Home Blog Page 2207

विश्वविद्यालयों में नहीं थम रहा जातिगत भेदभावः एक साल में 142 मामले दर्ज

0

बेंगलुरू। हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में दलित छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या के बाद विश्वविद्यालयों में जातिगत भेदभाव पर गुस्सा फूट पड़ा। जातिगत भेदभाव की गूंज अब सत्ता के गलियारों तक पहुंच चुकी है। 17 जनवरी 2016 को हैदराबाद विश्वविद्यालय प्रशासन के भेदभाव की वजह से दलित छात्र रोहित वेमुला ने आत्महत्या कर ली थी। रोहित वेमुला जातिगत भेदभाव के अकेले शिकार नहीं हुए, शिक्षण संस्थानों में जातिगत भेदभाव आज भी जारी है। 

Universities
 
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, शिक्षण सत्र 2015-16 के दौरान विश्वविद्यालयों में दलित छात्रों के साथ जातिगत भेदभाव के तामाम मामले पूरे देश दर्ज किए गए। देश के 11 राज्यों के 19 विश्वविद्यालयों में जातिगत भेदभाव के 142 मामले आए। इन जाति आधारित भेदभाव के मामलों में रोहित वेमुला का मामला जातिगत भेदभाव के तहत नहीं माना गया। जिससे पता चलता है दलित छात्रों के साथ अनेकों जातिगत भेदभाव के मामलों को अधिकारी तरजीह नहीं देते। 
 
हैदराबाद विश्वविद्यालय के अंबेडकर स्टूडेंट यूनियन के सह-संयोजक मुन्ना सानाकी के मुताबिक, "2015-16 के शिक्षण सत्र में जातिगत भेदभाव के 142 मामले दर्ज किए गए, इनमें से 102 जातिगत भेदभाव के मामले अनुसूचित जाति जबकि 40 जातिगत भेदभाव के मामले अनसूचित जनजाति के छात्रों के खिलाफ दर्ज हुए, जिनमें से 114 मामलों को निबटाया जा चुका है।" वहीं रोहित वेमुला मामले को हैदराबाद विश्वविद्यालय ने दलित छात्र मानने से इंकार कर दिया था। इस तरह से हैदराबाद यूनिवर्सिटी में कोई जातिगत भेदभाव का मामला नहीं हुआ। जबकि हैदराबाद विश्वविद्यालय में 5 छात्रों को रोहित की तरह जातिगत भेदभाव को भोगना पड़ा था। ये छात्र अभी भी विश्वविद्यालय में जाति आधारित भेदभाव के खिलाफ लड़ रहे हैं। इन छात्रों ने जातिगत भेदभाव की कई शिकायतें दर्ज कराई लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ है।" 
 
बेंगलुरू विश्वविद्यालय के छात्र के मुताबिक, "रोहित वेमुला की आत्महत्या के 2 महीने बाद यूजीसी ने सर्कुलर जारी करके कहा शिक्षण संस्थानों में जातिगत भेदभाव को रोका जाए।  विश्वविद्यालयों के अधिकारियों और शिक्षकों से कहा गया विश्वविद्यालय में एससीएसटी छात्रों के सामाजिक मूल को लेकर जातिगत भेदभाव बंद कर देना चाहिए। जातिगत भेदभाव के खिलाफ प्रत्येक विश्वविद्यालय में शिकायत करने के वेबसाइट हो जहां पर एससीएसटी के छात्र संस्थान के अधिकारी और प्रिंसिपल के खिलाफ शिकायत दर्ज कर सकें। इन सबके बावजूद यूनिवर्सिटी कैंपस में जाति आधारित भेदभाव लगातार जारी है। विश्वविद्यालयों में रिसर्च टॉपिक चुनने पर भी बहुत भेदभाव होता है।" कर्नाटक के कर्नाटका वेटरनिटी, एनिमल एंड फिशरीज़ साइंस यूनिवर्सिटी में इस साल जाति आधारित भेदभाव की 8 शिकायतें दर्ज की गईं।
 
मुन्ना सानाकी ने कहा जहां तक विश्वविद्यालयों में शीघ्र शिकायत निवारण तंत्र की जरूरत है। सभी विश्वविद्यालय इस समस्या से जूझ रहे हैं। बेंगलुरू विश्वविद्यालय में 18 साल से शिक्षिका रहीं समाजशास्त्री, लेखिका प्रोफेसर समानता देशमाना ने कहा है कि देश के ज्यादातर विश्वविशविद्यालयों में जातिगत भेदभाव होता है।
 
प्रोफेसर देशमाना ने कहा कि "मैं पूरे विश्वास के साथ कहती हूं कि पूरे देश में कोई भी विश्वविद्यालय दलित छात्रों के साथ भेदभाव की बात से इंकार नहीं कर सकता। इन मामलों की उनके पास कोई सूची नहीं है लेकिन प्रबंधन में कुछ लोग हैं जो इन मामलों की परवाह करते हैं।" 
 
कर्नाटक के स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया के महासचिव गुरुराज देसाई के मुताबिक सरकार से अपील की जा रही है कि विश्वविद्यालयों से जातिगत भेदभाव को खत्म किया जाए। विश्वविद्यालय कैंपस में जातिगत भेदभाव की कोई जगह नहीं होनी चाहिए। यदि विश्वविद्यालय ज्ञान के मंदिर हैं फिर वहां जातिगत भेदभाव क्यों?
 
हम ऐसे देश में रहते हैं जहां जातिगत भेदभाव होता है। हम ऐसा नहीं चाहते थे। लेकिन तथ्यों को नकारा नहीं जा सकता। हमारी भारतीयता से ही पहचान है इसे जल्दी बदला नहीं जा सकता। डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का सपना जाति मुक्ति भारत का सपना था। अंबेडकर ने ये बातें अपनी किताब कॉस्ट अनहिलेशन ऑफ इंडिया में लिखी हैं।

Courtesy: National Dastak

अखलाक के गांव में, अखलाक पर एक शब्द भी नहीं बोले राजनाथ सिंह

0

दादरी। गृहमंत्री राजनाथ सिंह कल एक रैली को संबोधित करने अखलाक के गांव बिसाहड़ा पहुंचे थे, जहां उन्होंने हर मुद्दे पर बात की। देश के गृहमंत्री होने के नाते गांव के लोगों को उनसे उम्मीद थी कि देश के चर्चित हत्याकांड अखलाक पर भी वह कुछ न कुछ जरूर बोलेंगे। लेकिन राजनाथ सिंह ने अखलाक के गांव जाकर भी अखलाक पर एक शब्द नहीं बोला।

Rajnath Singh

आपको बता दें कि बिसाहड़ा वही गांव है, जहां गोहत्या के आरोप में गांव के ही एक शख्स अखलाक की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई थी। बिसाहड़ा गांव तब चर्चा में आया था जब 28 सितंबर 2015 को इस गांव में कथित रूप से गोहत्या करने और अपने घर में गोमांस रखने के आरोप में भीड़ ने अखलाक को उसके घर में ही पीट-पीट कर मार डाला था। 
 
भीड़ के हमले में अखलाक का बेटा दानिश भी बुरी तरह घायल हो गया था। इस घटना ने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचा था। मामले में गांव के ही 18 युवकों को गिरफ्तार किया गया था। मामले की गूंज संसद तक सुनाई दी थी। बिसाहड़ा गांव के लोगों को उम्मीद थी कि राजनाथ सिंह बिसाहड़ा कांड को लेकर भी कुछ बोलेंगे। सभा से पहले लोग इस तरह की चर्चा करते दिखे।
 
याद रहे कि यूपी विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा ने एक भी मुस्लिम प्रत्याशी नहीं उतारा है। शायद यही कारण है कि भाजपा मुस्लिमों के बारे में बोलने से बच रही है। भले ही राजनाथ सिंह ने अखलाक के लिए एक भी शब्द नहीं बोला लेकिन उसके बाद भी जाट समुदाय के लोगों ने उनका विरोध किया।
 
जब राजनाथ सिंह भाषण देकर जाने लगे तब गांववासियों ने विरोध करते हुए उनकी कार रोक ली। गांववालो का कहना है कि उन्‍हे उम्‍मीद थी कि मंच से राजनाथ सिंह कुछ घोषणा कर उनके जख्‍मो पर मरहम लगाने की बात करेगें। जब राजनाथ सिंह ने ऐसी कोई घोषणा नहीं की तो लोग भड़क गये और विरोध शुरू कर दिया।

Courtesy: National Dastak