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मोदी की आलोचना की तो नहीं मिली अमर्त्य सेन को नालंदा विश्वविद्यालय में जगह

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नई दिल्ली। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री और नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन को नालंदा विश्वविद्यालय बोर्ड में शामिल नहीं किया गया। वह पहले यूनिवर्सिटी के चांसलर, गवर्निंग बोर्ड के मेंबर रह चुके हैं। पिछले कुछ दिनों में अमर्त्य सेन ने मोदी सरकार के खिलाफ बहुत कुछ कहा। इससे पहले उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना के बाद फरवरी 2015 में चांसलर के पद से इस्तीफा दे दिया था। उसके बाद वह गवर्निंग बॉडी के सदस्य रहे।  

Amartya Sen

उन्हें 2007 में मनमोहन सरकार द्वारा नालंदा यूनिवर्सिटी का पुनः प्रवर्तन करने के बाद नालंदा मेंटर ग्रुप (NMG) का सदस्य बनाया गया था। सेन के अलावा हॉवर्ड के पूर्व प्रोफेसर और टीएमसी सांसद सुगता बोस और यूके के अर्थशास्त्री मेघनाथ देसाई को भी नए बोर्ड में जगह नहीं मिली है। वे दोनों भी NMG के सदस्य थे।
 
इंडियन एक्सप्रेस को जानकारी मिली है कि साथ ही साथ नए बोर्ड का भी गठन हो गया है। नए बोर्ड में चांसलर, वाइस चांसलर और पांच सदस्य होंगे। ये पांच सदस्य भारत, चीन, ऑस्ट्रेलिया, लाउस पीडीआर और थाईलैंड के होंगे। बोर्ड को तीन साल तक अधिकतम वित्त सहायता भी प्रदान की जाती है। 
 
सूत्रों से पता चला है कि भारत की तरफ से पूर्व नौकरशाह एन के सिंह को चुना गया है। वह भाजपा सदस्य और बिहार से राज्यसभा सांसद भी हैं। उनके अलावा केंद्र सरकार द्वारा तीन और नामों को दिया गया है। उनमें प्रोफेसर अरविंद शर्मा (धार्मिक अध्ययन संकाय, मैकगिल विश्वविद्यालय, कनाडा), प्रोफेसर लोकश चंद्रा (अध्यक्ष, भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद) और डॉ अरविंद पनगढिया (वाइस चेयरमैन, नीति आयोग) के नाम शामिल हैं।

प्राप्त जानकारी के अनुसार प्रणब मुर्खजी ने नालंदा यूनिवर्सिटी के विजिटर की क्षमता से गर्वनिंग बॉडी के निर्माण की इजाजत दी थी। नालंदा विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक 2013 को अगस्त 2013 में राज्यसभा के सामने लाया गया था।
 
जिसमें नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम 2010 के कुछ प्रावधानों में संशोधन करने को कहा गया था। लेकिन फिर लोकसभा चुनाव की वजह से उसपर काम नहीं हो पाया था। भाजपा के समर्थक और विधायक ने अमर्त्य सेन द्वारा मोदी के विरोध पर बहुत उग्र हो चुके हैं और उनकी बेटी को भी इस मामले में घसीट चुके हैं।

अमर्त्य सेन की बेटी नंदना सेन का मामला 
भाजपा के सांसद चन्दन मित्रा ने उस समय ट्वीट कर कहा था, कि अमर्त्य सेन से भारत रत्न छीन लेना चाहिए। सेन ने उस वक्त मोदी की आलोचना करते हुए कहा था कि एक हिन्दुस्तानी होने के नाते वह मोदी को प्रधानमंत्री के पद पर नहीं देखना चाहेंगे।  विवाद बढ़ा तो वीजेपी ने खुद को चंदन मित्रा से तब खुद को अलग कर लिया था। लेकिन यह हमला सिर्फ चंदन मित्रा तक ही सीमित नहीं था, यह आगे और भी बढ़ा और बीजेपी समर्थकों ने अपनी सारी हदें पार कर दीं। 
 
अमर्त्य सेन पर हमला यही नहीं रुका उनकी बेटी को भी बीजेपी समर्थकों ने सोशल मीडिया पर खिंचा। फेसबुक पर मोदी समर्थकों ने नंदना की टॉपलेस तस्वीर के साथ सेन की तस्वीर लगाईं और बहुत गालियाँ दी। इस तस्वीर पर कैप्शन लिखा था, अमर्त्य सेन साहब आप अपनी बेटी और अपना घर संभाल लीजिए, वही बहुत होगा आपके लिए।
 
इसके आगे लिखा गया कि देश और मोदी पर निर्णय लेने के लिए भारत के नागरिक बहुत हैं। हमें किसी भी विदेशी नागरिकता प्राप्त सठियाये बुड्ढे की सलाह नहीं चाहिए। बेटी तो संभाली नही जाती बात करते हैं मोदी की। सूत्रों कि माने तो अमर्त्य सेन को नहीं लेने की एक बड़ी वजह उनका मोदी विरोध है। 
 
इनपुट जनसत्ता से भी।

Courtesy: National Dastak

कानून ताक पर रखकर की गई नोटबंदी? बता रहे हैं गोविंदाचार्य

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ई दिल्ली। नोटबंदी के फैसले के खिलाफ पूर्व संघ विचारक और बीजेपी के नेता रह चुके केएन गोविंदाचार्य ने आर्थिक मामलों के वित्त सचिव शक्तिदास दास को पिछले दिनों लीगल नोटिस भेजा है। नोटबंदी के बाद से ही देश भर में लोगों को हुई परेशानी के चलते कई लोगों की मृत्यु हो गई थी। इसके अलावा कई लोगों के इस फैसले से परेशान होकर आत्महत्या करने की भी खबरें सामने आई थीं।

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इसी आधार पर केएन गोविंदाचार्य ने आर्थिक मामलों के वित्त सचिव शक्तिकांत दास को लिगल नोटिस भेजकर उन लोगों के लिए मुआवजे की मांग की है जिनकी मृत्यु इस फैसले के खराब क्रियान्वयन की वजह से हुई। गोविंदाचार्य के वकील विराग गुप्ता के मुताबिक, वित्त सचिव शक्तिकांत दास और आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल को यह नोटिस भेजा गया है जिसमें उन्होंने मुआवजे का भुगतान अगले 3 दिनों में करने की बात कही है।

इस मामले में गोविंदाचार्य ने कहा था कि, यह स्वागतयोग्य कदम है अगर इसका क्रियान्वयन ठीक से देशहित में किया जाए। लेकिन मैं इस बात से हैरान हूं कि अटॉर्नी जनरल ने उच्चतम न्यायालय में यह कहा कि केंद्र सरकार ने आरबीआई कानून की धारा 26.2 के मुताबिक काम किया है।
 
सत्याग्रह के अनुसार, नोटबंदी की अधिसूचना जारी करने के बाद आठ नवंबर को ही सरकार ने एक दूसरी अधिसूचना भी जारी की थी। इसके जरिये लोगों को कुछ मामलों में पुराने नोटों के इस्तेमाल की छूट दी गई थी। यह दूसरी अधिसूचना और इसमें बार-बार किये जाने वाले संशोधन आरबीआई कानून 1934 की धारा 26.2 का उल्लंघन हैं। क्योंकि इसके लिए रिजर्व बैंक के बोर्ड से अनिवार्य मंजूरी नहीं ली गई।
 
सरकार को आरबीआई कानून 1934 की धारा 26.2 या अन्य किसी कानून के तहत यह अधिकार नहीं है कि वह बंद हुए नोटों को कुछ विशेष लेनदेन के लिए चलाने की अनुमति दे दे या इसके सीमित इस्तेमाल के लिए अधिसूचना जारी कर दे। (सरकार ने प्रतिबंधित नोटों को निश्चित स्थानों जैसे पेट्रोल पंप, रेलवे काउंटर, मेट्रो काउंटर, अस्पतालों आदि में इस्तेमाल की मंजूरी दी है।) इसलिए दूसरी अधिसूचना जारी करके उसमें बार-बार संशोधन करना गैरकानूनी है।
 
राजपत्र में आठ नवंबर की जो पहली अधिसूचना जारी हुई उसमें इस बात का जिक्र है कि आरबीआई के बोर्ड ने 500 और 1000 रुपये के सभी नोटों को बंद करने की सिफारिश की है। लेकिन ठीक इसके बाद, प्रतिबंधित नोटों के सीमित इस्तेमाल से संबंधित जो अधिसूचना आरबीआई कानून की धारा 26.2 के तहत ही जारी की गई, उसमें रिजर्व बैंक के बोर्ड की  सिफारिश का कोई जिक्र नहीं है।
 
बगैर रिजर्व बैंक के बोर्ड की सिफारिश के जारी की गई अधिसूचना न सिर्फ गैरकानूनी है बल्कि यह रिजर्व बैंक की स्वायत्तता का भी हनन है जिसकी गारंटी आरबीआई कानून 1934 उसे देता है। यहां इस बात का जिक्र करना जरूरी है कि पिछली सरकारों ने बैंकों के कामकाज में जिस तरह से हस्तक्षेप किया उससे एनपीए की भारी समस्या खड़ी हो गई है और पूरा बैंकिंग तंत्र बर्बाद होने की कगार पर है।
 
यह स्पष्ट है कि इतने बड़े कदम को देखते हुए आम लोगों को कुछ रियायतें दी ही जानी चाहिए। लेकिन ये सभी सुविधाएं विभिन्न सरकारों और विभागों की मनमर्जी के बजाय कानून सम्मत होनी चाहिए थीं। (उत्तर प्रदेश में कोई भी बंद किए गए नोटों से स्टांप पेपर खरीद सकता है। जबकि यह सुविधा पूरे देश के लोगों को दी जानी चाहिए थी।)

सरकार के बेतुके निर्णयों की वजह से नोटबंदी की योजना पटरी से उतर गई है और आम लोगों को खासी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। इससे देश की आर्थिक स्थिरता भी प्रभावित हो रही है।
 
गैरकानूनी तरीके से पुराने नोटों के इस्तेमाल की छूट से पैदा हुआ संकट बगैर किसी तैयारी के किए गए फैसले का नतीजा है। सरकार को इस बात का अंदाजा तक नहीं था कि एटीएम में बगैर तकनीकी बदलाव किए इनसे नए नोटों को जारी करना संभव नहीं है। लोगों को पहले तो बताया गया कि उनकी परेशानी केवल कुछ ही दिनों की है लेकिन फिर इस दिलासे में बार-बार बदलाव किया गया – पहले दो दिन कहा गया फिर तीन हफ्ते और अब 50 दिन। इससे ग्रामीण भारत और देश भर में कारोबार ठप पड़ गया है। इसकी वजह से न सिर्फ देश को बल्कि अर्थव्यवस्था से जुड़े हर क्षेत्र को इतना नुकसान होगा जिसकी भरपाई करना मुमकिन नहीं होगा।

Courtesy: National Dastak

प्रधानमंत्री जी, पहले काले धन की जड़ों पर तो चोट करें

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भारत सरकार के पूर्व सचिव ईएएस शर्मा ने पीएम नरेंद्र मोदी को लिखी एक खुली चिट्ठी में कहा है कि देश में काले धन पर पाबंदी के लिए नोटबंदी के अलावा तमाम और ठोस कदमों की जरूरत है।

Narendra Modi
Image: PTI

पीएम को संबोधित अपने पत्र में ईएएस शर्मा ने कहा है कि वह निजी कंपनियों को बेशकीमती जमीन के टुकड़े (खेती की और अन्य जमीनें) और खनिज सस्ते में देना बंद करें। इससे इन कंपनियों जनता के पैसे पर मोटा मुनाफा कमाने का मौका मिलता है। पत्र में फॉरन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट (एफसीआरए) का भी हवाला देते हुए कहा गया है कि इस कानून का कोई और नहीं खुद भाजपा उल्लंघन कर रही है। चिट्ठी में कहा गया है कि काला धन राजनीतिक दलों के नेताओं और सार्वजनिक संस्थाओं के कर्ता-धर्ताओं की आलमारियों में ठूंसा हुआ है। इसलिए इनकी जांच के लिए विशेषज्ञ जांच एजेंसियों की जरूरत है। ये एजेंसियां ही इन संपत्तियों की जांच कर दोषियों को कटघरे में खड़ा कर सकती हैं। सिर्फ बड़े नोटों पर पाबंदी लगा कर काला धन खत्म नहीं किया जा सकता।


शर्मा की चिट्ठी का ब्योरा यहां पेश है –

प्रिय प्रधानमंत्री जी 

प्रधानमंत्री जी, मुझे खुशी है कि आपने काले धन को खत्म करने के एक अहम कदम के तहत बड़े नोटों को बंद करने का साहसिक फैसला किया। इस तरह के कदम और प्रभावी हो सकते थे अगर आप बीमारी के लक्षणों का इलाज करने के बजाय इसकी जड़ को खत्म करने की कोशिश करते।

जापान के कोबे से आपने कहा कि आपकी सरकार देश में काला धन इकट्ठा होने के खिलाफ कदम उठाएगी। आपने कहा कि सरकार भ्रष्टाचार भी खत्म करने के कदम उठाएगी। आपके इस फैसले का स्वागत है।

इस संबंध में मेरे कुछ सुझाव हैं। अगर आपकी सरकार ने इन पर अमल किया तो उसकी विश्वसनीयता और बढ़ेगी।

1.  निवेशकों को बुलाने के नाम पर ज्यादातर राज्य सरकारें सार्वजनिक जमीनों और बेशकीमती खनिजों को कॉरपोरेट कंपनियो को औने-पौने दाम पर सौंप रही है। सस्ती जमीन और खनिज हासिल करने वाली ये कंपनियां जनता के पैसों पर भारी मुनाफा कमा रही हैं। यह प्रवृति देश में काला धन पैदा कर रही है। आपको इस बारे में पहल कर देश में एक सहमति कायम करनी चाहिए ताकि इस तरह के नकारात्मक कदमों पर रोक लग सके। जहां तक संभव हो सरकारों को इन प्राकृतिक संसाधनों के ट्रस्टी की भूमिका निभानी चाहिए ताकि इनका संरक्षण हो। सरकारों को इन संसाधनों को लगभग मुफ्त में बांटने से परहेज करना चाहिए। 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले मामले में सुप्रीम कोर्ट ने खुद यह निर्देश दिया था कि प्राकृतिक संसाधनों को बाजार कीमतों से कम पर न बेचा जाए।

2. कंपनी एक्ट के तहत कंपनियां अपने मुनाफे का साढ़े सात फीसदी राजनीतिक दलों को दान कर सकती हैं। जबकि सामाजिक कार्यों के लिए कंपनियों के लिए दो फीसदी देना जरूरी है। कंपनी कानून के इस प्रावधान से क्रोनी कैपिटलिज्म को बढ़ावा मिलता है। कंपनी कानून में मुनाफे का साढ़े फीसदी तक राजनीतिक चंदा देने का प्रावधान नकारात्मक है। इससे राजनीतिक दलों और कंपनियों में मिलीभगत को बढ़ावा मिलता है। कंपनियां सत्ताधारी पार्टी से इसका अनुचित लाभ लेती हैं। अगर आप राजनीतिक चंदे को बिल्कुल खत्म कर दें और चुनाव लड़ने के लिए स्टेट फंडिंग की व्यवस्था करने का कदम उठाएं तो चुनावी भ्रष्टाचार की जड़ों पर चोट होगी। आपको चुनावी फंडिंग की सफाई और बड़े खर्चे पर चुनाव लड़ने को रोकने के लिए निर्वाचन आयोग की मदद करनी चाहिए।

3. फॉरन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट (एफसीआरए) राजनीतिक दलों और राजनीतिक नेताओं को विदेशी कंपनियों से चंदा लेने से रोकता है। लेकिन भाजपा समेत राजनीतिक दलों ने इस कानून का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन किया है। मैंने दिल्ली हाई कोर्ट में इसके खिलाफ एक रिट याचिका दायर की थी। इस पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने 28-3-2014 सरकार को यह निर्देश दिया था कि एफसीआरए का उल्लंघन करने वाली राजनीतिक पार्टियों के खिलाफ कार्यवाही की जाए और दोषी कंपनियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज हो। विदेशी कंपनियों से चंदा लेने से देश के हितों से समझौता होता और मुझे दुख है कि कांग्रेस और आपकी भाजपा दोनों ने यह अपराध किया है। आपकी पार्टी न एफसीआरए के संबंध में कोर्ट ऑर्डर को लागू करने में नाकाम रही बल्कि एक कदम आगे बढ़ कर उसने इस कानून में पिछली तारीखों से संशोधन भी कर दिया। इसमें वित्त विधेयक के जरिये पिछले दरवाजे से संशोधन किया गया।

दूसरे शब्दों में कहें तो आपकी सरकार को विदेशी कंपनियों से चंदा लेने से कोई परहेज नहीं है। भले ही ये कंपनियां देश हित के खिलाफ क्यों न हों। आपकी सरकार इस मामले में एक कदम आगे निकली और इसने इस तरह के आपत्तिजनक प्रावधानों को अनुमति देने के लिए एफसीआरए में ही पिछले दरवाजे से संशोधन कर दिया।

प्रधानमंत्री जी, जब तक आप इस नकारात्मक प्रावधान को खत्म नहीं कर देते तब तक लोग काले धन को खत्म करने के आपके कदमों पर विश्वास नहीं करेंगे।

मैंने 3-4-2016 को (इसकी प्रति आपको भी  भेजी जा रही है) कैबिनेट सचिव को इस बारे में लिखा है। लेकिन मुझे नहीं लगता कि उन्होंने इस पर कोई कदम उठाया है।.
 
4. प्रधानमंत्री जी, काला धन राजनीतिक नेताओं और और अन्य सार्वजनिक संस्थानों में काम करने वाले कर्ता-धर्ताओं के पास जमा है। लेकिन यह बेनामी संपत्ति और अलग-अलग राज्यों में रियल एस्टेट के तौर पर जमा है। आपको इन संपत्तियों का पता लगाने के लिए एक विशेषज्ञ जांच एजेंसी की जरूरत है। ताकि दोषियों को कानून के कठघरे में खड़ा किया जा सके। सिर्फ बड़े नोटों को बंद कर देने भर से काले धन पर रोक नहीं लगेगी।

5. जहां तक विदेशी बैंकों में जमा काले धन का सवाल है तो मैंने आपकी जांच एजेंसियों को कई मुख्यमंत्रियों के इस तरह के खातों की जानकारी दी है। लेकिन आपकी सरकार की एजेंसियों ने इस पर कोई कदम नहीं उठाया। इस संबंध में कोई कदम न उठाने से आपकी सरकार की ओर से उच्च पदों पर भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए उठाए गए कथित कदमों पर जनता को भरोसा नहीं हो रहा है। लोगों में इस मामले को लेकर आपकी सरकार के प्रति जो अविश्वास बढ़ रहा है उसे आपको खत्म करने के लिए कदम उठाने पड़ सकते हैं। लेकिन आपको यह काम सिर्फ नारेबाजी की से नहीं बल्कि ठोस कदमों के जरिये करना होगा।

6. भ्रष्टाचार को खत्म करने का एक रास्ता तो यह सकता है कि सरकार जो भी संप्रभु अनुबंध करे उसकी आत्मा की रक्षा हो। यानी सही मायने में इन अनुबंधों की भावनाओं को जमीन पर उतारा जाए। मैं अक्सर देखता हूं कि राजनीतिक संरक्षण में इन अनुबंधों का लगातार उल्लंघन होता है। अब जैसे तेल और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के प्रोडक्शन शेयरिंग कांट्रेक्ट को ही ले लीजिये। किस तरह इसका उल्लंघन हुआ है। इस तरह के उल्लंघन के लिए कड़े अनुबंध प्रबंधन की जरूरत है। यह अच्छे गवर्नेंस का एक अहम तत्व हो सकता है और इससे भ्रष्टाचार खत्म करने की दिशा में आप एक अहम संदेश दे सकते हैं।

7. आजकल राजनीतिक संरक्षण की आड़ में एक और भ्रष्टाचार बेतहाशा बढ़ा है। राजनीतिक संरक्षण की वजह से पीएसयू बैंकों की ओर कॉरपोरेट कंपनियों को बगैर ड्यू डिलिजेंस ( जांच-परख) के बड़े कर्ज दिए जा रहे हैं। इसके एक ज्वलंत उदाहरण के तौर पर ऑस्ट्रेलिया में आपकी मौजूदगी में अडाणी समूह को एक अरब डॉलर ऋण देने के लिए स्टेट बैंक ऑफ इंडिया का समझौता है। बिना ड्यू डिलिजेंस को अडाणी समूह को इतनी बड़ी राशि का ऋण देने का करार हो गया। हालांकि जनता के भारी दबाव में यह एएमयू रद्द कर दिया गया लेकिन पीएसयू बैंकों ने तथाकथित कैपिटल डेट रीस्ट्रक्चरिंग का खूब दुरुपयोग किया है। इस स्कीम की वजह से बड़ी मात्रा में पब्लिक फंड एनपीए बन गया। आरबीआई और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के बीच हितों का टकराव देखने को मिला है। वित्त मंत्रालय और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के बीच भी हितों का टकराव है। इस टकराव को खत्म किया जाना चाहिए। सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों में तुरंत सुधार के कदम उठाए जाने चाहिए।
मुझे उम्मीद है कि आप इन सुझावों पर अमल करें ताकि भ्रष्टाचार और काले धन के खिलाफ उठाए गए आपके कदमों का सही परिणाम मिले।

मैं इस पत्र का बड़े दायरे में प्रसार इसलिए कर रहा हूं कि इससे अहम मुद्दे पर लोगों को बीच ज्यादा बातचीत और विमर्श हो।
 
लेखक भारत सरकार के पूर्व सचिव हैं। उनसे eassarma@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।

देश में आर्थिक मंदी का दौर, सबसे बड़ी इंजीनियरिंग कंपनी L&T ने निकाले 14000 कर्मचारी

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नई दिल्ली। केंद्र सरकार की खराब आर्थिक नीति की वजह से देश में आर्थिक मंदी का दौर लौट आया है। आर्थिक मंदी का असर अब तेजी से दिखने लगा है, जिसकी मार आम आदमी पर तेजी से पड़ रही है। आर्थिक मंदी का सबसे बुरा प्रभाव देश की सबसे बड़ी इंजीनियरिंग कंपनी लार्सन ऐंड टर्बो के कर्मचारियों पर पड़ा है। लार्सन ऐंड टर्बो ने मंदी का हवाला देकर बड़ी छंटनी करते हुए अपने यहां काम करने वाले 14,000 कर्मचारियों को निकाल दिया है। 

L&T
 
लार्सन ऐंड टर्बो ने 14,000 स्थायी कर्मचारियों को नौकरी से निकाला है, यानि वहां काम करने वाला हर 9वां स्थायी कर्मचारी बाहर हो चुका है। कंपनी ने अपने अस्थाई कर्मचारियों की कोई सूची जारी नहीं की है। इसलिए अस्थाई कर्मचारियों के निकाले जाने का कोई हिसाब नहीं है। यह पिछले छह महीने में हुआ है।
 
इकॉनामिक टाइम्स की खबर के अनुसार, लार्सन ऐंड टर्बो ग्रुप का कहना है कि ये कदम बिजनेस में आई मंडी के चलते उठाया गया है। कंपनी का कहना है कि बिजनेस में आई मंदी के चलते अपने वर्कफोर्स को सही लेवल पर लाने की कोशिश के तहत यह कदम उठाया गया है। कंपनी का कहना है कि ग्रुप में डिजिटाइजेशन के चलते बड़ी संख्या में कर्मचारियों के लिए कोई काम नहीं बचा था, जिसके चलते यह छंटनी की गई है। आश्चर्य करने वाला यह आंकड़ा कंपनी के कुल वर्कफोर्स के 11.2 प्रतिशत के बराबर है।

लार्सन ऐंड टर्बो के चीफ फाइनेंशियल ऑफिसर (सीएफओ) आर. शंकर रमन ने कहा, ‘कंपनी ने अपने कई बिजनेस में स्टाफ की संख्या सही स्तर पर लाने के लिए बहुत से कदम उठाए हैं। हमने डिजिटाइजेशन और प्रॉडक्टिविटी बढ़ाने के मकसद से जो उपाय किए थे, उसके चलते कई नौकरियों की जरूरत नहीं रह गई थी। इसके चलते ग्रुप ने 14000 कर्मचारियों की छंटनी की है।’
 
लार्सन ऐंड टर्बो मैनेजमेंट का अनुमान है कि आने वाले महीनों में आर्थिक वातावरण चुनौतीपूर्ण रह सकता है। हालांकि सरकारी ऑर्डर्स में तेजी आने से प्राइवेट सेक्टर की सुस्ती की भरपाई हो जाएगी। रमन ने कहा कि छंटनी एक तरह का भूल सुधार अभियान है और इसको आगे होने वाली घटना के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए।
 
गौरतलब है, ग्राहकों की तरफ से मिल रहे ऑर्डर टाल दिये जाने, ऑयल के दामों में आ रही गिरावट और खाड़ी देशों में बहुत ज्यादा आर्थिक सुस्ती आ जाने से कंपनी को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

Courtesy: National Dastak
 

Demonetisation: Tribal milk producers in Gujarat hit hard

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RBI’s ban on district cooperative banks exchanging or depositing demonetised notes has hit tribal milk producers and farmers in Gujarat’s Chhotaudepur district.

Demonetisation

They are not in a position to buy essential commodities for daily requirements from the market as they have stopped getting cash from their respective village-level milk cooperative societies.

Sangramsinh Rathwa, a director on the Board of Baroda Milk Dairy (Baroda Dairy Milk Producers Cooperative Society) told PTI that he has asked the dairy’s chairman and managing director to take up the issue with the Centre and RBI so that the tribals can get their payment immediately.

Baroda Milk Dairy daily collects 2.5 lakh litres of milk from 450 village level milk producers cooperative societies in Chhotaudepur district which have total membership of 45,000 tribal milk producers and farmers, he said.

 

The dairy has already deposited Rs 14 crores into the accounts of these cooperative societies in three branches of the Baroda District Central Cooperative Bank in Chhotaudepur for making payment to their members, belonging to the poor tribals communities, he said.

However, the tribals who do not have their savings account in these bank branches are now not in a position to withdraw the amount, Rathwa said.

Ranjitsinh Rathwa, another director of Baroda Milk Dairy, said the dairy pays these milk cooperative societies of Chhotaudepur on the 7th, 14th and 21st of every month.

Senior Congress leader Mohansinh Rathwa said, “I have sought the intervention of Prime Minister Narendra Modi and Union Finance Minister Arun Jaitley to ask RBI to direct Baroda District Central Cooperative Bank to ensure speedy payment to these poor tribals at the earliest as the situation has become grim.”

Naranbhai Rathwa, the former Union Minister of State for Railways in the earlier UPA government, who represented the tribal reserved seat of Chhotaudepur in Lok Sabha for four terms, also expressed concern over the issue.
He said some of tribals under the below poverty line category do not have money to buy grains, groceries or seeds and fertilisers as no one is accepting the old currency notes.

(With inputs from PTI)

Courtesy: Janta Ka Reporter
 

VIDEO: Bajrang Dal goons thrash Muslim couple in Bulandshahr for ‘dirtying’ Hindu neighbourhood

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A video of Bajrang Dal goons in Bulandshahr’s Khurja in Uttar Pradesh mercilessly thrashing a Muslim couple because they felt both were ‘dirtying’ Hindu neighbourhood has surfaced.

In the video, the Hindutva brigade goons are seen mercilessly thrashing the man and the woman. We’ve edited the part of the video, where the woman’s identity could be revealed.

Bajrang Dal goons

 

Upon learning that the man in question was a Muslim, one armed youth lost his temper and unleashed brutal attack on the victim leaving him bleeding.

The attackers did not spare the woman either. The woman was thrashed with heavy stick as she pleaded for mercy.

The SHO at Khurja Police station confirmed to Janta Ka Reporter that at least three arrested goons belonged to Bajrang Dal.

The local police have arrested at least five people including the district convener of the Bajrang Dal.

The cops confirmed that they had booked 20 people including the local convener of the Bajrang Dal, Praveen Bhati, Tanu Solanki, Pushpendra Chaudhary, Nitin and Sonu.

You can watch the video below

Courtesy: Janta Ka Reporter