मृत गायें बन रही हैं मुसीबत


Photo Courtesy: Reuters.  "No Man's Job"

गुजरात में दलितों के मरी गायें उठाने से इन्कार करने के बाद स्थिति लगातार गंभीर होती जा रही है। अहमदाबाद और आसपास के इलाकों में दलित किसी भी कीमत पर मरी गायों की लाशें उठाने को तैयार नहीं है। ऊना में मरी गायों की चमड़ी निकाल रहे दलितों की पिटाई के बाद से नाराज दलित अब अड़े हैं कि वो किसी भी कीमत पर मरी गायें नहीं उठाएँगे।

गुजरात के सबसे बड़े शहर अहमदाबाद में कई इलाकों में गायें मरी पड़ी हैं, लेकिन उन्हें उठाने के लिए कोई तैयार नहीं है।

ऊना में दलितों की पिटाई का वीडियो जारी होने के बाद पूरे राज्य में दलितों में गहरी नाराजगी फैल गई थी। पीटे गए चार में से एक युवक के पिता कहते हैं- हम भूखे मर जाएँगे, लेकिन अब मरी गायें नहीं उठाएँगे। ये अब हमारे स्वाभिमान की लड़ाई है।

मरी गायें न उठाने के अभियान की शुरुआत करने वाले सोमाभाई युकाभाई कहते हैं कि हमारे दलित भाइयों को उस काम को करने पर बुरी तरह से पीटा गया था जिसे वो सदियों से करते आ रहे थे। अब हम लोग ये काम करना ही नहीं चाहते।

जिस गुजरात के विकास और साफ-सफाई के मॉडल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी लगातार आदर्श के रूप में पेश करते रहे हैं, वो अब गंदगी का ढेर होता जा रहा है। एक तरफ गुजरात के विकास की पोल खुल रही है, वहीं दूसरी ओर भाजपा अपना जनाधार भी तेजी से खोती जा रही है। दलित और पिछड़े तो भाजपा से बेहद नाराज हैं ही, साथ ही सबसे ताकतवर और संख्याबल में ज्यादा पाटीदार समुदाय भी भाजपा सरकार को उखाड़ फेंकने को तत्पर बैठा है।

ऊना कांड के बारे में अब साफ हो चुका है कि दलितों को बिना वजह पीटा गया था और वे केवल मरी गायों की चमड़ी निकाल रहे थे। हिंदुत्ववादियों ने उन पर गौहत्या का झूठा आरोप लगाकर उनकी पिटाई की थी। हमलावरों के खिलाफ पुलिस एफआईआर दर्ज करने पर भी मजबूर हुई है।
 
दलितों के आंदोलन के बाद से तो भाजपा को आनंदीबेन पटेल को मुख्यमंत्री पद से ही हटाना पड़ गया। उनके बाद विजय रूपाणी को मुख्यमंत्री बनाया गया है लेकिन उनका प्रशासन बिलकुल असरहीन साबित हो रहा है।  मोदी और अमित शाह के गृहराज्य में पार्टी की हालत खस्ता होने के कारण ये दोनों अब आसन्न चुनावों वाले राज्यों- उत्तर प्रदेश और पंजाब में भी ज्यादा ध्यान नहीं दे पा रहे हैं।
 
 

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