प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 20वीं सदी में भारत की राजनैतिक विचारधारा को शक्ल देने वालों में महात्मा गांधी, दीनदयाल उपाध्याय और राममनोहर लोहिया का नाम शुमार किया है।
भारतीय जनता पार्टी का इतिहास इस मामले में निराशाजनक रहा है। अतीत में उसके पास ऐसे कद्दावर नहीं रहे हैं, जिन पर वह अपनी विरासत के तौर पर दावा ठोक सके। यही वजह है कि यह दूसरी पार्टियों के नेताओं को अपना बता कर हड़पने की कोशिश करती रही है।
बीजेपी की इसी परंपरा पर चलते हुए प्रधानमंत्री मोदी अलग-अलग मौकों और मंचों पर अपने प्रेरणास्त्रोत के तौर पर अलग-अलग नेताओं और विचार पुरुषों का नाम लेते रहे हैं।
पिछले महीने 24 तारीख ( 24 सितंबर) को प्रधानमंत्री ने कोझिकोड में बीजेपी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में कहा कि पिछली सदी में भारतीय राजनीति का चेहरा तय करने में महात्मा गांधी, दीनदयाल उपाध्याय और राममनोहर लोहिया का हाथ रहा है। उनकी सोच और विचारधारा आज की भारतीय राजनीति में साफ दिखती है। हमें इस बात का गर्व है कि इन महान राजनीतिक चिंतकों में से एक (दीनदयाल उपाध्याय) हमारी पार्टी से ताल्लुक रखते थे।
यह अच्छी बात है कि उन्होंने 20वीं सदी के कुछ महान भारतीय राजनीतिक चिंतकों और विचारकों का जिक्र किया लेकिन उन्होंने इन अहम नेताओं में बीआर अंबेडकर की गिनती नहीं की। साफ है कि वह इन तीन महान नेताओं में अंबेडकर को शामिल नहीं करते हैं। लेकिन मोदी ने अंबेडकर के योगदान के बारे में पहले जो बातें कहीं थीं उससे नहीं लगता था कि वह इस महान नेता को भारतीय राजनीति को दिशा देने वाले लोगों में शामिल नहीं करेंगे।
याद कीजिये, मोदी ने पिछले साल अंबेडकर जयंती पर क्या कहा था। 15 अप्रैल, 2015 को अंबेडकर की जन्मस्थली महू में उन्होंने कहा था- मेरी मां ने मुझे पड़ोसियों के घर बर्तन साफ करके पाला है। मेरे जैसा शख्स अगर आज देश का पीएम बन पाया तो इसका श्रेय डॉ. अंबेडकर को जाता है। मोदी का तात्पर्य यह था कि अगर अंबेडकर नहीं होते तो पिछड़ी जाति से आने वाला उनके जैसा कोई शख्स पीएम बनने का सपना नहीं देख सकता था।
यहां यह गौर करना जरूरी था कि अंबेडकर के बारे में उन्होंने ये उद्गार तब व्यक्त किए थे, जब वे दलितों को लुभाने की कोशिश कर रहे थे।
मोदी की पसंद के मायने
मोदी ने अपने जिन पसंदीदा राजनीतिक नेताओं और विचारकों का जिक्र किया है, उसमें छिपे उनके मकसद को समझने की कोशिश करनी होगी। 20वीं सदी की भारतीय राजनीति को दिशा देने की बात हो तो गांधी किसी भी लिस्ट में शामिल हो सकते हैं।
लेकिन मोदी की इस लिस्ट में कई भारतीय और विदेशी विद्वानों की ओर से 20वीं सद के महान राजनीतिक चिंतक के तौर पर शुमार पंडित जवाहरलाल नेहरू शामिल नहीं हैं। बीजेपी और खास कर मोदी पिछले कुछ समय से लगातार उनका नाम महान नेताओं की सूची से हटाने की कोशिश कर रहे हैं। उनकी इस कोशिश के मायने समझे जा सकते हैं। लेकिन बीआर अंबेडकर को अगर इस सूची से हटाया गया तो इसके क्या मायने हैं।
मोदी की सूची में शामिल गांधी और उपाध्याय के नाम पर गौर करना दिलचस्प होगा। आखिर उपाध्याय का नाम शामिल कर मोदी अब तक अधूरे रह गए अपने किस राजनीतिक मकसद को साधना चाहते हैं।
जहां तक राममनोहर लोहिया को ऊंचा दर्जा देने का सवाल है तो यह भी याद रखना होगा कि 2017 में यूपी में चुनाव होने हैं और लोहिया का वहां एक असर रहा है।
इस बात को भी नहीं भूलना चाहिए कि गांधी और लोहिया बनिये थे और उपाध्याय ब्राह्मण।
अंबेडकर सूची से बाहर क्यों?
कुछ साल पहले यूजीसी ने एक्सपर्ट की एक टीम से भारत के प्राचीन और आधुनिक काल के कुछ युगांतकारी विचारकों की एक सूची तैयार करने को कहा था। उस एक्सपर्ट टीम में मैं भी शामिल था। तब तक मेरी गौतम बुद्ध के राजनीतिक दर्शन पर पीएचडी थीसिस गॉड एज पॉलिटकल फिलोसॉफर आ चुकी थी। मैंने सुझाया कि गौतम बुद्ध को दुनिया का महानतम प्राचीन विचारक माना जाए।
हालांकि अन्य विशेषज्ञों ने भारतीय राजनीतिक विचारधारा को सबसे अधिक प्रभावित करने वाले आधुनिक समय के जिन विचारकों के नाम सुझाए उनमें गांधी, अंबेडकर और नेहरू के नाम शामिल थे। लोहिया, राजा राममोहन राय और जय प्रकाश नारायण के नाम भी शामिल थे। लेकिन ज्यादातर लोगों का ख्याल था कि पहले गांधी उसके बाद अंबेडकर और फिर नेहरू को क्रम से इस सूची में शामिल किया जाना चाहिए।
ज्यादातर विशेषज्ञों ने प्राचीन काल के राजनीतिक विचारों कौटिल्य, मनु और बुद्ध की शामिल किया था। लेकिन इनमें से ज्यादातर का मानना था कि एक संस्थान निर्माता और एक नैतिक और यूटोपियन विचारक के तौर पर बुद्ध इन दोनों से काफी आगे थे। कौटिल्य और मनु, दोनों कई नकारात्मक विचारों के जिम्मेदार हैं।
जब मैं छात्र था तो प्राचीन काल के महान विचारकों के तौर पर कौटिल्य और मनु के बारे में ही पढ़ाया जाता था। बुद्ध इस सूची में शामिल नहीं थे। लेकिन जब से यूजीसी ने बुद्ध को युगांतकारी विचारकों में शामिल कर लिया तब से उनके विचारों के बारे में पढ़ाया जाने लगा।
मोदी की पसंद
इसमें कोई दो मत नहीं कि बीजेपी का नेता होने और राजनीति विज्ञान का छात्र होने के नाते मोदी को यह पूरा हक है कि वह अपनी पसंद के नाम को महान नेताओं की सूची में जोड़ें। लेकिन याद रखें कि वह भारत के पीएम भी हैं। उनकी सूची को राज्य का समर्थन भी प्राप्त होगा। यही वजह है कि अंबेडकर और नेहरू की गैरमौजूदगी वाली इस सूची का महत्व है। अगर मोदी अपनी पार्टी के नेताओं को सामान्य तौर पर महान विचारक के तौर पर प्रोजेक्ट करते तो कोई दिक्कत नहीं थी।
दिक्कत तब होती है जब वह अपनी पसंद को 20वीं सदी के महान विचारकों का नाम तय करने में तवज्जो देते हैं। दिक्कत इसलिए भी है कि इसका आने वाले समय में उच्च शिक्षा संस्थानों पर असर पड़ सकता है।
यूजीसी ने बुद्ध, गांधी, अंबेडकर और को युगांतकारी विचारकों के तौर पर शामिल इसलिए किया कि वह इनके नाम पर विश्वविद्यालयों में रिसर्च सेंटर स्थापित करना चाहता है । इसका मकसद इनकी शिक्षाओं को कोर्स में शामिल करने पर आम राय भी कायम करना है।
यह ध्यान रहे कि इनमें से किसी का भी नाम किसी राजनीतिक पार्टी से जुड़े होने की वजह से नहीं शामिल किया गया। बुद्ध को छोड़ कर जिनके विचारों को किसी पहचान की जरूरत नहीं है, इनमें से सभी ने बेहद प्रभावी किताबें लिखी हैं। गांधी की हिंद स्वराज, अंबेडकर की द एनिहिलेशन ऑफ कास्ट और नेहरू की डिस्कवरी ऑफ इंडिया क्लासिक माने जाते हैं।
यूजीसी की एक्सपर्ट टीम ने उनकी किताबों (बुद्ध के मामले में उनके विचारों के संग्रह), उनके विचारों पर होने वाले विमर्शों और उनका राष्ट्र की सोच पर पड़ने वाले असर को रेखांकित किया है। यही वजह है कि यूजीसी ने इन्हें युगांतकारी भारतीय विचारकों के तौर पर अपने पाठ्यक्रमों में शामिल किया है।
उपाध्याय के बारे में हम अब तक क्या जानते हैं? बांबे में दिए गए उनके चार भाषण एक किताब एकात्म मानवतावाद दर्शन में संग्रहित है, जिसे अंग्रेजी में इंटग्रल ह्यूमेनिज्म के तौर पर छापा गया है। इसे शायद ही कोई दर्शन कहा जा सकता है। उन्होंने एम एन राय की रेडिकल ह्यूमेनिज्म से उधार लिया विचार कुछ अस्पष्ट हिंदू मानवतावादी विचारधारा के साथ मिला भर दिया है।
अगर तीन सामाजिक- राजनीतिक विचारकों में किसी को शामिल किया जा रहा है तो उसका योगदान तो ऐसा होना चाहिए जो किसी सामाजिक-आर्थिक बदलाव को गढ़ सके। या फिर मोदी के शब्दों में ही कहें तो उसे पिछली सदी के भारतीय राजनीतिक विचार को गढ़ने वाला होना चाहिए था।
उपाध्याय के पास नहीं थे दिशा देने वाले विचार
मोदी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बुद्ध और गांधी की महान विचारक के तौर पर तारीफ करते हैं और उन्हें भारत का महान सुधारक करार देते हैं। दलितों के मंच पर मोदी अंबेडकर की जम कर तारीफ करते हैं। बीजेपी के मंच पर वह बगैर किसी तर्क और वजह के तीन महान विचारकों में गांधी, लोहिया और उपाध्याय को शामिल कर लेते हैं। और जैसा कि मैंने पहले भी कहा कि नेहरू को इस सूची में शामिल न करना समझ आता है। लेकिन अंबेडकर क्यों छोड़ दिए गए।
ऐसे समय जब देश में दलित उभार दिख रहा है तो अंबेडकर को सूची में शामिल न करना लाख टके का सवाल पैदा करता है।
(लेखक हैदराबाद के गाछी बावली स्थित मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ सोशल एक्सक्लूजन एंड इनक्लूसिव पॉलिसी के डायरेक्टर हैं।)