हाल में जिस दिन मोदी अमेरिकी कांग्रेस को संबोधित करने वाले थे, उसी दिन 'चुनौतियां और अवसरः भारत में मानवाधिकारों की प्रगति' विषय पर वहां के मानव अधिकार आयोग के सामने आइएएमसी ने अपना बयान दर्ज किया। इसमें बताया गया है कि कैसे न्यायिक निष्क्रियता या इसके बेअसर होने के बरक्स धार्मिक आजादी के हनन में मोदी का प्रशासन भागीदार रहा। आइएएमसी यानी इंडियन अमेरिकी मुसलिम काउंसिल ने ह्यूमन राइट्स वाच और एमनेस्टी इंटरनेशनल जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों के संयुक्त प्रतिनिधियों के साथ वाशिंगटन डीसी में टॉम लैंटोस मानवाधिकार आयोग के सामने 'चुनौतियां और अवसरः भारत में मानवाधिकारों की प्रगति' नामक रिपोर्ट पेश किया।
आइएएमसी के कम्युनिकेशन डायरेक्टर मुसद्दिक थांगे द्वारा पेश यह रिपोर्ट भारत के मौजूदा प्रशासन और धार्मिक अल्पसंख्यकों के मानवाधिकारों के बर्बर हनन में विभाजनकारी हिंदुत्व के दर्शन का स्पष्ट दस्तावेज है। आइएएमसी की रिपोर्ट में शामिल सिफारिशों में एक यह भी है कि भारत की संप्रभुता का सम्मान करते हुए भी अमेरिका इस स्थिति में सुधार के लिए अपनी ठोस भूमिका अदा कर सकता है। इसमें यह भी कहा गया है कि मोदी सरकार की ओर से लगातार निशाना बनाए जाने और प्रताड़ित किए जाने के बावजूद स्वयंसेवी संगठनों के व्यापक नेटवर्क के साथ तालमेल बिठाते हुए संवैधानिक मूल्यों और अधिकारों को बहाल रखने के लिए काम करना होगा।
एक अन्य घटनाक्रम में ट्रेंट फ्रैंक्स और बेट्टी मैककॉलम के नेतृत्व में अमेरिकी कांग्रेस के अठारह सदस्यों ने स्पीकर पॉल रयान को लिखी चिट्टी में उनके दरख्वास्त किया है कि भारत में धार्मिक आजादी की लगातार खराब होती स्थिति के मुद्दे पर गंभीरता से विचार किया जाए।
भारत में मानव अधिकारों के लिए काम करने वाले समूह इस तरह के हमलों के बारे में लगातार अध्ययन और रिपोर्टिंग करते रहे हैं और यह बात भी सामने आई है कि हमला करने वाले हिंदू राष्ट्रवादी समूहों में से कइयों को कुछ सरकारी अधिकारियों की ओर से भी मदद मिलती है। हिंदू अतिवादियों और उनके समूहों को अधिकारों के समर्थन की वजह से मुसलिम, ईसाई, सिक्ख और दूसरे धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों को लगातार भेदभाव, धमकी, उत्पीड़न और हिंसक हमलों का सामना करना पड़ रहा है। दुर्भाग्य से चूंकि भारत में ऐसे हमलों के बहुत सारे आरोपी कानूनी कार्रवाई और सजा से बच जाते हैं, इसलिए कई पीड़ितों को कभी इंसाफ नहीं मिल पाता।
इसी साल फरवरी में अमेरिकी संसद के चौंतीस सदस्यों ने प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखा था कि अल्पसंख्यक धार्मिक समुदायों के बुनियादी अधिकारों की रक्षा के लिए जरूरी कदम उठाएं और ऐसी हिंसा के लिए जिम्मेदार लोगों को सजा दी जाए। 2015 में राष्ट्रपति ओबामा ने अपने भारत दौरे के दौरान एक बयान में धार्मिक आजादी के बारे में भी उल्लेख किया था- '…पिछले कुछ सालों के दौरान सभी तरह की धार्मिक आस्था वाले लोगों को सिर्फ अपनी विरासत और आस्था के लिए दूसरे धार्मिक समुदायों की ओर से निशाना बनाया जा रहा है। यह असहिष्णुता है।'
आइएएमसी ने प्रधानमंत्री के काल में मानव अधिकारों की बिगड़ती स्थिति को लेकर लिखे गए इस पत्र का स्वागत किया।