इस यात्रा के चार महीने हो चुके हैं। इस अदभुत मार्च का नेतृत्व करने वाले इस दलित नेता और वकील से तीस्ता सीतलवाड़ ने हाल की बातचीत में यह पूछा कि आज की तारीख में उनका यह आंदोलन कहां खड़ा है। इस सवाल के जवाब में जिग्नेश ने कहा- भारतीय समाज के सामंती ढांचे को तोड़ने के लिए बेहद अहम भूमि सुधार अब दलित एजेंडे में तेजी से शामिल होता जा रहा है। यह एजेंडा काफी वर्षों से लगातार उठाए जा रहे दलितों पर अत्याचार के मुद्दों  के बीच दब गया था। दलित मुद्दों को ब्राह्ममणवाद और मनुवाद के विमर्श तक ही सीमित कर लेने की वजह से यह मुद्दा जोर-शोर से नहीं उठ सका। रोटी, कपड़ा और मकान जैसा आर्थिक मुद्दा नहीं उठ रहा था।
 
भारत के दलितों, दबे-कुचलों और हाशिये पर लोगों के लिए आत्म सम्मान का संघर्ष आर्थिक अधिकार और समानता की लड़ाई जितना ही महत्वपूर्ण है। ग्लोबलाइजेशन के बाद के भारत में ऐसी मांग को एजेंडे में आगे रखने की जरूरत और बढ़ गई है।
 
लेकिन अब यानी उना के संघर्ष के बाद भारत की निचली जातियों के लिए आर्थिक वंचना के मुद्दे एक बार फिर संघर्ष के एजेंडे में लौट आए हैं।  दलित आंदोलन को अपने काबू में रखन वाला परंपरागत दलित नेतृत्व ने भी आंदोलन के दायरा बढ़ाए जाने का स्वागत किया है।
 
जिग्नेश कहते हैं – मैं कुछ नई चीजों को उभरता हुआ देखना चाहता हूं।  हम 26 जनवरी से 5 मार्च तक माकपा शासित केरल में मार्च करेंगे ताकि केरल के पांच लाख दलितों को जमीन देने का जो वादा किया गया था जो पूरा हो सके। इसी तरह हम बिहार में बोध गया से पटना तक मार्च करेंगे ताकि जनता दल यू और आरजेडी की ओर से 22 लाख एकड़ जमीन चिन्हित करने और इसे दलितों में बांटने का जो वादा किया गया है उसे पूरा किया जाए। सामाजिक न्याय का यह कदम लोगों के दिल में घर कर गया है। हमारी कोशिश है कि सामाजिक न्याय का यह वादा धरातल पर उतरे न कि सपना रह जाए।
 
जिग्नेश के मुताबिक, चोटिला ब्लॉक के सुंदरनगर और सरोदा ब्लॉक के ढोलका में 700 एकड़ जमीन अब 300 परिवारों को मुहैया कराई जाएगी। यह पूरी जमीन 150 करोड़ रुपये की है। 
 
आर्थिक और सामाजिक न्याय के लिए गुजरात के गांवों से होकर मार्च करते दलित महिलाओं और पुरुषों का नया नारा है- घूंघट से नाता तोड़ो, जमीन से नाता जोड़ो। गुजरात में 14 अप्रैल से यह नारा गुजरेगा। इस तारीख से हम गुजरात में कांट्रेक्ट सिस्टम के रोजगार का ना कहेंगे। इस  सिस्टम से गुजरात में 50-60 हजार रोजगारों की गुणवत्ता प्रभावित हुई है। हमारी कोशिश है कि जातिगत भेदभाव और हिंसा तो रोके ही साथ आर्थिक वंचना के सिलसिले पर भी लगाम लगे। 
 
गुजरात के मुसलमान भाइयों के लिए मूल नागरिक सुविधाओं की लड़ाई भी एक मुद्दा है। मुस्लिम एक इलाके में रहने को बाध्य हैं। वे झुग्गियों और चाल में रहने को मजबूत हैं। वे उन इलाकों में रहने को बाध्य हैं जहां न तो सड़क और न गटर और न बिजली-पानी।
 
कानूनी लड़ाई
गुजरात की अदालत में दायर एक याचिका पर मेवानी खुद पैरवी कर रहे हैं। इस मामले में गुजरात सरकार के अधिकारियों ने यह स्वीकार किया है  कि गुजरात में हजारों एकड़ जमीन दलितों की दी जानी है लेकिन एक इंच जमीन भी अब तक उन्हें नहीं मिली है। अहमदाबाद और सुरेंद्रनर (चोटिला) में दलितों को दी जाने वाली जमीन तय हो गई है। लेकिन इस जमीन पर दलितों के कानूनी हक साबित हो जाने के बाद भी राज्य के अंदर राजनीतिक और प्रशासनिक इच्छाशक्ति नहीं दिखती।  दलितों को देने के लिए जमीनों की कोई नाप नहीं की गई। उनके हक की जमीनों पर न तो अतिक्रमण हटा है और न ही दलितों पर होने वाले अत्याचार पर दलित अत्याचार निरोधक कानून की धारा ३ (१) (एफ) के तहत कार्रवाई होती है। 
 
जिग्नेश कहते हैं – अब आप ही बताइए कि कानूनी का क्या मतलब रह जाता है जब राज्य कोर्ट से कहता है कि समस्या और सूचनाएं इतनी अधिक है कि इस योजना को लागू करना असंभव है। किसी भी तरीके से यह बात समझ में नहीं आती है। मामलों की सुनवाई करने वाले गुजरात हाई कोर्ट ने शिकायतों में दम पाया और राज्य के तीन नोडल अफसरों की एक टीम बनाई। इस टीम ने जमीनी स्तर पर रिकार्डों की जांच की और माना कि दलितों के हक उन्हें नहीं मिले। राज्य ने शर्मसार होते हुए कोर्ट के सामने माना कि गवर्नेंस के मामले में यह फेल साबित हुआ है और अपनी ही नीतियों लागू करने में नाकाम रहा है।
 
जिग्नेश मेवाणी कहते हैं – हमें आंदोलन की जरूरत है। शिकायतों के निवारण और न्याय के लिए संघर्ष करना होगा। हमारी लड़ाई अदालत में चलती रहेगी। लेकिन हमें सड़कों और गलियों में भी अपना संघर्ष जारी रखेंगे। खुले मैदान की लड़ाई में हम ज्यादा सफल रहे हैं।
 
 वर्ष 2016 में सुरेंद्रनगर के आंदोलन में हमने आंदोलन के दौरान हमने संपर्क सड़कों को बंद कर दिया और सरकार को इस बात के लिए बाध्य किया कि वह सुरेंद्रनगर जिले के चोटलिया ब्लॉक की 532 एकड़ जमीन की नाप कराए। इसी तरह ढोलका के सरोदा ब्लॉक में आंदोलन के बाद प्रशासन ने 220 एकड़ जमीन की नाप के लिए बाध्य हुआ। लेकिन तीन बड़े आंदोलनों के बाद। लेकिन इन आंदोलनों के जरिये हम एक महीने में हम 150 करोड़ रुपये की जमीन हासिल कर लेंगे। 700 एकड़ की इस जमीन से 300 से ज्यादा दलित परिवारों को उनका हक मिलेगा।
 
मेवानी कहते हैं- आंदोलन की राह में ये छोटे कदम हैं और उना आंदोलन के बाद की अहम जीत। लेकिन बड़ा सवाल अभी अनसुलझा है। हजारों एकड़ जमीनी ऐसी है, जिसे दलितों में बांटा जाना है। जब गुजरात और सौराष्ट्र अलग हुए थे तो उचंगभाई ढबेर की सरकार ने भूमि सुधार के जरिये 12 लाख और 25 लाख एकड़ जमीन हासिल की थी। लेकिन दलितों को क्या मिला। कुछ भी नहीं।
 
किसानों की जमीन गुजरात और देश के बड़े उद्योगपतियों की बन गई है   
 मेवानी कहते हैं- भारतीय समाज के सामंती ढांचे को तोड़ने के लिए जमीन हासिल करना पहला कदम है। उसके बाद सब्सिडी पर बीज, खाद और अनाज हासिल करना अगला संघर्ष होगा। 
 
गुजरात की बड़ी दलित आबादी के लिए आंदोलन और जागरुकता जरूरी है। जो अभी देखने को नहीं मिल रहा है। देश में यहां-वहां दलित चेतना के कदम उठ रहे हैं और इसलिए कदम इसे मजबूत करने पर होगा। पूरे देश में इस दलित संघर्ष को लेकर सकारात्मक माहौल है लेकिन चुनौतियां भी काफी हैं।

जिग्नेश मेवानी भारत के दलितों के लिए आर्थिक और सामाजिक न्याय सुनिश्चित  करने के लिए युवा अंबेडकरवादी संघर्ष का चेहरा बन चुके हैं। वह कहते हैं कि गुजरात में दलित आंदोलन ने राज्य और इसके बाहर इस तरह के संघर्षों की एक दिशा तय कर दी है।
 
जिग्नेश के नेतृत्व में निकले आजादी की ओर मार्च की दस मांगें-
  

  • उना में दलितों के पिटाई के दोषियों के खिलाफ प्रिव्हेंशन ऑफ एंटी सोशल एक्ट लगे। ताकि वे जब जमानत पर रिहा तो उन्हें फिर गिरफ्तार किया जा सके। सभी आरोपियों को गिरफ्तार किया जाए।
  • 11 जुलाई को दलित युवकों की पिटाई और अपमान में मिलीभगत रखनेवाले पुलिस अफसरों के खिलाफ आपराधिक साजिश और अत्याचार अधिनियम के तहत मामला चलाया जाएगा। 
  • पिछले रविवार को 70-80 दलितों के खिलाफ शिकायतें दर्ज की गई हैं। सिर्फ ढोढका पुलिस ने 31 जुलाई को 43 ऐसे मामले दर्ज किए थे। सिर्फ इसलिए कि 31 जुलाई को ऐतिहासिक प्रदर्शन में इऩ लोगों ने हिस्सा लिया था। इनके खिलाफ दर्ज मामले तुरंत वापस लिए जाएं। 
  • वर्ष 2012 में दलितों के शांतिपूर्ण आंदोलन (थांगड़, सुरेंद्रनगर) करने वाले दलितों पर एके 47 से गोलियां चलाने वाले पुलिस अफसरों के खिलाफ मामलों और मुदमों की सुनवाई तेज की जाए। इस मामले को चार साल हो गए लेकिन न तो जांच रिपोर्ट सार्वजनिक हुई है और न ही आरोपपत्र दाखिल हुए हैं। 
  • दलित  अत्याचार निरोधक कानून के तहत स्पेशल कोर्ट गठित किए जाएं। कानूनन गुजरात के 25 जिलों में इन्हें लागू करना कानूनन अनिवार्य है। 
  •  दलित अत्याचार निरोधक कानून की धारा 3 (1) (एफ) के तहत दलितों के पांच एकड़ जमीन देना जरूरी है। इसे पूरा किया जाए। 
  • गुजरात के हर नगरपालिका और स्थानीय निकायों में काम करने वाले सफाई कर्मचारियों को छठे वेतन आयोग की तरह वेतन दिया जाए। 
  • गुजरात में आरक्षण कानून तुरंत लागू किया जाए। गुजरात में आज की तारीख में रिजर्वेशन या अफर्मेटिव कदम कार्यपालिका की मर्जी पर निर्भर है।  इन्हें सरकार के रेज्यूलेशन और जनरल ऑर्डर पर तुरंत लागू किया जाए। 
  • अनुसूचित जाति-जनजाति के लिए जो बजटीय आवंटन है उनका इस्तेमाल सिर्फ इन्हीं पर हो। आज की तारीख में इनके लिए गुजरात में जो फंड आवंटित होता है उन्हें डायवर्ट कर दिया जाता है। 
  • गुजरात सरकार देश भर के दलितों के सामने डॉ बाबा साहेब अंबेडकर की उस किताब के उन अंशों को हटाने के लिए सार्वजनिक तौर पर माफी मांगे, जिनमें हिंदू धर्म के खिलाफ उनके क्रांतिकारी विचार थे और बौद्ध धर्म की दीक्षा लेने के लिए उन्होंने 22 सूत्रीय शपथ ली थी।  

आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक 2010 से 2014 के बीच गुजरात में दलितों के खिलाफ अत्याचार में 44 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। 2014 में देश में दलितों के खिलाफ अत्याचार के 47,064 मामलों में 30 फीसदी सिर्फ बीजेपी शासित राज्यों यानी राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और छत्तीसगढ़ में हुए हैं।
 
पिछले कुछ सप्ताहों में बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने कांग्रेस शासित प्रदेश कर्नाटक में दलितों की पिटाई की। गुजरात और महाराष्ट्र में भी दलितों की पिटाई हुई। नीतीश कुमार शासित बिहार में उन पर पेशाब किया गया। लखनऊ और गुजरात में गोरक्षकों का अत्याचार जारी है।
 
आजादी कूच मार्च की कुछ अन्य मांगें इस तरह हैं-
 ♦ वनाधिकार कानून के तहत जमीन के लिए आदिवासियों की ओर से गुजरात सरकार को दिए गए 1,20,000 आवेदनों के आधार पर तुरंत जमीन का आवंटन हो।
 ♦ गुजरात में दलित आत्मरक्षा  के हथियारों के लाइसेंस मांग रहे हैं। दलित खुद को सुरक्षित महसूस नहीं करते।उन पर हमले होते हैं। लिहाजा उन्हें हथियार लाइसेंस देने में तेजी अपनाई जाए।
♦ दलितों को मार्शल आर्ट, जूडो कराटे सिखाने के लिए तालीम सेंटर (ट्रेनिंग सेंटर) खोले जाएं। अन्य समुदायों और जातियों की तरह ही उनके लिए खेल महाकुंभ आयोजित किए जाएं।
 ♦ दलितों के लिए स्मार्ट सेंटर खोले जाएं ताकि वे सामाजिक भेदभाव से बच सके और दूरदराज इलाके में न रहें। वे भी नारंगपुरा के पॉश इलाकों में रह सकें।
 ♦ नरेंद्र मोदी के स्टार्ट अप इंडिया में दलितोंके लिए खास आर्थिक प्रावधान हों। इसके तहत दलितों का पुनर्वास किया जाए।
 
  
 
 

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