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कागज़ों में बने शौचालयों के लिए प्रधानमंत्री ने बांटे पुरस्कार

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नई दिल्ली। सचमुच देश बदल रहा है, तभी तो कागज़ों में बने शौचालयों के लिए भी प्रधानमंत्री द्वारा पुरस्कृत किया जा रहा हैं। बीते मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने छत्तीसगढ़ के मुंगेली और धमतरी ज़िले को 'खुले में शौच मुक्त' होने के लिये सम्मानित कर दिया। लेकिन प्रधानमंत्री के इस दावे की जमीनी हकीकत कुछ और ही हैं।

narendra modi
 
प्रधानमंत्री मोदी ने मुंगेली और धमतरी ज़िला के अलावा दूसरे ज़िलों के 15 विकासखण्डों को 'खुले में शौच मुक्त' यानी ओडीएफ ज़िला और विकासखण्ड घोषित किया और वहां के ज़िला पंचायत अध्यक्षों, जनपद पंचायत अध्यक्षों को सम्मानित भी किया।
 
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जमीनी पड़ताल के बाद मिडिया रिपोर्ट जो दावा कर रही है, उससे तो यही लगता है कि प्रधानमंत्री मोदी के भाषण कानों को सुकून पहुचाने के लिए तो ठीक है मगर हकीकत भाषणों से बहुत भिन्न है।
 
उदाहरण के रूप मुंगेली ज़िले के चिरौटी गांव को ही लें। पथरिया विकासखंड के डिघोरा ग्राम पंचायत के इस गांव में कुल 45 घर हैं लेकिन गांव के अधिकांश घरों में शौचालय नहीं है। जिससे की गांव के स्त्री-पुरुष खुले में ही शौच के लिए जाते हैं। विकासखंड के गांवों में आज भी शौचालय नहीं बने हैं और तो और वहीं कुछ गांवों में इस सम्मान के बाद शौचालय बनाने का काम शुरु किया गया है।  
 
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक डिघोरा ग्राम के दौलतराम का कहना है कि "बचपन से खेत और जंगल से ऐसा रिश्ता रहा है कि कभी शौचालय की ज़रूरत ही महसूस नहीं हुई। हमारे इलाके के सरपंच ने भी कभी शौचालय के लिये किसी तरह की मदद की बात नहीं कही।"
 
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ये हाल सिर्फ चिरौटी या डिघोरा का नहीं है। इलाके के कांग्रेसी नेता घनश्याम वर्मा का कहना है "काग़ज़ में बताने के लिये भले शौचालय बना दिया गया हो लेकिन हकीकत ऐसी नहीं है। कई जगह तो ऐसा शौचालय बना दिया गया है, जिसका उपयोग ही नहीं हो रहा है।"
 
हालांकि सरकारी अफ़सर जो आकड़े दिखाते है वो चौकाने वाले है उनका दावा है कि ज़िले के सभी 674 गांवों में 97,776 शौचालय बनाये गये हैं और ये शौचालय पर्याप्त हैं।
 
वही इस मामले में पथरिया इलाके के एसडीएम केएल सोरी कहते हैं, "छोटी-मोटी परेशानियां हैं। कहीं शौचालय बनाने के लिये लाया हुआ सामान चोरी चला गया तो कहीं बना हुआ शौचालय धसक गया। लेकिन यह सब तो होता ही रहता है। हम सभी चीजों को ठीक करने की कोशिश कर रहे हैं।"
 
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मुंगेली ज़िले के किसान नेता आनंद मिश्रा का कहना है कि गांवों को पूरी तरह से 'खुले में शौच मुक्त' का असली दावा ज़िले के लोरमी और पथरिया विकासखंड के अंदरूनी इलाकों में देखा जाना चाहिये, जहां कई शौचालय काग़ज़ों में ही बना दिये गए। उनका मानना है कि सबसे बड़ी चुनौती गांव के लोगों को शौचालय इस्तेमाल के लिए प्रेरित करना है। इन शौचालयों के उपयोग न हो पाने के अलग-अलग कारण हैं। जब तक इन कारणों से मुक्ति नहीं मिलती तब तक "खुले में शौच" से मुक्ति नहीं मिल सकती।
 
कुल मिलकर बात ये है कि इन ज़िलों को भले 'खुले में शौच मुक्त' घोषित कर दिया गया हो लेकिन अभी भी यहां बहुत काम बाकि हैं। कागज़ों पर शौचालय बनाने और पुरस्कार बाटने से देश "खुले में शौच" से मुक्त नहीं हो सकता।

Courtesy: National Dastak

 

मोदी सरकार का पहला महाघोटाला और उसके पक्के सबूत

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नई दिल्ली। देश की सरकारी दूरसंचार सेवा BSNL की एक खरीद में सरकारी खजाने को करीब 300 करोड़ रुपए के नुकसान का मामला सामने आया है। द क्विंट की खबर के अनुसार बीएसएनएल और अमेरिकी मल्टीनेशनल कंपनी सिस्को के बीच नेशनल इंटरनेट बैकबोन (एनआईबी) के बुनियादी ढांचे के विस्तार को लेकर समझौता हुआ था। इसी योजना के तहत उपकरणों की खरीद में देश के सरकारी खजाने को करीब 300 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। फिलहाल भारतीय राजकोष को हुए नुकसान से जुड़े इस मामले की विभागीय जांच शुरू हो चुकी है।

BSNL
 
ताज्जुब की बात है कि प्रधानमंत्री कार्यालय, सेंट्रल विजिलेंस कमीशन और डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकम्यूनिकेशन को इस घोटाले की जानकारी मिल चुकी है। लेकिन सरकार की ओर से इस मामले में अभी तक जांच के आदेश नहीं दिए गए हैं।
 
आपको बता दें कि भारतीय दूरसंचार कंपनी बीएसएनएल ने दिसंबर 2015 में एनआईबी इंफ्रास्ट्रक्चर का विस्तार करने के लिए दिल्ली की एक कंपनी प्रेस्टो इंफोसॉल्यूशन को 95 करोड़ रुपए का ऑर्डर दिया था। वहीं सिस्को पिछले 12 सालों से एनआईबी इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए उपकरणों की आपूर्ति कर रहा है। प्रेस्टो इंफोसॉल्यूशन को राउटर्स की सप्लाई के लिए ऑर्डर दिया गया, जिसकी आपूर्ति पिछले पांच सालों से एचसीएल कर रहा है।
 
आश्चर्य की बात है कि BSNL की टीम ने राउटर्स की सप्लाई के लिए विप्रो, एचसीएल, डाइमेंसन डेटा और आईबीएम जैसे सिस्को के सर्टिफाइड चैनल पार्टनर्स की अनदेखी करते हुए महज 150 करोड़ का टर्नओवर करने वाली प्रेस्टो इंफोसॉल्यूशन को चुना। यह सीवीसी के दिशा-निर्देशों का सीधा-सीधा उल्लंघन है, सीवीसी के मुताबिक, किसी भी ऑर्डर की सप्लाई के लिए टेंडर बुलाया जाना चाहिए। बीएसएनएल ने प्रेस्टो को ये ऑर्डर देते वक्त कंपनी की फाइनेंशियल स्थितियों पर भी ध्यान नहीं दिया। इतना ही नहीं बीएसएनएल ने यह ऑर्डर जारी करते वक्त प्राइस वेलिडेशन एक्सरसाइज भी नहीं की और प्रेस्टो को सीधे-सीधे ऑर्डर जारी कर दिया। सूत्रों के मुताबिक, बीएसएनएल ने इस खरीद के पीछे "अरजेंसी" का तर्क दिया है।
 
प्रेस्टो इंफोसॉल्यूशन ने बीएसएनएल से परचेज ऑर्डर मिलने के बाद सिंगापुर की एक कंपनी इनग्राम माइक्रो (सिस्को का डिस्ट्रीब्यूटर) को 50 करोड़ का ऑर्डर दिया। साफ है कि प्रेस्टो ने इस खरीद में सीधे तौर पर 45 करोड़ का मुनाफा कमाया। दस्तावेजों और सूत्रों के मुताबिक, प्रेस्टो इंफोसॉल्यूशंस के पास बाहर से मंगाए गए इक्विपमेंट्स को इंस्टॉल करने की क्षमता भी नहीं है।

सूत्रों के मुताबिक, 35 फीसदी इक्विपमेंट का इस्तेमाल ही नहीं किया गया, क्योंकि सिस्को ने उनकी लाइफ खत्म होने के बाद भी बीएसएनएल को इक्विपमेंट बेचे। इसके अलावा दूसरा घोटाला करीब 200 करोड़ रुपए का सामने आया है। बीएसएनएल ने पांच साल के लिए रखरखाव और अतिरिक्त हार्डवेयर खरीदने के लिए 200 करोड़ रुपए की डील की थी। इस डील में भी नियमों की अनदेखी की गई और मनमाने तरीके से टेंडर दे दिया गया।

Courtesy: National Dastak

दानिश की शहादत पर मीडिया चुप क्यों, शायद शहीदों के अंदर भी धर्म ढूंढा जा रहा

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आजमगढ़। सेना का जवान कहते वक्त मन में न जाने कितनी बातें मन में उमड़ती हैं। सैनिकों के जज्बे को लेकर मन में न जाने कितने भाव उमड़ पड़ते हैं। 

आजमगढ़ के गावं नदवा सराय के रहने वाले कमांडर दानिश खान कल सीमा की हिफाज़त करते वक्त दुश्मन की गोली से शहीद हो गया। देश की सुरक्षा और अपनी जिम्मेदारी को निभाते हुए दानिश की जान गई।

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दानिश की अभी हाल ही में शादी हुई थी। उनकी शादी को अभी एक साल भी पूरा नहीं बीता था। इसी साल 26 फरवरी को दानिश का निकाह हुआ था। देश की जिम्मेदारी की कसमें खाकर लौटा रज़ीजुद्दीन उर्फ दानिश को क्या पता था कि इतने कम समय में उसे इस मिट्टी की हिफाजत करते हुए शहीद होना पड़ेगा।

सिर्फ यही नहीं दानिश ने अपनी शादी से पहले अपनी बहन की भी शादी की। कमांडर दानिश खान आजमगढ़ के नदवा सराय कस्बे में रहते थे। जिस आंगन को 9 महिने पहले खुशी मिली थी वह आंगन आज ग़म में बैचेन है। कंमाडर दानिश देश की मिट्टी की हिफाजत करने में शहीद हो गए। 

सलीम जावेद लिखते हैं..
मेरे शहर से तीन किलोमीटर के फासले पर एक छोटा सा गाँव है, जिसका नाम 'नदवा सराय' है। जो मऊनाथ भंजन आज़मगढ़ में आता है। उसी मिटटी का एक लाल कश्मीर बॉर्डर पर कल शहीद हो गया, जिसकी पहचान 'रज़ीउद्दीन खान दानिश' नाम से है। यह उसी मिटटी का लाल है जिसे प्रधानमंत्री जी के मंत्री आतँकगढ़ के नाम से पुकारते हैं, उसी मिटटी का एक लाल देश के लिए क़ुर्बान हो गया। 
 
मीडिया चुप है, शायद शहीदों के अंदर भी धर्म ढूंढा जा रहा है। रज़ीउद्दीन, आज तुमने एक ऐसे मिटटी का नाम रौशन किया है, जिसके माथे पर आतंक का लेबल लगाया जाता रहा है। गर्व से सीना चौड़ा हो रहा है। इतना गर्व हमें तुम पर है तो सोच रहा हूँ तुम्हारे मां-बाप को तुम पर कितना नाज़ होगा।
 
देश में इस वक्त जो हालत हैं और जिस तरह मुस्लिम टारगेट किए जा रहें हैं वहां दानिश कि शहादत को कैसे लिया जाएगा यह देखना होगा। यह इसलिए भी कि आपको लश्कर से मुठभेड़ के दौरान शहीद हुए वीर सिंह तो याद होंगे। जिनकी चिता जलाने के लिए गाँव वालों ने ज़मीन देने से इनकार कर दिया था क्योंकि वीर सिंह की एक जाति थी। मृत शरीर कई घंटे तक पड़ा रहा। प्रशासन के हस्तक्षेप के बाद, सड़क किनारे दाह संस्कार हुआ।

Courtesy: National Dastak