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नागपुर: बीजेपी के पोस्टरों से पीएम मोदी गायब – अमर उजाला

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नागपुर में पीएम मोदी की तस्वीर के बिना पोस्टर लगाए गए हैं। ये पोस्टर नागपुर में अगले साल होने वाले निकाय चुनाव के प्रचार के मद्देमजर लगाए गए हैं। पोस्टरों में स्थानीय नेताओं को जगह दी गई है, जबकि पीएम मोदी को नदारद रखा गया है।

Modi

 
ये पोस्टर नागपुर में आरएसएस मुख्यालय और शहर के बाकी हिस्सों में लगाए गए हैं। 

पोस्टरों में माहाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस और बीजेपी नेता नितिन गडकरी को जगह दी गई है। पार्टी नेताओं का तर्क है कि निकाय चुनाव में उन लोगों को पोस्टरों में जगह दी गई है जो नागपुर से आते हैं। 

बिना पीएम मोदी के ये पोस्टर कौतुहल का विषय इसलिए बने हुए हैं, क्यों कि उनके पीएम बनने के बाद से जहां भी चुनाव हुए हैं, पार्टी ने उन्हीं का चेहरा फ्रंट पर रखा है। ऐसे में पार्टी नेताओं का यह तर्क कि निकाय चुनाव में स्थानीय नेताओं की तस्वीरें लगाई गई है, विपक्ष के गले के नीचे नहीं उतर रहा है। 

राजनीतिक जानकार इसे नोटबंदी के बाद लोगों के बीच पीएम मोदी की छवि में आए बदलाव से जोड़कर देख रहे हैं।

Courtesy: Amar Ujala

रिजर्व बैंक द्वारा RTI के जवाब ने उठाया नोटबंदी के फैसले पर बड़ा सवाल

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रिजर्व बैंक ने एक RTI के जवाब में पीएम मोदी की नोटबंदी की घोषणा को सवालों के कटघरे में खड़ा कर दिया है। जिससे नोटबंदी की तैयारियों पर सवालिया निशान खड़े हो गए है। ब्लूमबर्ग द्वारा दायर एक आरटीआई के जवाब में रिजर्व बैंक ने स्पष्ट किया है कि नोटबंदी के फैसले की मंजूरी इसने 8 नवंबर को पीएम मोदी के राष्ट्र के नाम संदेश से सिर्फ ढाई घंटे पहले दी थी।

उर्जित पटेल

ये जानकारी इस बात का खंडन करती है जिसमें 7 दिसंबर को रिजर्व बैंक के गर्वनर उर्जित पटेल द्वारा ये दावा किया गया था कि नोटों पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय जल्दबाजी में नहीं लिया गया था।

ब्याजदरों की स्थिति को पहले जैसा बनाए रखने पर बोलते हुए उन्होंने कहा था कि ये निर्णय जल्दबाजी में नहीं बल्कि लम्बें विचार-विर्मश के बाद लिया गया है। ये उच्चस्तरीय फैसला था जो बेहद गोपनीय तरीके से बनाया गया था।

जबकि केंन्द्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने 16 नवंबर को राज्य सभा में बोलते हुए कहा था कि नोटों पर प्रतिबंध के फैसले का श्रेय रिजर्व बैंक के उर्जित पटेल और उनकी दस सदस्यीय समिती को जाता है।

 

इस बारे में विशेषज्ञों का मानना है कि इस पर विश्वास करना मुश्किल है कि 500 और 1000 रूपये के नोटों का बंद करने का फैसला राजनीति से प्रेरित नहीं था।

क्योंकि बेहद तेजी के साथ 86 प्रतिशत भारतीय मुद्रा को बाजार से हटा देने वाली रिजर्व बैंक की सिफारिश को केवल ढाई घंटे में लागू करने की घोषणा आखिर प्रधानमंत्री किस प्रकार से कर सकते है?

यहां विशेषज्ञों द्वारा ये भी माना जा रहा है कि रिजर्व बैंक के पूर्व गर्वनर रघुराम राजन इस संस्था की स्वायत्तता के पैरोकार थे। रघुराम राजन के चलते केन्द्र इसमें हस्तक्षेप नहीं कर पा रहा था इसलिए नए गर्वनर के रूप में उर्जित पटेल की नियुक्ति को सरकार द्वारा थोपा गया। बड़ी वित्तीय नीतियों के हेरफेर को आसानी से अमल में लाने के लिए ये बदलाव किए गए।

नोटबंदी के बाद से करोड़ो की आबादी व्यापक रूप से प्रभावित हुई है। इसके बाद से आई परेशानियों के कारण 100 से अधिक लोग अपनी जान गंवा चुके है। लाखों लोगों को उनकी मेहनत की कमाई को निकालने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। दुनिया की कई सारी एजेंसीज ने माना कि इससे भारत के विकास की ग्रोथ व्यापक रूप से प्रभावित होगी। जैसे वाॅल स्ट्रीट जर्नल, फोर्ब्स व विदेशी मीडिया ने सरकार के नोटबंदी फैसले की निंदा की है।

वित्तीय संकट से उबरने के लिए पीएम मोदी ने 50 दिनों का आश्वासन दिया था कि हालात सामान्य हो जाएगें। जबकि नोटों की पर्याप्त आपूर्ति नहीं की जा रही है जिसके कारण वित्तीय संकट जारी रहने की संभावना बनी रहेगी।

Courtesy: Janta Ka Reporter

 

दिल्ली के नए उप-राज्यपाल पर उठे सवाल, आखिर क्या है भगवा कनेक्शन?

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नई दिल्ली। दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग ने 22 दिसंबर को उपराज्यपाल पद से इस्तीफ़ा दे दिया था। इसके बाद रिटायर्ड आइएएस अधिकारी अनिल बैजल को दिल्ली का नया उप राज्यपाल नियुक्त किया गया है। केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय राजधानी के इस अहम पद के लिए अनिल बैजल का चयन किया है। लेकिन उनके नाम की नियुक्ति पर केंद्र सरकार पर एक बार फिर से सवाल उठने लगे हैं। 

Anil baijal
 
2014 में मोदी सरकार आने के बाद जिन भी संस्थाओं में नियुक्ति हुई है उन सबकी नियुक्ति में सरकार पर भगवाकरण के आरोप लगते रहे हैं। विपक्षी दल सरकार पर सभी संस्थानों और नियुक्तियों में संघ के लोगों को बैठाने का आरोप लगाते रहे हैं। यही आरोप दिल्ली के उप-राज्यपाल की नियुक्ति पर भी उठ रहे हैं।
 
अनिल बैजल 1969 बैच के आईएएस अफसर हैं और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के दौरान केंद्रीय गृह सचिव रह चुके हैं। लेकिन उनके साथ जो विवाद की वजह है कि वह विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन में एक्जिक्यूटिव कौंसिल के सदस्य भी रह चुके हैं।

बैजल सन 2006 में शहरी विकास मंत्रालय के सचिव पद से रिटायर हुए थे। इसके बाद वे विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन की कार्यकारिणी समिति के सदस्य बने। इस संस्थान से पहले भी कई सदस्यों को सीनियर पदों पर लाया जा चुका है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनने से पहले अजीत डोभाल भी इस समिति के सदस्य रह चुके हैं।
 
आपको बता दें कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद एक संस्था बेहद तेजी से चर्चा में आई है, वह है विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन (वीआईएफ)। दिल्ली के चाणक्यपुरी इलाके में स्थित यह फाउंडेशन वैसे तो 2009 से ही सक्रिय था लेकिन इसके बारे में कहीं कोई खास चर्चा सुनाई नहीं देती थी। लेकिन आज यह संस्थान राजनीतिक-प्रशासनिक गलियारों में चर्चा का केंद्र बना हुआ है।  
 
दिल्ली के सत्ता गलियारों में यह कहा जाने लगा है कि सरकार के लिए वीआईएफ एक ऐसा नियुक्ति केंद्र बन गया है जहां संघ और मोदी के मनमाफिक लोगों की एक पूरी फौज है। सरकार की हर जरूरत का आइडिया और इंसान वीआईएफ में मौजूद है। 
 
यहीं से यह प्रश्न खड़ा होता है कि ऐसा क्या है वीआईएफ में जिसने इसे पीएम मोदी का चहेता बना दिया है? क्या काम करती है यह संस्था? कौन लोग इससे जुड़े हैं?
 
दरअसल वीआईएफ अजित डोवाल के दिमाग की उपज है। 2005 में आईबी प्रमुख के पद से रिटायर होने के बाद 2009 में डोवाल ने इसकी स्थापना की थी। इसका उद्घाटन उस साल दिसंबर माह में माता अमृतानंदमयी और न्यायमूर्ति एमएन वेंकटचलैया ने किया था।
 
वीआईएफ कन्याकुमारी स्थित उस विवेकानंद केंद्र से संबद्ध है जिसकी स्थापना 1970  में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाहक एकनाथ रानाडे ने की थी। दिल्ली के चाणक्यपुरी इलाके में 1993 में तत्कालीन नरसिम्हा रॉव सरकार ने दिल्ली में भी इस संस्थान को जमीन आवंटित की थी। बाद में यहीं वीआईएफ की स्थापना हुई।
 
संस्था अपने विजन और मिशन के बारे में बताते हुए लिखती हैं,  ‘वीआईएफ एक स्वतंत्र और निष्पक्ष संस्थान है जो गुणवत्तापूर्ण अनुसंधान और गहन अध्ययन को बढ़ावा देता है। संस्था का काम उन सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक गतिविधियों पर नजर बनाए रखना है जो भारत की एकता और अखंडता पर असर डाल सकती है।’
 
वीआईएफ ने पिछले सालों में सबसे बड़ा काम यूपीए सरकार के खिलाफ माहौल बनाने का किया है। यूपीए-2 के कार्यकाल में कांग्रेस पार्टी और सरकार के खिलाफ जो आक्रामक माहौल बना उसे तैयार करने में फाउंडेशन की भी एक महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

Courtesy: National Dastak
 

चुनाव आयोग ने कहा, महाराष्ट्र भाजपा प्रमुख के खिलाफ दर्ज हो एफआईआर

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नई दिल्ली। महाराष्ट्र चुनाव आयोग ने भाजपा अध्यक्ष रावसाहिब दान्वे के खिलाफ उनके बयान को लेकर प्राथमिकी दर्ज करने को कहा है। बता दें कि रावसाहिब औरंगाबाद जिले के जिलाधिकारी से प्रदेश भाजपा अध्यक्ष हैं। रावसाहिब के बयान में मतदाताओं से मतदान से पूर्व लक्ष्मी स्वीकार करने को कहा था। 

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आपको बता दें कि दान्वे ने नगर परिषद चुनाव से पूर्व 17 दिसंबर को औरंगाबाद जिले के पैठान में एक चुनाव प्रचार रैली में यह विवादास्पद बयान दिया था। दान्वे ने पैठान की रैली में कहा था कि मतदान की पूर्व संध्या पर लक्ष्मी आपके घरों में आती है और आपको उसे स्वीकार करना चाहिए।
 
इसके साथ ही रावसाहिब के बयान पर विपक्षी कांग्रेस ने आपत्ति जताते हुए कहा कि यह चुनाव प्रचार के दौरान लोगों से धन स्वीकार करने के लिए कहना है। कांग्रेस ने राज्य चुनाव आयोग से कहा कि उनके खिलाफ चुनाव आचार संहिता उल्लंघन का मामला दर्ज किया जाए।
 
इस तरह के बयान को राज्य चुनाव आयोग ने इस पर संज्ञान लेते हुए बयान को चुनावी आचार संहिता के खिलाफ मानते हुए पुलिस में मामला दर्ज कराने के आदेश दिए हैं।

Courtesy: National Dastak