दिल्ली विश्वविद्यालय के तदर्थ [एडहॉक] शिक्षकों द्वारा दिल्ली विश्वविद्यालय के विजिटर माननीय राष्ट्रपति को ज्ञापन
दिल्ली विश्वविद्यालय में वर्षों से अस्थायी तौर पर अपनी सेवा दे रहे लगभग चार हजार तदर्थ शिक्षकों की ओर से दिल्ली विश्वविद्यालय के विजिटर माननीय राष्ट्रपति जी को एक ज्ञापन सौंपा गया. ज्ञापन के साथ लगभग दो हजार से उपर तदर्थ शिक्षक साथियों के हस्ताक्षर भी उनकी सम्मति के रूप में सौंपा गया. एडहॉक आधार पर सेवा देने वाले शिक्षकों का भविष्य चार महीने का ही होता है उसके बाद अगले नियुक्ति पत्र की आशा में उन्हें प्रशासन का मुंहताज रहना होता है. प्रशासन एक दिन का मनमाना अवकाश देकर पुनः अधिकतम चार महीने का नियुक्ति पत्र पकड़ा देता है. पत्र इस ज्ञापन के माध्यम से महामहिम से अपील की गई है कि वे हस्तक्षेप करें और मानवता के आधार पर, जो जहाँ वर्षों से पढ़ा रहा है उसे वही स्थायी करवाया जाए.
इस ज्ञापन के माध्यम से महामहिम राष्ट्रपति जी को अवगत कराया गया है सभी जो तदर्थ शिक्षक विश्वविद्यालय के विभिन्न महाविद्यालयों में अपनी सेवाएँ दे रहे है, वे इस सेवा हेतु पर्याप्त योग्यतासंपन्न, कुशल एवं अनुभवी है. इनका चयन विशेष चयन समिति द्वारा होता है. इस सेवा हेतु केवल उन्हीं का चयन हो सकता है जो विश्वविद्यालय द्वारा बनाये गए एडहॉक पैनल में सूचीबद्ध होते हैं. सबकी नियुक्ति आरक्षण के लिए तय किए रोस्टर के अनुसार ही हुई है. इन सब में करीब आधे से ज्यादा सामाजिक रुप से कमजोर वर्ग जैसे कि अनुसूचित जाति, जनजाति और ओबीसी वर्ग के हैं। इतने सब मानकों के आधार पर चयन होने के बावजूद एडहॉक शिक्षकों का भविष्य पूरी तरह अधर में रहता है.
एडहॉक चाहे कितने ही वर्षों तक सेवा दे किन्तु उनके वेतन में किसी तरह की कोई बढ़ोतरी नहीं होती है. वे हमेशा प्रवेशवाले वेतन श्रेणी में रहते हैं. प्रोन्नति और उच्च योग्यता के आधार पर मिलने वाले अन्य लाभ तो नहीं ही मिलते है. इन्हें महीने में सिर्फ एक आकस्मिक अवकाश लेने का अधिकार है. शादीशुदा महिलाओं को मातृत्व अवकाश, जो कि अनिवार्य है, तक नहीं मिलता. क्या वे बीमार नहीं होते ? या उन्हें अपने परिवार के विकास का अधिकार नहीं है ? ये सब तभी संभव है जब में सेवा शर्तों की ओर से निश्चिन्त होंगे. वैधानिक रूप से भी इतने वर्षों तक किसी शिक्षक या कर्मचारी को अस्थायी रखना सही नहीं है.
एडहॉक शिक्षक वर्षों से विभिन्न स्तर पर आवाज़ उठाते रहे हैं. किन्तु इनकी आवाज़ को हर स्तर पर अनसुना किया गया है. ये अपनी फ़रियाद को लेकर कहाँ जाएं! इतने योग्य और अनुभवी एडहॉक शिक्षक उम्र के तीसरे पड़ाव पर आ पहुंचे हैं. दिल्ली विश्वविद्यालय के व्यथित एडहॉक शिक्षक समुदाय ने आज माननीय राष्ट्रपति को यह ज्ञापन सौंपकर उनसे ज़ोरदार अपील की है कि मानवीयता और एडहॉक शिक्षकों की योग्यता को देखकर वे इस दिशा में उचित कार्रवाई करें. शिक्षकों के अस्थायित्व से सिर्फ शिक्षकों का नहीं अपितु संस्थानों का एवं छात्रों का भी अहित होता है. इस ज्ञापन के माध्यम से अपील की गई है कि एक अध्यादेश के माध्यम से सभी एडहॉक शिक्षकों को तत्काल प्रभाव से स्थायी करवाया जाए.
इस ज्ञापन की प्रति को प्रधानमंत्री कार्यालय, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति को भी सौंपा गया.
दिल्ली विश्वविद्यालय एडहॉक शिक्षक समूह
दिनांक 23/09/2016