अगर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इस मामले में जोश के बजाय होश से काम नहीं लेता तो समझ लीजिये कि वह जाने या अनजाने में भाजपा का सियासी खेल खेल रहा है।
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इन दिनों मुस्लिम पर्सनल लॉ का बहुत शोर है. कभी मुस्लिम पर्सनल लॉ तो कभी दूसरी ओर से भाजपा के नेता मुसलमानों में तीन तलाक़ के रसम को लेकर बयान पर बयान देते रहते हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ के सदस्यों को "ईमान खतरे में" नज़र आ रहा है औरवो मुसलमानों को जान की बाज़ी लगा कर किसी तरह तीन तलाक़ के अधिकार को ज़िंदा रखने के लिए न्योता दे रहे हैं। यानी की मुस्लमान मर्दों को किसी भी हालत में तीन बार तलाक़ तलाक़ तलाक़ कह कर तलाक़ देने से रोका गया तो बस खुदा रहम करे दुनिया से, तौबा तौबा, इस्लाम ही ग़ायब हो जायेगा।
क्या इस्लाम सिर्फ तलाक़ के अधिकार तक सीमित धर्म है? क्या इस्लाम औरतों को यह अधिकार भी नहीं देता की तलाक़ के समय वह अपने पति से यह सवाल काय कि, हुज़ूर मेरी क्या ग़लती है की आप शादी के बाद मेरी ज़िन्दगी नरक बना रहे हैं? और सब बे अहम् यह सवाल है कि क्या खुद को क़ुरान और शरियत की राह पर चलने वाले सऊदी अरब और पाकिस्तान में तीन तलाक़ का अधिकार मर्दों को है या नहीं है? न तो इस्लाम सिर्फ तीन तलाक़ का धर्म है, ना इस्लाम ने मर्दों को यह अधिकार दिया है की वह बिना वजह अपनी पत्नी को तलाक़ दे दे, और ना ही सऊदी अरब और पाकिस्तान जैसे देशों में तीन तलाक़ की रसम को शरई माना जाता है. तो फिर पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से इतना शोर क्यों? इस सवाल का जवाब थोड़ी देर में!
दूसरा महत्वपूर्ण मुद्दा यह है की भाजपा के पेट में मुस्लिम महिला को उसका अधिकार दिलाने के लिए इतना दर्द क्यों हो रहा है? बाबरी मस्जिद ढाने के बाद और गुजरात के दंगों में मुस्लिम नरसंहार करवाने के बाद मुस्लिम समाज में सुधार की इतनी सहानुभूति क्यों पैदा हो गयी है?
साफ़ ज़ाहिर है कि मुस्लिम समाज में सुधार और मुस्लिम औरतों का अधिकार सिर्फ एक बहाना है, निशाना कुछ और है. दुनिया जानती है की आरएसएस और भाजपा का यह खुला एजेंडा है की मुसलमानों से तीन तलाक़ का अधिकार वापस लिया जाये। उनका यह गुमान है की इस अधिकार का इस्तेमाल करके मुस्लमान चार शादियां करता है और इस तरह से उसके यहाँ अनगिनत औलादें पैदा होती हैं। उनके ख्याल में इस तरह हिन्दुतान में आये दिन मुस्लिम आबादी बढ़ रही है और एक समय वो आएगा की इस तरह से हिन्दू अल्पसंख्यक और मुस्लिम बहुसंख्यक में होगा। यानि कि हमेशा की तरह भाजपा और संघ परिवार एक बार फिर से हिंदुओं के दिमाग में "मुस्लिम हव्वा" खड़ा कर के हिंदुओं को इकठ्ठा करना चाहता है।
लेकिन प्रश्न यह है की ऐसी कौनसी आफत आन पड़ी है की भाजपा और संघ हिंदुओं के दिलों में मुस्लिम का भय पैदा करे। आखिर भाजपा केंद्र में गद्दी पर है और मोदी सरकार को न कहीं से कोई खतरा है और ना ही कोई चैलेन्ज का सामना है. कांग्रेस की तरह सभी विपक्ष पार्टियां इस समय बिखराव का शिकार हैं। तो फिर इस समय कौन सी आफत आन पड़ी की भाजपा हिंदुओं को मुस्लिम का भय दिखा कर इकठ्ठा करे?
यह मत भूलिये की कुछ ही महीनों में देश के पांच राज्यों में असेंबली के चुनाव होने वाले हैं. इन पांच राज्यों में एक उत्तर प्रदेश भी है. उत्तर प्रदेश न सिर्फ देश भर में सबसे अधिक जनसँख्या वाला राज्य है बल्कि इसी राज्य से भाजपा को 80 में से 72 सीटों पर पिछले लोक सभा चुनाव में कामयाबी मिली थी। और यह वो राज्य भी है जहाँ मुस्लिम जनसँख्या 25% के आसपास है। बिहार की तरह यहाँ भी मंडल राजनीति यानि कि हिन्दू समाज में जात के नाम पर वोट दिए जाते हैं। बिहार में जात की नीति ज़ोरों पर थी इस लिए भाजपा वहां पिछले असेंबली चुनाव में बुरी तरह हार गयी थी. अगर यूपी में भी कहीं ऐसा ही हो गया जैसे बिहार में जात के नाम पर और उसके साथ मुस्लिम वोट इकठ्ठा हो जाने की वजह से भाजपा हार गयी थी तो फिर यूपी में भी भाजपा का वही बुरा हाल हो सकता है। इसलिए ज़रुरत इस बात की है कि अगले कुछ महीनों में आने वाले असेंबली चुनाव में हिन्दू समाज जात के नाम पर बिखरने के बजाये हिन्दू बैंक इकठ्ठा हो और भाजपा को वोट दे. अगर यह नहीं होता तो भाजपा खतरे में है।
मगर हिन्दू अपनी जात भूल कर हिन्दू के नाम पर इकठ्ठा हो तो कैसे ? मंडल राजनीति के शुरू होते ही भाजपा ने इसका सरल फार्मूला बना लिया है. पहले मुस्लमान को इकट्ठा करो, मुस्लमान "ईमान खतरे में है" के नाम पर नारए-तकबीर की सदाओं के साथ बड़ी बड़ी रैलियां करे. हिंदुओं को ये लगने लगे कि यह देश तो पाकिस्तान बनता जा रहा है। जाहिर है कि टीवी और हर किस्म का मीडिया पहले बड़े बड़े उलेमा और मुस्लिम रैलियों का लाइव टेलीकास्ट कर मुस्लिम जमघट और नारए-तकबीर में डूबी मुस्लिम रैलियों को खूब पब्लिसिटी देगा ताकि हिंदुओं में मुस्लिम एकजुटी की इमेज बन जाए। जब मुस्लिम एकजुटी का डर अच्छी तरह पैदा हो जाये तो फिर विश्व हिन्दू परिषद् और संघ और भाजपा की दूसरी संस्थाएं मुस्लिम रैलियों से बड़ी जय श्री राम के नारों के साथ रैलियां करेंगी। और इस तरह चुनाव आते आते हिन्दू अपनी जात भूल कर हिन्दू हो चुकेगा और उसको भाजपा हिन्दू "अंग रक्षक" नज़र आने लगेगी. स्पष्ट है कि इन हालात में वह इकठ्ठा होकर भाजपा को वोट डाल देगा और मुस्लमान डर के मारे घरों में बंद अपनी हिफाज़त की दुआ मांग रहा होगा। और उस वक़्त न मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड कहीं नज़र आएगा और न ही ईमान की हिफाज़त में जान न्योछावर करने का दावा करने वाले मुस्लिम मिल्लत के मुंहबोले नेता कहीं नज़र आएंगे।
ऐसा इस मुल्क के मुसलमानों के साथ एक नहीं दसियों बार हो चुका है. बाबरी मस्जिद और राम मंदिर के तनाव के वक़्त भी बिलकुल ऐसे ही हुआ था। मिल्लत के रहनुमाओं ने बाबरी मस्जिद एक्शन समिति के छाओं में हिंदुओं से पहले ऐसी मुसलमानों की बड़ी बड़ी रैलियां की थीं। देहली का बोट क्लब नारए-तकबीर की सदाओं से गूँज उठा था. फिर उमा भारती जैसे विश्व हिन्दू परिषद् के नेता बाहर निकले थे जिन्हों ने जय श्री राम के नारों से देहली समेत सारे हिंदुस्तान को हिला दिया था। आखिर अयोध्या में बाबरी मस्जिद ढाई गयी और किसी भी बाबरी मस्जिद एक्शन समिति के किसी मेंबर का बाल भी बीका न हुआ जबकि हज़ारों मासूम मुसलमान दंगों में मारे गए।
तीन तलाक़ के नाम पर एक बार फिर वही मंज़र नामा किया जा रहा है. यह मत भूलिये कि यह सबकुछ एक बहुत सोचे समझे सियासी खेल का हिस्सा है। इस खेल में पहले मुसलमान आगे आगे होगा और उसको टीवी पर पब्लिसिटी मिलेगी। फिर आहिस्ता से कोई दूसरा और नया उमा भारती जैसा भड़काऊ भाषण करने वाला आ जाएगा। बस फिर वही जय श्री राम की गूँज होगी और हिन्दू एकजुट हो चुकेगा और यूपी का चुनाव आते आते चुनाव हिन्दू-मुस्लिम जिहाद बन चुके होंगे जिसमे हिन्दू जात भूल कर हिन्दू बन चुका होगा. फिर यूपी किसके हाथ में होगा यह बताने की ज़रुरत नहीं है।
इस लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को इस मामले में फूँक फूँक कर क़दम उठाना चाहिए। जज़्बाती नारों और सड़क की सियासत से बिलकुल परहेज़ करना चाहिये। मुस्लिम पर्सनल लॉ का मामला अदालत के सामने है. अक्लमंदी इसी बात में है कि इस सिलसिले में तमाम ताक़त क़ानूनी चारा जोई में लगाई जाए न की नारे बाज़ी में। अगर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इस मामले में जोश के बजाय होश से काम नहीं लेता तो समझ लीजिये कि वह जाने या अनजाने में भाजपा का सियासी खेल खेल रहा है।
(उर्दू के 'राब्ता टाइम्स' में छपे ज़फर आग़ा के लेख का हिंदी अनुवाद)