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A से अच्छे दिन, B से भक्त.. देखिए क्या-क्या है नई ए बी सी डी में

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नई दिल्ली। बीते साल सरकार और उनकी नीतियों ने बचपन में पढ़े ए बी सी डी के मायने को बदलकर रख दिया। पूरे साल पीएम मोदी और सरकार की नीतियों की ही चर्चा होती रही। सोशल मीडिया पर पूरे साल लोगों ने देश के तमाम मुद्दों को अलग-अलग नजरिए से देखा और उन पर कटाक्ष किया। ऐसा ही एक कटाक्ष जनसत्ता ने अपनी खबर के माध्यम से किया है। आइए पढ़ते हैं क्या हैं ए बी सी डी के नए मायने…

Acche din

क्या इनमें से कुछ मुद्दे साल 2017 पर भी असर डालेंगे? यह देखना दिल्चस्प होगा…
 
A- ए से अच्छे दिन। अच्छे दिन जो ‘भक्तों’ (देखें B) की पहुंच से अब तक दूर हैं। अगर आप भक्त नहीं हैं तो आप A से एंटी-नेशनल साबित किए जा सकते हैं।

B- बी से भक्त। जिनके लिए उनकी आस्था ही दुनिया का सबसे बड़ा सच है। भक्त तार्किक विचारों से चिढ़ जाते हैं और ऊल-जुलूल हरकतें करने लगते हैं। आप चाहें तो बी से ब्लैक मनी भी पढ़ सकते हैं लेकिन इससे आप आयकर के शिकंजे में फंस सकते हैं इसलिए बचें तो बेहतर। बीते बात बी का मतलब बीफ भी रहा लेकिन इससे गोरक्षक आपकी जान के दुश्मन हो सकते हैं। अगर आप ब्रिटिश टच चाहते हैं तो बी से ब्रेक्जिट पढ़ सकते हैं।

C- सी से कैश। कैश यानी नकद जिससे हर भारतीय को प्यार है, खासकर गुजरातियों को। साल 2016 में सी से कैशलेस भी हो गया। साल 2016 से पहले कैशलेस होना गरीबी का प्रतीक था लेकिन अब ये राष्ट्रसेवा बन चुका है।

D- डी से डीमोनेटाइजेशन। डीमोनेटाइजेशन (विमुद्रीकरण/नोटबंदी) एक ऐसा जादुई शब्द है जिससे आम लोगों की जेब पैसे निकलकर बैंक में पहुंच गए। ये पैसे उसी जादुई तरीके से एक दिन वापस आपके मोबाइल वैलेट में पहुंच जाएंगे।

E- ई से इकोनॉमी। भारतीय राजनीति में सालों साल तक ई से इलेक्शन ही रहा है कि लेकिन अब पश्चिमी देशों की तरह भारत में ई से इकोनॉमी भी होने लगी है। जाहिर है ये भारतीय लोकतंत्र की परिपक्वता की निशानी है।

F- एफ से फार्मर (किसान)। वही किसान जिनकी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी के कष्ट सहने के लिए तारीफ की। ये अलग बात है कि नोटबंदी के कारण खेती में मददगार सहकारी बैंक पर सरकार की तिरछी नजर के कारण किसानों को बुआई में काफी मुश्किल झेलनी पड़ी। कहना न होगा किसानी अब अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी नहीं रही। साल 2016 में एफ से एफसीआरए भी रहा। बीते साल ये पता चला कि केंद्र सरकार जब चाहे जिसका विदेशी चंदा बंद करा सकती है। बस राजनीतिक पार्टियों का छोड़कर।

G- जी फॉर ग्रोथ (विकास)। नोटबंदी से पहले इस शब्द को लगभग मिथकीय दर्जा प्राप्त हो गया था। बीते साल जी से गोस्वामी (अरनब गोस्वामी) भी रहा। टीवी की सबसे ऊँची आवाज। अब वो अपने टीवी चैनल रिपब्लिक के साथ वापस आने वाले हैं।

H- एच से हैदराबाद यूनिवर्सिटी। बीते साल एंटी-नेशनल होने के मामले में हैदराबाद यूनिवर्सिटी जेएनयू से आगे निकल गई। 16 जनवरी को रोहित वेमुला की आत्महत्या के बाद देश की राजनीति में एक नई चेतना का बीज पड़ा।

I- आई से इंडियन। एक ऐसा जीनियस जिसे लेकर दुनिया को गलतफहमी है। उसने प्लास्टिक सर्जरी और हवाई जहाज बनाया लेकिन कभी उसका श्रेय नहीं लिया। बाद में वो हालात के हाथों मजबूर हो गया जिसके लिए मार्क्सवादी, माओवादी, नेहरू और गांधी जिम्मेदार हैं।

J- जे से जुमला। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में चुनावी जीत हासिल करने में जुमले ने जो भूमिका निभायी है उससे इसका महत्व अभूतपूर्व ढंग से बढ़ गया है। बीते साल जे से जेएनयू भी रहा जो देश की राजधानी दिल्ली में एंटी-नेशनल का मजबूत गढ़ है। जे से बीते साल जवान भी रहा जो देश की रक्षा में जान देता रहा। ये अलग बात है कि नोटबंदी के बाद क़तार में लगे जवान को तकलीफ भी सहनी पड़ी।

K- के से कश्मीर। हमेशा की तरह। आजादी के बाद से भारतीय शब्दकोश में K का यही मतलब रहा है। पिछले साल कश्मीर कुछ ज्यादा ही खबरों में रहा। ज्यादातर बुरी खबरों में।

L- एल से लॉन्ड्रिंग। लॉन्ड्रिंग वो कला है जिससे पलक झपकते ही पैसे का रंग बदल जाता है। वो काले से सफेद हो जाता है। भारत में पिछले ढाई दशकों से एल से लिबरलाइजेशन हुआ करता है लेकिन अब ये कमजोर पड़ने लगा है शायद इसलिए क्योंकि इसका जन्म कांग्रेसी शासनकाल में हुआ था।

M- एम से मोबाइल। अब यह आपका बैंक भी है, बटुआ भी। हो सकता है कि आने वाले वक्त में आपके पास केवल मोबाइल बैंक और मोबाइल बटुआ ही बचे इसलिए इसे लेकर जागरूक बनें।

N- एन से नेशनलइज्म (राष्ट्रवाद)। भारत में एक मात्र मान्यताप्राप्त विचारधारा। बीते साल एन से नेहरू भी रहा जो नोटबंदी को छोड़कर इस देश में होने वाली हर चीज के लिए जिम्मेदार ठहराए गए।

O- ओ से आह। गरीब, बीमार, मजबूर लोगों की आह जो क़तारों में लगे रहे। ओ से ओलंपिक या पैराओलंपिक भी जिससे भारतीयों को दिल्ली सरकार के ऑड-ईवन के खेल से ज्यादा खुशी मिली।

P- पी से पाकिस्तान और पुतिन। बीते साल दोनों ने एशिया की राजनीति में अपनी पुरानी चाल नहीं बदली। पी से पाकिस्तानी एक्टर भी हो सकते हैं जिन्हें भारत में एंटी-नेशनल घोषित कर दिया गया है। पी से पैलेट गन भी रहा जिन्हें सैकड़ों नागरिकों को सहना पड़ा। लेकिन बीते साल का सबसे बड़ा पी रहा पेटीएम जिसने नोटबंदी का सबसे ज्यादा जश्मन मनाया। पी से पतंजलि भी रहा। हमारा अपना देसी वालमार्ट। पी से प्रॉहिबिशन (शराबबंदी) भी।

Q- क्यू से क्यू (क़तार)। क़तार जिसमें देश के हर जरूरतमंद को लगना पड़ा। करीब 100 नागरिकों की क़तार में खड़े होने के दौरान जान चली गई। कई जगह मारपीट हो गई। देश के वित्त मंत्री अरुण जेटली में क़तार में बने रहने के दौरान अनुशासन  की तारीफ की।

R- आर से रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया। एक समय काफी सम्मानित लेकिन नोटबंदी के बाद सवालों के घेरे में।

S- एस से सर्जिकल स्ट्राइक। केंद्र सरकार द्वारा लोकप्रिय बनाया गया जुमला।  लेकिन आठ नवंबर को नोटबंदी लागू होने के बाद लोग इसे भूलने लगे हैं।

T- टी से टैक्समैन (टैक्स अधिकारी)। इस साल टी से टैक्सवाले सबसे ज्यादा चर्चा में रहे। पीएम मोदी ने वादा किया है कि ये टैक्सवाले इस साल भी लोगों का पीछा करते रहेंगे। बीते साल टी से ट्रंप और टाटा भी रहे।

U- यू से उर्जित पटेल। भारतीय रिजर्व बैंक के मौजूदा गवर्नर जिनके कार्यकाल में नोटबंदी जैसा ऐतिहासिक फैसला लिया गया। यू से यूएसएसडी (अनस्ट्रक्चर्ड सप्लिमेंट्री सर्विस डाटा) भी जिससे फोनवाले वित्तीय सेवाओं का उपयोग कर सकेंगे।

V- वी से वेनेजुएला। लातिन अमेरिकी देश जिसने भारत के बाद नोटबंदी का फैसला लिया लेकिन जनता के उग्र विरोध के बाद इसे वापस ले लिया।

W- वी से वेडिंग। भारतीय शादियां जिन पर नोटबंदी की गहरी मार पड़ी। कुछ की शादी टूट गई, कुछ की टल गई तो कुछ की ज्यों-त्यों पूरी की गई।

X- एक्स से प्लैनेट एक्स। नेप्चून के आकार का ग्रह जो प्लूटो के कक्षा में परिक्रमा करता है। कैलटेक यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने बीते साल इसे खोजने का दावा किया।

Y- वाई से यस्टरडे (बीता हुआ कल)। ऐसा दिन जहां हमारी सारी मुश्किलें पीछे छूट चुकी होती हैं।  वाई से यादव परिवार भी रहा जिसने अपना नाटकीय घटनाक्रमों से टीवी धारावाहिकों को चुनौती दी है।  वाई से सबसे अहम है यू (आप) जिसके विचार और फैसलों से देश का भविष्य तय होना है।

Z- जेड़ से ज़िप (बंद करना)। बीते साल चुप रहने को राष्ट्रवाद की सबसे बड़ी पहचान माना गया। अगर आप चुप रहते हैं तभी माना जाएगा कि आप एंटी-नेशनल नहीं हैं।

(इनपुट- जनसत्ता)
 

अच्छे दिन: मोदी सरकार बनवायेगी गाय-भैंसों के आधार कार्ड

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नई दिल्ली। हाल ही में आई एनसीआरबी की एक रिपोर्ट ने बताया था कि मोदी सरकार बनने के बाद एक साल में देश से किसानों और कृषि मजदूरों की आत्महत्या दर में 42 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है। रिपोर्ट ने किसानों और कृषि मजदूरों की आत्महत्या के पीछे का कारण कंगाली, कर्ज, खेती से जुड़ी दिक्कतें और सरकारी मशीनरी का सही से काम न करना बताया था। लेकिन इन सभी आत्महत्याओं से अनजान मोदी सरकार 148 करोड़ के प्रोजेक्ट के साथ गाय और भैंसों के लिए आधार कार्ड जारी करेगी।

Modi Cow

खबर के अनुसार मोदी सरकार ने ऐलान किया है कि आने वाले वक्त में गाय और भैंसों को भी आधार जैसा यूनीक आईडेंटिफिकेशन नंबर (UID) मिलेगा। इसके लिए नए साल से काम भी शुरू कर दिया गया है। इसके लिए लगभग एक लाख लोग पूरे देश के कोने-कोने में घूमकर पशुओं पर टैग लगाएंगे। यही नहीं उन लोगों को 50 हजार टैबलेट भी सौंप दिए गए हैं। सरकार का प्लान है कि इस साल लगभग 88 मिलियन गाय और भैंसों के कान में यूआईडी नंबर सेट कर दिया जाएगा।
 
सरकार इस टैगिंग के पूरे काम पर 148 करोड़ रुपए खर्च करेगी। सरकार ने 2017 के लिए कुछ टारगेट भी तय किए हैं। जैसे 2017 में सिर्फ यूपी के ही 14 लाख पशुओं की टैगिंग की जाएगी, वहीं मध्य प्रदेश में महीनेभर में 7.5 लाख पशुओं की टैगिंग की जानी है। 
 
खबर के मुताबिक, सबसे ज्यादा पशु यूपी में है। जहां उनकी संख्या 16 मिलियन है। दूसरे नंबर पर 9 मिलियन के साथ मध्यप्रदेश है। तीसरे नंबर पर राजस्थान (8.4 मिलियन), चौथे पर गुजरात (6.2 मिलियन) और पांचवे पर आंध्र प्रदेश (5.4 मिलियन) है।
 
आपको बता दें कि यह काम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कहने पर ही किया जा रहा है। पशुओं के कान के अंदर एक पीले रंग का टैग डाला जाएगा। प्रत्येग टैग सरकार को आठ रुपए का पड़ेगा। उस टैग को ऐसे मेटेरियल से बनाया जा रहा है जिससे पशु को कोई नुकसान नहीं होगा। 
 
टैग लगाने गया शख्स उसे लगाकर टैग के नंबर को अपने टैबलेट के ऑनलाइन डाटाबेस में ऐड कर लेगा। इसके साथ ही पशु के मालिक को उससे जुड़ा एक हेल्थ कार्ड दिया जाएगा। उसमें भी पशु का UID नंबर होगा। उससे पशु से जुड़ी सारी जानकारी ऑनलाइन देखी जाएगी।
 

मोदीजी क्या आप अपने मामा के घर से पैसा लाकर यूपी वालों को दे रहे हैं?

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नई दिल्ली। सोमवार को रमाबाई अंबेडकर मैदान लखनऊ में बीजेपी की परिवर्तन रैली को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि मेरी सरकार बनने के बाद यूपी को प्रति साल एक लाख करोड़ के हिसाब से ढाई सालों में यूपी को ढाई लाख करोड़ रुपया दिया गया, लेकिन यूपी की सपा सरकार ने उन रुपयों को जनता के काम में नहीं लगाया। अब इस भाषण की वजह से ही पीएम मोदी फंसते नजर आ रहे हैं। लोग उनके इस बयान पर सवाल उठा रहे हैं।

Modi mama
 
आपको बता दें कि 2014 के लोकसभा आमचुनाव से पहले कई रैलियों में पीएम मोदी केंद्र सरकार के द्वारा राज्यों को पैसा देने की बात कहने पर कहते थे कि 'क्या दिल्ली वाले यह पैसा अपने मामा के यहां से लेकर आए हैं? मोदीजी जनता से पूछते थे कि क्या जनता का इन पैसों पर कोई अधिकार नहीं है?'
 
नीचे देखिए वीडियो जिसमें पीएम मोदी कांग्रेस पर पैसे देने को लेकर हमला बोलते थे..

 
पीएम मोदी तो भाषणों में यहां तक कहते थे कि यह जनता का पैसा है और क्या दिल्ली वाले उन्हें भीख दे रहे हैं? पीएम मोदी जनता को भड़काते हुए कहते थे क्या आप भीख का कटोरा लेकर खड़े हैं ये दिल्ली वाले आकर भीख की बातें करते हैं आपको मंजूर है क्या ये आपका अपमान है कि नहीं है? पीएम मोदी कहते थे कि ये दिल्ली वाले कौन सी भाषा बोल रहे हैं। 

लोकसभा चुनावों के प्रचार के समय पीएम मोदी कहते थे कि हिंदुस्तान की तिजोरी पर जनता का हक है ये पैसा किसी दल का या किसी सरकार का नहीं है यह जनता जनार्दन का पैसा है। एक एक पाई पर जनता का हक है। वो कहते थे कि हिंदुस्तान की तिजोरी में जनता जनार्दन का पैसा जमा है।  
 
आपको बता दें कि हर राज्य के लिए एक निश्चित बजट होता है और केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार अपने-अपने हिस्से के हिसाब से राज्य के कार्यों में पैसा खर्च करते हैं। जब किसी भी राज्य की जनता टैक्स देती है तो जाहिर सी बात है कि वह टैक्स राज्य सरकार के साथ-साथ केंद्र सरकार को जाता है। 
 
अब सवाल यह उठता है कि पीएम मोदी ने अपनी सरकार की तरफ से जो पैसे यूपी को दिए उन्हें अपने मामा के घर से तो लाए नहीं होंगे वह जनता के टैक्स के ही पैसे हैं और चूंकि यूपी चुनाव नजदीक आ गया है तो पीएम मोदी भी अब वैसे ही पैसे देने की बात कर रहे हैं जैसे वो लोकसभा चुनावों के दौरान बोलकर कांग्रेस का मजाक उड़ाते थे।

Courtesy: National Dastak

इतिहासकार इरफान हबीब ने RSS से पूछा आजादी में योगदान, करा दी गई FIR

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नई दिल्ली। देशभक्ति का ढिंढोरा पीटने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानि आरएसएस की दुखती रग पर जब इतिहासकार प्रोफेसर इरफान हबीब ने हाथ रखा तो उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी गई। लेकिन इसके बावजूद भी इरफान हबीब आजादी की लड़ाई में आरएसएस की भूमिका पर उठाए सवालों पर कायम हैं। उनका कहना है कि मैं लोकतंत्र में जीने वाला इंसान हूं,  इसलिए जो सही था मैंने वही कहा। अगर मैं गलत हूं तो संघ सबूतों के साथ हकीकत को पेश कर दे। अब तो मामला कोर्ट में है। वो बताए कि आजादी की लड़ाई में कब, कहां और कितने स्वयंसेवक शहीद हुए? रहा सवाल मुकदमे का तो कुछ लोग ओछी पब्लिसिटी के लिए इस तरह की हरकत करते रहते हैं।

Irfan Habib

हाल ही में प्रकाशित हुए अपने एक लेख में इतिहासकार इरफान हबीब ने कहा था कि आजादी की लड़ाई में आरएसएस की कोई भूमिका नहीं रही। इस लेख के बाद लखनऊ के एक व्यक्ति ने अलीगढ़ की कोर्ट में एक याचिका लगाई है। याची का कहना है कि मैं संघ का सदस्य हूं। इरफान हबीब के इस लेख को पढ़कर मुझे पीड़ा हुई है। मुझे मानसिक आघात पहुंचा है। इस बारे में जब इरफान हबीब से बात की गई तो उनका कहना था कि इस देश में सबको बोलने का हक है।

मैंने जो कहा है वो कागजों में दर्ज है। मेरे पास मेरे बयान से संबंधित सबूत हैं और मैं उस पर कायम हूं। अगर किसी को ये लगता है कि मेरा बयान गलत है तो उसे साबित करे। ऐसे लोग सबूत पेश करें कि इस तारीख में इस जगह संघ से जुड़े फलां स्वयंसेवक ने लड़ाई लड़ी थी और इस लडाई में उन पर कार्रवाई हुई थी या फिर वो शहीद हुए थे।

हबीब ने न्यूज 18 इंडिया डॉटकॉम से बातचीत में कहा कि कई बार ये मामला कोर्ट में गया है। आज भी किसी शख्स ने कोर्ट में अर्जी दाखिल की है। जिसको शिकायत है वो कोर्ट में सबूत देकर मेरी बात को खारिज कर सकता है। वर्ना तो जब कोर्ट मांगेगा तो मैं अपने बयान से संबंधित सबूत पेश कर दूंगा। बाकी में इस बारे में ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहूंगा। मैं जानता हूं कि ये पब्लिसिटी पाने के लिए की गई ओछी हरकत है।

Courtesy: National Dastak