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‘असंवेदनशील’ मोदी सरकार कानपुर ट्रेन हादसे में मदद के नाम पर घायलों को बांटे पुराने नोट

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100 से अधिक लोगों ने रविवार की सुबह इंदौर-पटना ट्रेन दुर्घटना में अपनी जान गंवाई।

200 से अधिक लोग घायल हुए हैं और अस्पतालों में लगातार उपचार ले रहे हैं।  लेकिन जो भाग्यशाली इस दुर्घटना में बच गए उन्हे और दुख का सामना करना पड़ा जब अधिकारियों ने उन्हे 5000 रुपए का नकद मुआवजा दिया।

पीड़ितों के अनुसार,  हमें बंद हो चुके पुराने नोटों में नकदी दी गई, ये नोट हमारे किसी काम के नहीं है जब लाखों लोग बैंक की कतारों में लगे है।

पत्रकार प्रशांत कुमार ने ट्विटर पर लिखा, “यह चौंकाने वाला है पीडि़तों को 500 के पुराने नोट दिए गए नोटों।  क्सया ये काले धन को सफेद कर रहे हैं?

 

एक पीड़ित ने बताया जिस व्यक्ति ने 5000 रुपए दिए वो रेल मंत्रालय से था।

इस के बाद रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने घोषणा की कि ‘जो लोग अपनी जान गंवा चुके हैं और घायल हुए लोगों के रिश्तेदारों की व्यवस्था की जा रही है।

उल्लेखनीय है कि कानपुर देहात इलाके में इंदौर-पटना एक्सप्रेस के 14 कोचों के पटरी से उतर जाने के कारण 120 से ज्यादा यात्रियों की मौत हो गई, जबकि 200 से ज्यादा लोग जख्मी हैं, जिनमें से तकरीबन आधे गंभीर रूप से जख्मी हुए हैं।

नकदी के प्राप्तकर्ता को कथित तौर पर अमिट स्याही के साथ चिह्नित किया गया। केंद्र सरकार ने हाल ही में नोट बंदी पर बैंको में अमिट स्याही अनिवार्य इस्तेमाल किया था।

जैसे ही रेलवे अधिकारियों द्वारा पुराने नोटों में पैसे दिए गए अस्पताल में बसपा के स्थानीय नेताओं ने पीड़ितों से पुरानी नोटों की अदला बदली की।

उत्तर प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं ऐसे में मायावती की पार्टी इस अवसर का चुनावी फायदा नही जाने देना चाहती।

Courtesy: Janta Ka Reporter

नोटबन्‍दी के बाद मज़दूरों के नरेन्‍द्र मोदी के बारे में विचार: Voice of the Voiceless, Watch VIDEOS

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These Videos have been shot by the Naujawan Bharat Sabha, Mumbai. The youth political organisation is running a campaign against the inhuman move of Modi govt that is demonetization. They are organising street meetings, distributing pamphlets in Hindi and Marathi.
 
These Videos show Inteviews with Mumbai’s Working Class: Why is the mainstream media so completely blocking these voices out?

 

मुंबईची गोरगरीब जनता नोटबंदीमुळे बेहाल

 
 
1000 के नोट को बदलने का कमीशन 200 रूपये

 

नोटबन्‍दी से त्रस्‍त मुम्‍बई के गरीब मेहनतकश

 

नोटबन्‍दी से परेशान गरीब आबादी की आपबीती

 

काले धन की वापसी के नाम पर नोटबन्दी अपनी नाकामियों को छुपाने के लिए मोदी सरकार का जनता के साथ एक और धोखा!

साथियो !

पिछले 8 नवम्बर की रात से देश भर में अफरा-तफरी का आलम है। बैंकों के बाहर सुबह से रात तक लम्बी-लम्बी कतारें लगीं हैं,  सारे काम छोडकर लोग अपनी ही मेहनत और बचत के पैसे पाने के लिए धक्के खा रहे हैं। अस्पतालों में मरीजों का इलाज नहीं हो  पा रहा, बाज़ार बन्द पड़े हैं, कामगारों को मज़दूरी नहीं मिल पा रही है, आम लोग रोज़मर्रा की मामूली ज़रूरतें तक पूरी नहीं कर पा रहे हैं। देश में कई जगह सदमे से लोगों की मौत तक हो जाने की ख़बरें आयीं हैं। दिलचस्प बात यह है कि देश के बड़े पूँजीपतियों, व्यापारियों, अफसरशाहों-नेताशाहों, फिल्मी अभिनेताओं में काले धन पर इस तथाकथित “सर्जिकल स्ट्राइक” से कोई बेचैनी या खलबली नहीं दिखायी दे रही है। जिनके पास काला धन होने की सबसे ज़्यादा सम्भावना है उनमे से कोई बैंकों की कतारों में धक्के खाता नहीं दिख रहा है। उल्टे वे सरकार के इस फैसले का स्वागत कर रहे हैं। आखिर माज़रा क्या है?

क्या है कालेधन की असलियत? दोस्तो, जिस देश और समाज में मेहनत की लूट को कानूनी जामा पहना दिया जाय। जहाँ पूँजीपतियों को कानूनन यह छूट हो कि वह मेहनतकशों के खून-पसीने को निचोड़कर अपनी तिजोरियाँ भर सकें वहाँ “गैर कानूनी” कालाधन  पैदा  होगा ही। आज देश की 90 फीसदी सम्पत्ति महज 10 फीसदी लोगों के पास है और इसमें से आधे से अधिक सम्पत्ति महज एक फीसदी लोगों के पास है। यह देश के मेहनत और कुदरत की बेतहाशा लूट से ही सम्भव हुआ है। मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद इसमें बेतहाशा बढ़ोत्तरी हुई है।

साथियो, काला धन वह नहीं होता जिसे बक्सों या तकिये के कवर में या जमीन में गाड़कर रखते हैं। सच्चाई यह है कि देश में काले धन का सिर्फ़ 6 प्रतिशत नगदी के रूप में है । आज कालेधन का अधिकतम हिस्सा रियल स्टेट, विदेशों में जमा धन और सोने की खरीद आदि में लगता है। कालाधन भी सफेद धन की तरह बाजार में घूमता रहता है और इसका मालिक उसे लगातार बढ़ाने की फिराक में रहता है। आज पैसे के रूप में जो काला धन है वह कुल कालेधन का बेहद छोटा हिस्सा है और वह भी लोगों के घरों में नहीं बल्कि बाजार में लगा हुआ है। आज देश के काले धन का अधिकांश हिस्सा बैंकों के माध्यम से पनामा, स्विस और सिंगापुर के बैंकों में पहुँच जाता है। आज असली भ्रष्टाचार श्रम की लूट के अलावा सरकार द्वारा ज़मीनों और प्राकृतिक सम्पदा को औने-पौने दामों पर पूँजीपतियों को बेचकर किया जाता है। साथ ही बड़ी कम्पनियों द्वारा कम या अधिक के फर्जी बिलों द्वारा, बैंकों के कर्जों के भुगतान न देने और उसे बाद में बैंकों द्वारा नॉन परफ़ार्मिंग सम्पत्ति घोषित करने और उसका भुगतान जनता के पैसे से करने, बुरे ऋणों (बैड लोन) की माफी और उसका बैंकों को भुगतान जनता के पैसों से करके किया जाता है। पूँजीपतियों द्वारा हड़पा गया यह पैसा विदेशी बैंकों में जमा होता है और फिर वहाँ से देशी और विदेशी बाज़ारों में लगता है। हालाँकि इस भ्रष्टाचार में कालेधन का एक हिस्सा छोटे व्यापारियों और अफसरों को भी जाता है लेकिन यह कुल कालेधन के अनुपात में बहुत छोटा है।

मोदी सरकार के काले धन की नौटंकी का पर्दा इसी से साफ हो जाता है जब मई 2014 में सत्ता में आने के बाद जून 2014 में ही विदेशों में भेजे जाने वाले पैसे की प्रतिव्यक्ति सीमा 75,000 डॉलर से बढ़ाकर 1,25,000 डॉलर कर दिया और जो अब 2,50,000 डॉलर है। केवल इसी से पिछ्ले 11 महीनों में 30,000 करोड़ धन विदेशों में गया है। विदेशों से काला धन वापस लाने की बात करने और लोगों को दो दिन में जेल भेजने वाली मोदी सरकार के दो साल बीत जाने के बाद भी आलम यह है कि एक व्यक्ति भी जेल नहीं भेजा गया। क्योंकि इस सूची में मोदी के चहेते अंबानी, अडानी से लेकर अमित शाह, स्मृति ईरानी और बीजेपी के कई नेताओं के नाम हैं। क्या हम इन तथाकथित देशभक्तों की असलियत को नहीं जानते जो हर दिन सेना का नाम तो लेते हैं पर सेना के ताबूत में भी इन्होंने ही घोटाला कर दिया था? क्या मध्यप्रदेश का व्यापम घोटाला, पंकजा मुंडे और बसुंधरा राजे के घोटालों की चर्चा हम भूल चुके हैं? क्या हम नहीं जानते कि विजय माल्या और ललित मोदी जैसे लोग हजारों करोड़ धन लेकर विदेश में हैं और यह इन्हीं की सरकार में हुआ। आज देश में 99 फीसदी काला धन इसी रूप में है और हम साफ-साफ जानते हैं कि इसमें देश के नेता-मंत्रियों और पूँजीपतियों की ही हिस्सेदारी है।

अब दूसरी बात, आज देश में मौजूद कुल 500 और 1000 की नोटों का मूल्य 14.18 लाख करोड़ है जो देश में मौजूद कुल काले धन का महज 3 फीसदी है। जिसमें जाली नोटों की संख्या सरकारी संस्थान ‘राष्ट्रीय सांख्यकीय संस्थानके अनुसार मात्र 400 करोड़ है। अगर एकबारगी मान भी लिया जाय कि देश में मौजूद इन सारी नोटों का आधा काला धन है (जो कि है नहीं) तो भी डेढ़ फीसदी से अधिक काले धन पर अंकुश नहीं लग सकता। दूसरी तरफ जिन पाकिस्तानी नकली नोटों की बात कर मोदी सरकार लोगों को गुमराह कर रही है वह तो 400 करोड़ ही है जो आधा फीसदी भी नहीं है। दूसरे, सरकार ने 2000 के नये नोट निकाले हैं जिससे आने वाले दिनों में भ्रष्टाचार और काला धन 1000 के  नोटों की तुलना में और बढ़ेगा। अभी यूपी में चुनाव आयोग ने 7 करोड़ के नये  2000 वाले नोट पकड़े हैं, यह इसी बात को साबित करता है। इससे पहले चाहे 1948 या 1978 में नोटों को हटाने का फैसला हो, इतनी बुरी मार जनता पर कभी नहीं पड़ी। इससे यह सहज ही समझा जा सकता है कि मोदी सरकार का यह पैंतरा जनता को बेवकूफ बनाने के सिवा और कुछ नहीं है। यही बीजेपी 2014 में नोट बैन पर धमाचौकड़ी मचाते हुए विरोध कर रही थी! आज देश में जो छोटे व्यापारी और अफसर हैं वे  भी काले धन का अधिकतर पैसा जमीन, रियल स्टेट व सोना खरीदने और शेयर में लगाते हैं।

फिर मोदी सरकार ने क्यों लिया यह फैसला?
दोस्तो, मोदी सरकार जब आज देश की जनता के सामने अपने झूठे वायदों, बेतहाशा महंगाई, अभूतपूर्व बेरोजगारी और किसान – मजदूर आबादी की भयंकर लूट, दमन, दलितों, अल्पसंख्यकों पर हमले तथा अपनी सांप्रदायिक फासिस्ट नीतियों के कारण अपनी जमीन खो चुकी है तब फिर एक बार नोट बंद कर कालेधन के जुमले के बहाने अपने को देशभक्त सिद्ध करने की कोशिश कर रही है और अपने को फिर जीवित करना चाहती है। दूसरी बात जब उत्तर प्रदेश और अन्य जगहों पर चुनाव आसन्न है तो ऐसे में जनता की आँख में अपने झूठे प्रचारों के माध्यम से एक बार और धूल झोंकने की साजिश है। साथ ही तमाम खबरें और तथ्य यह बता रहे हैं कि इस घोषणा से पहले ही बीजेपी ने अपने खातों में पैसा जमा कर लिया है। उदाहरण के लिए जैसा कि  नोट बंदी की घोषणा के दिन ही पश्चिम बंगाल बीजेपी ने अपने खाते में 1 करोड़ की रकम जमा करवायी। ऐसी हरकतों से वह आज के धनखर्च वाले चुनाव में बेहतर स्थिति में होगी। तीसरी बात जो सबसे महत्वपूर्ण है, देश में मंदी और पूँजीपतियों द्वारा बैंकों के कर्जे को हड़प जाने (नॉन परफ़ार्मिंग सम्पत्ति के रूप में और खराब ऋण(बैड लोन) ) के बाद जनता की गाढ़ी कमाई की जो मुद्रा बैंकों में जमा होगी उससे पूँजीपतियों को फिर मुनाफा पीटने के लिए पैसा दिया जा सकेगा। पूँजीपतियों द्वारा तमाम बड़े लोन बैंकों से लिए गए हैं और उनको चुकाया नहीं गया है। आज सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक 6,00,000 करोड़ रुपये की भयंकर कमी से जूझ रहे हैं। पूँजीपतियों को फिर ऋण चाहिए और सरकार अब जनता के पैसे की डाकेजनी कर बैंकों को भर रही है जिससे इनको ऋण दिया जाएगा, जिसमें 1,25,000 करोड़ रिलायंस और 1,03,000 करोड़ वेदांता को दिये जाने हैं। इस कतार में कई और बड़े पूंजीपति भी शामिल हैं।

इस नोट बंदी में जनता के लिए क्या है? साथियो, मोदी सरकार की नोट बंदी जनता के लिए वास्तव में एक और धोखा, एक और छल-कपट, एक और लूट के अलावा कुछ नहीं है। इस बिकाऊ फासीवादी प्रचार तंत्र पर कान देने की बजाय जरा गंभीरता से सोचिए कि आज बैंकों और एटीएम पर लंबी कतारों में कौन लोग खड़े हैं? क्या उसमें टाटा, बिड़ला, अंबानी, अडानी या कोई मोदी और अमित शाह या कोई बड़ा अफसर खड़ा है? तो क्या देश का सारा काला धन 5,000 से 15,000 रुपये  कमाने वाले मजदूर और आम जनता के पास है? पूर्वी उत्तर प्रदेश में एक महिला 2000 रुपये पकड़े बैंक के सामने मर गई, महाराष्ट्र में एक गरीब रुपये के लिए बैंक आया था वापस नहीं होने से वह मर गया, देर रात तक बैंक में काम करने से आठ बैंक कर्मचारी गाड़ी की टक्कर से मर गए। दर्जनों मौतें हो चुकी हैं। क्या सारे काले पैसे के लिए इनकी ही आहुति होनी थी? जो दिल्ली में रिक्शा चलाने वाला मजदूर है, दिहाड़ी मजदूर है, रेहड़ी खोमचा लगाता है, छोटी-मोटी नौकरी करने वाली आम जनता है, वह बैंकों के सामने लाइन में लगी है। कितनों के पास बैंक खाते नहीं हैं, कितनों के पास कोई पहचान पत्र नहीं हैं। लोगों के पास आने- जाने के पैसे नहीं हैं, राशन के पैसे नहीं हैं। दलालों की चाँदी है। अफवाहें उड़ रहीं हैं; कहीं नमक महँगे दामों पर बिक रहा  है  तो कहीं 500 के नोट 300 और 400 रुपये में लिए जा रहे हैं। यही हाल पूरे देश का है। करोड़ों गरीब लोग जिन्होंने  अपनी सालों की कमाई को मुश्किल दिनों के लिए इकट्ठा करके रखा था, सब अपने खून-पसीने की कमाई के कागज बन जाने पर बेचैन हैं। कोई बेटी की शादी को लेकर परेशान है तो कोई अस्पताल में परेशान है। एक महिला लाश लेकर रो रही है कि अंतिम संस्कार के पैसे नहीं है। क्या हम नहीं जानते हैं कि इस देश में अभी भी एक भारी आबादी के पास तो बैंक खाते नहीं हैं, जो अपनी मेहनत पर दो जून की रोटी कमाती है और उसी में से पेट काटकर कुछ पैसे बचाती है? वह आज क्या करे? क्या हम तमाम तकलीफ़ों को चुपचाप सहेंगे क्योंकि मामला “देश”  और “कालेधन” का है? साथ ही ऐसे नये  नोटों के छपने का जो लगभग 15,000 करोड़ रुपया खर्च आयेगा वह भी जनता की गाढ़ी कमाई से ही वसूला जाएगा।

साथियो,  हमें इन जुमलेबाजों की असलियत को समझना होगा। आज जब फरेबी, नौटंकीबाज मोदी सरकार जनता के व्यापक हिस्से को रोजगार, शिक्षा और चिकित्सा देने में असफल साबित हुई है और इसके अच्छे दिनों की सच्चाई लोगों के सामने आ गयी है तो यह 500 और 1000 के नोटों को बंद करके एक जनविरोधी कार्रवाई कर कालेधन को समाप्त करने की नौटंकी कर रही है। इसका जवाब जनता की व्यापक एकजुटता से देना होगा।

बिगुल मज़दूर दस्ता    नौजवान भारत सभा    दिशा छात्र संगठन

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सफाई कर्मचारी की अपील- विजय माल्या की तरह मेरा भी कर्ज माफ कर दो सरकार

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नई दिल्ली। केंद्र के पुराने नोट बंद करने के फैसले को लेकर लोगों में काफी गुस्सा है। लेकिन वहीं सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक एसबीआई द्वारा कथित तौर पर विजय माल्या के किंगफिशर एयरलाइंस के कर्ज समेत कुल 7000 करोड़ रुपए का कर्ज माफ कर देने पर नासिक के एक सफाई कर्मचारी ने अपने कर्ज को माफ करने के लिए बैंक को पत्र लिखा है।


 
आपको बता दें कि नासिक के एक सफाई कर्मचारी ने एसबीआई को पत्र लिखकर उसका भी 1.5 लाख रुपए का कर्ज माफ करने की मांग की है। महाराष्ट्र के नासिक जिले के यंबकेश्वर नगर परिषद में सफाई कर्मचारी भाउच्च्राव सोनावने ने बताया कि उन्होंने एसबीआई से उनका कर्ज ‘‘उसी तर्ज पर माफ करने की मांग की है जिस तरह बैंक ने माल्या का कर्ज माफ किया है।’’

सोनावने ने बताया, ‘‘मैंने बैंक को पत्र लिखा और माल्या का कर्ज माफ करने के उसके ‘अच्छे फैसले’ के लिए बधाई दी है। मैंने एसबीआई से मेरा ऋण भी माफ करने का अनुरोध किया है।’’ उन्होंने बताया कि यह कर्ज उन्होंने बेटे की बीमारी के इलाज के लिए लिया था और अभी तक बैंक प्रबंधक ने उनके पत्र का जवाब नहीं दिया है।
 
बहरहाल, वित्त मंत्री अरूण जेटली ने सरकार के नोटबंदी अभियान पर सदन में चर्चा के दौरान कहा था कि माल्या का लोन माफ नहीं किया गया बल्कि लोन राइट ऑफ किया गया है। उन्होंने कहा कि कर्ज तो अभी भी बना हुआ है जिसे वसूलने की कोशिश जारी रहेगी।
 
 
वित्त मंत्री ने बताया राइट ऑफ का मतलब
वित्त मंत्री ने बताया था कि राइट ऑफ का ये मतलब नहीं है कि लोन माफ कर दिया गया है। राइट ऑफ करने का मतलब सिर्फ इतना होता है कि बैंक ने अकाउंटिंग बुक में लोन को नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स यानी एनपीए मान लिया गया है. राइट ऑफ करने को लोन की माफी ना समझा जाए।

बता दें कि विपक्ष ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाए थे कि वो जनता को तो नोटबंदी से परेशान कर रही है जबकि कारोबारियों का लोन माफ कर रही है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा था कि मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले के चलते लोग लाइनों में लगे हैं, वहीं ललित मोदी, विजय माल्या जैसे लोन डिफॉल्टर आजाद घूम रहे हैं।

Courtesy: National Dastak
 

स्याही के निशान मिटाने के तरीके गूगल पर खोज रहे लोग

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नई दिल्ली। केंद्र के पुराने नोट बंद करने के फैसले से लोगों को खासी दिक्कते हो रही हैं। सरकार ने पुराने नोट बदलने के लिए लोगों को 50 दिन का समय दिया है तो वहीं साल 2017 में पुराने नोटों को आरबीआई की ब्रांच में जाकर बदल सकते हैं। आपको बता दें कि नोटबंदी के फैसले के बाद आ रही दिक्कतों से बचने के लिए लोग नए-नए तरीके खोजने में जुट गए हैं।

new 2000 notes

पहले कई लोग अपने पैसे बदलवाने के लिए एक दिन में कई-कई बार बैंक जा रहे थे। इसके बाद सरकार ने एक ही व्यक्ति द्वारा पुरानी करेंसी को कई बार एक्सचेंज करने पर रोकने के लिए बैंकों को स्याही लगाने का आदेश दिया था। लेकिन स्हायी लग जाने के बाद कई दिनों तक अपने पैसे बदलवाने के लिए बैंक नहीं जा सकते थे। लेकिन इसी के चलते लोगों ने स्याही हटाने का तरीका भी ढूंढना शुरू कर दिया। 
 

आपको बता दें कि सरकार के नोट बदलवाने पर स्याही लगाने के फैसले के एक दिन बाद ही गूगल पर बड़ी संख्या में ‘Indelible Ink Removal’ को सर्च किया गया। दरअसल सरकार ने स्याही लगाने का फैसला 15 नवंबर को लिया था, और इसी दिन से ‘Indelible Ink Removal’ गूगल ट्रेंड्स में दिखने लगा। गूगल ट्रेंड्स डेटा के मुताबिक, ‘Indelible Ink removal’ सर्च में बढ़ोतरी 15 नवंबर से ही देखी गई। 
 
वहीं इसके एक दिन बाद इसे और भी ज्यादा सर्च किया गया। Google के डेटा के अनुसार, मुंबई और दिल्ली इन तरीकों को सर्च करने में लगभग बराबर रहे जबकि उसके बाद बेंगलुरु के लोगों ने सबसे ज्यादा इन तरीकों को सर्च किया।
 
क्यों लिया था स्याही लगाने का फैसला
बता दें कि वित्त सचिव शक्तिकांत दास ने मंगलवार (15 नवंबर) को एलान किया था कि नोट बदलवाने पर स्याही का निशान लगाया जाएगा। यह निशान ठीक वैसा होगा जैसा वोट देने पर लगता है। शक्तिकांत दास ने कहा कि अगर एक ही आदमी बार-बार आएगा तो दूसरों को दिक्कत होगी, इसलिए इस नियम को लाया गया है।
 
शक्तिकांत दास ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था, “बैंकों और एटीएम के आगे लगी लंबी लाइनों की जांच में पाया गया है कि कुछ लोग बार-बार पैसे बदलने आ रहे हैं। यह भी रिपोर्ट मिली है कि कई लोगों ने अपने कालेधन को सफेद में बदलने के लिए कुछ लोगों से सांठ-गांठ की और उन्हें पैसे बदलने के लिए कई-कई बार बैंक भेजा जा रहा है।”

Courtesy: National Dastak
 

नोटबंदी: लगभग 60 लोगों की मौत, लेकिन फिर भी पीएम मोदी के लिए ये लोगों के दुख का मज़ाक बनाने का मौका

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जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 500 रुपये और 1,000 रुपये के नोट बंदी की घोषणा कर दी है, पीएम मोदी पर जनता के लाखों लोगों का मजाक बनाने का आरोप लगता रहा है।

नोटबंदी की घोषणा के कुछ घंटों बाद वो तीन दिन के लिए जापान के लिए रवाना हो गए, मोदी ने उन लोगों के दुख का मज़ाक उड़ाया जिनके घरों में शादी होनी थी और मोदी की नोटबंदी की घोषणा के बाद वो परेशानियां सह रहे थे।

फिर गोवा में उन्होंने कतार में खड़े लोगों को घोटाले में शामिल होने वाला बताया, हालांकि उनके समर्थकों ने बाद में स्पष्ट किया है वो उपहास के रुप में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के लिए कहा गया था।

शनिवार को पीएम ने ग्लोबल सिटिजन फेस्टिवल टेलिकॉन्फ्रेंसिंग के जरिए संबोधिन में आम नागरिकों को 100 रुपये के लिए होने वाली परेशानी का मज़ाक उड़ाया।

अपने भाषण के संबोधन में पीएम मोदी ने कहा, ‘आप लोगों ने मुझे सिर्फ भाषण देने के लिए बुलाकर समझदारी दिखाई है गाना गाने को न कहकर आपने अच्छा किया नहीं तो आप लोग निश्चित तौर पर अपने पैसे वापस मांग लेते वो भी 100 रुपये के नोटों में।’

लेकिन पत्रकार और सोशल मीडिया यूजर्स  पीएम मोदी द्वारा उड़ाए गए इस बात से बेखबर नही रहे।

 

जनता का रिपोर्टर के सौजन्य से.

जांच में खुलासा: जेएनयू के लापता छात्र नजीब पर एबीवीपी कार्यकर्ता ने किया था हमला

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जेएनयू के प्रॉक्टर की जांच में एबीवीपी कार्यकर्ता विक्रांत कुमार विश्वविद्यालय परिसर में हुए एक हंगामे के दौरान नजीब अहमद पर हमला करने के दोषी पाए गए हैं।

इस घटना के बाद नजीब एक महीने से भी अधिक समय से लापता है। उत्तर प्रदेश के बदायूं का रहने वाला नजीब (27) जेएनयू में स्कूल ऑफ बायोटेक्नोलॉजी का छात्र है और वह विश्वविद्यालय परिसर में विक्रांत सहित एबीवीपी के कार्यकर्ताओं के साथ हुई कथित हाथापाई के एक दिन बाद यानी 15 अक्तूबर से लापता है। जेएनयू ने घंटना के संबंध में प्रॉक्टर की निगरानी में जांच के आदेश दिए थे।

एक आधिकारिक आदेश के अनुसार, ‘प्रॉक्टर की जांच में विक्रांत कुमार 14 अक्तूबर को आक्रामक व्यवहार के साथ अपमानजनक शब्दों का प्रयोग करते हुए नजीब अहमद पर हमला करते पाए गए। यह अनुशासनहीनता और दुराचार है।’ विक्रांत से यह पूछा गया है कि आखिर क्यों उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं करनी चाहिए।

बहरहाल, एबीवीपी ने विक्रांत का समर्थन करते हुए विश्वविद्यालय प्रशासन पर जांच के दौरान ‘पक्षपात’ करने का आरोप लगाया।

एबीवीपी सदस्य और जेएनयूएसयू के पूर्व सदस्य सौरभ शर्मा ने कहा, ‘इस मामले में प्रॉक्टर ने उन छात्रों के बयान लिए हैं जो वहां मौजूद ही नहीं थे। ना केवल यह जांच पक्षपातपूर्ण है बल्कि प्रशासन ने वाम बहुल छात्रसंघ का साथ दिया है।’