बांदा। पता नहीं, किन-किन सामाजिक झंझावातों और पहाड़ों का सामना करते हुए उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के सुरेश ने बीए करने का सपना पाला था। सरकार के नोटबंदी के फैसले ने सुरेश के सपनों को मार डाला, सुरेश की हत्या कर दी! वह आत्महत्या नहीं है, शायद हत्या है!
सुरेश सिर्फ अपने कॉलेज में बीए की परीक्षा में शामिल होने के लिए अपनी फीस भरना चाहता था, कई दिनों से बैंक की लाइन में लग कर मायूस लौट रहा था। कल फिर उसे निराशा हाथ लगी और उसने घर आकर खुदकुशी कर ली।
8 नवंबर को प्रधानमंत्री के 1000 और 500 की नोट पर पाबंदी के ऐलान के बाद यूपी के बांदा जिले के मवाई बुजुर्ग गांव में 19 साल के सुरेश प्रजापति ने बैंक से पैसा नहीं मिलने के चलते आत्महत्या कर ली। लड़का स्नातक का छात्र था और उसे परीक्षा फीस जमा करने थे। सुरेश को चौथी बार बैंक से कैश ना मिलने पर मैनेजर के साथ उसका मनमुटाव हुआ था।
सुरेश ने बीते शुक्रवार को बैंक में 30 हजार रुपये के पुराने नोट जमा कराए थे। जिसके बाद वो दस हजार के नए नोट चाहता था। सुरेश के पिता लालूराम के अनुसार, सुरेश बांदा कॉलेज में बीएससी दूसरे वर्ष का छात्र था। लालू के अनुसार, बुधवार को फीस जमा करने का आखिरी दिन था। फीस के लिए पैसे ना मिल पाने से वो दुखी था। वो बैंक से लौट कर आने के बाद कमरे में उदास बैठा था।
घटना का पता तब चला जब सुरेश की मां ने खाने के लिए उसको आवाज लगाई और उसके जवाब ना देने पर कमरे में जाकर देखा तो उसने खुद को फंदे से लटकाया हुआ था। घटना के बाद गांववाले भड़क गए और उन्होंने बैंक पर हमला कर दिया। ग्रामीणों ने बैंक का फर्नीचर तोड़ डाला और बिल्डिंग को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की।
इस घटना के बाद सवाल यह उठता है क्या वह कायर था? नहीं वह कायर नहीं था। इसके पहले भी नोटबंदी ने देशभर में 70 से अधिक लोगों की बलि चढ़ा दी है। सुरेश सरकार की ताजा नोटबंदी-क्रांति का एक और शिकार है। एक सैनिक शहीद होता है तो उसके लिए सरकार से लेकर मीडिया तक में जिस तरह की क्रांति हो जाती है, वह सब देखते हैं। लेकिन ये सत्तर से ज्यादा लोग कौन हैं और इनकी मौतों का जिम्मेदार कौन है और वे सरकार से लेकर टीवी मीडिया की फिक्र से क्यों दूर हैं?
Courtesy: National Dastak