पिछले कुछ समय से आरएसएस-भाजपा की ओर से बाबा साहेब आंबेडकर को बढ़-चढ़ कर अपना आदर्श बनाने की कोशिश हो रही है। लेकिन अपनी राजनीति का उन सामाजिक वर्गों में विस्तार की मंशा के अलावा भी आरएसएस-भाजपा के लिए आंबेडकर का कोई महत्त्व है क्या? संघ की राजनीति और समाज की हकीकत किसी से छिपी नहीं है। लेकिन अपने शासन-व्यवहार में भाजपा और उसकी सरकार आंबेडकर और उनके आदर्शों को लेकर कितनी गंभीर है, गुजरात के मंदिरों में उसकी भूमिका से भी सामने है।
गुजरात के पूर्व डीजीपी आरबी श्रीकुमार ने एक पत्र में राज्य की मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल से कहा है कि गुजरात में सरकार के प्रबंधन में चलने वाले मंदिरों में पुजारी की नियुक्त के लिए ब्राह्मण परिवार में जन्म लेने की बाध्यता खत्म की जाए। एक विस्तृत पत्र में गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल से आरबी श्रीकुमार ने ध्यान दिलाया कि सरकार द्वारा संचालित समारोहों, परंपराओं और धार्मिक त्योहारों के लिए बतौर कर्मचारी अस्सी फीसद मंदिरों में ब्राह्मणों को नियुक्त करके भारतीय संविधान का उल्लंघन कर रही है और दूसरी ओर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि बाबा साहेब के सिद्धांत हमें राह दिखाते हैं।
एनहिलीशन ऑफ कास्ट, रिडिल्स ऑफ हिंदुइज्म, द अनटचेबल्स, बुद्धा एंड कार्ल मार्क्स जैसी किताबों के जरिए डॉ. आंबेडकर के लेखन का उद्धरण देते हुए पत्र में उन्होंने कहा कि आंबेडरकरवाद कोई आध्यात्मिक अवधारणा या कट्टर सामाजिक-राजनीतिक सिद्धांत नहीं है। यह बुद्धिज्म के उच्च आदर्शों और फ्रांसीसी क्रांति से प्रभावित है।
पत्र में खेद जताते हुए कहा गया है कि जो लोग धार्मिक आयोजनों और समाराहों में मंदिर के कर्मचारी के तौर पर पूजा करवा रहे हैं, उनकी नियुक्ति ब्राह्मण धर्माधिकारी माने जाने वाले परिवार के मातहत हुआ है।
वेदों के श्लोकों, उपनिषद, ब्रह्म सूत्र, भागवत गीता और अन्य हिंदू ग्रंथों का हवाला देते हुए कहा गया कि कोई भी ब्राह्मण के तौर पर पैदा नहीं हुआ, बल्कि शिक्षा और संस्कृति के जरिए बना। मंदिर में एक ही जाति का नियंत्रण भारतीय संविधान के बुनियादी ढांचे के प्रतिकूल होने के साथ-साथ प्रगतिविरोधी भी है। पत्र में गुजरात के मुख्यमंत्री से कहा गया है कि अन्य सरकारी सेवाओं की तरह गुजरात मंदिर सेवा का गठन किया जाए और शिक्षित महिलाओं को भी पुजारी के तौर पर नियुक्त किया जाए।