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UN Makes History on Sexual Orientation, Gender Identity

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Human Rights Body Establishes an Independent Expert

The United Nations Human Rights Council, in a defining vote, adopted a resolution on June 30, 2016, on “Protection against violence and discrimination based on sexual orientation, and gender identity,” to mandate the appointment of an independent expert on the subject. It is a historic victory for the human rights of anyone at risk of discrimination and violence because of their sexual orientation or gender identity, a coalition of human rights groups said today.

This resolution builds upon two previous resolutions, adopted by the Council in 2011 and 2014.


 

Ruling Selfie Culture Touches Bizarre Limits

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Rajasthan Women Commission member takes selfie with rape survivor, OUTRAGE FORCES HER TO QUIT


The chairperson Suman Sharma is also in the selfie along with the member

The Press Trust of India (PTI) reported this morning that a selfie clicked by the member of Rajasthan State Commission for Women with a rape victim courted controversy prompting the chairperson of the commission to seek a written explanation. By late evening the outrage had forced Suman Sharma to quit

Interestingly, the Chairperson Suman Sharma is also in the selfie along with the member Somya Gurjar. The selfie was clicked by Gurjar on Tuesday when she along with chairperson had gone to meet the rape victim in Mahila police station (Jaipur North). 

"I was talking to the victim when the member of the commission clicked these selfies. I am not aware when she (Somya Gurjar) clicked. I do not favour such act and has sought a written explanation from her. She has been asked to submit the explanation by tomorrow," Sharma told PTI. 

Interestingly, two pictures, in which Gurjar is seen clicking the selfie, got viral on WhatsApp on Wednesday. Both Gurjar and Sharma are in the frame of the selfie and the pictures of the act were clicked by someone standing near them in the chamber of the police officer. 

In the pictures, Gurjar is seen holding the mobile device and the Chairperson is also looking in the frame (of the selfie). 

The selfie culture has been pioneered by Narendra Modi ever since he was chief minister of Gujarat and encouraged the cult following around him. The famed victory sign as he emerged out of the voting booth in Vadodara resulted in a court challenge to the ethics of the move.

A year to the day today, June 30, 2015, the ‘Mann Ki Baat’ of Narendra Modi, took Twitter by storm on Sunday when he asked people to post selfies with their daughters. The hashtag #SelfieWithDaughter soon started trending worldwide, with several fathers as well as mothers tweeting pictures of themselves with their daughters.

A prompt brake to the selfie storm came when, daughter of slain parliamentarian, Ahsan Jafri shared her photograph with her revered father. Nishrin Jafri is the daughter of Ahsan Jafri, a former Congress MP who was brutally murdered in the Gulbarg society massacre in 2002 along with 69 Muslims by a Hindu mob.  Ehsan Jafri’s wife Zakia Jafri continues to hold the then Gujarat chief minister Narendra Modi for being complicit in the riots.  

In a shocking incident in Alwar district, a 30-year-old woman was allegedly raped by her husband and his two brothers who tattooed expletives on her forehead and hand for not giving Rs 51,000 as the dowry.
 
On Monday, an FIR was registered under sections of 498-A (Protection of Women Against Domestic Violence Act), 376 (punishment for rape) and 406 (punishment for criminal breach of trust) of IPC and an investigation in the case has been initiated.

ऑपरेशन ‘दंगा’ : आजतक की आंतरिक जांच शुरू होने से पहले ही नौकरी छोड़ गए थे दीपक शर्मा और दोनों रिपोर्टर

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मुजफ्फरनगर दंगों के स्टिंग ऑपरेशन के संबंध में उत्तर प्रदेश विधानसभा द्वारा गठित जांच समिति के समक्ष टीवी टुडे चैनल समूह के संपादकीय व प्रबंधकीय अधिकारियों ने जो साक्ष्य प्रस्तुत किए हैंं, उससे टी वी चैनलों के न्यूज रूम के भीतर के कामकाज की संस्कृति जाहिर होती है। दिनांक 17 सितम्बर 2013 को "आज तक" एवं "हेड लाइन्स टुडे" चैनलों पर मुजफ्फरनगर दंगों के विषय में प्रसारित किये गये स्टिंग ऑपरेशन में सदन के एक वरिष्ठ सदस्य/मंत्री मोहम्मद आजम खां के विरुद्ध लगाये गये आरोपों के परिप्रेक्ष्य में यह जांच समिति गठित की गई थी। जन मीडिया के सौजन्‍य से मीडियाविजिल जांच समिति के प्रतिवेदन के उस संपादित अंश को प्रस्तुत कर रहा है जिसमें न्यूज रूम के भीतर के कामकाज की संस्कृति उजागर होती है। पहली किस्‍त में स्टिंग ऑपरेशन के पीछे की राजनीति पर पोस्‍ट के बाद दूसरी किस्‍त में हमने दीपक शर्मा और दो रिपोर्टरों के बयानात प्रस्‍तुत किए और तीसरी किस्‍त में चैनल हेड, इनपुट हेड और आउटपुट हेड के बयान प्रस्‍तुत किए गए। अब पढ़ें कि चैनल के एंकरों और मालिक अरुण पुरी ने जांच समिति के समक्ष क्‍या बयान दिए हैं। 

 


आज तक के एंकर्स

'टी.वी. टुडे नेटवर्क' के उपर्युक्त पदाधिकारियों के अतिरिक्त एंकरों का मौखिक साक्ष्य लिया गया जिन्होंने इस स्टिंग ऑपरेशन को 'टी.वी. टुडे नेटवर्क' के "आज तक" तथा "हेड लाइन्स टुडे" चैनलों पर प्रसारित किया था। पुण्य प्रसून वाजपेयी जिनके द्वारा स्टिंग ऑपरेशन "आज तक" चैनल पर प्रसारित किया गया था, उन्होंने यह कहा है कि स्टिंग ऑपरेशन के विषय में एडिटोरियल बोर्ड निर्णय लेते हैं। चैनल में खबर लाने का कार्य इऩपुट का होता है और जो दिखाया जाता है, वह आउटपुट का होता है। न्यूज रीडर के सामने जो लिखा होता है वह उसको पढ़ता है लेकिन एंकर के सामने कुछ भी लिखा नहीं होता है। वाजपेयी का यह साक्ष्य अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इससे यह परिलक्षित होता है कि एंकर अपने विवेक से भी बहुत सी बातें प्रसारण के समय कहता है। उन्होंने यह भी कहा है कि जो तथ्य उनके सामने आते हैं उनके आधार पर इन्टरप्रिटेशन (निर्वचन) एंकर के रूप में करते हैं। उन्होंने यह स्वीकार किया कि स्टिंग ऑपरेशन के प्रसारण में मुलायम सिंह का नाम नहीं लेना चाहिए था। मोहम्मद आजम खान के विषय में जो प्रश्न पूछा गया है उसके विषय में समिति का क्रिटिकल होना जायज है तथा यदि वह स्वयं रिपोर्टर की जगह होते तो उनका तरीका भिन्न होता। इस प्रकार से उन्होंने यह स्वीकार किया कि रिपोर्टर ने जिस प्रकार से प्रश्न पूछा था वह उपयुक्त नहीं था। उन्होंने यह कहा कि "अब क्या होना चाहिए कैसे कह दें लेकिन जो चीज हुई हैं उनके साथ खड़े हैं। जो चीज हो रही हैं एडिटोरियली हम रिपोर्ट नहीं कर सकते जो आपको नागवार लगा है हम भी उसको बिना अधिकारियों के बोले नहीं कह रहे हैं। आपका ऐनेलिसिस बिल्कुल सही है, हम उससे इंकार नहीं कर रहे हैं।" इस प्रकार वाजपेयी ने परोक्ष रूप से यह स्वीकार किया कि समिति द्वारा जो शंकाएं प्रश्नगत स्टिंग ऑपरेशन के प्रसारण के विषय में उठायी गयी हैं वह आधारविहीन नहीं हैं।

वाजपेयी द्वारा अपने साक्ष्य में यह भी स्वीकार किया गया कि एडिटोरियली जो रिपोर्ट चल रही थी उसका प्रसारण जो भी एंकर के जेहन में आया एंकर ने उसको सामने रखा। इससे स्पष्ट हैं कि वाजपेयी यह मानते हैं कि एंकर स्वविवेक से भी प्रसारण के समय विभिन्न तथ्यों को प्रदर्शित करते हैं। वाजपेयी द्वारा अपने साक्ष्य में यह भी कहा गया कि मा. सर्वोच्च न्यायालय को इस सम्बन्ध में मार्गदर्शी सिद्धांत बनाने चाहिए।
 
राहुल कंवल

राहुल कंवल ने यह स्पष्ट किया कि स्क्रिप्ट तैयार करने, उसकी एडिटिंग करने एवं उसको अंतिम स्वरूप देने में चैनल हेड की भूमिका होती है। कंवल ने यह भी स्वीकार किया कि मोहम्मद आजम खां को इस विषय में आरोपित करने से पूर्व उनकी प्रतिक्रिया/पक्ष लिया जाना चाहिए था, परन्तु चूंकि वह उपलब्ध नहीं हो सके, अतः उनका पक्ष नहीं लिया गया है। यह पूछे जाने पर कि स्टिंग ऑपरेशन के दौरान रिपोर्टर्स ने यह कहा था कि "मेरे ख्याल से इसमें मोहम्मद आजम खां का दबाव है", उपयुक्त है या नहीं। तो राहुल कंवल द्वारा यह कहा गया है कि "ख्याल के आधार पर ही" एन्वेस्टीगेशन होता है एवं पत्रकार पूछता है।    

राहुल कंवल मैनेजिंग एडिटर, हेड लाइन्स टुडे जिन्होंने कि हेडलाइन्स टुडे पर प्रश्नगत स्टिंग ऑपरेशन को एंकर के रूप में प्रसारित भी किया था, द्वारा अपने मौखिक साक्ष्य में यह कहा गया कि स्टिंग ऑपरेशन में रिपोर्टर, एस.आई.टी टीम के लोग, इनपुट के लोग एवं आउटपुट के लोग शामिल होते हैं। कंवल द्वारा यह कहा गया कि उनका सम्बन्ध इस कार्यक्रम में केवल अंग्रेजी में जो प्रोग्राम दिखाया था उससे है वह उसी से सम्बन्धित प्रश्नों का जवाब दे पाएंगे। राहुल कंवल ने अपने मौखिक साक्ष्य में मुख्य रूप से यह कहा कि स्टिंग ऑपरेशन के दौरान जो तथ्य उभरकर आये हैं उनकी कड़ियां जोड़कर उन्होंने उसको प्रस्तुत किया। राहुल कंवल अपने साक्ष्य में यह नहीं बता पाये कि विभिन्न बातें जो उन्होंने प्रसारण के दौरान एंकर के रूप में कही हैं उनके पुख्ता साक्ष्य क्या है? राहुल कंवल द्वारा यह पूछे जाने पर कि उन्होंने राजनैतिक दबाव की बात कैसे कही तो यह उत्तर दिया कि स्टिंग ऑपरेशन के विभिन्न तथ्यों से उन्होंने यह 'कॉनक्लूजन' निकाला कि पुलिस को शिथिलता बरतने के लिए राजनैतिक दबाव था। प्रथम सूचना रिपोर्ट को गलत तरीके से दर्ज कराये जाने के लिए ऊपर से दबाव था इस बात के विषय में भी उन्होंने कहा कि यह 'कॉनक्लूजन' उन्होंने स्टिंग ऑपरेशन में उजागर हुए विभिन्न प्रश्नों के उत्तर से निकाला था। राहुल कंवल से जब यह पूछा गया कि यह उनका 'इनफ्रेन्स' है तो उन्होंने बल देकर यह कहा कि यह उनका 'इनफ्रेन्स' नहीं वरन् 'कॉनक्लूजन' है।

राहुल कंवल द्वारा अत्यंत बल देकर यह बात कही गयी कि उन्होंने विभिन्न कड़ियां जोड़कर यह 'कॉनक्लूजन' निकाले हैं, परन्तु उनके द्वारा ऐसा कोई 'कॉनक्लूसिव' साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया जो स्टिंग ऑपरेशन में ऐसी बातें कहने हेतु उजागर हुए हों। राहुल कंवल द्वारा यह स्वीकार किया गया कि मोहम्मद आजम खान के विषय में रिपोर्टर द्वारा जो प्रश्न पूछे गये उसका अन्दाज सही नहीं था। यदि वह स्वयं इस प्रश्न को पूछते तो वह अलग अन्दाज में पूछते। राहुल कंवल के अनुसार इसमें केवल अन्दाज का फर्क है। उनसे पूछने पर राहुल कंवल द्वारा यह कहा गया कि जो पुलिस प्रशासन कह रहा था उसकी कड़ियां जोड़कर जो तस्वीर बनती है उसके आधार पर उन्होंने यह कहा कि ऊपर से दबाव के कारण अभियुक्तों को रिहा किया गया। राहुल ने अपने मौखिक साक्ष्य में यह कहा कि सभी अधिकारियों के जो अभिकथन स्टिंग ऑपरेशन के दौरान आये हैं उनको जोड़कर देखने से यह तस्वीर बनती है कि उस समय ऊपर से दबाव था।

राहुल कंवल से जब यह पूछा गया कि उन्होंने स्टिंग ऑपरेशन के प्रसारण के दौरान यह बात कैसे कही कि मोहम्मद आजम खान द्वारा दरोगा को फोन किया गया था तो उन्होंने यह कहा कि चूंकि जिस दरोगा से यह प्रश्न पूछा गया था उसका उत्तर 'बिल्कुल ठीक है, बिल्कुल ठीक है' था। अतः उन्होंने इस संदर्भ में प्रस्तुतिकरण किया। राहुल कंवल द्वारा यह कहा गया कि हो सकता है कि मोहम्मद आजम खान का फोन आया हो तथा उनके पास जो स्क्रिप्ट एवं आधार हैं उसी के आधार पर स्टोरी खड़ी की गयी। इस प्रकार राहुल कंवल द्वारा अपने साक्ष्य में यह स्वीकारा गया कि राजनैतिक दबाव अथवा मोहम्मद आजम खान द्वारा निर्देश दिये जाने के विषय में उनके पास कोई पुख्ता साक्ष्य नहीं थे वरन् उन्हें स्टिंग ऑपरेशन में दिये गये विभिन्न तथ्यों के आधार पर अपना स्वयं का 'कॉनक्लूजन' निकाला था। राहुल कंवल द्वारा यह स्पष्ट किया गया कि इस स्टिंग ऑपरेशन का प्रसारण बहुत सोच-समझ कर किया गया है तथा इसमें सभी सावधानियां बरती गयी हैं।

राहुल कंवल से जब यह पूछा गया कि उन्होंने यह बात किस आधार पर कही कि अभियुक्तों को मोहम्मद आजम खान के कहने पर रिहा कर दिया गया तो उन्होंने यह कहा कि जब एक के बाद तथ्यों को जोड़ा तो उससे यह 'कॉनक्लूजन' निकल रहा है। इस पर राहुल कंवल के मौखिक साक्ष्य में यह स्पष्ट आया है कि उन्होंने विभिन्न तथ्यों के आधार पर अपना 'कॉनक्लूजन' निकाला एवं तदनुसार स्टिंग ऑपरेशन को प्रसारित कर दिया। राहुल कंवल द्वारा अपने मौखिक साक्ष्य में यह भी कहा गया कि स्टिंग ऑपरेशन के मामले में प्रभावित पक्ष का वर्जन प्रसारण के दौरान ही लिया जाता है क्योंकि यदि उससे पहले उनका वर्जन लिया जायेगा तो स्टिंग ऑपरेशन को प्रसारित किया जाना मुश्किल होगा। राहुल कंवल द्वारा यह भी कहा गया कि प्रश्नगत स्टिंग ऑपरेशन में जो साक्ष्य अधिकारियों के वक्तव्यों के माध्यम से आये थे उनके कोरेबोरेशन (समर्थन) की आवश्यकता नहीं थी।

गौरव सावंत

"हेड लाइन्स टुडे" के एक एंकर गौरव सावंत द्वारा अपने मौखिक साक्ष्य में मुख्य रूप से यह कहा गया है कि उनकी भूमिका एंकर के रूप में स्टिंग ऑपरेशन के प्रसारण की थी तथा जो भी बातें उन्होंने कहीं उसके बारे में उनके चैनल के सम्पादक द्वारा लिये गये निर्णय के अनुसार लिखा हुआ दिया जाता है जिसको कि वे पढ़ते हैं। गौरव सावंत से पूछे जाने पर स्वयं के विवेक का प्रयोग करने के विषय में संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाये। 'कतिपय' शब्द जो उनके द्वारा प्रसारण के दौरान साम्प्रदायिकता के विषय में बोले गये थे उसके बारे में गौरव सावंत ने यह कहा कि जो साक्ष्य स्टिंग ऑपरेशन के दौरान उजागर हुए थे उसके आधार पर उन्होंने वह प्रस्तुतिकरण किया था। गौरव सावंत द्वारा यह स्वीकार किया गया कि जो कुछ भी उन्होंने एंकर के रूप प्रस्तुतिकरण के सम्बन्ध में बोला है उसके लिए वह स्वयं जिम्मेदार है जब गौरव सावंत से यह पूछा गया कि इस बारे में उन्हें कोई साक्ष्य दिया गया कि लखनऊ से किसी ऊंचे स्तर से फोन आया तो उन्होंने कहा कि मुझे इस बारे में कोई साक्ष्य नहीं दिये गये थे।
गौरव सावंत द्वारा अपने साक्ष्य में यह भी स्वीकार किया गया कि खबर रोकी नहीं जानी चाहिए परन्तु हर चीज को वैरीफाई करके ही दिखाया जाना चाहिए। गौरव सावंत से समिति द्वारा जब यह पूछा गया कि उन्होंने सरकारी सिस्टम को कटघरे में खड़ा किया तथा उत्तरप्रदेश विधानसभा के एक वरिष्ठ सदस्य का नाम लिया जबकि स्टिंग ऑपरेशन के दौरान किसी अधिकारी ने ऐसा नहीं कहा कि सरकार दंगाइयों से मिल गयी थी तो क्या दिखाने से पहले इस पर विचार नहीं किया जाना चाहिए था तो गौरव सावंत द्वारा यह स्वीकार किया गया कि उनके वरिष्ठों द्वारा इस पर विचार जरूर करना चाहिए था।

पद्मजा जोशी

'हेड लाइंस टुडे' की एक अन्य एंकर जिन्होंने प्रश्नगत स्टिंग ऑपरेशन को प्रसारित किया था पद्मजा जोशी द्वारा अपने मौखिक साक्ष्य में कहा गया कि स्टिंग ऑपरेशन का निर्णय एस.आई.टी के एडिटर के स्तर पर होता है तथा उन्हें मात्र एंकरिंग करने के लिए कहा जाता है। एंकर की सहमति नहीं ली जाती उसे निर्देश दिये जाते हैं। जोशी द्वारा यह भी कहा गया कि उनको जो स्क्रिप्ट दी जाती है उसी के आधार पर वह प्रस्तुतिकरण करती हैं। यह पूछे जाने पर कि क्या वह एंकर के रूप में अपने विवेक का प्रयोग नहीं करती तो जोशी द्वारा उत्तर दिया गया कि "जी नहीं, वह अपने वरिष्ठों पर विश्वास करती है"। जब जोशी से यह पूछा गया कि उनको नहीं लगता कि स्टिंग ऑपरेशन में कुछ ऐसी बाते हैं जो आधारविहीन हैं और जिसके कारण दंगा बढ़ सकता है तो इस बारे में उन्होंने स्वीकार किया कि भविष्य में इसको देखा जा सकता है। जोशी द्वारा अधिकतर प्रश्नों का यही उत्तर दिया गया कि उनको जो निर्देश अथवा स्क्रिप्ट मिलती है उसी के अनुसार वह कार्य करती है यहां तक कि वह स्वयं के विवेक का इस्तेमाल नहीं करती हैं।

मुख्य कार्यपालक अधिकारी

" टी.वी. टुडे " नेटवर्क के मुख्य कार्यपालक अधिकारी आशीष बग्गा ने यह बताया कि उनकी इस पूरे मामले में कोई भूमिका नहीं थी। बग्गा के अनुसार स्टिंग ऑपरेशन में सभी निर्णय चैनल हेड/चैनल एडिटर लेते हैं तथा रिपोर्टर्स एवं करेसपोंडेंस कवरेज करके चैनल एडिटर को सामग्री देते हैं। उन्होंने यह स्पष्ट रूप से कहा कि प्रश्नगत स्टिंग ऑपरेशन किये जाने से पूर्व उनकी अनुमति नहीं ली गई थी। प्रसारण से पूर्व स्टिंग ऑपरेशन को देखने की बात को भी बग्गा ने नकारा है। बग्गा के अनुसार वह मुख्य रूप से ग्रुप के व्यापार का पर्यवेक्षण करते हैं। बग्गा ने अपने साक्ष्य में इस बात की भी अनभिज्ञता प्रदर्शित की कि स्टिंग ऑपरेशन में कतिपय राजनैतिक व्यक्तियों के विरुद्ध आरोप लगाये गये हैं। बग्गा ने दीपक शर्मा के इस कथन को गलत बताया कि मुख्य कार्यपालक अधिकारी से प्रश्नगत स्टिंग ऑपरेशन की अनुमति ली गई थी। बग्गा के अऩुसार इस प्रकार की अनुमति एवं क्लीयरेंस चैनल हेड द्वारा दी जाती है। बग्गा ने यह स्वीकार किया है कि यदि प्रश्नगत स्टिंग ऑपरेशन मार्गदर्शी सिद्धान्तों के विरुद्ध है तो वह उपयुक्त नहीं है। बग्गा ने यह स्वीकारा है कि स्टिंग ऑपरेशन में टेक्नीकली जो गलत बातें कही गयीं हैं वह गलत मानी जायेंगी, परन्तु उनका स्पष्टीकरण एडिटोरियल वाले ही दे सकते हैं। जब बग्गा से यह ज्ञात किया गया कि यदि स्टिंग ऑपरेशन में गाइडलाइन्स का अनुपालन नहीं किया गया है तो आपके स्तर से प्रस्तुत प्रकरण में क्या एक्शन लिया गया है, तो उन्होंने कहा कि संबंधित व्यक्ति अब कम्पनी में कार्यरत नहीं है। बग्गा ने यहां स्वीकार किया कि रॉ फुटेज को मूल रूप से उपलब्ध न कराया जाना उपयुक्त नहीं था, परन्तु इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि इस तथ्य की उनको समुचित जानकारी नहीं है। 

अरूण पुरी, प्रबंध निदेशक,

समिति द्वारा अरूण पुरी, प्रबंध निदेशक, "टी.वी टुडे नेटवर्क" को समिति के समक्ष साक्ष्य हेतु उपस्थित होने के निर्देश दिये गये थे। अरूण पुरी द्वारा समिति के समक्ष एक अनुरोध पत्र प्रेषित किया गया, जिसमें कि उन्होंने यह निवेदन किया कि वह अपने दायित्व कम्पनी की नीतियों के अनुसार निभाते हैं। कम्पनी के विभिन्न कामों को कार्यरूप में परिणत करने की जिम्मेदारी कम्पनी के उन अधिकारियों एवं कर्मचारियों को सौंपी गई है, जिन्हें इस काम के लिए विशेष रूप से कम्पनी ने नियुक्त किया है। पुरी के अनुसार वह समाचार प्रसारण समेत कम्पनी के अन्य दैनिक कामों में सीधे तौर पर सम्मिलित नहीं होते हैं, क्योंकि इंडिया टुडे ग्रुप की गतिविधियां इतनी विस्तृत हैं कि उनके लिए ऐसा किया जाना सम्भव नहीं है। पुरी के अनुसार टी.वी.टी.एन के इलेक्ट्रॉनिक न्यूज मीडिया में भी कम्पनी ने विशेष जिम्मेदार लोगों को नियुक्त किया है, जिन्हें आधिकारिक तौर पर निर्णय लेने की शक्ति प्रदान की गई है।

अरूण पुरी द्वारा अपने पत्र में समिति को यह अवगत कराया गया है कि स्टिंग ऑपरेशन के मामले में टी.वी.टी.एन एक विस्तृत प्रक्रिया का पालन करता है। टी.वी.टी.एन सबसे पहले यह सुनिश्चित करता है कि स्टिंग ऑपरेशन जनहित में होना चाहिए। स्टिंग ऑपरेशन की संस्तुति से पहले मैनेजिंग एडिटर के आदेश पर इनपुट एडिटर स्टिंग ऑपरेशन की व्यावहारिकता की समीक्षा करता है। एक बार अच्छी तरह से सबूतों की जांच-परख और विश्लेषण के बाद पत्रकारिता के मानदण्डों के अनुरूप संवाददाताओं को स्टिंग ऑपरेशन करने की इजाजत दी जाती है। पुरी ने यह भी अवगत कराया है कि स्टिंग ऑपरेशन को सम्पादित करने के लिए टी.वी.टी.एन ने स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीम (एस.आई.टी.) का गठन किया है। एस.आई.टी. द्वारा स्टिंग ऑपरेशन सम्पादित करने के पश्चात् रॉ फुटेज को कॉपी किया जाता है और उसे उसी रूप में आउटपुट हेड के पास भेजा जाता है। पुरी के अनुसार अंतिम रूप से स्टिंग ऑपरेशन को प्रसारित करने की संस्तुति एस.आई.टी एडिटर देता है। उन्होंने यह भी बताया कि एस.आई.टी. के एडिटर दीपक शर्मा को इस तरह के अधिकार दिये गये थे तथा उन्हीं की देखरेख में प्रश्नगत स्टिंग ऑपरेशन सम्पन्न हुआ था। पुरी ने पत्र के माध्यम से यह भी अवगत कराया कि इस मामले में एंकर की भूमिका सीमित होती है। एंकर को स्क्रिप्ट पढ़ने के लिए दी जाती है, परन्तु पुरी ने यह भी कहा कि शो में लाइव चैट के दौरान एंकर अपने विवेक से बोलता है।

अरूण पुरी ने समिति को यह भी सूचित किया है कि प्रश्नगत स्टिंग ऑपरेशन के संबंध में टी.वी.टी.एन ने भी एक आन्तरिक जांच शुरू की थी। इससे पहले कि यह जांच पूरी होती, दीपक शर्मा (एस.आई.टी.) कम्पनी का साथ छोड़ गये तथा इस प्रकरण से संबंधित 02 अन्य रिपोर्टर्स भी कम्पनी से सेवामुक्त हो चुके हैं। पुरी ने यह बताया है कि वह रोजाना के कामकाज में सम्मिलित नहीं होते हैं, परन्तु समिति को उनकी ओर से पूरा सहयोग प्रदान किया जायेगा। पुरी ने यह भी कहा है कि उन्होंने सदैव यह प्रयास किया है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को इस प्रकार से प्रयोग किया जाये जिससे कि विधायिका या विधायिका के किसी सदस्य की अवमानना न हो।

Courtesy: mediavigil.com

 

24 Rights Groups Petition World Bank: Ensure Safeguards & Peoples Participation

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In a cogent letter, the signatories representing affected communities have opposed the dilution of safeguards in favour of Businesses and Violation of Community Rights

Twenty four groups working on environmental, labour and human rights have written to the Executive Directors of World Bank not to dilute the environmental and social safeguards in place to protect natural resources even as the President of the World Bank visits India to explore new financing opportunities. 

India has been the largest recipient of World Bank loans in the history of the World Bank. A corollary to this has been that it is many of World Bank projects that have caused severe displacement, environmental destruction and social fragmentation. These include the much debated Sardar Sarovar Project in the Narmada river, the Mumbai Urban Transport Project and very recently the Tata Mundra MEGA power coal project. 

Commenting on the two drafts of the Safeguard Polices put forward by the WB, this collective of signatories has stated that the drafts clearly demonstrate that all the concerns expressed in their letter to the Bank – about the intentions being wrong, the process being flawed and the false propaganda around ‘participation’ have proven true. The end result remains the same – to push investments in all possible sectors, with scant regard for social and environmental impacts and without any democratic and participatory processes.

The letter also said that, “The World Bank projects are not only a contributor to the climate change situation, but the projects are also destroying the capacity of the people to adapt to changing climate.”
 Prominent among the signatories are the National Alliance of People’s Movements (NAPM), International Rivers, South Asia Network on Dams, Rivers and People, North East Peoples Alliance, All India Union of Forest Working People, National Domestic Workers Union and Narmada Bachao Andolan(NBA).

 As the World Bank clearly steps up its intentions to finance Indian projects, the Indian people would like to remind them to keep the poor and the planet at the core of development and not to dilute any existing safeguards. 

The World Bank initiated the safeguards after large scale protests financed by them including the Narmada Project.  The safeguard review was initiated by World Bank in 2012 as part of its strategic reorganisation. The earlier drafts have been criticised by a wide range of groups including UN experts, local communities, civil society organisation etc. 

Full text of letter

June 25, 2016

Dear Executive Directors,
World Bank

We are representatives of people’s movements, civil society organisations, and other concerned citizens from India, who have been engaged with, or monitoring World Bank financed projects for the past many years.

In April 2013, around 60 of us jointly issued a statement titled ‘Sham Consultations: No More’ (appended) during the first phase of the Safeguard consultations. We have detailed our opposition to the consultations, citing examples of different projects to establish that “the so-called environmental and social safeguards of the Bank are nothing more than a veneer of protection to mask the real impacts of this dangerous financial institution which works only to increase profitability of its shareholders and furthering the cause of the extractive-accumulative large capital – at any cost.”

While we stand by that, and despite many voices of opposition and concern from different parts of the globe, the Bank continued it process of consultations, without addressing the issues we collectively raised, and brought out two drafts of it. The drafts clearly demonstrated all that we said in our letter – the intentions are wrong, the process flawed and the purpose of this is to fool people, giving them a false sense of participation. The end result remains the same – to push investments in all possible sectors, with scant regard for social and environmental impacts and without any democratic and participatory processes. The World Bank projects are not only a contributor to climate change situation, the projects are also destroying the capacity of the people to adapt to changing climate.

To add insult to injury, our government has advocated for weakening of the policies claiming that these Safeguard policies are too costly and time-consuming to implement; inefficient when national systems could more quickly and easily be applied; and undermine national authority and sovereignty by putting harsh conditions on Bank lending.

We do not share this view with our government. Our opposition was on different grounds and it was not to weaken the policies.

We believe that unless there are genuine efforts to learn from past experiences, the consultations are more inclusive and participatory, and keeping people and environment in the core of any planning, these policies will only further disempower the people, rob them off their natural resources and push them to destitution.

Yours truly,
National Alliance of People’s Movements
International Rivers
South Asia Network on Dams, Rivers and People
International Rivers South Asia
North East Peoples Alliance
Bharat Jan Vigyan Jatha
All India Union of Forest Working People
National Domestic Workers Union
National Cyclists Union
All India Forum of Forest Movements
Narmada Bachao Andolan
Matu Jansangthan, Uttarakhand
Beyond Copenhagen Collective, New Delhi
Delhi Forum, Delhi
Manthan Adhyayan Kendra, Madhya Pradesh
Institute for Democracy and Sustainability, New Delhi
Machimar Adhikar Sangharsh Sangathan, Gujarat
Intercultural Resources, (ICR) New Delhi.
Urban Research Center, Karnataka
Environment Support Group, Karnataka
Khan Kaneej Aur ADHIKAR (Mines minerals & RIGHTS), Jharkhand
Delhi Solidarity Group
Srijan Lokhit Samiti, Singrauli, Madhya Pradesh
Theeradesa Mahila Vedi, Kerala