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आखिर लोकपाल क्यों नही ला रही सरकार: सुप्रीम कोर्ट

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दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए पूछा कि, आखिर लोकपाल बिल लाने में सरकार इतनी देरी क्यों लगा रही है। ऐसी क्या दिक्कत आ रही है जो सरकार लोकपाल बिल लाने में असमर्थ नजर आ रही है।

Jan Lokpal
 
इस पर सरकार की और से अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने संसद में विपक्ष का नेता न होने का हवाला दिया और इस समस्या का समाधान निकालने के लिए सरकार ने ऑर्डिनेंस लाने से भी इंकार कर दिया।
 
आपके को बता दें कि लोकपाल की चयन समिति में विपक्ष के नेता होने का प्रावधान है, लेकिन मौजूदा समय में संसद में विपक्ष का कोई नेता नहीं है। सरकार इसी बात का फायदा उठाते हुए लोकपाल बिल को टालती आ रही है।
 
अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कोर्ट को बताया कि पार्लियामेंट की एक सेलेक्ट कमेटी ने कानून को और मजबूत बनाने के लिए उसमें कई बदलाव करने की सिफारिश दी है और इन पर सरकार काम कर रही है। तो अब सुप्रीम कोर्ट ने लोकपाल लाने में आ रही सभी रुकावटें के बारे में जवाब देने के लिए सरकार को 14 दिसंबर तक का समय दिया है।  

वहीं कुछ दिन पहले प्रसिद्ध एनजीओ कॉमन कॉज के प्रशांत भूषण ने इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में उठाते हुए सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता को चयन समिति में शामिल कराने की मांग की थी। उनकी इस दलील से चीफ जस्टिस शुरुआती नजर में सहमत भी थे और कहा भी कि यह हैरान करने वाली बात है कि सरकार इस बात को क्यों नही मान रही है। मगर सरकार ने इस सुझाव के मानने से इंकार कर दिया।

Courtesy: National Dastak
 

नोटबंदीः गुस्साई भीड़ ने लगाए ‘आज तक’ और ‘पीएम मोदी’ मुर्दाबाद के नारे

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नोटबंदी को लेकर आज तक की टीम जब केजरीवाल की सभा में रिर्पोंटिंग करने पहुंची तब वहां मौजूद भीड़ ने मोदी और ‘आज तक’ के खिलाफ नारे लगाने शुरू कर दिए।

आज तक

 

‘आज तक’ की पत्रकार जब नोटबंदी पर एक व्यक्ति से बहस करने लगी तब नोटबंदी से गुस्साए वहां मौजूद लोगों ने आज तक के खिलाफ मुर्दाबाद के नारे लगाने शुरू कर दिए इसके बाद उन्होंने मोदी मुर्दाबाद के नारे लगाने शुरू कर दिए।

इसके बाद ‘आज तक’ की पत्रकार ने कहा कि ये आदमी आपकी आवाज दबा रहा है तब लोगों ने उसका व्यक्ति का साथ देते हुए शोर मचाना शुरू कर दिया। इसके बाद ‘आज तक’ की पत्रकार ने वहां से निकल जाना ही बेहतर समझा। इसके बाद आज तक की पत्रकार चुपचाप अपनी गाड़ी में जाकर बैठ गई।

इस पूरी घटना का वीडियों वहीं मौजूद किसी व्यक्ति ने अपने मोबाइल में रेकार्ड कर लिया। जो सोशल मीडिया पर आने के बाद वायरल हो गया।


 
Courtesy: Janta Ka Reporter

नोटबंदी की मंदी में ओला और फ्लिपकार्ट को याद आया ‘राष्ट्रवाद’

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नई दिल्ली। केंद्र में बीजेपी की सरकार बनने के बाद राष्ट्रवाद शब्द का जोर शोर से प्रयोग होता रहा है। जेएनयू मामला हो या दीपावली पर चीनी बहिष्कार। हर जगह राष्ट्रवाद का मामला छाया रहा। नोटबंदी के दौर में लाइन में लगे लोगों से भी राष्ट्रहित और राष्ट्रवाद के लिए पीड़ा सहन करने की अपील की गई। अब राष्ट्रवाद राजनीति से निकलकर व्यापारिक दुनिया में भी प्रवेश कर चुका है। असल में इसकी एक बड़ी वजह देशी कंपनियों को विदेशी कंपनीयों से मिल रही कड़ी टक्कर है।

Ola Flipkart
 
देश के सबसे सफल इंटरनेट उद्यमियों- फ्लिपकार्ट के सचिन बंसल और ओला के भावीश अग्रवाल ने अपनी विदेशी प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ ‘राष्ट्रवाद’ का झंडा उठा लिया है। उन्होंने कहा है कि सरकार को ऐसी नीति बनानी चाहिए, जिससे इस सेगमेंट में भारतीय कंपनियों को फायदा हो।
 
ईटी के अनुसार, फ्लिपकार्ट के को-फाउंडर और एग्जिक्युटिव चेयरमैन बंसल ने कहा, ‘15 साल पहले जो चीन ने किया था, हमें वहीं करना चाहिए। हमें दुनिया को बताना चाहिए कि उनकी पूंजी का हम स्वागत करते हैं, लेकिन उनकी कंपनियों के लिए यहां कोई जगह नहीं है।’ उन्होंने यहां कार्नेगी इंडिया ग्लोबल टेक्नॉलजी समिट में यह बात कही। बंसल और अग्रवाल अमेरिकी इंटरनेट दिग्गज ऐमजॉन और ऊबर को रोकने के लिए संरक्षणवाद की वकालत कर रहे हैं। भारतीय इंटरनेट के दोनों पोस्टर बॉय ने कहा कि वे जिन सेगमेंट में काम करते हैं, वहां पूंजी सबसे बड़ी ताकत है, इनोवेशन नहीं। उनके कहने का मतलब यह है कि अमेरिकी कंपनियां भारत में बिजनस जमाने के लिए भारी घाटा उठा रही हैं।
 
ओला के सीईओ अग्रवाल ने कहा, ‘ऑनलाइन ई-कॉमर्स और ऐप बेस्ड टैक्सी एग्रीगेटर बिजनस में विदेशी कंपनियां इनोवेशन की दुहाई दे रही हैं, लेकिन असल मुकाबला पैसे के दम से लड़ा जा रहा है। इसमें इनोवेशन का कोई रोल नहीं है। पैसे के दम से मार्केट को खराब किया जा रहा है।’ इन उद्यमियों और निवेशकों के बीच भारतीय कंपनियों को बचाने के लिए सरकारी दखल की भावना पहले से थी, लेकिन पहली बार दो बड़ी कंपनियों के संस्थापकों ने यह बात खुलकर कही है।

Courtesy: National Dastak
 

आसमान में धान बोने वाले रमाशंकर यादव ‘विद्रोही’ की पहली बरसी

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(पगले!…अगर ज़मीन पर भगवान जम सकता है…तो आसमान में धान भी जम सकता है….)

कुछ ऐसी शाख्सियत के मालिक थे रमाशंकर यादव 'विद्रोही'। जिन्होंने दुनिया की लिखी-लिखाई बातों के बहकावे में न आकर अपनी बात कहने की कोशिश की। उपरोक्त लाइनों से ही उन्होंने समाज के उन लोगों को आईना दिखाने की कोशिश की जिनके लिए ढोंग, पाखंड और ध्रुवीकरण ही एकमात्र धर्म है। 

Ramashankar Vidrohi
 
हिंदी साहित्य के हलकों में रमाशंकर यादव 'विद्रोही' भले ही अनजान हों लेकिन दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय (जेएनयू) के छात्रों के बीच इन कवि की कविताएं खासी लोकप्रिय रही हैं। प्रगतिशील परंपरा के इस कवि की रचनाओं का एकमात्र प्रकाशित संग्रह 'नई खेती' है। इसका प्रकाशन इनके जीवन के अंतिम दौर 2011 ई. में हुआ। वे स्नातकोत्तर छात्र के रूप में जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय से जुड़े। यह जुड़ाव आजीवन बना रहा। 
 
उनका जन्म 3 दिसम्बर 1957 को उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले के अंतर्गत अइरी फिरोजपुर गांव में हुआ था। उनकी आरंभिक शिक्षा गांव में ही हुई। सुल्तानपुर में उन्होंने स्नातक किया। इसके बाद उन्होंने कमला नेहरू इंस्टीट्यूट में वकालत में दाखिला लिया। वे इसे पूरा नहीं कर सके। 
 
उन्होंने 1980 में जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर में प्रवेश लिया। 1983 में छात्र-आंदोलन के बाद उन्हें जेएनयू से निकाल दिया गया। इसके बावजूद वे आजीवन जेएनयू में ही रहे।

विद्रोही मुख्यतः प्रगतिशील चेतना के कवि हैं। उनकी कविताएं लंबे समय तक अप्रकाशित और उनकी स्मृति में सुरक्षित रही। वे अपनी कविता सुनाने के अंदाज के कारण बहुत लोकप्रीय रहे। 2011 ई॰ में इनकी रचनाओं का प्रकाशन 'नई खेती' शीर्षक संग्रह से हुआ।

नितिन पमनानी ने विद्रोही जी के जीवन संघर्ष पर आधारित एक वृत्तचित्र आई एम योर पोएट (मैं तुम्हारा कवि हूं) हिंदी और अवधी में बनाया है। मुंबई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में इस वृत्तचित्र ने अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धा श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ वृत्तचित्र का गोल्डन कौंच पुरस्कार जीता।
 
रमाशंकर यादव 'विद्रोही' की कुछ कविताएं-

नई खेती
मैं किसान हूं
आसमान में धान बो रहा हूं
कुछ लोग कह रहे हैं
कि पगले! आसमान में धान नहीं जमा करता
मैं कहता हूं पगले!
अगर ज़मीन पर भगवान जम सकता है
तो आसमान में धान भी जम सकता है
और अब तो दोनों में से कोई एक होकर रहेगा
या तो ज़मीन से भगवान उखड़ेगा
या आसमान में धान जमेगा।
 
औरतें
…इतिहास में वह पहली औरत कौन थी जिसे सबसे पहले जलाया गया?
मैं नहीं जानता
लेकिन जो भी रही हो मेरी मां रही होगी,
मेरी चिंता यह है कि भविष्य में वह आखिरी स्त्री कौन होगी
जिसे सबसे अंत में जलाया जाएगा?
मैं नहीं जानता
लेकिन जो भी होगी मेरी बेटी होगी
और यह मैं नहीं होने दूंगा।

मोहनजोदाड़ो
…और ये इंसान की बिखरी हुई हड्डियां
रोमन के गुलामों की भी हो सकती हैं और
बंगाल के जुलाहों की भी या फिर
वियतनामी, फ़िलिस्तीनी बच्चों की
साम्राज्य आख़िर साम्राज्य होता है
चाहे रोमन साम्राज्य हो, ब्रिटिश साम्राज्य हो
या अत्याधुनिक अमरीकी साम्राज्य
जिसका यही काम होता है कि
पहाड़ों पर पठारों पर नदी किनारे
सागर तीरे इंसानों की हड्डियां बिखेरना।
 
जन-गण-मन
मैं भी मरूंगा
और भारत के भाग्य विधाता भी मरेंगे
लेकिन मैं चाहता हूं
कि पहले जन-गण-मन अधिनायक मरें
फिर भारत भाग्य विधाता मरें
फिर साधू के काका मरें
यानी सारे बड़े-बड़े लोग पहले मर लें
फिर मैं मरूं- आराम से
उधर चल कर वसंत ऋतु में
जब दानों में दूध और आमों में बौर आ जाता है
या फिर तब जब महुवा चूने लगता है
या फिर तब जब वनबेला फूलती है
नदी किनारे मेरी चिता दहक कर महके
और मित्र सब करें दिल्लगी
कि ये विद्रोही भी क्या तगड़ा कवि था
कि सारे बड़े-बड़े लोगों को मारकर तब मरा।
 
प्रगतिशील चेतना और वाम विचारधारा का गढ़ माने जाने वाले जेएनयू कैंपस में 'विद्रोही' ने जीवन के कई वसंत गुजारे। 'विद्रोही' बिना किसी आय के स्रोत के छात्रों के सहयोग से ही कैंपस के अंदर जीवन बसर करते रहे। हालांकि कैंपस के पुराने छात्र उनकी मानसिक अस्वस्थता के बारे में भी जिक्र करते थे, पर उनका कहना था कि कभी भी उन्होंने किसी व्यक्ति को क्षति नहीं पहुंचाई है, न हीं अपशब्द कहे हैं।
 
वे कहते थे, "जेएनयू मेरी कर्मस्थली है, मैंने यहां के हॉस्टलों में, पहाड़ियों और जंगलों में अपने दिन गुज़ारे हैं।" अंतिम समय में उन्होंने ऑक्युपाई यूजीसी में जेएनयू के छात्रों के साथ हिस्सेदारी की। इसी दौरान 8 दिसंबर 2015 को उनका निधन हो गया।

Courtesy: National Dastak
 

पर्सनल लॉ बोर्ड संविधान से ऊपर नहीं, ‘तीन तलाक’ पर इलाहाबाद हाई कोर्ट की टिप्पणी

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तीन तलाक के मामले पर देश में चल रही बहस के बीच इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आज एक बड़ी टिप्पणी की, कोर्ट ने तीन तलाक को असंवैधानिक बताते हुए कहा है कि इससे मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों का हनन होता है।

teen-talaq

अदालत ने कहा है कि पर्सनल लॉ बोर्ड संविधान से ऊपर नही हो सकते। अदालत के मुताबिक ऐसे बोर्डों को भी संविधान के मुताबिक काम करना होगा. तीन तलाक के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने ये बातें कहीं।
 

कोर्ट ने कहा, तीन तलाक क्रूरता है। यह मुस्लिम महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों का हनन है। कोई भी पर्सनल लॉ बोर्ड संविधान से ऊपर नहीं हो सकता। यहां तक कि कोर्ट भी संविधान से ऊपर नहीं हो सकता। कुरान में कहा गया है कि जब सुलह के सभी रास्ते बंद हो जाएं तभी तलाक दिया जा सकता है। लेकिन धर्म गुरुओं ने इसकी गलत व्याख्या की है।
 

वहीं आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इस फैसले को शरियत के खिलाफ बताया है. बोर्ड अब इस फैसले को सर्वोच्च अदालत में चुनौती देगा।

 

केंद्र सरकार तीन तलाक के पक्ष में नहीं है। सरकार ने 7 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दिया था कि तीन तलाक की संविधान में कोई जगह नहीं है। तीन तलाक और बहुविवाह की इस्लाम में कोई जगह नहीं है। इसके बाद सरकार ने मुस्लिम संगठनों की राय जानने के लिए 16 सवालों की प्रश्नावली भी तैयार की जिसका  ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने बहिष्कार करने का ऐलान किया। ट्रिपल तलाक के अलावा यूनिफॉर्म सिविल कोड के मुद्दे पर भी ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड केंद्र सरकार के रुख का विरोध कर रहा है।

समाजवादी पार्टी नेता अबू आज़मी ने इस फैसले पर कहा कि ट्रिपल तलाक का मामला पूरी तरह से धार्मिक मामला है। ट्रिपल तलाक का मतलब अलग है। संविधान देश का और कुरान शरियत दोनों अलग चीजें हैं। आडवाणी पाकिस्तान में पैदा हुए तो हिंदुस्तान आ गए। अगर कल हिंदुस्तान में कह दिया जाए कि हिंदू अपने मुर्दो को जला नहीं सकते, मंदिर नहीं जा सकते तो उनसे पूछा जाएगा कि उनका धर्म बड़ा या कानून बड़ा। हम अपने इस्लामिक कानून में दखलंदाजी नहीं चाहते।

Courtesy:  Janta Ka Reporter
 

अब पेटीएम का मतलब पे टू मोदी हो गया: राहुल गांधी

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नोटबंदी की घोषणा को एक महीना पूरा होने पर आज विपक्षी दलों ने संसद भवन परिसर में ‘काला दिवस’ मनाया और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने इस निर्णय को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर तीखा प्रहार करते हुए कहा कि उनके इस मूखर्तापूर्ण फैसले ने देश को बर्बाद कर दिया है।

राहुल गांधी

राहुल ने मीडिया को संबोधित करते हुए कहा कि ई-वॉलेट सेवा पेटीएम का मतलब ‘पे टू मोदी’ है। नोटबंदी का फैसला लागू होने का एक महीना पूरा होने के मौके पर विपक्ष ने संसद परिसर में महात्मा गांधी की प्रतिमा के पास मौन विरोध किया। राहुल ने कहा, प्रधानमंत्री ने यह फैसला कुछ गिने-चुने लोगों के लिए लिया है और इसके लिए प्रत्येक विशेषज्ञ की राय को दरकिनार कर दिया गया है। उन्होंने कहा, लेकिन साहसी फैसले मूर्खतापूर्ण भी हो सकते हैं और इस मूर्खतापूर्ण फैसला ने देश को बर्बाद कर दिया है।

 

राहुल ने कहा कि हाउस को चलाने की जिम्मेदारी सरकार की है, हम चाहते हैं वोट हो, वोट होगा तो बीजेपी के लोग भी हमें वोट देंगे। प्रधानमंत्री पॉप कन्सर्ट में जा रहे हैं, लेकिन यहां नहीं आ रहे। यहां आएंगे तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। सरकार चर्चा नहीं चाहती है। राहुल ने कैशलेस ट्रांजेक्शन को लेकर भी मोदी को घेरा और नया जुमला उछाला- पेटीएम मतलब पे टू मोदी। जब उनसे सवाल पूछा गया कि पे टू मोदी क्यों है? उन्होंने जवाब दिया, लोकसभा में बोलने देंगे तो मैं सब साफ कर दूंगा।

मीडिया रिर्पोट्स के अनुसार, उन्होंने कहा, आखिरी बात मैं कहना चाहता हूं कि मोदी जी ने किसी को नहीं बताया था फैसले के बारे में। बंगाल बीजेपी ने फैसले से ठीक पहले पैसा जमा कराया, बिहार में ज़मीन खरीदी, कर्नाटक के बीजेपी नेता ने 500 करोड़ की शादी की, उनके ड्राइवर ने आत्महत्या कर ली। जिनको मालूम होना था, उन्हें सब मालूम था। बीजेपी के लोगों ने और मोदी जी ने उन्हे पहले ही बता दिया। नुकसान गरीबों का हुआ, काले धन वाले सब भाग गए, लाइन में एक भी अमीर आदमी नहीं दिखा, लाइन में गरीब लगे हैं। ये सूट-बूट की  सरकार का काम है।

Courtesy: Janta Ka Reporter