Home Blog Page 2383

अपराधी सांसदों-विधायकों की सदस्यता खत्म हो- चुनाव आयोग

0

नई दिल्ली। चुनाव आयोग ने सोमवार को आपराधिक मामलों में दोषी ठहराए जाने वाले सांसदों-विधायकों को तुरंत अयोग्य घोषित करने की मांग की। चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वह आपराधिक मामलों में दोषी पाए गए सांसदों-विधायकों को तुरंत अयोग्य घोषित करने के पक्ष में है। लेकिन चुनाव संबंधी कानून के प्रावधान इसमें रोड़ा अटकाते हैं। आयोग ने कहा कि दोषी नीति निर्माता लोकसभा या राज्यसभा और संबंधित विधानसभाओं के प्रधान सचिव द्वारा अयोग्यता और इसके कारण सीट खाली होने की अधिसूचना जारी करने के समय तक दोषी विधिनिर्माता सांसद और विधायक के रूप में अपना दर्जा कायम रखते हैं।

SC

चुनाव आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मीनाक्षी अरोड़ा ने चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ के सामने यह दलीलें पेश कीं। मीनाक्षी अरोड़ा ने पीठ से कहा कि इस चरण में जाकर चुनाव आयोग का काम आता है और उस खास रिक्त सीट का चुनाव कार्यक्रम घोषित होता है। पीठ उस स्थिति के बारे में जानना चाहती थी जब निचली अदालत के आदेश पर रोक या निलंबन होगा।
 
आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई, 2013 को आदेश जारी कर कहा था कि आपराधिक कृत्य के लिए दोषी करार दिए जाने पर किसी निर्वाचित जनप्रतिनिधि को तत्काल आयोग्य घोषित कर दिया जाय।
 
इस पीठ में न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव भी शामिल थे। जब पीठ ने अतिरिक्त सालिसिटर जनरल मनिंदर सिंह से मदद मांगी तो सिंह ने कहा कि विधिनिर्माता को उस सूरत में राहत मिल सकती है अगर ऊपरी अदालत दोष सिद्धि पर रोक लगाती है या निलंबित करती है लेकिन केवल सजा पर निलंबन दोषी सांसदों या विधायकों की मदद नहीं कर पाएगा।
 
बेंच ने पूछा कि अगर निचली अदालत के आदेश पर ऊपरी अदालत रोक लगा दे तो क्या होगा? इस पर एडिशनल सॉलिसीटर जनरल मनिंदर सिंह ने कहा, ‘ऊपरी अदालत सांसद-विधायक को बरी कर देती है तो उसे राहत मिल सकती है। पर केवल सजा पर निलंबन दोषी सांसदों या विधायकों की मदद नहीं कर पाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने आयोग से इस मामले में 4 हफ्ते में हलफनामा दायर करने को कहा।

Courtesy: National Dastak

 

जेएनयू में कंडोम ढूंढने वाले एक छात्र को नहीं ढूंढ पा रहे- कन्हैया कुमार

0

नई दिल्‍ली। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र नजीब अहमद को लापता हुए तीन सप्ताह से ज्यादा समय हो रहा है। इस मामले में विश्वविद्यालय के छात्र और नजीब के परिजन प्रशासन के खिलाफ लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं। दिल्ली पुलिस प्रदर्शनकारियों को लगातार रोक रही है। दो दिन पहले नजीब की मां को बुरी तरह घसीटकर हिरासत में लिया गया। 

Kanhaiya Kumar

देशद्रोह के आरोप में जेल जा चुके कन्‍हैया कुमार ने अपनी पुस्‍तक 'फ्रॉम बिहार टू तिहाड़' के विमोचन के मौके पर सरकार पर निशाना साधा। कन्‍हैया ने कहा, 'उनके पास तो इतनी खुफिया जानकारी थी कि उन्‍होंने जेएनयू में इस्‍तेमाल हुए कॉन्‍डोम की गिनती तक कर ली थी, लेकिन क्‍या वे अपने उस खुफिया तंत्र का इस्‍तेमाल ये पता लगाने में नहीं कर सकते कि इतने दिनों से लापता नजीब आखिर है कहां।
 
कन्‍हैया बीजेपी नेता ज्ञानदेव आहूजा के उस बयान के सदर्भ में बोल रहे थे, जो उन्‍होंने फरवरी में विश्‍वविद्यालय में चल रहे प्रदर्शनों के दौरान दिया था। अपने बयान में आहूजा ने कहा था, 'जेएनयू में रोजाना 3000 बीयर के केन, 2000 शराब की बोतलें, 10 हजार सिगरेट के टुकड़े, 4 हजार बीड़ी, 50 हजार हड्डियों के टुकड़े, 2 हजार चिप्स के पैकेट, 3 हजार उपयोग किए गए कंडोम और 500 गर्भपात के इंजेक्शन मिलते हैं।' उनके बयान पर खूब चर्चा भी हुई थी।
 
4 अक्‍टूबर को होस्‍टल में हुए विवाद के बाद से नजीब अहमद लापता है। वामपंथी दलों से संबद्ध ऑल इंडिया स्‍टूडेंट्स एसोसिएशन का आरोप है कि गायब होने से पहले नजीब को बीजेपी से जुड़े अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के कार्यकर्ताओं ने बुरी तरह पीटा था। हालांकि एबीवीपी ने इस मामले में किसी भी तरह की संलिप्‍तता से इनकार किया है।

Courtesy: National Dastak

दबाव के चलते सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने स्थगित किया NDTV बैन का आदेश

0

नई दिल्ली। NDTV इंडिया के एक दिन के बैन के खिलाफ राजनेताओं सहित पत्रकारों व संपादकों के समूहों द्वारा की गई आलोचना के बाद सरकार ने यू टर्न ले लिया है। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने बैन लगाने का आदेश स्थगित कर दिया है। दरअसल सोशल मीडिया पर भी एनडीटीवी बैन तीन दिन से टॉप ट्रेंडिंग में था। भारी संख्या में लोग इसकी आलोचना कर रहे थे। आदेश स्थगन के बारे खुद एनडीटीवी ने अपनी वेबसाइट पर लिखा है। NDTV के अनुसार…….

nDTV

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने NDTV इंडिया पर एक दिन के बैन लगाने के अपने आदेश को स्थगित कर दिया है. अपने हिन्दी चैनल NDTV इंडिया पर केंद्र सरकार द्वारा लगाए गए एक दिन के प्रतिबंध को NDTV ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कल यानी मंगलवार को इस याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति दी थी.
 
सरकार ने NDTV इंडिया पर इसी साल जनवरी में पठानकोट एयरफोर्स बेस पर हुए आतंकवादी हमले के दौरान संवेदनशील जानकारी का प्रसारण करने का आरोप लगाते हुए बुधवार, 9 नवंबर को उसे एक दिन के लिए ऑफएयर रखे जाने का आदेश दिया है.

NDTV ने इन आरोपों का खंडन किया और कहा था कि अन्य चैनलों तथा समाचारपत्रों ने भी वही जानकारी दिखाई या रिपोर्ट की थी.

इस प्रतिबंध की पत्रकारों और संपादकों ने चौतरफा आलोचना की . सभी प्रेस काउंसिलों ने इसे '70 के दशक में देश में लागू की गई एमरजेंसी के समान बताया, जब प्रेस की आज़ादी सहित सभी मूल संवैधानिक अधिकारों का खुलेआम उल्लंघन किया गया था.
 
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने कहा था कि अपनी तरह के इस पहले आदेश से पता चलता है कि केंद्र सरकार समझती है कि "उसे मीडिया के कामकाज में दखल देने और जब भी सरकार किसी कवरेज से सहमत न हो, उसे अपनी मर्ज़ी से किसी भी तरह की दंडात्मक कार्रवाई करने का अधिकार है…" देश के सभी बड़े समाचारपत्रों तथा पत्रिकाओं के संपादकों के समूह ने कहा था कि अगर सरकार को किसी मीडिया कवरेज में कुछ आपत्तिजनक लगता है, तो वह कोर्ट जा सकती है.
 
उधर, इस प्रतिबंध का बचाव करते हुए सूचना एवं प्रसारण मंत्री वेंकैया नायडू ने कहा था कि यह प्रतिबंध 'देश की सुरक्षा के हित में है', तथा इस मुद्दे पर की जा रही सरकार की आलोचना 'राजनीति से प्रेरित' लगती है.

Courtesy: National Dastak