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शिवराज सरकार से बच्चों ने मांगा प्लेग्राउंड, भेज दिया जेल

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भोपाल। मध्यप्रदेश के भोपाल में कलेक्टर ने स्कूल के बच्चों को इसलिए जेल भेज दिया क्योंकि वो खेलने के लिए एक बेहतर प्लेग्राउंड और अच्छी सड़कों की मांग कर रहे थे। यही नहीं कानून के रखवालों ने खुद ही खुलेआम कानून की धज्जियां भी उड़ाई।

Shivraj Singh Chauhan
 
खबरों के मुताबिक, पुलिस ने जुवेनाइल के लिए बने किसी भी नियम का पालन नहीं किया। पुलिस ने लड़के और लड़कियों को एक ही वैन में रखा यही नहीं लड़कियों को पकड़ने के लिए कोई महिला पुलिसकर्मी भी मौजूद नहीं थी। बता दें कि यह सब बाल अधिकारों के संरक्षण के लिए बने राज्य आयोग (MPCPCR) के चेयरमैन राघवेंद्र शर्मा के सामने हुआ।
 
जानकारी के मुताबिक स्कूल के लगभग 50 बच्चे जिसमें से करीब 35 बच्चे नाबालिग थे बुधवार को कलेक्टर ओपी श्रीवास्तव से मिलने के लिए पहुंचे थे। लेकिन कलेक्टर साहब केंद्र सरकार की किसी स्कीम को लॉन्च करने के लिए पास ही किसी कार्यक्रम में गए हुए थे। बच्चों ने कलेक्टर का घंटों इंतजार किया। लेकिन कलेक्टर के ना आने पर बच्चे परेशान होकर उसी जगह पहुंच गए जहां वह कार्यक्रम हो रहा था। 
 
बच्चों को देख कलेक्टर साहब भड़क गए और उन्होंने पुलिस को आर्डर दिया कि वे सभी बच्चों को वहां से ले जाएं। इसके बाद वहां मौजूदा पुलिसकर्मियों ने बच्चों को एक वैन में भरकर जेल प्रशासन को सौंप दिया। जहां बच्चों को तकरीबन तीन घंटे तक जेल में रखा गया।
 
वही MPCPCR के चेयरमैन राघवेंद्र शर्मा ने कहा कि वह जानना चाहते हैं कि बच्चों को इतना उग्र होने के लिए किसने उकसाया था। वहीं पुलिस ने अपने एक्शन का बचाव करते हुए कहा कि वहां लगभग पांच हजार बच्चे थे। पुलिस ने कहा कि कानून एवं व्यवस्था को बनाए रखने के लिए वह कदम उठाया गया था।
 

भेदभाव से तंग आकर भारत की पहली ट्रांसजेंडर प्रिंसिपल ने दिया इस्तीफा

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नई दिल्ली। क्या इस देश में ट्रांसजेंडरों को एजुकेशन लेने या देना का हक नहीं है? हम क्यों ट्रांसजेंडरों को एक अलग ही सोच और नजर से देखते है। ताजा मामला पश्चिम बंगाल के  कृष्णानगर महिला कॉलेज से सामने आया है। बता दें कि यहां पर प्रिंसिपल का पदभार संभाल रहीं ट्रांसजेंडर मनाबी बंधोपाध्याय को नौकरी छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया गया।

Transgender principal
 
स्कूल प्रिंसिपल का पदभार संभाल रहीं मनाबी बंधोपाध्याय ने सभी ट्रांसजेंडर्स के सामने उदाहरण पेश किया था। उन्होंने बताया था कि ट्रांसजेंडर्स का शिक्षित होना व्यर्थ नहीं जाता, लेकिन उनके पद पर काम करने को लेकर सहकर्मियों और छात्रों ने उनका साथ नहीं दिया।
 
मनाबी के खिलाफ लगातार घेराव और प्रदर्शनों हो रहा था जिससे तंग आकर मनाबी ने आखिरकार 23 दिसंबर को अपना इस्तीफा दे दिया। बता दें कि मनाबी ने डेढ़ साल पहले प्रिंसिपल का पद संभाला था, शायद वह देश की पहली ट्रांसजेंडर हैं, जो किसी शैक्षणिक संस्थान की प्रिंसिपल बनीं।
 
अपनी बात को सामने रखते हुए मनाबी ने कहा, 'मैंने 23 दिसंबर को डीएम को अपना इस्तीफा भेज दिया। मेरे सारे सहकर्मी और स्टूडेंट्स मेरे खिलाफ थे। मैंने कॉलेज में अनुशासन और स्वस्थ वातावरण बहाल करने की कोशिश की लेकिन मेरी कोशिश नाकाम रही।'
 
उन्होंने आगे कहा, 'मुझे स्थानीय प्रशासन से पूरा समर्थन मिला, लेकिन सहकर्मियों और छात्रों से कोई सहयोग नहीं मिला। उनका सहयोग न मिलने से मैं मानसिक दबाव में आ गई, जिसे मैं और नहीं झेल सकती थी।'
 
इस मामले में मनाबी कहती हैं वह काफी उम्मीद के साथ कॉलेज आई थीं लेकिन वह हार गईं, अगर उनके खिलाफ कोई आरोप है तो वह उसकी जांच के लिए तैयार हैं, लेकिन कॉलेज में शिक्षा का वातावरण खराब करने का क्या फायदा? उन्होंने यह भी बताया कि NAAC की टीम उऩके काम से बहुत खुश थी, वह खुश हैं कि कॉलेज को ज्यादा फंड मिलेगा।
 
मामले को संज्ञान में लेते हुए नादिया के डीएम सुमित गुप्ता ने कहा कि प्रिंसिपल मनाबी का इस्तीफा उन्हें मिल गया है और उसे बुधवार को उच्च शिक्षा विभाग को भेज दिया गया है। आगे की कार्रवाई विभाग करेगा और जल्द कोई फैसला लिया जाएगा।

Courtesy: National Dastak
 

जेएनयू में रोहित वेमुला कांड दोहराने की कोशिश कर रहा प्रशासन- निष्कासित छात्र

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नई दिल्ली। जेएनयू से बगैर जांच कराए निष्काषित किए गए 15 दलित, मुस्लिम और आदिवासी छात्रों ने प्रेस कांफ्रेंस कर विवि प्रसाशन और केंद्र सरकार पर निशाना साधा। इन्होंने कहा कि जेएनयू प्रसाशन विवि में भेदभाव की जड़ें गहराई से पोषित कराने की फिराक में है। वे वाइवा के नंबरों में कटौती की मांग कर रहे थे इसके उलट प्रशासन ने रिटेन ही खत्म कर दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि वाइवा में दलित पिछड़े माइनॉरिटी और आदिवासियों के साथ भेदभाव किया जाता है इसीलिए इसमें कटौती कर रिटेन के पूर्णांक में बढ़ोत्तरी की जाए। 

JNU suspended students

निष्काषित किए गए छात्रों ने कहा कि प्रशासन ने उनके साथ दोहरा मापदंड अपनाया है। नजीब को पीटने और गायब करने वालों पर जांच तक नहीं बिठाई गई जबकि उन्हें बगैर किसी कारण के निष्कासित कर दिया गया। 
 
जेएनयू के वीसी को निलंबित किए जाने की मांग करते हुए उन्होंने कहा कि हमारा सस्पेंशन रद्द कर वाइवा वाली मांगें भी मानी जाएं। छात्रों ने वीसी के खिलाफ 'हिटलर शाही नही चलेगी का जैसे नारा भी लगा गए'।
 
बहुजन छात्रों ने इस जातिवाद पक्षपात के मामले को मोदी सरकार और आरएसएस की साजिश बताई। हालांकि यह मामला मेनस्ट्रीम मीडिया में भी सिरे से गायब है। जातीय तौर पर हर जगह इन छात्रों के साथ भेदभाव किया जा रहा है। छात्रों का आरोप है कि जेएनयू प्रशासन एक और रोहित वेमुला की बलि लेना चाहता है। उनके लिए सेल्टर देने वालों को भी धमकी दी जा रही है।

Courtesy: National Dastak

नागपुर: बीजेपी के पोस्टरों से पीएम मोदी गायब – अमर उजाला

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नागपुर में पीएम मोदी की तस्वीर के बिना पोस्टर लगाए गए हैं। ये पोस्टर नागपुर में अगले साल होने वाले निकाय चुनाव के प्रचार के मद्देमजर लगाए गए हैं। पोस्टरों में स्थानीय नेताओं को जगह दी गई है, जबकि पीएम मोदी को नदारद रखा गया है।

Modi

 
ये पोस्टर नागपुर में आरएसएस मुख्यालय और शहर के बाकी हिस्सों में लगाए गए हैं। 

पोस्टरों में माहाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस और बीजेपी नेता नितिन गडकरी को जगह दी गई है। पार्टी नेताओं का तर्क है कि निकाय चुनाव में उन लोगों को पोस्टरों में जगह दी गई है जो नागपुर से आते हैं। 

बिना पीएम मोदी के ये पोस्टर कौतुहल का विषय इसलिए बने हुए हैं, क्यों कि उनके पीएम बनने के बाद से जहां भी चुनाव हुए हैं, पार्टी ने उन्हीं का चेहरा फ्रंट पर रखा है। ऐसे में पार्टी नेताओं का यह तर्क कि निकाय चुनाव में स्थानीय नेताओं की तस्वीरें लगाई गई है, विपक्ष के गले के नीचे नहीं उतर रहा है। 

राजनीतिक जानकार इसे नोटबंदी के बाद लोगों के बीच पीएम मोदी की छवि में आए बदलाव से जोड़कर देख रहे हैं।

Courtesy: Amar Ujala