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Exclusive: जब मालिक की घुड़की ने बदल दिया Zee News के चौधरी का DNA और याद आया ‘कामराज प्‍लान’!

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देश में ''राष्‍ट्रवादी पत्रकारिता'' के झंडाबरदार समाचार चैनल ज़ी न्‍यूज़ में जल्‍द ही कुछ बड़े बदलाव होने की ख़बर है। वैसे तो ज़ी न्‍यूज़ का दफ्तर किसी किले से कम नहीं है जहां पत्रकारों के मोबाइल ले जाने पर भी पाबंदी है, लेकिन ख़बर है कि सरकते-सरकते बाहर आ ही जाती है। सवा करोड़ की आबादी को राष्‍ट्रवाद की शिक्षा देने वाले इस चैनल में जुलाई के आखिरी दिनों में ऐसा क्‍या हुआ था कि इसके जेल-रिटर्न दबंग संपादक सुधीर चौधरी को वरिष्‍ठ प्रबंधन समेत इस्‍तीफे की पेशकश करनी पड़ गई? एक्‍स-श्रेणी सुरक्षा प्राप्‍त इस टीवी संपादक के डीएनए में बदलाव के क्‍या हैं कारण? मीडियाविजिल की खास रपट।


जुलाई के आखिरी सप्‍ताह में 26 तारीख की दोपहर सवा एक बजे ज़ी न्यूज़ के कर्मचारियों के पास एक आधिकारिक मेल आया। इसमें आदेश था कि चाहे काम हो चाहे छुट्टी, चाहे शिफ्ट हो अथवा नहीं, सभी कर्मचारियों को एक तय दिन ओपेनहाउस सेशन यानी मुक्‍त सत्र के लिए परिसर में मौजूद रहना है क्‍योंकि चेयरमैन की ओर से एक संवाद किया जाना है। देश में ज़ी के तमाम कार्यालयों में मौजूद कर्मचारियों को भी उस वक्‍त वीडियो कॉन्‍फ्रेंसिंग से जुड़ने का मेल भेजा गया। सुभाष चंद्रा के दफ्तर की ओर से अचानक आए इस फ़रमान ने तमाम अटकलों को जन्‍म दे दिया लेकिन उनकी उम्र ज्‍यादा नहीं टिक सकी क्‍योंकि पेशी के दिन सुभाष चंद्रा तो नहीं आए, अलबत्‍ता उनके विशेष दूत अमित जैन प्रकट हुए।   
 
अमित जैन ने समस्‍त कर्मचारियों के सामने खुलकर कहा कि मालिक चैनल के प्रदर्शन से खुश नहीं है और ढिलाई की तो किसी को भी बख्‍शा नहीं जाएगा, चाहे वे समीर अहलुवालिया हों या सुधीर चौधरी। जैन ने साफ़ कहा कि कर्मचारियों में ऐसी धारणा है कि नवीन जिंदल वाले मामले के कारण समीर अहलुवालिया को और सेलेब्रिटी स्‍स्‍टेटस के कारण सुधीर चौधरी को प्रबंधन कुछ नहीं कहेगा। उन्‍हें यह धारणा छोड़ देनी चाहिए क्‍योंकि कोई भी ''बियॉन्‍ड स्‍क्रूटिनी'' नहीं है और नतीजे सभी को भुगतने होंगे।
 
इस पर टीम लीडर की भूमिका निभाते हुए सुधीर चौधरी आगे आए और उन्‍होंने कहा कि वे ''कामराज प्‍लान'' अपनाने को तैयार हैं यानी प्रबंधन के सभी वरिष्‍ठ कर्मचारियों समेत वे अपना इस्‍तीफा देने को तैयार हैं। इस पर जैन ने कहा कि बात व्‍यक्तियों की नहीं है, प्रोसेस की है। चैनल में ख़बरों को लेकर जो प्रक्रिया अपनाई जा रही है, मालिक उससे असंतुष्‍ट हैं। ऑर्बिट शिफ्टिंग की प्रक्रिया के तहत समाचारों को अगले चरण में पहुंचाने की जो कवायद शुरू की गई थी वह दम तोड़ती नज़र आ रही है। 
 
बात आई और गई हो जाती, लेकिन अगले ही दिन पहले चेयरमैन के कार्यालय से और बाद में खुद अमित जैन की ओर से एक मेल कर्मचारियों को गया कि जैन शुक्रवार तक एचआर में पाए जाएंगे और कोई भी कर्मचारी उनसे खुलकर अपनी बात कह सकता है। अमित जैन ने तीन दिनों तक दफ्तर में डेरा डाल दिया। उन्‍होंने एलान किया कि कोई भी उनके पास आकर अपनी बात कह सकता है। इसके बाद उनके कमरे के आगे कर्मचारियों की लाइन लग गई। सूत्र बताते हैं कि सैकड़ों की संख्‍या में चैनल के कर्मचारियों ने उन्‍हें अपना प्रतिवेदन दिया। सूत्रों के मुताबिक अधिकतर शिकायतें न्‍यूज़रूम में घोषित पक्रिया और नीति को न अपनाए जान को लेकर रही, जिसमें सुधीर चौधरी के खिलाफ शिकायतें भी शामिल थीं। सुभाष चंद्रा के विशेष दूत जैन तो अब जा चुके हैं, लेकिन चैनल में अफ़वाहों का बाज़ार गर्म है। वे जाते-जाते कह गए हैं कि इसी साल कुछ बड़े बदलाव देखने को मिलेंगे। सभी शिकायतें गोपनीय रखी गई हैं।
 
दरअसल इस चैनल के मालिक सुभाष चंद्रा, सुधीर चौधरी के काम करने के तरीके से असंतुष्‍ट हैं। सूत्र बताते हैं कि बीते दो साल में मोबाइल जैमर, ऑर्बिट शिफ्टिंग, समाचार के अगले चरण पर शोध और नई इमारत पर चौधरी ने कम से कम 400 करोड़ रुपये खर्च करवाए हैं जिसका कोई खास रिटर्न देखने को नहीं मिल रहा। खर्च की गई राशि कुछ भी हो सकती है, यह केवल एक अनुमान है। चंद्रा को इस बात की भी चिंता है कि ''राष्‍ट्रवादी पत्रकारिता'' का आग़ाज़ कर के चौधरी ने दर्शकों को दो खेमों में बांट दिया है- अब या तो कोई दर्शक ज़ी न्‍यूज़ का प्रेमी है या फिर उसका कट्टर विरोधी। इस तरह चैनल की जो अतीत में साख थी, उसे काफी नुकसान पहुंचा है जिसे आने वाले दिनों में दुरुस्‍त करना मुश्किल हो सकता है। यह बात सुभाष चंद्रा को परेशान कर रही है।
 
इसी के चलते चंद्रा के विशेष दूत अमित जैन की वापसी के बाद चैनल पर ''क्रेडिबिलिटी रिपोर्ट'' नाम का एक बैंड इस हफ्ते शुरू किया गया है। इस बैंड में दिखायी जा रही ख़बर की विश्‍वसनीयता और गुणवत्‍ता पर मुहर लगाई जाती है। इसे तय करने के लिए चार पैमाने रखे गए हैं। अगर वे चारों पैमाने सही हैं, तो खबर दिख रहा प्रोड्यूसर उतने ही खानों पर सही का निशान लगाएगा और स्‍क्रीन पर 'आइएसआइ मार्क' छाप बैंड प्रकट हो जाएगा। दिलचस्‍प यह है कि खबर की गुणवत्‍ता कोई और नहीं तय कर रहा, ये प्रमाणपत्र खुद चैनल ही अपनी खबर को दे रहा है।
 
एक और समस्‍या चैनल के भीतर भ्रष्‍टाचार और वित्‍तीय अनियमितताओं को लेकर है। पिछले दिनों चैनल के आइटी प्रमुख को भ्रष्‍टाचार के चलते बर्खास्‍त कर दिया गया था। उससे पहले चैनल से दो सीईओ निकाले जा चुके हैं जिनमें एक पर भ्रष्‍टाचार के आरोप थे। अब चूंकि रिश्‍वत कांड में सुधीर चौधरी का दोबारा जेल जाना आसन्‍न है, इसलिए मालिक का शिकंजा कसता जा रहा है। मीडियाविजिल ने 28 जुलाई को एक ख़बर प्रकाशित की थी जिसका शीर्षक था ''सुधीर चौधरी फिर जा सकते हैं जेल…।'' हालिया घटनाक्रम को देखने का एक नजरिया यह भी हो सकता है।

Courtesy: MediaVigil.com
 

एक शहरी, हिंदू सवर्ण, पुरुष का कबूलनामा

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मैं एक शहरी, उत्तर भारतीय, सवर्ण, हिन्दू, मध्यम वर्ग, का पुरुष, हूँ

आज मैं आप सब के सामने अपने दिमाग की एक एक परत प्याज के छिलके की तरह खोल कर दिखाऊंगा

हमारे परिवारों में सब कुछ बहुत ही स्थायी और निश्चित होता है

हमारा धर्म संस्कृति परम्पराएँ सब बिलकुल निश्चित होती हैं

हमारे घरों में कोई भी धर्म या परम्पराओं पर कोई सवाल नहीं उठाता

हमारा धर्म रीति रिवाज़ सब कुछ सबसे अच्छा और पवित्र माना जाता है

हम मानते हैं कि हमारा धर्म सबसे पुराना , सबसे श्रेष्ठ और सबसे वैज्ञानिक है

हमारे घरों में दुसरे धर्म वालों और दूसरी जाति वालों के लिए एक तिरस्कार का भाव होता है

हम लोगों को शिक्षा , इलाज नौकरी , व्यापार के लिए कोई बड़ी जद्दोजहद नहीं करनी पड़ती

हमारे नाते रिश्तेदार , दोस्त , परिवार वाले हमारे मदद के लिए हर जगह मिल ही जाते हैं

हम लोग किसी बड़ी तकलीफ का नामोनिशान भी नहीं जानते

हमारी राजनैतिक सोच की सीमा सिर्फ कांग्रेस या भाजपा में से किसी एक पार्टी को चुनाव में वोट देने तक की ही होती है

हमारे घरों में कभी भी कश्मीरी मुसलमानों की तकलीफों , फौज के ज़ुल्मों , पूर्वोत्तर के राज्यों की तकलीफों , बस्तर के आदिवासियों की तकलीफों या दलितों के साथ भेदभाव का कोई ज़िक्र नहीं होता

अगर इन जगहों का ज़िक्र हमारे परिवारों में होता ही है तो हम लोग सरकार की , सेना की और पुलिस की तरफदारी में ही बोलते हैं

असल में हमारी राजनीति यही है कि हमारी जो सुखों से भरी ज़िन्दगी है उसमें कोई रुकावट नहीं आनी चाहिए

हमें लगता है कि हम इसलिए सुखी हैं क्योंकि पुलिस और सेना हमारे हितों की रक्षा के लिए आवाज़ उठाने वालों को मार कर हम तक पहुँचने से रोक रही है

हमारे घरों में आदिवासियों , दलितों कश्मीरियों , मजदूरों , पूर्वोत्तर के राज्यों , विभिन्न लैंगिक समुदायों के लिए आवाज़ उठाने वालों को कम्युनिस्ट ,देशद्रोही ,विदेशी एजेंट ,आतंकवादी कहा जाता है

हम लोग ही इस देश की राजनीति , धर्म , संस्कृति की मुख्यधारा हैं

हांलाकि इस मुख्यधारा में असली भारत शामिल ही नहीं है

असली भारत यानी करोड़ों , आदिवासी ,दलित , पूर्वोत्तर , कश्मीरी , भारत की मुख्यधारा की राजनैतिक ,धार्मिक ,सांस्कृतिक धारा का हिस्सा ही नहीं हैं

हमीं लोग इस देश की विकास की दिशा तय करते हैं , हमीं इस देश की अंतरात्मा हैं , हमीं इस देश की संस्कृति हैं

हमारी धार्मिक आस्थाएं ही इस देश की सरकार की धार्मिक आस्थाएं हैं

हम कह दें तो सरकार गोरक्षा के काम में लग जाती है भले ही पूरे दक्षिण भारत , पूर्वोत्तर , आदिवासी इलाकों में करोड़ों भारतीय गोमांस खाते हों

संघ, भाजपा कांग्रेस समेत सभी मुख्यधारा पार्टियां हमारे हिसाब से ही अपनी राजनीति तय करती हैं

और अगर कोई पार्टी सामाजिक न्याय या आर्थिक न्याय के नाम पर हमारे हितों के खिलाफ काम करने की कोशिश करती है

तो हम उसे गालियाँ देकर इतना ज्यादा देशद्रोही और बदमाश घोषित कर देते हैं कि उन्हें घबरा कर हमारी लाइन में आना ही पड़ता है

Courtesy: Facebook