बामुलाहिज़ा होशियार…2017 में स्वर्ण युग आ रहा है….

नए साल को लेकर इतनी गुदगुदी और घबराहट कभी नहीं हुई थी। मफलरमैन की तरह यह साल आ रहा है। ऐसा लग रहा है कि जैसे महबूब चौक तक आ गया है। सहेलियां छत पर दौड़ने लगी हैं। झरोखे से प्रेयसी की निगाह सड़क पर आते जाते हर शहरी पर पड़ती है। बेचैनियों और बेक़रारियों को संभालते हुए सखियां कभी किसी को पहचान लेती हैं तो कभी किसी को। कोई इस झरोखे से उस झरोखे की और दौड़ती जा रही है तो कोई उस झरोखे से इस झरोखे की तरफ हांफते चली आ रही है। तभी रेडियो पर एक के बाद एक गाने आने लगते हैं। 31 दिसंबर की शाम आधी रात तक पहुंचने के लिए बेक़रार है। पूरा शहर रेडियो से चिपका हुआ ठंड से ठिठुर रहा है। हर गाने को गाता है और सारा शहर कोरस बन जाता है। आप भी पढ़ते हुए अपने मोबाइल सेट पर ये गाने बजा लीजिए। खड़े हो जाइये।

Ravish Kumar
Image: Hindustan Times

पहला गाना बजता है। शहंशाह का गाना है। किशोर कुमार की आवाज़ गूंजती है। अंधेरी रातों में सुनसान राहों पर..हर जुल्म मिटाने को… एक मसीहा निकलता है.. जिसे लोग शहंशाह कहते हैं….महान कवि आनंद बख्शी की कलम की स्याही बहने लगती है। तभी रेडियो जॉकी गाना बदल देता है। ये तो क्रोधी फिल्म का गाना है। पर्दे पर हेमा मालिनी जी गा रही हैं। गाने के आरंभिक बोल इस तरह हैं… हज़ारों साल इंसानों का दिल आंसू बहाता है.. हज़ारों साल में कोई मसीहा बनके आता है….वो महीसा आया है…आया है….आया है….आया है….आया है….आया है…बहुत दिनों ग़म ने हमें तड़पाया है…वो मसीहा आया है आया है आया है आया है। बार बार आया है आया है सुनकर ये न समझें कि रिकार्ड फंस गया है। बल्कि यही तो मसीहा है जो पुराने रिकार्ड को मिटाकर डिजिटल स्वरूप धारण कर चुका है। गाना जारी है….लो वो आगे चल निकला है…तुम उसके पीछे हो जाओ…या पहुंचो अपनी मंज़िल पे, या इन रस्तों में खो जाओ…कसम उठाकर उसने कसम उठाया है। वो मसीहा आया है आया है…..चौक से कोरस की ध्वनि मुखर होने लगती है। सारा शहर आया है आया है गाने लगता है। रेडियो जॉकी फिर से गाना बदल देता है। सूर्या का गाना बजने लगता है। मोहम्मद अज़ीज़ी आवाज़ सबको बांध लेती है। पर्दे पर अब विनोद खन्ना आ गए हैं। गाने के बोल हैं…एक नई सुबह का पैगाम लेकर…आएगा सूर्या.. आसमां का धरती को सलाम लेकर आएगा सूर्या…मोहम्मद अज़ीज़ के गाने का समाजवाद फासीवाद को चीर कर लोकतंत्र का परचम उठा लेता है….उम्र इस अंधेरे की रात भर है, होने ही वाली पल भर में सहर है…साथियों हिम्मत न हार न जाना…चार कदम और सफर है….रफ़ी के डुप्लिकेट अज़ीज़ इस गाने को आदर्शवादी मुकाम पर पहुंचा देते हैं।

यारों, 2016 के हर पल को अपनी सांसों में क़ैद कर लो। जज़्बातों में दफ़्न कर लो। 2017 का साल कोई आम साल नहीं है। सदियों बाद ऐसा नया साल आ रहा है। ख़्वाब अपनी ख़ुमारियों पर इतरा रहे हैं। सपने किसी मंत्री की तरह अकड़ रहे हैं। ड्रीम पार्टी स्पोक्सपर्सन हो चुके है। रेडियो जॉकी एक और शरारत करता है। कारवां का गाना बजा देता है। देखो.. देखो… वो आ गया…बारह बज रहे हैं घड़ी में…हेलन बेक़रार है पर्दे पर….वाइन गटक जाती है….वो फिर से गाती हैं….पिया तू अब तो अब तो आजा…हे हे….मोनिका..वो आ गया…देखो देखो वो आ गया…। वेलकम टू 2017 डियर मितरोंज़,दोस्तोंज़ एंड दुश्मनोज़। विरोधियोंज़ टू।

2017 स्वर्ण युग का साल है।भ्रष्टाचार,नक्सलवाद, आतंकवाद,ड्रग्स माफिया रहित भारत का साल। यह असधारण साल है। इस साल के आने से पहले 50 दिनों के सब्र का वादा पूरा होता है। ज़ब्त के 50 दिन पूरे होते हैं। तप पूरा होता है। अब जप शुरू होने वाला है। क्या हो जाएगा,यह सोच कर दिल वैसे ही मचलता है जैसे छत के झरोखे से राजकुमारी का दिल अपने राजकुमार की पहली झलक के लिए मचलता है। मैंने रेडियो बंद कर दिया है। टीवी ऑन कर दिया है। दो जनवरी की लखनऊ की रैली दिख रही है। सबके दिल धड़क रहे हैं। जाने क्या एलान हो जाए। जाने क्या हो जाएगा। भारत के स्वर्ण युग की पहली रैली। आधार कार्ड लिंक रैली।

तभी एक और कैमरा ऑन होता है। यूपी के डेढ़ लाख बूथों पर सीसीटीवी कैमरे लगे हैं। गांव गांव में स्वर्ण युग का नज़ारा दिख रहा है। लाउडस्पीकर पर रात वाले गाने ही बज रहे हैं। क्रोधी, कारवां, सूर्या और शहंशाह के गाने। 2 जनवरी की रैली में पहुंचने के लिए कार्यकर्ताओं ने सूखी रोटी की पोटली बांध ली है। रैली के इंतज़ाम के लिए आए काले धन को हाथ लगाने से मना कर दिया है। किस किस ने चंदा दिया है सबका नाम लिखा जा रहा है। दाने दाने पर लिखा है दाता का नाम। ईमान का पैसा कम पड़ रहा है। कार्यकर्ताओं ने गाड़ियों और बसों को छोड़ दिया है। उन गाड़ियों को अभी पैन नंबर और आधार नंबर से लिंक नहीं किया गया है। वे काले धन के भी हो सकते हैं। लिहाज़ा वे लखनऊ की तरफ़ पैदल ही चल पड़े हैं।

पुरातत्वशास्त्री छेनी हथौड़ी लेकर भारत संचार निगम लिमिटेड की बिछाई तारों को उखाड़ कर देख रहे हैं कि यहां कहीं काला धन तो नहीं है। उन्हें कोई ग़रीब नहीं मिल रहा है। भारत से भ्रष्टाचार, आतंकवाद, नक्सलवाद, ड्रग्स माफिया का नामों निशान मिट गया है। बीते समय में इनके होने पर हम कैसे थे,इसका लिखित साक्ष्य नहीं मिल रहा है। अब सिर्फ ओरल सोर्स यानी मौखिक साक्ष्यों का ही सहारा है। रैली ईमानदार हो गई है। हर झंडी पर दाता का नाम है। बांस की हर बल्ली पर दाता का नाम है। आधार नंबर है। पैन नंबर है। कोई भी क्लिक कर उससे पूछ सकता है कि आपने चंदा दिया है। कारपोरेट ने नेताओं का साथ छोड़ दिया है। जब उनसे कुछ मिलना ही नहीं तो क्या पीछे पीछे घूमना। 2 जनवरी की रैली भारत के इतिहास के सबसे पवित्र रैली होनी चाहिए। स्वर्ण युग का आग़ाज़ इस तरह से हो जैसे कोई अंधेरी रातों को चीरते हुए शहंशाह की तरह निकल आया हो। टीनू आनंद ज़िंदाबाद के नारे लग रहे हों।

पचास दिनों के बाद कुछ तो होगा जो मसीहाई से कम नहीं होगा। करने वाला भी तो मसीहा से कम नहीं है। पचास दिनों के बाद आने वाला जनवरी का यह दूसरा दिन किसी अवतार की तरह लग रहा है। टैक्स कम हो जायेंगे। लोगों के खाते में पैसे पहुंच जाएंगे। चोरी की हर संभावना समाप्त हो चुकी होगी। लोकपाल न पहले था न अब उसकी ज़रूरत होगी। जब भ्रष्टाचार का स्कोप ही नहीं होगा तो लोकपाल का स्कोप क्यों होना चाहिए। सबके बैंक खातों में कितना पैसा पहुंचेगा,इसकी कल्पना में सोहर गाये जा रहे हैं। बैंकों के आगे कीर्तन हो रहे हैं।वहां पर वही गाने बज रहे हैं जो रेडियो जॉकी ने 31 दिसंबर की रात बजाये थे। आप फिर से उन गानों को सुनिये। मेरा यक़ीन है कि आप पैदल चलने लगेंगे। सूर्या का मेरा पसंदीदा समाजवादी और मार्क्सवादी गाना फिर से बजाइये। इसी गाने में सबकी भलाई है। ग़रीबों के लिए यही मौका है। ये गाना गायें। उनका मसीहा भी ये गाना गा रहा है।समाजवाद फेल हो चुका है। मार्क्सवाद फेल हो चुका है। सूर्या फेल नहीं हुआ है। सूर्या का गाना हर फैक्ट्री में नौ बजे बजेगा। हर दफ्तर में दस बजे बजेगा। फ़िल्मों में भी बजेगा। गाने का बोल लिख दे रहा हूं। आप ज़ोर ज़ोर से गाइये।

जो हल चलाये, उसकी ज़मीं हो
ये फैसला हो, आज और यहीं हो
अब तक हुआ है पर अब न होगा
मेहनत कहीं हो, दौलत कहीं हो
ये हुक्म दुनिया का नाम लेकर
आएगा सूर्या,

आसमां का धरता को सलाम लेकर आएगा सूर्या

2017 उम्मीदों का साल है। इस साल दुनिया अर्थव्यवस्था के नए मॉडल देखेगी। भारत में एक फरवरी के बजट से पहले दो जनवरी को कोई नया मॉडल लांच हो सकता है। आलोचकों को ख़ूब मौका मिला। समर्थकों को भी मिला। नोबेल कमेटी को भी 2 जनवरी की रैली में आना चाहिए। उन्हें स्वीकार करना चाहिए कि राजनेता से बड़ा अर्थशास्त्री कोई नहीं होता। किसी अर्थशास्त्री ने तारीफ़ नहीं की तो क्या हुआ। बैंकरों ने तो की ही है। अर्थशास्त्री भी उन्हीं बैंकरों के यहां नौकरी करते हैं। इस बड़े फैसले का एहतराम हो। इस पर वाजिब इनाम हो। भारत के मसीहाई राजनेता को अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार मिलना चाहिए। मैं हैरान हूं कि समर्थक अभी तक ये साहस क्यों नहीं कर सके हैं। अर्थशास्त्र का नोबल पुरस्कार भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दिया जाना चाहिए। प्रधानमंत्री के पास ऐसा कुछ होगा जिसकी भनक किसी को नहीं लगी है। उसका एलान आने वाले दिनों में होने वाला है। अर्थशास्त्र की दुनिया में किसी अज्ञात का आगमन होने वाला है। क्या हो जाएगा जो अब तक नहीं हुआ है यह सोचकर दिल धड़क रहा है। 31 दिसंबर की रात होश मत खो बैठियेगा। स्वर्ण युग आ रहा है। सूर्या के गाने का वॉल्यूम तेज़ कर दीजिएगा। उसी के गाने का अगला हिस्सा है….

आएगी इंसाफ की हुक्मरानी
अब न बहेगा ख़ू होकर पानी
उठ रौशनी का लहरा दे परचम
कर दे ये दुनिया पुरानी
एक नई सुबह का पैग़ाम लेकर आएगा सूर्या….

Courtesy: naisadak.org
 

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