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आदिवासियों की मौत पर गैर संवेदनशील है महाराष्ट्र सरकार- बॉम्बे हाई कोर्ट

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नई दिल्ली। मुंबई के आसपास के इलको में हो रही आदिवासीयों की मौत से बॉम्बे हाईकोर्ट चिन्तित है। कोर्ट ने महाराष्ट्र के फडणवीस सरकार को कड़ी फटकार लगायी है।

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आदिवासी क्षेत्र में काम करने वाले संगठनों का कहना हैं कि आदिवासी बच्चों की मौत कुपोषण से हुई है। अगर सरकार इन क्षेत्रो में खाद्य सामग्री वितरण करे तो हालात सुधर सकते है। लेकिन सरकार ने   अभी तक इसपर कोई कदम नहीं उठाया है। हाईकोर्ट का इस पर कहना है की सरकार की गतिविधियां बताती है कि वह कितनी ज्यादा गैर संवेदनशील है।
 
न्यायाधीश वीएम कानाडे ने राज्य के मुख्य सचिव को निर्देश भी दिया कि वे कुपोषण के कारण हो रही मौत के मामलों को व्यक्तिगत रूप से देखें और इसे रोकने के लिए जरूरी कदम उठाएं। और साथ ही कोर्ट को ये तलब करे की सरकार ने क्या कदम उठाए है ताकि आदिवासियों की कुपोषण से होने वाली मौतों को रोका जा सके। कोर्ट ने कहा कि आदिवासियों के कल्याण के लिए जो कानून या योजनाएं है उन सभी को यहां लागू किया जाना चाहिए।
 
न्यायमूर्ति वीएम कानडे व न्यायमूर्ति स्वप्ना जोशी की खंडपीठ ने कहा कि आठ साल से कुपोषण से हो रही मौतों को रोकने के लिए अदालत आदेश दे रही है पर सरकार व सरकारी अधिकारी गहरी नींद से जागने को तैयार नहीं हैं। – सरकार कागज में आदर्श स्थिति दिखाती है पर जमीनी हकीकत कुछ और ही है।
 
न्यायाधीश कानाडे ने ये भी कहा कि "इस मामले में सरकार बिल्कुल भी गंभीर नहीं है। समाज के बिल्कुल निचले वर्ग से आने वाले आदिवासियों के बच्चों को यह सरकार मरने के लिए छोड़ दे रही है और उनके खाने-पीने का कोई इंतजाम नहीं कर रही है।" हाईकोर्ट ने जिस याचिका पर सुनवाईं करते हुए ये बाते कही है उस याचिका में बताया गया है कि अब तक इन आदिवासी इलाकों में 18,000 बच्चों की मौत हो चुकी है। 
 
कोर्ट ने साफ-साफ कहा हैं कि अगर आदिवासी बच्चों के मौत का सिलसिला नहीं थमा तो सभी विभागों के सचिवों को कोर्ट में व्यक्तिगत रूप से पेश होने के लिए कहा जायेगा और उनके विरुद्ध कोर्ट की अवमानना का मुकदमा चलेगा। 
 
भारत सरकार एक तरफ देश को सुपर पावर बनाने का सपना दिखा रही हैं, बुलेट ट्रेन चालने की बात कर रही हैं और दूसरी तरफ मुंबई से महज 100 कि.मी. की दुरी पर बच्चे कुपोषण की मौत मर रहे है। आजादी के करीब 70 साल बाद भी अगर देश में बच्चों की जान भूख और कुपोषण से जा रही है तो इससे ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण कुछ और नहीं हो सकता।

Courtesy: National Dastak

Kerala Hindu outfit leader, K P Sasikala, booked for hate speech

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A top woman functionary of a Kerala-based Hindu outfit has been booked for her alleged inflammatory speeches, which were widely circulated on social media.

Police today said the case was registered against ‘Hindu Aikya Vedi’ state President K P Sasikala under IPC section 153-A (promoting enmity between different groups on grounds of religion, race etc and doing acts prejudicial to maintenance of harmony).

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She has been charged with the non-bailable offence based on a recent complaint filed by government pleader C Shukkur, they said.

The complainant had alleged that some of Sasikala’s recent speeches, being widely circulated on social media, could flare up communal tension in the state.

He had also submitted to police a CD containing some visuals of the speeches, downloaded from YouTube, besides web links.

Kasaragod District police chief Thomson Jose said the case was registered after verifying the links of the speeches and collecting details about its places of occurrence.

“Though the petitioner had submitted several materials to prove his point that the accused had made inflammatory speeches, we could find objectionable content in some of the speeches only,” he told PTI.

A detailed investigation will be held in this regard before proceeding further, the official added.

Courtesy: Janta Ka Reporter
 

VHP नेता के भड़काऊ बोल, मुसलमानों को कहा भारत में रहना है तो पैगंबर को नहीं श्रीराम को करो फॉलो

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विश्व हिंदू परिषद के एक वरिष्ठ नेता ने मुस्लिमों से कहा है कि अगर उन्हें भारत में रहना है तो पैंगबर मोहम्मद को छोड़कर श्रीराम के रास्ते पर चलना होगा। साथ ही उन्होंने कहा कि अगर वे इस्लाम धर्म छोड़कर हिंदू धर्म अपना लेते हैं तो उनकी पूरी सुरक्षा की जाएगी।

न्यूज वेबसाइट Coastaldigest.com की रिपोर्ट के मुताबिक विश्व हिंदू परिषद के ज्वाइंट सेक्रेट्री सुरेंद्र कुमार जैन रविवार को ‘हिंदू जाया घोष’ मीटिंग में बोल रहे थे। इस मीटिंग में जैन ने मुस्लिमों को हिंसक बताते हुए कहा, ‘मुस्लिमों में कुछ ऐसे ग्रुप हैं, जो कि एक दूसरों को नफरत करते हैं।

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सुन्नी शियाओं को मारते हैं और शिया सुन्नियों को मारते हैं। मुस्लिम देशों में कोई शांति नहीं है। दुर्भाग्यवश, वे लोग इस देश में भी शांति भंग करना चाहते हैं।’ साथ ही जैन ने मुस्लिमों से कहा कि उनके पैतृक हिंदू ही थे। अगर वे इस्लाम को छोड़कर हिंदू धर्म अपना लेते हैं तो विश्व हिंदू परिषद उनकी पूरी सुरक्षा करेगा। अगर मुस्लिम भारत में रहना चाहते हैं तो मुस्लिमों को पैंगबर मोहम्मद की जगह, श्रीराम के रास्तों पर चलना होगा।’

सुरेंद्र कुमार जैन पहले भी विवादित बयान देते रहे हैं। उन्होंने अप्रैल महीने में दारुल उलूम देवबंद पर बैन लगाने की मांग की थी। जैन ने देवबंद को आतंक की फैक्ट्री करार दिया था। बता दें, दारुल उलूम देवबंद ने भारत माता की जय को मुस्लिम विरोधी बताया था। उसके बाद जैन ने फतवा जारी करने वाली मौलवी के खिलाफ देशद्रोह का मामला दर्ज करने की मांग की थी।

जनसत्ता की खबर के अनुसार जैन ने कहा था, ‘भारत को खत्म करने के लिए देवबंद में जहरीले बीज उगाए जा रहे हैं। यूपी सरकार को दारुल उलूम देवबंद को बैन कर देने चाहिए। फतवा जारी करने वाले मौलवी के खिलाफ देशद्रोह का केस दर्ज कर भेजना चाहिए।’ साथ ही उन्होंने कहा था कि वे कहते हैं कि भारत माता की जय बोलना मूर्ती पूजा करने जैसा है। मैं उनसे पूछा चाहता हूं जीत के लिए इस्तेमाल होने वाले नारे ‘जय’ क्या किसी तरह की पूजा है?

Courtesy: Janta Ka Reporter

मध्य प्रदेश: व्यापम के बाद एक और बड़ा भर्ती घोटाला, RSS का नाम आया सामने

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भोपाल। बीजेपी शासित मध्य प्रदेश में तीन साल पहले उजागर हुए व्यापम घोटाले के बाद एक और बड़ा भर्ती घोटाला सामने आया है। यह घोटाला राज्य की सबसे अहम मानी जाने वाले भर्ती आयोग मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग (एमपीपीएससी) में सामने आया है। एमपीपीएससी द्वारा कुछ साल पहले उच्च शिक्षा विभाग में की गई प्रोफेसरों की सीधी भर्ती में भारी अनियमितता सामने आई हैं। इस घोटाले में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नाम भी सामने आ रहा है

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जनवरी 2009 में एमपीपीएससी ने उच्च शिक्षा विभाग में प्रोफेसरों की भर्ती के लिए 385 पदों का विज्ञापन जारी किया था। इसके तहत प्रोफेसर पद पर सीधे साक्षात्कार के माध्यम से नियुक्ति की जानी थी। वर्ष 2011 के मध्य में यह प्रक्रिया पूरी हुई थी। भर्ती को लेकर समय-समय पर कई शिकायतें होती रहीं जिनको देखते हुए उच्च शिक्षा विभाग में आयुक्त कार्यालय द्वारा एक चार सदस्यीय जांच समिति का गठन किया गया था। उसी समिति ने हाल में अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंपी है।
 
जांच समिति ने भर्ती प्रक्रिया में गड़बड़ी से जुड़े कई मुद्दे उठाए हैं। जांच समिति ने कहा है कि आयोग द्वारा विज्ञापन जारी होने तथा चयन हेतु साक्षात्कार पूरा करने के बाद अनुभव के बारे में जो स्पष्टीकरण जारी किया गया वह पूरी तरह नियम के विरुद्ध है। जांच समिति ने कहा कि भर्ती प्रक्रिया के लिए साक्षात्कार होने के बाद अगस्त, 2011 में विज्ञापन में संशोधन जारी किया गया। नियमानुसार यदि संशोधन करना आवश्यक था तो पूरी प्रक्रिया निरस्त कर फिर से आवेदन मंगाए जाने थे लेकिन ऐसा नहीं किया गया।

जांच समिति ने कहा कि उच्च शिक्षा विभाग के भर्ती नियमों के मुताबिक अनुभव योग्यताएं, जो पारंपरिक रूप से पदोन्नति के लिए भी स्वीकार की जाती हैं, से अलग योग्यताओं की व्याख्या या स्पष्टीकरण लोक सेवा आयोग द्वारा जारी किया गया। इससे स्पष्ट है कि चयन में भर्ती के लिए अलग मापदंड अपनाए गए। विज्ञापन जारी करते समय अनुभव योग्यताओं को स्पष्ट न किए जाने से बहुत से संभावित उम्मीदवारों को मौका नहीं मिल पाया।

जांच समिति ने रिपोर्ट में बताया कि सरकारी कॉलेजों में कार्यरत उम्मीदवारों द्वारा प्रस्तुत अनुभव प्रमाण पत्रों के अलावा जो अनुभव प्रमाण पत्र प्राप्त हुए हैं वे प्रारंभिक रूप से संदेहास्पद लगते हैं। अनुभव प्रमाण पत्रों की सत्यता की जांच सरकारी विश्वविद्यालय या कॉलेज से नहीं कराई गई। इसके अलावा उनकी पुष्टि के लिए संबंधित दस्तावेज भी उपलब्ध नहीं कराए गए हैं।
 
रिपोर्ट के अनुसार अनुदान प्राप्त संस्थाओं में नियुक्तियों का अनुमोदन उच्च शिक्षा आयुक्त द्वारा किया जाता है। इन संस्थाओं में काम करने से संबंधित कई अनुभव प्रमाण पत्रों के साथ इस तरह के अनुमोदन का कोई भी प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं। आयोग द्वारा आठ अगस्त, 2011 को जारी स्पष्टीकरण में बताया गया कि केवल सरकारी और अनुदान प्राप्त गैर-सरकारी संस्थाओं का ही अनुभव मान्य होगा। अनुदान प्राप्त न करने वाली गैर-सरकारी संस्थाओं का अनुभव मान्य नहीं होगा लेकिन नियुक्ति में इस तरह के अनुभव भी मान्य किए गए हैं।

जांच समिति ने सवाल उठाया कि जिस विषय में पीएचडी नहीं है उसमें चयन न होकर किसी अन्य विषय में चयन किया गया। कुछ उम्मीदवारों का चयन पहले हुआ, पीएचडी की डिग्री उन्हें बाद में मिली। कुछ ऐसे उम्मीदवारों का चयन भी हुआ जिन्होंने स्कूल के संविदा शिक्षक के अनुभव का प्रमाण पत्र आवेदन में लगाया था। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के दिशा-निर्देश के अनुसार प्रोफेसर पद के लिए चार साल का स्नातकोत्तर कक्षाओं में पढ़ाने का अनुभव अनिवार्य है। आयोग की इस भर्ती प्रक्रिया में इस नियम को सिरे से नकारा गया है।
 
आपको बता दें कि एक बार चयन प्रक्रिया शुरू होने के बाद शर्तों में किसी तरह के बदलाव नहीं होते। अगर ऐसा करना अनिवार्य हो तो पहले के आवेदनों को रद्द कर दोबारा आवेदन मंगाए जाते हैं। उच्च शिक्षण संस्थानों में नियुक्ति की पूरी कार्रवाई आयोग द्वारा संपन्न की गई और अनुभव प्रमाण पत्रों की जांच भी आयोग द्वारा ही की गई थी। आयोग द्वारा प्रस्तुत सूची के आधार पर उच्च शिक्षा विभाग ने चयनित उम्मीदवारों की नियुक्तियां की थीं। दरअसल यह पहली बार नहीं है जब मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग पर सवाल उठे हों। इसके पहले भी परीक्षाओं के पेपर लीक मामले में आयोग संदेह के घेरे में आ चुका है। वर्ष 2012 में आयोग द्वारा आयोजित एक परीक्षा का पेपर लीक होने के बाद पूरी परीक्षा रद्द करनी पड़ी थी।

संदेह की सुई राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तरफ भी उठ रही है। जिस समय यह भर्ती प्रक्रिया चली उस दौरान प्रोफेसर पीके जोशी मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष थे। उनका कार्यकाल 13 जून 2006 से 28 सिंतबर, 2011 तक था। आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पृष्ठभूमि का माना जाता है। उच्च शिक्षा विभाग के सूत्र नाम न बताने की शर्त पर जानकारी देते हैं कि चयनित कई उम्मीदवार भी संघ की पृष्ठभूमि से जुड़े हैं। इससे पहले व्यापम घोटाले में भी संघ से संबंधित लोगों के नाम आए थे। संघ के उच्च पदाधिकारियों पर आरोप लगे थे कि कई चयन उनकी सिफारिश के आधार पर हुए हैं।

Courtesy: National Dastak