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फिर हुई मानवता शर्मसारः डायन का आरोप लगाकर जिंदा जलाया

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नई दिल्ली। क्या किसी को डायन बता कर उसकी जान लेना सही होता है? यह एक ऐसा सवाल है जो आपको सोचने पर मजबूर कर देता है? लेकिन यह बात सच है। झारखंड के जिला सिमडेगा के बानो थाना क्षेत्र के टेंबरो में एक बुजुर्ग दंपत्ति को डायन का आरोप लगाकर उसको जिंदा जला दिया।

Old women burnt
 
इससे पहले दंपत्ति की पिटाई भी की गई। बता दें कि आरोपियों ने एक खेत में धान के पुआल में लपेटकर उन्हें आग लगा दिया। इस घटना के बाद से ही आरोपी फरार हैं।
 
बच्चे की मौत के बाद लगाया दंपत्ति पर डायन होने का आरोप
इस घटना को बीती देर रात अंजाम दिया गया की है। मृतकों की पहचान लोहरा सिंह (70) और छोराती देवी (62) के रूप में की गई। वहीं, शंकर सिंह, विजय सिंह और इनके साथ शामिल एक अन्य ने इस घटना को अंजाम दिया।
 
इस मामले को लेकर पुलिस के अनुसार आरोपियों में एक के बच्चे की कुछ दिन पहले मौत हो गई थी। ग्रामीणों के अनुसार उन्हें सपने में बच्चा दिखता, जो बुजुर्ग दंपत्ति द्वारा मारे जाने की बात कहता। इसके बाद से आरोपी इस दंपत्ति पर डायन होने का आरोप लगाते रहे।
 
प्राप्त जानकारी के अनुसार बीती देर रात एक खेत में तीनों आरोपी पहुंचे और वहां बैठक की। जिसके बाद बुजुर्ग लोहरा सिंह और उसकी पत्नी को वहां बुलाया गया। दोनों पर डायन होने का आरोप लगाया गया और उनकी पिटाई भी की गई।
 
आरोपियों का जब इससे भी मन नहीं भरा तो बुजुर्ग दंपत्ति को धान के पुआल में लपेटकर उसमें आग लगा दी। इससे दोनों की मौके पर ही मौत हो गई। पुलिस ने सुबह शव बरामद किया और पोस्टमार्टम के लिए हॉस्पिटल भेज दिया। वहीं, आरोपियों की तलाश में पुलिस जगह-जगह छापेमारी कर रही है।

Courtesy: National Dastak

‘मुस्लिम औरतें ज्यादा बच्चे पैदा करती हैं’ इस झूठ का खुलासा करता सरकारी आंकड़ा

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नई दिल्ली। मुस्लिम औरतों को लेकर एक सरकारी आंकड़ा पेश किया गया है जिसमें बताया गया है कि मुस्लिम औरतें शादी करने और बच्चा पैदा करने में अन्य समुदाय की औरतों से काफी पीछे हैं। इस आंकड़े ने उन लोगों को एक झटका देने का काम किया है जो यह सवाल उठाते रहें हैं कि मुस्लिम औरतें ज्यादा बच्चें पैदा करती है और मुस्लिम धर्म देश की जनसंख्या बढ़ाने का सबसे बड़ा जिम्मेदार है।

Muslim women
 
इसके अलावा भी अन्य धर्म की तुलना में मुस्लिम महिलाओं को लेकर यह धारणा बनी है कि वो ज्यादा सशक्त या आधुनिक विचारों की नहीं हैं। सरकार की तरफ से जारी किए गए ये आंकड़े लोगों में बने इस धारणे को भी तोड़ते नजर आएंगे।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार 20 से 34 साल आयु वर्ग की नौजवान मुस्लिम महिलाओं में शादी करने की दर भी दूसरे समुदाय से कम है। साल 2011 के आंकड़ों के अनुसार 20 से 39 साल उम्र की 33 लाख 70 हजार मुस्लिम महिलाएं अविवाहित थीं। साल 2011 तक देश में कुल मुस्लिम महिलाओं की आबादी दो करोड़ 10 लाख थी यानी करीब 12.87 प्रतिशत महिलाएं अविवाहित थीं।  
 
साल 2001 से साल 2011 की जनगणना के बीच 20-39 आयु वर्ग की बिना बच्चे वाली मुस्लिम महिलाओं की संख्या में 39 प्रतिशत बढ़ गई है। इस मामले में मुस्लिम महिलाएं केवल बौद्ध महिलाओं (45 प्रतिशत) से पीछे थीं। इसी आयु वर्ग की हिंदू महिलाओं में 2001 से 2011 के बीच ये दर 29.5 प्रतिशत रही। साल 2011 की जनगणना के अनुसार बिनाबच्चों वाली विवाहित महिलाओं की संख्या पिछली जनगणना की तुलना में 31 प्रतिशत बढ़कर 2.73 करोड़ थी, जबकि 2001 की जनगणना में ऐसी महिलाओं की संख्या 2.08 करोड़ थी।
 
सामाजिक कार्यकर्ताओं के अनुसार शहरी इलाकों में युवा मुस्लिम महिलाएं इन विकल्पों का ज्यादा चुनाव कर रही हैं। भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन की संयोजक नूर जहां साफिया नीयाज कहती हैं, “समुदाय की सामाजिक आर्थिक स्थिति बदलने की वजह से महिलाएं ज्यादा चुनाव कर रही हैं। अब महिलाओं के पास पहले की तुलना में ज्यादा विकल्प उपलब्ध हैं।” इश्तराक एजुकेशन सोसाइटी की जनरल सेक्रेटरी और एसोसिएशन ऑफ मुस्लिम प्रोफेशनल्स की सदस्य रूबीना फिरोज कहती हैं, “ये चलन ग्रामीण इलाकों में शायद न हो लेकिन शहरी इलाकों में मुस्लिम महिलाएं पहले से ज्यादा सशक्त  हुई हैं।”
 
साल 2001 से साल 2011 के जनगणना के आंकड़ों के अनुसार 20 से 39 आयु वर्ग की मुस्लिम महिलाओं में शादी न करने वाली मुस्लिम महिलाओं की संख्या करीब दोगुनी हो गई। 2001-2011 के दशक में विवाह न करने वाली मुस्लिम महिलाओं की संख्या में 94 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई जो दूसरे समुदायों की तुलना में काफी अधिक है। 2001-2011 के दशक में शादी न करने वाली बौद्ध महिलाओं की संख्या में 72.78 प्रतिशत, हिंदू महिलाओं में 69.13 प्रतिशत और सिख महिलाओं में 66.21 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई।

Courtesy: National Dastak
 

मुस्लिमों को एयरफोर्स में दाढ़ी रखने की इजाज़त नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने अस्वीकार की अपील

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धार्मिक आधार पर दाढ़ी बढ़ाने को लेकर भारतीय सेना से हटाए गए मुस्ल‍िम सैनिक मकतुम हुसैन की अपील को सुप्रीम कोर्ट ने अस्वीकार कर दिया है।

Indian Air Force
Representation Image        Image: topyaps.com

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एयरफोर्स के स्टाफ जब तक सर्विस में हैं वे दाढ़ी नहीं बढ़ा सकते। ड्यूटी पर रहते हुए दाढ़ी बढ़ाने के कारण मकतुम को एयरफोर्स से निकाल दिया गया था।

इसके बाद पहले उन्होंने कर्नाटक हाई कोर्ट में अपील की और फिर सुप्रीम कोर्ट में। लेकिन यहां से भी मकतुम को निराशा हाथ लगी और कोर्ट ने मकतुम की अपील यह कहते हुए खारिज कर दी की एयरफोर्ट में सर्विस में रहते हुए कोई भी जवान दाढ़ी नहीं रख सकता।

नवभारत टाईम्स की खबर के अनुसार, यह पूरा मामला साल 2001 का है। बताया जाता है कि मकतुम हुसैन ने अपने कमांडिंग अफसर यानी सीओ से दाढ़ी बढ़ाने को लेकर स्वीकृति मांगी थी।

 

इसके लिए मकतुम ने ‘धार्मिक आधार’ पर बल दिया था। सीओ ने शुरुआत में तो इसकी इजाजत दे दी, लेकिन बाद में उन्हें यह अहसास हुआ कि नियमों के मुताबिक सिर्फ सिख सैनिकों को ही दाढ़ी बढ़ाने की इजाजत है।

नियम के तहत सीओ ने बाद में मकतुम हुसैन को दी गई अनुमति वापस ले ली। सैनिक ने इसे ‘भेदभाव’ मानते हुए कर्नाटक हाई कोर्ट में नियम के खि‍लाफ अपील की। इसके बाद भी जब मकतुम ने दाढ़ी नहीं काटी तो उनका तबादला पुणे के कमांड अस्पताल में कर दिया गया।

वहां नए सीओ ने भी मकतुम से दाढ़ी काटने को कहा। लेकिन वह अपनी जिद पर अड़े रहे। इसके बाद मकतुम को कारण बताओ नोटिस भी जारी किया गया। इन सबके बाद भी जब मकतुम दाढ़ी नहीं काटने की अपनी जिद पर अड़े रहे तो निर्देशों की अवहेलना करने के कारण उनके खिलाफ कार्रवाई करते हुए उन्हें सेवा से हटा दिया गया।

Courtesy: Janta Ka Reporter