लखनऊ। यूपी चुनाव की तैयारियों के बीच बीजेपी की परिवर्तन यात्रा में उसके दलित प्रेम की पोल खुल गई है। बीजेपी ने अपनी परिवर्तन यात्रा में किसी भी दलित को जगह ना देकर दलितों के खिलाफ अपनी सोच को उजागर कर दिया है। पिछले कुछ महीनों में बीजेपी ने यूपी में दलित वोट लेने के लिए दलितों पर कई कार्यक्रम किए थे। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने एक ओर जहां दलित भोज कर दलित प्रेम का पाखंड किया था वहीं दूसरी ओर प्रदेश में धम्म चेतना यात्रा निकालकर बीजेपी ने दलितों को लुभाने की पूरी कोशिश की थी। यहां तक कि प्रदेश की राजधानी लखनऊ में भी बीजेपी की ओर से दलित कार्यकर्ता सम्मेलन किए जा चुके हैं।
लेकिन परिवर्तन यात्रा में किसी भी दलित चेहरे को जगह न देकर बीजेपी ने यह बता दिया है कि बीजेपी की नजर में दलितों की क्या औकात है। बाबासाहेब की बड़ी-बड़ी मूर्तियां बनवाकर दलित प्रेम का ढोंग करने वाली बीजेपी ने परिवर्तन यात्रा की इस बस में बाबासाहेब की भी तस्वीर नहीं लगाई है। यहां तक कि पूछने पर पार्टी प्रवक्ता ने कहा कि परिवर्तन यात्रा के बस में दलित के लिेए जगह नहीं है।
आपको बता दें कि यूपी चुनाव की तैयारी सभी पार्टियों ने शुरू कर दी है। जहां एक तरफ समाजवादी पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपनी विकास से विजय की ओर रथ यात्रा निकाल रहे हैं, वहीं बीजेपी ने परिवर्तन यात्रा शुरू की है। प्रदेश में चार जगहों से निकलने वाली इस यात्रा के दो रथ निकल चुके हैं और अगले दो दिनों में बाकी के दो रथों को पार्टी अध्यक्ष अमित शाह हरी झंडी दिखाएंगे। पर बीजेपी की इस रथ में किसी भी दलित नेता की तस्वीर नहीं है।
इस पर बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने कहा कि बीजेपी जो दलितों के वोट के लिए राजनैतिक ढोंग कर रही थी उस पर से अब पर्दा उठ गया है। जब दलित समाज ने बीजेपी का साथ नहीं दिया तो उनकी सच्चाई सामने आ गई। धीरे-धीरे बीजेपी बाबासाहेब का भी नाम लेना बंद कर देगी।
बीजेपी के इस परिवर्तन रथ यात्रा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य के साथ केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह, उमा भारती और कलराज मिश्रा की तस्वीरें हैं। लेकिन खुद को दलित हितैषी बताने की कोशिश करने वाली बीजेपी की पोल खुलकर सामने आ गई है।
सवाल यह है कि इतनी बड़ी रणनीति और तैयारी के साथ शुरू हुई इस परिवर्तन यात्रा में ये चूक हो जाना गलती है या सोचा समझा फैसला? सर्वविदित है कि संघ और भाजपा सवर्ण ब्राह्मणवादी संस्कृति से प्रभावित रहे हैं। लंबे समय तक इसका आधार ऊंची जातियां और शहरी व्यापारी रहे हैं, जो मूल रूप से ब्राह्मणवादी संस्कृति के झंडाबरदार रहे हैं। पिछले कुछ समय से राजनीति के दबाव में संघ परिवार और भाजपा, पिछड़ी और दलित जातियों से जुड़ने को मजबूर हुई थीं।
लेकिन पिछले कुछ महीने से देश के कई जगहों में दलितों पर हुए अत्याचार और उना कांड के बाद शायद बीजेपी को भी पता चल गया कि दलित उन्हें वोट नहीं देने वाले इसलिए बीजेपी अब दलितों को लुभाने की कोशिश नहीं करना चाहती।
Courtesy: National Dastak