Home Blog Page 2445

राष्ट्रपति महोदय, कृपया सुनें शिक्षकों की आवाज़

0

दिल्ली विश्वविद्यालय के तदर्थ [एडहॉक] शिक्षकों द्वारा दिल्ली विश्वविद्यालय के विजिटर माननीय राष्ट्रपति को ज्ञापन

दिल्ली विश्वविद्यालय में वर्षों से अस्थायी तौर पर अपनी सेवा दे रहे लगभग चार हजार तदर्थ शिक्षकों की ओर से दिल्ली विश्वविद्यालय के विजिटर माननीय राष्ट्रपति जी को एक ज्ञापन सौंपा गया. ज्ञापन के साथ लगभग दो हजार से उपर तदर्थ शिक्षक साथियों के हस्ताक्षर भी उनकी सम्मति के रूप में सौंपा गया. एडहॉक आधार पर सेवा देने वाले शिक्षकों का भविष्य चार महीने का ही होता है उसके बाद अगले नियुक्ति पत्र की आशा में उन्हें प्रशासन का मुंहताज रहना होता है. प्रशासन एक दिन का मनमाना अवकाश देकर पुनः अधिकतम चार महीने का नियुक्ति पत्र पकड़ा देता है. पत्र इस ज्ञापन के माध्यम से महामहिम से अपील की गई है कि वे हस्तक्षेप करें और मानवता के आधार पर, जो जहाँ वर्षों से पढ़ा रहा है उसे वही स्थायी करवाया जाए.

इस ज्ञापन के माध्यम से महामहिम राष्ट्रपति जी को अवगत कराया गया है सभी जो तदर्थ शिक्षक विश्वविद्यालय के विभिन्न महाविद्यालयों में अपनी सेवाएँ दे रहे है, वे इस सेवा हेतु पर्याप्त योग्यतासंपन्न, कुशल एवं अनुभवी है. इनका चयन विशेष चयन समिति द्वारा होता है. इस सेवा हेतु केवल उन्हीं का चयन हो सकता है जो विश्वविद्यालय द्वारा बनाये गए एडहॉक पैनल में सूचीबद्ध होते हैं. सबकी नियुक्ति आरक्षण के लिए तय किए रोस्टर के अनुसार ही हुई है. इन सब में करीब आधे से ज्यादा सामाजिक रुप से कमजोर वर्ग जैसे कि अनुसूचित जाति, जनजाति और ओबीसी वर्ग के हैं। इतने सब मानकों के आधार पर चयन होने के बावजूद एडहॉक शिक्षकों का भविष्य पूरी तरह अधर में रहता है.

एडहॉक चाहे कितने ही वर्षों तक सेवा दे किन्तु उनके वेतन में किसी तरह की कोई बढ़ोतरी नहीं होती है. वे हमेशा प्रवेशवाले वेतन श्रेणी में रहते हैं. प्रोन्नति और उच्च योग्यता के आधार पर मिलने वाले अन्य लाभ तो नहीं ही मिलते है. इन्हें महीने में सिर्फ एक आकस्मिक अवकाश लेने का अधिकार है. शादीशुदा महिलाओं को मातृत्व अवकाश, जो कि अनिवार्य है, तक नहीं मिलता. क्या वे बीमार नहीं होते ? या उन्हें अपने परिवार के विकास का अधिकार नहीं है ? ये सब तभी संभव है जब में सेवा शर्तों की ओर से निश्चिन्त होंगे. वैधानिक रूप से भी इतने वर्षों तक किसी शिक्षक या कर्मचारी को अस्थायी रखना सही नहीं है.

एडहॉक शिक्षक वर्षों से विभिन्न स्तर पर आवाज़ उठाते रहे हैं. किन्तु इनकी आवाज़ को हर स्तर पर अनसुना किया गया है. ये अपनी फ़रियाद को लेकर कहाँ जाएं! इतने योग्य और अनुभवी एडहॉक शिक्षक उम्र के तीसरे पड़ाव पर आ पहुंचे हैं. दिल्ली विश्वविद्यालय के व्यथित एडहॉक शिक्षक समुदाय ने आज माननीय राष्ट्रपति को यह ज्ञापन सौंपकर उनसे ज़ोरदार अपील की है कि मानवीयता और एडहॉक शिक्षकों की योग्यता को देखकर वे इस दिशा में उचित कार्रवाई करें. शिक्षकों के अस्थायित्व से सिर्फ शिक्षकों का नहीं अपितु संस्थानों का एवं छात्रों का भी अहित होता है. इस ज्ञापन के माध्यम से अपील की गई है कि एक अध्यादेश के माध्यम से सभी एडहॉक शिक्षकों को तत्काल प्रभाव से स्थायी करवाया जाए.

इस ज्ञापन की प्रति को प्रधानमंत्री कार्यालय, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति को भी सौंपा गया.
दिल्ली विश्वविद्यालय एडहॉक शिक्षक समूह
​​​​​​​
दिनांक 23/09/2016

भुजबल के समर्थन में जुटने लगा ओबीसी समुदाय

0

महाराष्ट्र का ओबीसी समुदाय अब एनसीपी नेता छगन भुजबल के समर्थन में राज्य भर में कई रैलियाँ करने वाला है। पिछड़े वर्ग के हितों की आवाज़ पुरजोर तरीके से उठाने वाले छगन भुजबल इस समय आय से अधिक संपत्ति के मामले में जेल में हैं।

भुजबल के समर्थन में होने वाली पहली रैली उनके गृहनगर नासिक में 3 अक्टूबर को  होगी। ओबीसी समुदाय इस आंदोलन को अब राज्यभर में फैलाने की तैयारी में है। भुजबल के करीबी कृष्णकांत कुदाले कहते हैं, “भुजबल को जानबूझकर निशाना बनाया जा रहा है, इसलिए ओबीसी समुदाय में नाराजगी है। इसके अलावा, मराठा समुदाय भी अलग से आरक्षण माँगने के बजाय ओबीसी कोटे में ही आरक्षण माँग रहा है, जिससे ओबीसी की हकमारी होगी।”

भुजबल समर्थक नेता और एनसीपी के सभासद धनंजय कामोदकर कहते हैं, "श्री भुजबल के साथ जो बरताव किया जा रहा है, वो सही नहीं है। वे चल तक नहीं पा रहे हैं, लेकिन उन्हें जमानत नहीं दी जा रही है। अब उन्हें इंसाफ दिलाने के लिए ओबीसी समुदाय को मैदान में उतरना ही पड़ेगा। "

पहले भुजबल की जाति माली समाज के लोगों ने ये रैलियाँ करने की योजना बनाई थी, लेकिन पंकजा मुंडे और भुजबल की मुलाकात के बाद अब अन्य ओबीसी जातियों ने भी इन रैलियों को सफल बनाने का निर्णय किया है।

गुरुवार को राज्य की महिला और बाल विकास मंत्री पंकजा मुंडे श्री भुजबल से मुलाकात कर चुकी हैं। दोनों ओबीसी नेताओं के बीच मराठों की आरक्षण की माँग समेत कई मुद्दों पर चर्चा हुई।

जानकारों का मानना है कि पंकजा मुंडे अपने पिता गोपीनाथ मुंडे की मौत के बाद महाराष्ट्र में अपने को ओबीसी चेहरे के रूप में स्थापित करने में लगी हैं। इस समय श्री मुंडे की मौत हो जाने और श्री भुजबल के जेल चले जाने के कारण, राज्य का ओबीसी समुदाय नेतृत्व विहीन महसूस कर रहा है।
 

सवर्णों को आरक्षण देने का फैसला वापस  

0

गुजरात की भाजपा सरकार ने सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थाओं में गरीब सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने का अपना निर्णय वापस ले लिया है। पाटीदार समुदाय के आरक्षण आंदोलन से परेशान पूर्व मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल ने निर्णय लिया था कि 6 लाख से कम सालाना आय वाले सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण दिया जाएगा।

इस आरक्षण को निलंबित करने की अधिसूचना सभी सरकारी विभागों को जारी कर दी गई है।
 
गुजरात उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय की एक पीठ भी सवर्णों को आरक्षण दिए जाने को असंवैधानिक बताते हुए खारिज कर चुकी है। फिलहाल ये मामला उच्चतम न्यायालय की वृहद पीठ के सामने लंबित था। सरकार ने पहले कहा था कि सवर्णों के 10 आरक्षण देने के अपने निर्णय के पक्ष में वह पूरी ताकत से लड़ेगी  लेकिन अब उसने पलटी मारते हुए ये निर्णय पलट दिया है।

विपक्ष के नेता शंकर सिंह वाघेला और कांग्रेस प्रवक्ता शक्तिसिंह गोहिल ने कहा है कि भाजपा सरकार ने जनता को गुमराह करने के लिए सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण का चारा फेंका था, जबकि वह अच्छी तरह से जानती थी कि यह संवैधानिक नहीं है। आरक्षण आर्थिक आधार पर दिया ही नहीं जा सकता।
​​​​​​​
कांग्रेस ने कहा है कि अगर सरकार सचमुच इस मामले में गंभीर है तो उसे विधानसभा में विधेयक लाना चाहिए।
 
पाटीदार अनामत समिति के नेता हार्दिक पटेल और अतुल पटेल पहले ही सरकार के इस आरक्षण के प्रस्ताव को खारिज कर चुके थे। अब इन नेताओं ने कहा है कि सरकार राज्य की तीन करोड़ सवर्ण आबादी के साथ खिलवाड़ कर रही है।
 

We must expand our notion of equality to encompass all around us: Teesta Setalvad

0


This is what IIMB’s website reported on Teesta Setalvad-

September, 2016: Teesta Setalvad, civil rights activist and journalist, urged young people to contribute towards building an inclusive and equal society.

As one of the speakers at Vista 2016, the annual business fest organized by the FII Club at IIM Bangalore, she remarked that India and the south Asian region had gained a lot in importance in the present world. “India has so much to offer in terms of multiplicity and plurality — that is the essence of Indian-ness. This idea of India was sought to be enshrined in our Constitution. The basis of the Preamble of the Constitution is the vision that every citizen of India — regardless of case, creed, community, etc. – has the right to equality before the law, and a non-discriminatory framework,” she said.

“We need to look within and see, are we able to expand our notion of equality to encompass all around us? Are we consciously or unconsciously ‘othering’ people?” she asked.

In this context, she also mentioned that media often did a disservice to causes as they “engaged in shouting matches rather than in fruitful and constructive exchange of opinions with diverse kinds of people”.

She went on to observe, “History has shown us that community memories dominate, tend to have a trickle-down effect on modern day politics as we resonate with our old prejudices, old pains. ‘Othering’ can be extremely dangerous for the country,” she said.

“Communalism, caste, untouchability, gender inequality… this is the dark underbelly of Indian society, and we need to confront this,” she said, adding that if one believed in democracy, then one had to pay heed to even the last dissenting voice.

(First Published: http://www.iimb.ernet.in/node/15354
We must expand our notion of equality to encompass all around us: Teesta Setalvad, IIMB Website)