क्या नकली नोट छापने वाली दागी कंपनियों में छप रहे हैं हमारे नोट?

एक्सक्लूसिव :  मोदी सरकार के नोटबंदी का फैसला बुरी तरह सवालों से घिरता जा रहा है। ताजा सवाल यह  है कि आखिरकार इस सरकार ने आरबीआई की ओर से प्रतिबंधित कंपनी डेलारू को ही नोट छापने की मशीनें मुहैया कराने का कांट्रेक्ट क्यों दिया। वह भी बगैर किसी आधिकारिक घोषणा के।

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अप्रैल, 2016 तक डे ला रू लगातार नोटों की छपाई के लिए कागज की सप्लाई कर रही थी। इसके बाद मोदी सरकार ने इस बेहद संवेदनशील गतिविधि (नोट छपाई के लिए कागज सप्लाई) को जारी रखने के लिए इसका टेंडर दोबारा बहाल कर दिया। इस तथ्य के बावजूद कि 2010-11 में देश की सुरक्षा चिंताओं के मद्देनजर यह कंपनी प्रतिबंधित कर दी गई थी। असली सवाल यह है कि नोटों की छपाई के लिए अब कौन कागज की सप्लाई कर रहा है?

भारतीय रिजर्व बैंक ने बड़े ही रहस्यमय तरीके से बगैर किसी आधिकारिक घोषणा के करेंसी नोटों को दोबारा उन प्रेसों में छापने की इजाजत दे दी, जिनकी मशीनें, 2010-11 में काली सूची में डाल दी गई कंपनी डेलारू ने सप्लाई की थी। इस संबंध में आरबीआई के सर्कुलर में डेलारू (अब केबीए जियोरी) की ओर से सप्लाई की गई अत्याधुनिक मशीनों के बारे में अस्पष्ट संदर्भ दिया गया है। जबकि कंपनी की वेबसाइट में साफ तौर पर नोटों की छपाई में इसकी दिलचस्पी और भूमिका का ब्योरा है।
 
आरबीआई के अपुष्ट सूत्रों ने नाम का खुलासा ने करने की शर्त पर सबरंगइंडिया को बताया कि अप्रैल 2016 में पनामा पेपर्स खुलासा में नाम आने के बाद एक बार फिर इस कंपनी को काली सूची में डाल कर नोटों की छपाई के लिए पेपर सप्लाई से रोक दिया गया था।
 
इस बात की कोई आधिकारिक सफाई नहीं दी जा रही है कि आखिरकार क्योंकि 2011 में सुरक्षा कारणों से प्रतिबंधित कर दी गई एक कंपनी को 2014 से 2016 के बीच बगैर किसी आधिकारिक घोषणा के नोटों की छपाई के लिए कागज सप्लाई का टेंडर दोबारा जारी कर दिया गया। डेलारू को काली सूची में डाले जाने के हाल के कथित फैसले का भी न तो किसी सरकारी वेबसाइट और न ही आरबीआई की साइट में जिक्र है। 
 
 
सुरक्षा चिंताएं दरकिनार
 
डेलारू की मशीनों वाले प्रिंटिंग प्रेसों में नए नोट छापने की इजाजत देकर सरकार ने देश की सुरक्षा चिंताओं को दरकिनार कर दिया गया है।
 
यहां तक कि सरकार ने ब्रिटेन के सीरियस फ्रॉड ऑफिस (एसएफओ) की उस कार्रवाई को भी ध्यान में नहीं रखा, जिसके तहत 2010 में डेलारू गंभीर सुरक्षा लापरवाही की दोषी पाई गई थी। एसएफओ ने खुलासा किया था कि कंपनी के कई कर्मचारियों ने इसकी 150 ग्राहकों के लिए नोट छपाई के लिए इस्तेमाल होने वाले कागजों के सर्टिफिकेशन में घालमेल किया था। हाल में पनामा पेपर्स के खुलासों से भी पता चला कि इस कंपनी ने रिजर्व बैंक से नोट छापने का कांट्रेक्ट लेने के लिए नई दिल्ली के एक कारोबारी को 15 फीसदी कमीशन दिया था। ऐसी खबरें भी आई हैं- जिनमें कहा गया है कि नोटों की छपाई के इस्तेमाल होने वाले कागज की गुणवत्ता पर एतराज जताए जाने पर कंपनी ने आरबीआई को बतौर सेटलमेंट मनी के तौर पर 4 करोड़ पौंड अदा किए।

ऐसे में यह समझ से परे है कि इस तरह की दागी कंपनी को सरकार नोट छापने वाली मशीन और संभवतः नोट छापने की मंजूरी क्यों दे रही है। बाजार से नकली नोटों और काले धन को निकाल बाहर करने का दावा करने वाली सरकार का यह कदम सवालों के घेरे में है।

 
आरबीआई का सर्कुलर और डेलारू
 
डेलारू के बारे में आरबीआई का सर्कुलर इस तरह था- मैसूर में मौजूद मशीनरी मेसर्स डेलारू जियोरी अब केबीए जियोरी, स्विटजरलैंड की ओर से सप्लाई की गई गई है। मेसर्स कोमोरी कॉरपोरेशन, जापान की ओर से सप्लाई की गई मशीन सलबोनी भी मौजूद है। दोनों छपाई मशीनें अत्याधुनिक सिक्यूरिटी सर्विलांस सिस्टम से लैस हैं। लेकिन ये दोनों कांट्रेक्ट बगैर किसी सार्वजनिक घोषणा के दिए गए। सचाई यह है कि इस कंपनी को आरबीआई ने अपनी काली सूची में डाल दिया था। लेकिन इससे भी चिंता की बात यह है कि काली सूची में डालने की इस कवायद ( इस संबंध में गृह मंत्रालय और अन्य एजेंसियों के सर्कुलर) का रिकार्ड ही सरकार की वेबसाइट से मिटा दिया गया है। यह ज्यादा खतरनाक खेल की ओर इशारा करता है।

21 दिसंबर, 2011 को वित्त राज्य मंत्री नमो नारायण मीणा ने राज्यसभा को सूचित किया कि सरकार ने करेंसी नोट के लिए कागजों की सप्लाई करने वाली ब्रिटिश कंपनी डेलारू को प्रतिबंधित कर दिया है। दरअसल कंपनी जो कागज सप्लाई कर रही थी वो सुरक्षा मानकों पर खरे नहीं उतर रहे थे। टाइम्स ऑफ इंडिया ने इस आशय की खबर छापी थी। मीणा ने सदन को बताया था कि कंपनी ने कागज में कमी को स्वीकार किया था । कंपनी के इस कबूलनामे के बाद इस ब्रिटिश कंपनी को कागज सप्लाई से रोक दिया गया था।
 
 
क्या डेलारू 2000 के नकली नोट छापने में शामिल है?
 
इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट में कहा गया है – ये नोट बेहद गोपनीयता के साथ मैसुरू में छपते हैं। कागज इटली, जर्मनी और लंदन से आते हैं। अधिकारियों के मुताबिक अगस्त-सितंबर 2000 रुपये के 4.8 करोड़ नोट छपने शुरू हुए थे। इस दौरान इतनी ही संख्या में 500 के नोट भी छपने शुरू हुए थे। भारतीय रिजर्व बैंक नोट मुद्रण प्राइवेट लिमिटेड (बीआरबीएऩएमपीएल) के मैसुरू संयंत्र को डेलारू जियोरी, जो अब केबीओ जियोरी स्विट्जरलैंड ने ही स्थापित किया था।
 
द हिंदू की रिपोर्ट में कहा गया –
 
भारत जर्मनी की लुइजेनथल, ब्रिटेन की डेला रू, स्वीडन की क्रेन और फ्रांस और नीदरलैंड में मौजूद आरजो विजिन्स से नोट छापने के कागज आयात करता है। भारत ने 2014 को दो यूरोपीय कंपनियों को प्रतिबंधित कर दिया था। उन पर आरोप था भारतीय नोटों के सिक्यूरिटी फीचर्स के साथ छेड़छाड़ की गई थी और उन्हें पाकिस्तान को सप्लाई किए गए थे।

लेकिन इन कंपनियों से प्रतिबंधित हटा दिए गए। इन कंपनियों को काली सूची से भी हटा दिया गया। आखिर क्यों। आरबीआई के अधिकारी का कहना था कि ये कंपनियां नोट छपाई के कारोबार में पिछले डेढ़ सौ साल से सक्रिय हैं। ये कंपनियां किसी दूसरे देश को सूचनाएं देकर अपना धंधा चौपट नहीं करना चाहेंगी। जांच के बाद पता चला कि इन दोनों कंपनियों ने सिक्यूरिटी फीचर्स से छेड़छाड़ नहीं की थी। इसका सबूत मिलते ही इन दोनों कंपनियों से प्रतिबंध हटा दिया गया।

 
क्या इतनी गारंटी काफी है?
    
ब्रिटेन के सीरियस फ्रॉड ऑफिस (एसएफओ) ने जो खुलासा किया था उसके मुताबिक डेलारू गंभीर सुरक्षा लापरवाही की दोषी पाई गई थी। एसएफओ ने खुलासा किया था कि कंपनी के कई कर्मचारियों ने इसकी 150 ग्राहकों के लिए नोट छपाई के लिए इस्तेमाल होने वाले कागजों के सर्टिफिकेशन में घालमेल किया था। हाल में पनामा पेपर्स के खुलासों से भी पता चला कि इस कंपनी ने रिजर्व बैंक से नोट छापने का कांट्रेक्ट लेने के लिए नई दिल्ली के एक कारोबारी को 15 फीसदी कमीशन दिया था। नोटों की छपाई के इस्तेमाल होने वाले कागज की गुणवत्ता पर एतराज जताए जाने पर कंपनी ने आरबीआई को बतौर सेटलमेंट मनी के तौर पर 4 करोड़ पौंड अदा किए।

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