नई दिल्ली। ओलंपिक में मेडल का सूखा खत्म होने पर देशवासी खुश हैं। लेकिन बेटियों के मेडल जीतने पर मर्दवादी समाज और उसके पोषकों पर हमला तेज है। सोशल मीडिया पर लोग आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत, अमिताभ बच्चन और तुलसी दास पर जमकर हमला कर रहे हैं। वहीं पीएम मोदी को भी निशाना बनाया जा रहा है। लेकिन महिलाओं के सम्मान और उनकी शक्ति को जमकर सराहा जा रहा है। सोशल साइट्स पर जिस तरह लोग लिख रहे हैं उससे साफ है कि अंबेडकर युग की वापसी हो रही है। इसलिए ऐसा लगता है कि बाबा साहेब अंबेडकर ने कहा था कि किसी देशी की तरक्की इस बात से नापी जाती है कि वहां महिलाएं कितनी तरक्की कर चुकी हैं। या फिर उनके लिए कितना मौका है। कितना बराबरी का दर्जा है।
सरिता माली
इस देश की बेटियाँ इतिहास रच रही है।
'पढ़ो गीता बनो सीता' जिस देश में लड़कियों के लिए यह आदर्श मापदंड बनाया गया हो वहां कुश्ती जैसे खेलों में इस देश की बेटियाँ परचम लहरा रही है। #साक्षी और #सिंधु आप दोनों बधाई की हक़दार है। धन्यवाद् इस देश के लोगो को एक सीख देने के लिए।
रंजन कुमार
साक्षी मलिक की जाति बताने पर कुछ सवर्ण/ब्राह्मण/जातिवादी लोग मुझे ही जातिवादी कहने लगे।
हाशिए के लोगों बढ़ता वर्चस्व देखकर जातिवादी/लिंगवादी लोगों को बुखार आ जाता है।
जातिवाद तभी खत्म होगा, जब हाशिये की जातियां वर्चस्व में आएं। अपर कास्ट कतई हाशिये की जातियों के साथ आनेवाला नहीं, कभी भी रोटी-बेटी का संबंध नही चाहेगा। जाति तोड़ने की कोशिश तो हाशिए के लोग ही करेंगे अपने को मजबूत बनाकर।
पीवी सिंधु और साक्षी मलिक ने जहां पुरुष वर्चस्व को चुनौती दी हैं, वहीं साक्षी मलिक पुरुष वर्चस्व के साथ-साथ जातिवादियों को भी चुनौती दी हैं। बुखार हो गया था जातिवादियों को जब भारत को पहला मेडल एक ओबीसी महिला ने दिलाया।
यह अलग बात है कि वे अपना गुस्सा मुझपर उतार रहे हैं
दिलीप मंडल
भागवत ने 6 जनवरी, 2013 को इंदौर से हिंदुओं को निर्देश दिया था कि औरतों को चूल्हे चौके में रखो और कमाने का काम मर्द करे… बड़ा चर्चित बयान था. आप में से ज्यादातर को याद होगा.
आज इंटरनेट पर वह बयान खोला तो उसके ठीक ऊपर यह खबर कहर ढा रही है कि पीवी सिंधु गोल्ड के लिए खेलेंगी. आप भी देखिए.
इसे कहते हैं ऐतिहासिक न्याय… या पोएटिक जस्टिस भी.
साक्षी मलिक जिंदाबाद.
देश लड़कियों के साथ कैसा गंदा सलूक करता है, लाखों को तो पैदा होने नहीं देता, और वही लड़कियां देश की शान बढ़ाती हैं. साक्षी मलिक, मल्लेश्वरी, नेहवाल, कर्मकार, पीटी उषा, पीवी सिंधु…. आप लोगों ने देश को आईना दिखाया है.
पहली तस्वीर 2012, अयोध्या में भागवत के पैर धोती आदिवासी लड़कियां.
भारत की तमाम दीपा, साक्षी, सिंधु, फोगट, ललिता….
सुनिए तो इन भागवत अंकल को, कह रहे हैं कि औरत अगर परिवार का काम, चूल्हा चौका न संभाले, तो पति को शादी का कॉन्ट्रैक्ट तोड़ देना चाहिए.
एक बार सुनना इन्हें!
वैसे इनको जवाब तो तुमने खूब दिया है.
बहुत खूब.
मयंक सक्सेना
हरयाणा सरकार, मेडल जीतने पर ढाई करोड़ देगी, लेकिन खाप पंचायत से आपकी जान नहीं बचाएगी!!!
अरविंद शेष
दीपा बहन… साक्षी बहन… सिंधु बहन…
मैं सुमन…! बारहवीं की परीक्षा की पूरी तैयारी की थी मैंने…! लोक प्रशासन विषय से आगे बढ़ कर मैं प्रशासनिक अफसर बनना चाहती थी और अपने लोगों की मदद करना चाहती थी। लेकिन देखो न बहन… एक कुत्ता क्या भौंका, मेरे मिर्चपुर गांव के जाटों ने मेरी बाल्मीकि बस्ती के दर्जनों घर में आग लगा दी, सामान लूट लिया और खाक कर दिया…! मेरे घर में भी आग लगा दी और फिर मुझे जिंदा उस आग में झोंक दिया…! मेरे पिता बचाने आए तो उन्हें भी उस आग में झोंक दिया…! मैं एक पांव से विकलांग थी, किसी तरह स्कूल जाती थी। आग से बचने की भी कोशिश नहीं कर सकी..! हम दोनों बेटी-बाप उस आग में जिंदा खाक हो गए… तड़प-तड़प कर…! मेरा अफसर बनने का सपना अधूरा रह गया…!
मैं डेल्टा मेघवाल..! मैं एक अच्छी खिलाड़ी थी। मैं शानदार पेंटिंग भी करती थी और मुझे खुद राजस्थान के मुख्यमंत्री ने पुरस्कार दिया था। मैं शिक्षक प्रशिक्षण की डिग्री लेकर टीचर बनना चाहती थी और समाज में अपने दलित-वंचित दबे-कुचले लोगों के बीच चेतना फैलाना चाहती थी। मैं बीकानेर के हॉस्टल में रह पढ़ रही थी। लेकिन मुझे वहां के टीचरों ने धोखा देकर बलात्कार किया… फिर गला घोंट कर मार डाला… फिर वहीं के टैंक में डाल दिया…! मुझ पर आरोप लगा दिया कि मैं एक टीचर के साथ गलत काम कर रही थी और पकड़े जाने पर शर्म से मैंने खुदकुशी कर ली…! ठीक कहती हूं बहन…! मैं बलात्कार होते वक्त और गला घोंटे जाते वक्त जितना तड़पी थी, उससे ज्यादा इस झूठे आरोप पर तड़पी और तड़प-तड़प कर मर गई..! शिक्षक बनने का मेरा सपना अधूरा रह गया…!
मैं जीशा..! मैंने वकालत की पढ़ाई लगभग पूरी कर ली थी और अगले साल मैं वकील बन जाती। मैंने तय किया था कि मैं अपनी तरह बेहद गरीब दलित-वंचित लोगों की मदद करूंगी। केरल के पेरूंबवूर में एक कमरे के बहुत छोटे कमजोर, जर्जर घर में मैं अपनी मां के साथ रहती थी। शौचालय तक नहीं था मेरे घर में। मैं और मेरी मां, दोनों ही पुराने अखबार पर शौच करके उसे बाहर फेंकते थे। मैं एक जगह कंप्यूटर सेंटर में नौकरी करती थी और किसी तरह वकील बनना चाहती थी, ताकि दलित-वंचित लड़कियों की मदद कर सकूं। लेकिन उस अपराधी ने न सिर्फ मेरे साथ बलात्कार किया, बल्कि मेरे यौनांगों और समूचे शरीर को चाकू से गोद डाला… अड़तीस वार किए उसने… मैं तड़प-तड़प कर चीख-चीख कर मरी…! मैं वकील नहीं बन सकी… अपने लोगों के लिए कुछ नहीं कर सकी…! मेरा सपना अधूरा रह गया…!
दीपा बहन… साक्षी बहन… सिंधु बहन…! तुम्हारी कामयाबी पर हम भी खुश हैं। लेकिन सोच रहे हैं कि हम भी जिंदा बच पाते तो तुम्हारी तरह दुनिया हमारा नाम नहीं होता… लेकिन कुछ ही लोगों के लिए सही, कुछ जरूर करते…!
लेकिन हमारा सपना अधूरा रह गया बहनों…! हो सके… तुम तीनों बहनें सरकार और समाज से कुछ ऐसा करने को कहना, जिसमें मेरे यानी सुमन, मेरे यानी डेल्टा, मेरे यानी जीशा जैसी दलित-वंचित लड़कियों को भी जीने दिया जाए… उन्हें भी कुछ बनने दिया जाए… ताकि वे भी दुनिया को बेहतर बनाने के लिए कुछ कर सकें…!
यकीन मानो बहनों… हम दलित-वंचित लड़कियों के भीतर भी तुम सबकी तरह ही खूब हौसला है…! बस हम जीने का मौका चाहते हैं…! हमें भी जीने दो…!
'बेटी बचाओ..!'
बेटियां… बचा रही हैं..!
शर्म कर लो थोड़ा 'बेटी बचाओ' वालों..!
के प्रकाश रे
मैं उनके बारे में सोच रहा हूँ
जो लड़कियों की चाल और कपड़े की नाप से
संस्कृति का क्षेत्रफल नापते हैं
जो हदें बनाते हैं उनके होने की
जिनको उन्हें पूजने और रौंदने से
अपने होने का सन्दर्भ बनता है
मैं उनके बारे में सोच रहा हूँ
कंचन
चलो 2 मेडल तो अाए , दोनों लड़कियों ने पाए .
साफ जाहिर है लड़कियों को मौका मिले तो वे लड़कों से बेहतर करती हैं . .. धार्मिक पुस्तकों में लडकी को दबाने का यही कारण है . पुस्तकों में स्त्री विरोधी कानून लिक्खे भी तो आदमियों ने हैं …
सुरेश
रक्षा करने वाला भाई कौन होता है?
रक्षा का वचन देने वाला ही भक्षक बन जाता है जब उसकी आजादी की बात आती है, अपने फैसले खुद लेने की बात आती है.
किसने नारी को इतना कमजोर कर दिया जिसकी रक्षा के लिए हर बार पुरुष को आगे आना होता है, क्यों जरूरत पड़ती है इसकी?
रक्षा वो खुद कर लेगी अपनी अगर आप उसे गुलाम बनाके न रखें.
उसे उसकी आजादी की जिंदगी जीने दीजिये. घर से बाहर कदम रखने की आजादी, अपने फैसले खुद लेने की आजादी.
उसे तोड़िये मत, उसे मजबूत बनने दीजिये.
उसे सावित्री बाई बनने दीजिये, उसे दीपा कर्मकार बनने दीजिये,
"मैं बस यह वचन देता हूँ कि आपकी आजादी में बाधक नहीं बनूँगा. इस पुरुषवादी व्यवस्था से लड़ने की आपकी हर कोशिश में आपका साथ दूंगा."
श्रवण
खूब तारिफ कीजिए साक्षी और सिंधू की ,वे इसकी हकदार हैं । लेकिन ये -इज्जत बचा ली . इज्जत बचा ली – का राग मत गाइए । महिलाओं का शोषण, प्रताड़़ना , यहाँ तक कि हत्या भी इसी इज्जत के नाम पर होती है ।
राजेश यादव
तमाम तरक्की के बावजूद, अभी भी हम एक ऐसी दुनिया में जीते हैं जहाँ यदि आप एक बेटी का बाप बन जाते हैं तो परिवार के सभी सदस्य आप पर दबाव बनाने लगते हैं दूसरा बच्चा पैदा करने के लिए…इस उम्मीद में कि दूसरा बच्चा लड़का ही पैदा होगा…यदि दूसरा बच्चा भी बेटी ही हो गयी तो परिवार के सभी सदस्यों पर वज्रपात सा हो जाता है…कभी कोई ये नहीं कहता कि ओह, बेचारा उसे दो बेटा ही है, मगर ये कहने वाले बहुत मिल जाएंगे कि देखो, बेचारे को दो बेटी ही है…ऐसा बोलने वाले महिला भी हैं, और पुरुष भी, अमीर भी हैं और गरीब भी, पढ़े लिखे भी और अनपढ़ भी.. भारत की दो बेटिओं नें पदक जीत कर ऐसी सोच पर रियो से लानत भेजी है…जिसे हम सभी लोगों को स्वीकार करना चाहिए…बाद बांकी, हम मर्द लोग मुंह में आग देने और वंश आगे बढ़ाने के काम तो आते ही हैं. थैंक्स.
अशोक बौद्ध
बधाई हो बहन साक्षी…
पहलवान साक्षी मलिक ने 58 किलोग्राम वजन में कांस्य पदक जीता।
भारत का खाता खुला …….
भारतीय नारी की इस सफलता से…
"ढोल, गवार, शुद्र, पशु, नारी ये सब ताडन के अधिकारी"
यह लिखने वाले दृष्ट तुलसीदास की आत्मा नरक मे तड़प रही होगी….
शीतल पी सिंह
Vote मुझे ही देना । मेरे पास सिन्धू की सेल्फी भी है और मैंने खट से ट्वीट भी कर दिया है
भाइंयों बैंनों
सुमित चौहान
आज तुलसीदास होता तो चुल्लु भर पानी में डूब कर मर जाता। शुद्र पशु दास और नारी – ये सब ताड़न के अधिकारी लिखी रामचरितमानस को पढ़ने वाले भी जरूर दुखी होंगे ।।
राज शेखर
बहु ऐश्वर्या राय मांगलीक है कहकर उनकी शादी पहले केले के पेड के साथ और बाद मे अपने बेटे के साथ कराने वाले पनामा श्रि अमित श्रिवास्तव को भि आज नारी का सम्मान याद आ रहा है.. पता नही यह पंडित जि इतनी दोगलाई किस मिट्टी से ढुंढकर लाते है |||
अर्चना सिंह
आज इनका दिन है
एक बार फिर
और ये द्रोणाचार्य नहीं हैं
पुलेला गोपीचंद हैं
सिन्धू को इन्हीं की अकादमी ने तराश कर "कोहिनूर" बनाया है
सायना नेहवाल भी इन्हीं की मेहनत का "सितारा" हैं
मनीषा पांडे
आप पाल रहे थे बेटों को और दनादन मेडल ला रही हैं बेटियां
Courtesy: nationaldastak.com