आत्मनिर्भरता और शिक्षा के बीच तलाक की तस्वीर



भारत के सबसे समृद्ध राज्य केरल में पारिवारिक अदालतों ने प्रति घंटे तलाक के पांच मामले निपटाए, यानी हर रोज एक सौ तीस। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक तलाक से संबंधित आंकड़े वाले कुल बारह राज्यों में केरल की यह दर सबसे अधिक है।

चूंकि भारत में तलाक के राष्ट्रव्यापी और ठोस आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, इसलिए इसका उल्लेख अमेरिका के इलिनोइस विश्वविद्यालय द्वारा तैयार किए गए आंकड़ों में दर्ज नहीं है। लेकिन केरल और ग्यारह अन्य राज्यों की अदालतों में तलाक के बढ़ते मामले इस तथ्य की ओर इशारा करते हैं कि अब विवाहित युगल तालमेल नहीं बैठने के बावजूद विवाह में बंधे रहने की परंपरा के उलट साथ रहने के बजाय अलग होने के फैसले को तरजीह दे रहे हैं।

एक ऐसे देश में जहां अदालतें वैधानिक अलगाव को मंजूरी देने में उदार रवैया नहीं अपनातीं, तलाक के ये मामले ज्यादा लग सकते हैं। लेकिन वास्तव में ये असफल विवाह के मामलों का एक छोटा हिस्सा भर है। सच यह है कि ज्यादातर महिलाएं परिवारों में तमाम अपमान के बावजूद विवाहित जीवन में बने रहना पसंद करती हैं।

मार्च 2015 में लोकसभा में एक सवाल के जवाब में सरकार ने राज्यों द्वारा जमा किए गए तलाक के जो आंकड़े पेश किए थे, वे अन्य देशों में तलाक के मामलों के साथ तुलना करने के लिए काफी नहीं हैं और न ही ये खुद भारत में देशव्यापी तलाक की दर के बारे में कुछ खास सामने लाने में सक्षम हैं।

आम आबादी के बजाय सिर्फ विवाहित लोगों के आधार पर तलाक की दर की ऐसी गणना बेहद मुश्किल है, जैसा अपराध और दुर्घटना के बारे में किया जाता है। इसकी वजह यह है कि हमारे देश में तलाक के आंकड़े एकत्र नहीं किए जाते। भारत में 'तलाक-दर' का जिक्र बहुत हल्के तरीके से किया जाता है, वह भी सिर्फ अदालतों में पहुंच सके मामलों के आधार पर। हालांकि यह साफ है कि पारिवारिक अदालतों में भी तलाक के मामले लगातार बढ़ रहे हैं।

संसद में एक सवाल के जवाब में सरकार ने बताया था कि वर्ष 2004-15 के दौरान कमोबेश हर राज्य में अदालत के फैसले का इंतजार करने वाले तलाक के मामलों में 2014 के मुकाबले बढ़ोतरी हुई है। हालांकि अन्य ग्यारह राज्यों में से कोई भी केरल के मुकाबले में नहीं है, जिनमें से चार बड़ी आबादी वाले राज्य शामिल हैं। वर्ष 2014 में केरल में तलाक के 47,525 मामले सामने आए थे। दूसरी ओर, केरल के बनिस्बत महाराष्ट्र में तलाक के मामले आधा थे, जबकि आबादी के हिसाब से केरल महाराष्ट्र का एक तिहाई भर है।

तलाक में शिक्षा और रोजगार की भूमिका
जैसा कि हम पहले बता चुके हैं कि कुल छत्तीस राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में महज बारह राज्यों के आंकडो़ं को आधार बना कर तलाक के बढ़ते मामलों का विश्लेषण मुश्किल है। तलाक के सर्वाधिक मामले दर्ज करने वाले प्रथम पांच राज्यों में तीन राज्य- केरल, महाराष्ट्र और कर्नाटक में शिक्षित महिलाओं की संख्या राष्ट्रीय औसत से अधिक है। इन राज्यों में महिला कामगारों की संख्या राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है। इस लिहाज से इस किस्म के अंतर्संबंध हमेशा कारगर नहीं होते। मसलन, तलाक की संख्या के मामले में तीसरे स्थान पर मौजूद मध्यप्रदेश में महिला साक्षरता राष्ट्रीय औसत से छह प्रतिशत तक कम है और महिला कामगारों की संख्या राष्ट्रीय औसत के बराबर है।

इसी तरह, तलाक के मामलों में पांचने स्थान पर हरियाणा में महिला साक्षरता राष्ट्रीय औसत के बराबर है। महिला कामगारों की संख्या राष्ट्रीय औसत से बारह प्रतिशत तक कम है। लेकिन यहां केरल के कुल मामलों के मुकाबले तलाक के थोड़े ही कम मामले दर्ज होते हैं।

दरअसल, महिलाओं के पास विकल्प हों तो तलाक के मामलों के बढ़ने की पूरी संभावना है। तमाम अपमान सहने के बावजूद भारतीय महिलाएं कई कारणों से विवाहित जीवन में रहना पसंद करती हैं। इनमें आर्थिक निर्भरता, कानूनी अधिकारों की जानकारी का अभाव और पारिवारिक दखल प्रमुख हैं। एक सर्वेक्षण में दस में छह पुरुषों ने स्वीकार किया कि अपनी पत्नी के खिलाफ हिंसा में वे कभी न कभी शामिल रहे हैं। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक अहं का टकराव और अपेक्षाओं के द्वंद्व आदि शहरों में बढ़ रहे तलाक के प्रमुख कारण हैं।

(Extracts from http://www.indiaspend.com/cover-story/5-divorce-cases-adjudged-every-hour-in-kerala-82885)
 

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