दिल्ली कि एक अदालत ने इरशाद अली और उनके साथी मौरिफ कमर को बेगुनाह करार दिया।आज से तकरीबन 10 साल पहले 9 दिसंबर 2006 को दिल्ली पुलिस ने उन्हें आतंकवाद के इल्जाम में गिरफ्तार किया था। बताया गया कि वे दोनों प्रतिबंधित आतंकी संगठन अल-बदर के सदस्य हैं। पुलिस ने उस वक्त मीडिया को दिखाया कि गिरफ्तारी के वक्त उनके पास से पिस्तौल, गोलियां व डेटोनेटर बरामद हुए हैं। दोनों के खिलाफ आइपीसी की धारा-121 (भारत के खिलाफ जंग छेड़ना) व धारा-120बी (आपराधिक षड्यंत्र) के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था और जेल की कालकोठरी में डाल दिया गया। ये है इरशाद अली और मौरिफ कमर की कहानी का पहला हिस्सा।
कहानी का दूसरा हिस्सा ये है कि लगभग 11 साल बाद दिल्ली हाइकोर्ट ने उनकों सभी आरोपों से बरी कर दिया है, आज दोनों बेगुनाह है। लेकिन इस बेगुनाही की अपनी कीमत है जो इन 10 सालों में उनकों चुकानी पड़ी। इरशाद अली आज 41 साल के हैं जब उन्हें गिरफ्तार किया गया तो उनकी उम्र 29 साल थी। खुद को बेगुनाह साबित करने की अदालती लड़ाई में उन्होंने चार साल 3 महीना जेल में गुज़ारे। इस दौरान अपनी इकलौती बेटी और मां बाप को खो दिया। अपनी जिंदगी की भारी जमा पूंजी अदालती कार्यवाही में खपा दी। आखिरकार उन्हें इंसाफ मिला।
कहानी का सबसे स्याह और हैरानी वाला हिस्सा इस केस की जांच में बैठी सीबीआई की क्लोज़र रिपोर्ट कहती है। सीबीआई जांच में पाया गया दरअसल जिन्हें आतंकवाद के आरोप में जेल में डाला गया था वो इसी देश की खुफिया एजेंसी के मुखबिर थे। लेकिन कोर्ट में स्पेशल सेल बार-बार इनकार करती रही कि इरशाद उनका मुखबिर है। सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट में ये दर्ज है कि आईबी के अधिकारी उन्हें फोन करते थे। उसे गृह मंत्रालय से भी कई बार फोन भी किया गया था। क्लोजर रिपोर्ट में ये भी सामने आया कि दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने उसे झूठा फंसाया है।
इरशाद अली और मौरिफ कमर के वकील सुफियान सिद्दीकी सियासत में इस केस पर बातचीत करते हुए कहते हैं कि ये इरशाद अली और मौकिम कमर का मामला हैरान करने वाला है। ये देश की सुरक्षा एजेंसी की कार्यशैली पर सवाल उठाता है। 9 फरवरी 2006 को दो घटनाओं पर नजर डालिए। हिन्दुस्तान टाइम्स के अखबार में एक शख्स के बारे में पहचानने के लिए फोटो छपी। शाम तक दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने दो लोगों को आतंकवाद के आरोप में पकड़ने का खुलासा किया। दिल्ली पुलिस ने जिन दो शख्स को आतंकी करार दिया था उनमें एक शख्स अखबार में छपी फोटो वाला मौरिफ कमर था और दूसरा इरशाद अली।
एडवोकेट सुफियान बताते हैं कि जब केस की सीबीआई जांच शुरु हुई तो इस केस की परत- दर- परत खुलने लगी। सीबीआई जांच में पाया गया दरअसल जिन्हें आतंकवाद का ठप्पा लगाकर देश की सुरक्षा के लिये खतरा बताया गया था वो इसी देश की सुरक्षा एजेंसी के लिये काम करते थे। सियासत से बातचीत करते हुए इरशाद ने बताया कि वह 2001 से आईबी के लिए काम कर रहा था। वह आईबी का मुखबिर 5 सालों से था। उसका काम संदिग्ध लोगों की रेकी करना, उनका पीछा कर उसकी रिपोर्ट आईबी तक पहुंचाना था। उसे इस काम के लिए 2001 से सात से आठ हजार रुपए मासिक सैलरी भी मिलती थी। उसको इस काम के लिए मोबाइल और जहां जाना होता था वहां आने-जाने का खर्चा भी दिया जाता था।
इरशाद ने बताया कि 2001 में पुलिसवालों ने उन्हें अगवा कर लिया था। यह साल 2006 की बात है, जेल में लगातार उनका शोषण हुआ । 3 दिन की कस्टडी के रखने के बाद दो रास्ता चुनने को कहा दिया पहला- मुखबिर बना जाओ, दूसरा- नहीं तो एनकाउंटर होगा। इरशाद ने बताया कि मैंने मौत के डर से इनके लिए काम करना शुरु कर दिया। इरशाद ने कहते हैं कि मुझे अरबी, उर्दू, फारसी आती है इसलिए इन्होंने मुझे अपने काम के लिए चुना। इरशाद ने बताया कि आईबी वाले उन्हें कश्मीर में रेकी करने के लिये भेजने वाले थे जब उन्होंने उन्होंने वहां जाने से इंकार कर दिया तो उसे 12 दिसंबर 2005 को धौला कुआं सैलरी लेने के लिए बुलाया गया। लेकिन जब वह धौलाकुआं गया तो उसे गन प्वाइंट पर उठा लिया गया और दो महीने तक लालकिले के आस पास किसी जगह पर अवैध कस्टडी में रखा गया। इसके बाद उन लोगों ने आतंकी घोषित कर दिया।
दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने इरशाद पर 9 फरवरी 2006 को एफआईआर दर्ज की गई। इरशाद अपने घर में कमाने वाले अकेले थे। उन्होंने अपने घर वालों कभी नहीं बताया कि वो आईबी के लिये काम करते थे। जब उनपे आतंकवादी होने का ठप्पा लगा तो इस सदमे को उनकी अम्मी बर्दाश्त नहीं कर सकी और उनका इंतकाल हो गया। इरशाद कहते हैं उन्हें अपनी अम्मी की मिट्टी तक में शरीक होने की छुट नहीं मिली। अम्मी की मौत के दौरान वो जेल में ही थे। अपने अब्बू का जिक्र करते हुए वो कहते हैं कि उनकी ख्वाहिश थी कि वह अपने जीते जी मुझे बरी होता देखें लेकिन वह अपनी यह हसरत लिए ही दुनिया से रूखसत हो गए। मेरी बेटी भी इलाज के अभाव में मर गई।
इरशाद ने कहा कि वह आज भले ही कोर्ट से बरी हो गया है लेकिन समाज अभी उन्हें शक की निगाह से ही देखता है। दोस्त-यार, रिश्तेदार सब दूरी बनाकर रहते हैं। उनकों लगता है कि कहीं वह भी मेरे चक्कर में न फंस जाए। इरशाद कहते हैं कि लोग आज भी देखकर बात करने से कतराते हैं। उन्होंने बताया कि हालात यहां तक थे कि जब जमानत होने वाली थी तो गारंटी भरने को कोई राजी नहीं हो रहा था लेकिन बड़ी मुश्किल से बहनोई ने गारंटी भरा जिसके बाद जमानत मिली।
वकील सूफियान कहते हैं कि हमारे देश में ऐसा कोई कानून नहीं है फर्जी और गलत केसों में फंसे लोगों को इंसाफ दिला सके और उनकों उचित मुआवजा दे सके। हालांकि कानून में प्रावधान तो है लेकिन उसमें भी बहुत पेचीदगियां है। उन्होंने आस्ट्रेलिया के मोहम्मद हनीफ का उदाहरण देते हुए बताया कि उन पर भी आतंकवादी होने का फर्जी केस लगाया गया था लेकिन जब वो अदालत से बेदाग साबित हुए तो आस्ट्रेलिया की संसद ने उनसे माफी मांगी थी। क्या हमारे देश की संसद इरशाद अली और मौरिफ कमर से माफी मांगेगी?
Courtesy: Hindi Siasat