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केंद्र सरकार ईमानदार है तो लोकपाल की नियुक्ति करने से क्यों बच रही है- मायावती

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नई दिल्ली। बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने प्रधानमंत्री की रैली के बाद प्रेस कांफ्रेंस कर उनके दावों की पोल खोली। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा यूपी चुनावों को देखते हुए और अपनी विफलताओं पर पर्दा डालने के लिए नोटबंदी की। उन्होंने कहा कि इनके पास चुनावों में बताने के लिए कुछ नहीं था इसीलिए हड़बड़ी में नोटबंदी का सहारा लिया। 

Maya Modi

मायावती ने कहा कि केंद्र सरकार अपने ही फैसले को बार बार बदल रही है। वहीं भाजपा शासित राज्यों में तो भारी गड़बड़झाला नजर आ रहा है। सरकार की विफलता के कारण देश की नब्बे प्रतिशत जनता लाइनों में खड़ी है। इनमें गरीब मजदूर और किसान सबसे ज्यादा दुखी हैं। मजदूरी के अभाव में अब लोग पलायन करके वापस अपने गांव की तरफ लौट रहे हैं। लोग मजदूरी छोड़कर बैंकों की लाइनों में लगे हैं। 

ऐसे में बीजेपी नेता और खुद प्रधानमंत्री सहित सारे लोग जनता का ध्यान बांटने के लिए तरह-तरह की नाटकबाजी में लगे हैं। उन्होंने कहा कि बीजेपी रैली में इनके द्वारा लगाए गए आरोप सरासर गलत हैं। 
 
देश के कालेधन का बड़ा हिस्सा धन्नासेठों और पूंजीपतियों के हाथों में है। लेकिन सरकार उन्हें बचाने में लगी है। सरकार इस बात का जवाब क्यों नहीं दे रही कि मेहनतकश और आमजनता को उस अपराध की सजा क्यों दी जा रही है जो उसने किया ही नहीं है। 
भ्रष्टाचार से लड़ने में बीजेपी का रवैया बहुत ही लचीला रहा है। नोटबंदी से कालाधन रोकने का दावा भी लोगों की आंखों में धूल झोंकने वाला ही रहा है। अगर ये ईमानदार होते तो अब तक लोकपाल की नियुक्ति कर दी होती जो कि इन्होंने नहीं की। उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार से लड़ने का इनका रिकॉर्ड नहीं रहा है। 

When Arnab Goswami’s bosses stopped him from hosting ‘mega’ farewell show

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Times Now’s former editor-in-chief, Arnab Goswami, was not allowed to host a ‘mega’ edition of a four-hour Times Now by the channel’s management, sources have told Janta Ka Reporter.

Arnab was reportedly keen to invite big names of politics, sports and entertainment on his planned ‘farewell’ edition of News Hour, but the channel’s CEO, MK Anand, abruptly told staff on 17 November that the anchor would be presenting his last debate show on 18 November.

Anand also reportedly added that the last episode of News Hour with Arnab will be just like any other debate shows he had presented in the past.

अरनब गोस्वामी
Photo: India Today

One Times Now staff, who was present in the office when Anand made this sudden announcement, said, “We were all taken aback by the announcement. The CEO’s tone body language said it all that the management was in no mood to allow Arnab to have even one show of his choice before he left the channel.”

 

Another Times Now reporter said that the CEO’s public snub for Arnab was conclusive evidence that all wasn’t well with him and his bosses.

Contrary to popular perception, Arnab’s departure has not hurt the ratings of Times Now. The BARC data for the weeks since Arnab’s leaving, Times Now’s has further established its dominance in the English news genre.

This, according to the channel insiders, is because of ‘sane audience’ returning to Times Now fold.

“These sane audience are those who traditionally watched Times Now but had stopped watching because of Arnab and his perceived biases in favour of the BJP,” said the source.

In a sudden move on 1 November, the popular and controversial Times Now anchor had resigned.

He was the Editor-in-Chief and President, News, of Times Now and ET Now.

Courtesy: Janta Ka Reporter

उना में दलितों की पिटाई के मामले में 4 की जमानत मंजूर

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अहमदाबाद। गुजरात उच्च न्यायालय ने गिर सोमनाथ जिले के उना कस्बे में दलितों को पीटने के मामले में संलिप्तता पर गिरफ्तार दो पुलिसकर्मियों सहित चार आरोपियों की जमानत मंजूर कर ली है।

Una Dalits
 
न्यायाधीश एजे देसाई ने शांतिभाई मनपारा, नितिन कोठारी, उना के निलंबित पुलिस निरीक्षक निर्मलसिंह जाला और उपनिरीक्षक नरेंद्र देव पांडेय को जमानत दी। मनपारा सनातन गौ सेवा ट्रस्ट के न्यासी हैं और कोठारी ट्रस्ट से जुड़े हैं और उन्हेांने दलितों की से पिटाई की थी।
 
दलीलों के दौरान मनपारा और कोठारी के वकील विराट पोपट ने दलील दी कि दोनों को जमानत दी जानी चाहिए। इस मामले में जांच पूरी हो चुकी है और आरोपपत्र सितंबर में दायर किया गया था।
 
राज्य सरकार ने चारों आरोपियों की जमानत याचिका का विरोध किया और कहा कि उनके द्वारा किए गए अपराध गंभीर प्रकृति के हैं। गुजरात सरकार ने यह भी दलील दी कि अगर आरोपियों को जमानत दी गई तो वे पीडि़तों को धमका सकते हैं।
 
गौरतलब है कि उना में चार दलित युवकों ने गोरक्षा के नाम पर बेरहमी से पीटा था। इतना ही नहीं इन्हें थाने के सामने भी पीटा गया। इस मुद्दे को मायावती द्वारा राज्यसभा में उठाया गया था। इस घटना ने गुजरात सहित देशभर में दलित आंदोलन का दौर शुरू किया।

Courtesy: National Dastak

मुस्लिम लड़कियों ने बदल दी पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाले ‘सोजईं गांव’ की किस्मत

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पीएम मोदी के चुनावी क्षेत्र वाराणसी से लगभग बीस किलोमीटर दूर सोजईं नाम का एक गाँव है। गाँव में बिजली-पानी की हालत खस्ता है। गाँव में कच्ची मुस्लिम बस्ती है, यहाँ अधिकतर बुनकर रहते हैं। कुछ समय पूर्व तक यहां के गरीब बच्चों की पढ़ाई का बुनियादी इंतज़ाम भी नहीं था। लेकिन अब गांव की बुनकर परिवार से ताल्लुक रखने वाली तीन लड़कियों ने हालात को बिल्कुल बदल दिया है।

कम पैसों और संसाधनों के बावजूद सोजईं गाँव के प्रत्येक घर से सभी बच्चे आज शिक्षा पा रहे है। और यह मुमकिन हुआ है गाँव की तीन लड़कियों तबस्सुम, तरन्नुम और रुबीना की बदौलत।

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पेशे से बुनकर खालिक अंसारी की बेटियां तबस्सुम, तरन्नुम और रुबीना तकरीबन सात साल पहले तक अपने गाँव में अकेली इंटर करने वाली शख्सियतों में से एक थीं। साल 2010 में संस्था ह्यूमन वेलफेयर एसोसिएशन के साथ जुड़कर इन तीनों ने गाँव में घूम-घूमकर पढ़ाई करने या न करने वाले बच्चों का एक मुक्त सर्वे किया।

सर्वे के बाद तबस्सुम, तरन्नुम और रुबीना को पता चला कि उनके गाँव के कई बच्चों ने प्राइमरी से आगे की शिक्षा नहीं पायी है। अधिकाँश बच्चे तो ऐसे थे जिन्होंने प्राइमरी तक की पढ़ाई भी नहीं की थी। फिर इन तीन बच्चियों ने इस गाँव को शिक्षित करने का बीड़ा उठाया और आज इस गाँव का हरेक बच्चा कहीं न कहीं पढ़ाई कर रहा है।

‘टू सर्कल’ और सिद्धांत मोहन की रिर्पोट के अनुसार, सबसे पहले पढ़ाने की जगह की ज़रुरत महसूस हुई। आखिर बच्चों को किस जगह पर पढ़ाया जाएगा। तब गाँव के ही एक मदरसे की मदद माँगी गयी। पहले तो मदरसे ने मना कर दिया फिर मदरसे से जुड़े लोगों ने कहा कि मदरसे में मौलवी साहब से जुड़े लोग ही पढ़ाएंगे लेकिन थोड़े संघर्ष के बाद बात बन गयी। तबस्सुम बताती हैं। ‘मदरसा ऐसा था जहां उर्दू और फारसी के अलावा कुछ नहीं पढ़ाया जाता था। हर साल एक-दो महीने चलने के बाद मदरसा बंद हो जाता था। हमने इजाज़त मांगी तो लोगों ने मना कर दिया फिर कुछ बातचीत के बाद बात बनी।’

 

मदरसे में तबस्सुम, तरन्नुम और रुबीना ने 10 साल से लेकर 18 साल तक के सभी बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। कोई ब्लैकबोर्ड नहीं था तो लोहे के दरवाज़े पर बच्चों को पढ़ाया। धीरे-धीरे छः महीनों में 170 बच्चे इन बच्चियों से पढने आने लगे और धीरे-धीरे सभी जुड़ गए।

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रुबीना बताती हैं, ‘पहले हम पढने जाते थे तो लोग हमारे अब्बू से कहते थे कि बेटियों को इतना दूर पढ़ने भेज रहे हो, उनके साथ कुछ बुरा हो जाएगा तो किसको जवाब दोगे? गाँव के लोग हम तीनों को बहुत ताने मारते थे और कई-कई बार गाँव के लड़के हमें फब्तियां कसते थे। इन सबके बावजूद अपने गाँव से ग्रैजुएशन करने वाली हम तीनों सबसे पहले हुए।’

तबस्सुम, तरन्नुम के पिता खालिक़ अंसारी ने इनको पढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। खालिक कहते हैं, ‘मैंने सोचा था कि जो हो लेकिन इनको पढ़ाना ज़रूरी है। लोगों ने मुझे रोका कि ऐसा करने का क्या फायदा? लेकिन हमने ऐसा किया। इनको स्नातक में पढ़ाने का मन था, लेकिन बस दो हज़ार रुपयों के लिए मैं पढ़ा नहीं पाया। बाद में इनको अवार्ड मिला तो अवार्ड में मिले पैसों से इन्होने आगे की पढ़ाई की।’

महज़ 15-16 साल की उम्र में इन लड़कियों ने अपने गाँव को आगे बढाने की ख्वाहिश से एक मुहीम को अंजाम दिया।लोगों का विश्वास बेहद मुश्किल से बन पाया। तबस्सुम कहती हैं, ‘हम बस पढ़ाई कराते थे। कोई सर्टिफिकेट तो दे नहीं सकते थे। इसलिए कोशिश करते थे कि थोड़ी बेसिक जानकारी उनको दे दें, उसके बाद हम स्कूलों में ले जाकर उनका दाख़िला करा देते थे। आज अच्छा लगता है कि हमारे प्रयास से अब सभी लोग पढ़ रहे हैं।’

मुस्लिम तबके की बच्चियों को मुहिम में शामिल करने में दिक्कत होने लगी तो तबस्सुम, तरन्नुम और रुबीना ने औरतों-लड़कियों को सिलाई-कढ़ाई बुनाई के कार्यक्रम में जोड़ना शुरू किया। रुबीना हँसते हुए बताती हैं, ‘बाद में लोगों को पता चला कि उनकी बच्चियां पढ़ रही हैं तो वे कोई विरोध नहीं दर्ज कर सके।’

इस साल अप्रैल में तबस्सुम और तरन्नुम की शादी हो चुकी है। दोनों का ब्याह पास के ही गाँव में हुआ है, ताकि वे समय-समय पर घर आ जा सकें। अब अब रुबीना अपनी छोटी बहन फिजा के साथ मिलकर जागरूकता का कार्यक्रम चलाती हैं, लेकिन उन्हें आशा है कि जल्द ही उनका यह सफ़र भी मंजिल पर पहुंच ही जाएगा।

Courtesy: Janta Ka Reporter

तीस्ता सीतलवाड़ के खिलाफ सबूत नहीं फिर भी लग रहे आरोपों के नमक-मिर्च

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गुजरात पुलिस ने तीस्ता सीतलवाड़ और जावेद आनंद पर दो ट्रस्टों के फंड में गबन का आरोप लगाते हुए शपथपत्र दाखिल किया है। लेकिन जवाबी दावे में दोनों ने इसका जोरदार खंडन किया है। तीस्ता सीतलवाड़ और जावेद आनंद का कहना है कि इस मामले में दोनों के खिलाफ रत्ती भर भी सबूत नहीं है लेकिन उन को झूठे आरोपों में घेरने की कोशिश हो रही है।

2 दिसंबर , 2016
 
प्रेस रिलीज
 
मीडिया के एक वर्ग में ऐसी खबरें आ रही हैं कि गुजरात पुलिस ने तीस्ता सीतलवाड़ और जावेद आनंद के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक शपथपत्र दाखिल किया है। शपथपत्र में दोनों पर  2002 के गुजरात नरसंहार में बच गए लोगों के लिए बनाए गए ट्रस्ट के 9.75 करोड़ रुपये में से 3.85 करोड़ रुपये के गबन का आरोप लगाया गया है। 

लेकिन सिटीजन्स फॉर जस्टिस एंड पीस (सीजेपी) और सबरंग ट्रस्ट के ट्रस्टियों और जावेद आनंद और तीस्ता सीतलवाड़ दोनों ने (दोनों इन दोनों स्वतंत्र ट्रस्ट के ट्रस्टी बोर्ड में शामिल है) बार-बार और जोर देकर इन आरोपों का खंडन किया है। इनका कहना है कि दोनों पर लगाए गए आरोप बेबुनियाद और राजनीति से प्रेरित हैं। हम भी ट्रस्टियों के इस दलील को एक बार फिर दोहरा रहे हैं।

तीस्ता सीतलवाड़ और जावेद आनंद पर अपने आरोपों को दोहराने के क्रम में गुजरात पुलिस सबूतों को नहीं देख रही है। दोनों पर गुजरात के 2002 के नरसंहार में बच गए लोगों के कल्याण के लिए बनाए गए ट्रस्ट के 9.75 करोड़ रुपये में से लगभग 3.85 करोड़ रुपये के गबन का आरोप लगाया जा रहा है। लेकिन ऐसा करते वक्त वह इन आरोपों के जवाब में दोनों की ओर से पेश किए गए 20,000 पेज के दस्तावेजी सबूतों को नजरअंदाज कर रही है। पुलिस के पास अपने आरोप के समर्थन में रत्ती भर भी सबूत नहीं है फिर भी वह तीस्ता सीतलवाड़ और जावेद आनंद के खिलाफ आरोपों की री-साइकिलिंग में लगी है।

तीस्ता सीतलवाड़ और जावेद आनंद ने अपने ऊपर लगाए गए आरोपों के खिलाफ भारी-भरकम दस्तावेजी सबूत के साथ ही पुलिस और अदालतों के सामने उन दानदाता एजेंसियों के अऩुदान समझौतों को भी पेश किया है। इनमें साफ तौर पर इस बात का जिक्र है संबंधित अवधि के दौरान न तो सिटीजन्स फॉर जस्टिस एंड पीस और न ही सबरंग ट्रस्ट ने हासिल अऩुदान/दान के लिए कभी आवेदन किया और न ही उसका इरादा 2002 के गुजरात नरसंहार के शिकार या इसमें बचे लोगों के लिए किसी प्रकार की वित्तीय सहायता हासिल करने का इरादा रहा।

सिटीजन्स फॉर जस्टिस एंड पीस (सीजेपी) ने गुजरात नरसंहार के शिकार और गवाहों को  न्याय और दोषियों को सजा दिलाने का बीड़ा उठाया था। इस सिलसिले में सीजेपी ने इस नरसंहार में बचे लोगों के लिए मुफ्त कानूनी सहायता मुहैया कराने के लिए अऩुदान/दान के लिए आवेदन/अपील की थी।
 
मुंबई और गुजरात की निचली अदालतों (बेस्ट बेकरी कांड में), गुजरात हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात नरसंहार में बच गए लोगों के पक्ष में जो अभूतपूर्व और ऐतिहासिक फैसला दिया उसके संदर्भ में संगठन की ओर से निभाई गई भूमिका पर सिटीजन्स फॉर जस्टिस एंड पीस की भूमिका से इसके ट्रस्टी पूरी तरह संतुष्ट है।
 
वर्ष 2008 में सबरंग ट्रस्ट ने अहमदाबाद की गुलबर्ग हाउसिंग सोसाइटी के सदस्यों की सहमति से गुलबर्ग रेजिस्टेंस मेमोरियल बनाने के लिए फंड जुटाने की जरूर कोशिश की थी। लेकिन पर्याप्त फंड न जुटने की वजह से 2012 में इस परियोजना को छोड़ना पड़ा। इस मेमोरियल के लिए 4.6 लाख का फंड जुटा था। यह राशि अब भी ट्रस्ट की ऑडिट हुई बैलेंसशीट में दान और इस्तेमाल न हुए फंड के तौर पर चिन्हित है।
 
इन तथ्यों के मद्देनजर दोनों ट्रस्टों पर 2002 के नरसंहार में बचे लोगों के नाम पर भारी फंड उगाहने के आरोपों में कोई दम नहीं है। इस आरोप में कोई दम नहीं है कि उनके नाम पर काफी फंड इकट्ठा किया गया और उन्हें कुछ नहीं मिला। ये आरोप बेबुनियाद हैं कि तीस्ता सीतलवाड़ और जावेद आनंद ने इकट्ठा किए गए फंड का भारी हिस्सा खा लिया।  
 
अप्रैल, 2014 में गुजरात पुलिस के नोटिस के जवाब में दोनों स्वतंत्र (सीजेपी और सबरंग ट्रस्ट) ट्रस्टों के ऑडिटरों ने पुलिस के सामने खास तौर पर यह कहा कि उन्हें न तो वार्षिक ऑडिट और न पुलिस नोटिस के बाद संबंधित ट्रस्टों के बही-खातों और दस्तावेजों की दोबारा जांच के दौरान कोई अनिमयमितता मिली।
 
गुजरात पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट में जो मौजूदा शपथपत्र दाखिल किया है, वह सीजेपी और सबरंग ट्रस्ट, तीस्ता सीतलवाड़ और जावेद आनंद की ओर से दोनों ट्रस्टों और अपने निजी बैंक खातों पर लगाई गई पाबंदी को खत्म करने के लिए दायर अलग-अलग याचिकाओं का जवाबी कदम है। जनवरी, 2014 में गुजरात पुलिस के एक गैरकानूनी आदेश के बाद इन खातों पर पाबंदी लगा दी गई थी।
 
गुजरात पुलिस के इस शपथपत्र में इस बार एक ही नई चीज है। गुजरात पुलिस अब मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से सबरंग ट्रस्ट को मिले अनुदान की राशि में गबन का आरोप लगा रही है। हम इस नए और पहले ही की तरह बेबुनियाद इस आरोप का पुरजोर विरोध करते हैं। हमारी अब तक की जानकारी में खुद मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने अब तक ऐसा कोई दावा नहीं किया है।

तीस्ता सीतलवाड़ और जावेद आनंद और दो ट्रस्ट ( सीजेपी और सबरंग ट्रस्ट) गुजरात पुलिस के लगाए हर आरोप का विस्तृत जवाब देने की तैयारी कर रहे हैं। वे अपने ऊपर लगाए गए हर आरोप का जवाब तैयार कर रहे हैं। आने वाले दिनों में उनके जवाब सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किए जाएंगे।
 
इस बयान के साथ हमने चार्ट भी संलग्न किया है, जिसमें संबंधित अवधि में सीजेपी और सबरंग ट्रस्ट को मिले फंड और उसके इस्तेमाल का ब्योरा है।
 

तीस्ता सीतलवाड़ और जावेद आनंद
                            

मुंबई के युवक जावेद खत्री ने किया पीएम मोदी के ऐप को हैक करने का दावा, ऐप कि खांमियों को किया उजागर

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रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आईफ़ोन, एंड्रॉयड और विंडोज फोन के लिए काफी धूमधाम के साथ अपने सरकारी ऐप को लांच किया था। उन्होंने देश की जनता से कहा था कि इस ऐप का उपयोगऐप करें और नोटबंदी पर 10 सवालों के जवाब दें।लगभग सात लाख लोगों ने इस एप्लिकेशन को डाउनलोड किया। लेकिन 1 दिसंबर को, एक 22 वर्षीय युवक की ऐप को हैक करने में कामयाब रहा।

मुंबई के एक 22 वर्षीय युवक जावेद खत्री ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऐप को हैक करने का दावा किया है। जावेद का कहना है कि उसका इरादा किसी तरह की परेशानी पैदा करना नहीं बल्कि ऐप की खामियों को उजागर करना है।

जावेद खत्री
Photo courtesy: ndtv

  • गुरुवार देर रात जावेद खत्री, जो एक मोबाइल एप्लिकेशन डेवलपर है ट्वीट करके दावा किया कि उसने पीएम मोदी का ऐप हैक कर लिया था।और वह यूजर्स के निजी डेटा तक पहुंच बना सकता था।
  • निजी डेटा में ईमेल आईडी और यहां तक कि केंद्रीय मंत्रियों के मोबाइल नंबर भी शामिल हैं।
  • उसने कहा कि इस कवायद का मकसद केवल 70 लाख से यूजर्स के डेटा से जुड़े जोख़िम के प्रति ध्यान खींचना था।

 
  • युवा हैकर ने बताया यह सिर्फ इस सुरक्षा बचाव को दिखाने का रास्ता है जो मैं दिखाना चाहता था। सात लाख से अधिक यूजर की गोपनीयता दांव पर है अगर इसे नजरअंदाज कर दिया जाता है। “

एनडीटीवी की खबर के अनुसार, इस युवा हैकर ने बताया “यह भारी सुरक्षा खामी है जिसे मैं बताना चाहता हूं। यदि इन खामियों पर ध्यान नहीं दिया गया तो इन 70 लाख यूजर्स की निजता दांव पर है।”

जावेद ने कहा, वो चाहता तो यूजर्स की निजी डेटा तक पहुंच सकता था जिनमें केंद्रीय मंत्रियों के ई-मेल एड्रेस और फोन नंबर भी शामिल थे। मेरा मकसद सिर्फ सुरक्षा की कमियों को उजागर करना था।
 

  • बीजेपी के सूचना एवं तकनीकी के राष्ट्रीय संयोजक अमित मालवीय ने इस बारे में बताया, एप्लिकेशन में किसी का भी निजी या संवेदनशील डेटा नहीं है।  एप्लिकेशन यूजर की जानकारी एन्क्रिप्टेड मोड पर होती है। हम जावेद खत्री का धन्यवाद करना चाहेंगे उन्होंने ऐप की सुऱक्षा पर ध्यान दिया। इसके बाद हमने ऐप की सुरक्षा उपयोग पर चर्चा की है विभिन्न सुरक्षा उपाय इसमें बढ़ाए जाएंगे।

Courtesy: Janta Ka Reporter

13 हजार करोड़ से ज्यादा कैश का खुलासा करने वाला गुजराती कारोबारी फ़रार

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नई दिल्ली। केंद्र सरकार की ब्लैक मनी को व्हाइट करने वाली (वीडीआईएस योजना) के तहत 13,860 करोड़ रुपये कैश होने की घोषणा करने वाला शख्स फिलहाल चर्चाओं में है। बेहद आम से दिखने वाले महेश शाह ने इतनी बड़ी रकम की घोषणा कर सुर्खियां बटोरी थीं। अब वे अचानक से गायब होने के कारण सुर्खियों में हैं। 

एक सामान्य घर में रहने वाले शाह को वीडीआईएस के तहत चार किश्तों में 45 प्रतिशत टैक्स भरना था। 30 नवम्बर से पहले इन्हें इसका पहला 25 प्रतिशत यानी 1560 करोड़ रुपये जमा करना था लेकिन अचानक मियाद खत्म होने से पहले इनकम टैक्स विभाग ने 28 नवम्बर को ही पूरा डिस्क्लोजर रद्द करके 29 और 30 नवम्बर को इसके औऱ इनके सीए तेहमूल सेठना के ठिकानों पर सर्च किया।
 
तेहमूल कहते हैं कि उन्हें इनके व्यवसाय की ठोस जानकारी नहीं है लेकिन वो बड़ी चीज थे। वो कुछ खास पढ़े लिखे नहीं थे, उम्रदराज़ लेकिन बहुत ही होशियार आदमी था। उनके सम्पर्क बहुत बड़े लोगों से थे और वो जमीन में बड़े सौदे किया करते थे इसलिए उन्हें कभी उनके खुलासे पर संदेह होने की संभावना नहीं थी।
 
पहले इनकम टैक्स ने इतना बड़ा खुलासा करनेवाले शख्स को टैक्स का पैसा लाने में सिक्योरिटी की भी गारंटी दी थी तो सवाल ये भी है कि आखिर क्या वजह है कि इनकम टैक्स विभाग ने 30 नवम्बर तक इन्तजार नहीं किया। क्या उनके हाथ कुछ लग गया था। फिर ये भी है कि इतना कैश रखनेवाला इंसान आखिर गायब कहां हो गया।

पिछले एक सप्ताह से उनकी कोई खबर नहीं है। उनके बारे में बस इतनी जानकारी है कि वो गुजरात, महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में जमीन का कारोबार करता था। और सवाल ये भी उठ रहे हैं कि क्या इस व्यक्ति का कोई नेटवर्क भी था और कौन लोग जुड़े थे इतने बड़े काला धन के पीछे। आखिर गुजरात में काला धन का इतना बड़ा मामला कैसे बना।
 
केंद्र सरकार की इस योजना के तहत 30 सितंबर तक सरकार को 45 प्रतिशत टैक्स देकर अघोषित आय घोषित की जा सकती थी। इस योजना के तहत अघोषित आय पर टैक्स चुकाने के बाद आय की स्वैच्छिक घोषणा करने वाले पर आयकर विभाग की तरफ से कोई कार्रवाई नहीं होनी थी। यहीं महेश से चूक हो गई। उन्होंने 13 हजार करोड़ रुपये अघोषित आय की जानकारी आयकर विभाग को दी तो सही पर टैक्स चुकाए बिना।
 
उनके बेटे मोनीतेश शाह का कहना है कि उनके पिता फरार नहीं हैं। परिवार को छोड़कर वो फरार नहीं हो सकते। कहीं गये होंगे, वापस आ जायेंगे तब सभी बातें साफ कर देंगे। लेकिन फिलहाल उनकी उनसे पिछले एक सप्ताह से बात नहीं हुई है।
 
इस बीच सभी लोग यही जानना चाहते हैं कि आखिर ये महेश शाह है कौन। इतना सामान्य सा दिखने वाला शख्स 13,860 करोड़ कैश कैसे जमा कर सकता है। कौन लोग थे जिनके साथ मिलकर वो जमीन का इतना बड़ा कारोबार करता था। कितने हजारों करोड़ का कारोबार किया होगा कि इतना कैश आया और इतना बड़ा कैश उसने रखा कहां होगा।

Courtesy: National Dastak

कैट का दावा- कैशलेस इंडिया की राह कठिन, अभी 10 फीसदी लोग ही करते हैं कैशलेस पैंमेट

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नोटबंदी के बाद सरकार की ओर से देश में डिजिटल भुगतान को बढ़ावा दिए जाने पर जोर देने के बीच अखिल भारतीय व्यापारी परिसंघ (कैट) ने एक अध्ययन के आधार पर शुक्रवार को कहा कि देश में मात्र दस प्रतिशत जनसंख्या ही नकदी रहित भुगतान करती है जबकि करीब 96 प्रतिशत लेन-देन नकद में होता है।

कैट ने छोटे दुकानदारों और व्यापारियों को डिजिटल लेन-देन के बारे में जागरूक करने के उद्देश्य से यहां दो दिवसीय ‘लेस कैश इंडिया महासम्मेलन-2016’ आयोजित किया है।

नोटबंदी

सम्मेलन के पहले दिन कैट के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीण खंडेलवाल ने कहा कि भारत मूलत: एक नकदी आधारित अर्थव्यवस्था है।

उन्होंने कार्ड से भुगतान सेवा मुहैया कराने वाली कंपनी मास्टरकार्ड के साथ कैट के एक अध्ययन का हवाला देते हुए कहा कि भारत में अभी केवल 10 प्रतिशत जनसंख्या ही नकदी रहित भुगतान करती है। जबकि स्वीडन में यह आंकड़ा 97 प्रतिशत, बेल्जियम में 93 प्रतिशत, फ्रांस में 92 प्रतिशत, कनाडा में 90 प्रतिशत और इंग्लैंड में 89 प्रतिशत है।

 

कैट की एक विज्ञप्ति के अुनसार ने व्यापारियों को डिजिटल भुगतान के बारे में प्रशिक्षित करने के लिए दो साल से एक बड़ा अभियान चलाया हुआ है और इसके लिए उन्होंने मास्टरकार्ड और एचडीएफसी बैंक से साझेदारी की है।

बयान में कैट के अध्यक्ष बीसी भरतिया के हवाले से कहा गया है कि भारत में अभी प्रति 10 लाख आबादी पर कार्ड-स्वाइप मशीनों का अनुपात 690 है जबकि चीने में यह अनुपात 4,000 और ब्राजील में 3300 प्रतिशत दस लाख आबादी है।भारत में 70 प्रतिशत मशीने के केवल 15 शहरों में सीमित हैं।
भाषा की खबर के अनुसार, कैट के सम्मेलन में देश भर से व्यापारी एसोसिएशनों के करीब 300 प्रतिनिधि आमंत्रित है. इसके विभिन्न सत्रों को सरकार और उद्योग जगत के प्रतिनिधि और विशेषज्ञ संबोधित करेंगे।

गौरतलब है कि सरकार ने 8 नवंबर को पुराने 500 और 1000 रपए के नोट चलन से बाहर करने की घोषणा की है। सरकार ने कालेधन, भ्रष्टाचार, नकली नोट और आतंकवाद के वित्त पोषण पर प्रहार के उद्देश्य से यह कदम उठाया है और वह देश में भुगतान में नकदी के प्रयोग को कम करने के लिए डिजिटल भुगतान को बढावा देने के उपाय कर रही है।

रिजर्व बैंक की वाषिर्क रपट के अनुसार 31 मार्च 2016 को कुल 16,42,000 करोड़ रुपये मूल्य के बैंक नोट चलन में थे जिसमें से 500 और 1000 रुपये के नोटों का हिस्सा 86 प्रतिशत था और इन नोटों का मूल्य करीब 14,18,000 करोड़ रुपये था। रिजर्व बैंक ने करीब 90.27 अरब नोट जारी किए जिनमें से करीब 24 प्रतिशत बाजार में चलन में थे।

Courtesy: Janta Ka Reporter