इन दिनों कई अख़बार और चैनल कश्मीर में मारे गये हिजबुल कमांडर बुरहान वानी और 2009 में आईएएस परीक्षा टॉप करने वाले शाह फैसल की तुलना कर रहे हैं। कश्मीर में तैनात शाह फ़ैसल ने इसे राष्ट्रीय मीडिया के एक हिस्से का जंगलीपन करा देते हुए एक फ़ेसबुक पोस्ट लगाई है। उन्होंने जो लिखा है, उसका अनुवाद यहाँ पेश है—
"राष्ट्रीय मीडिया के एक हिस्से ने एक मारे गए लड़ाके की तुलना में मेरी तस्वीर सामने रखकर एक बार फिर अपना जंगलीपन ज़ाहिर कर दिया है। मीडिया इस हरकत से सिर्फ झूठ, आपसी दरार और नफ़रत को बढ़ावा दे रहा है।
अभी जब पूरा कश्मीर यहां हुई मौतों पर मातम कर रहा है, तब लाल और नीले न्यूज़रूम से सिर्फ दुष्प्रचार और उन्माद निकल रहा है। इसकी वजह से कश्मीर में अलगाव और गुस्सा बढ़ रहा है जिसे भारत सरकार संभाल सकता है।
मेरी निजी तकलीफों से इतर, तस्वीरें लगाकर की जा रही घटिया बहसों ने मुझे बुरी तरह परेशान किया है। क्या मैंने आइएएस सिर्फ एक नौकरी के लिए ज्वाइन किया था या फिर आपकी प्रोपगंडा मशीनरी का हिस्सा होने के लिए ?
सच तो ये है कि जब मैंने ये एग्ज़ाम क्वालिफाई किया था तब भी अपनी पूरी ज़िंदगी बैठकर डेस्क रगड़ने के बारे में नहीं सोचा था लेकिन अगर ऐसी मूर्खताएं मेरे आसपास होती रहीं तो मैं बहुत जल्द इस्तीफ़ा देना पसंद करूंगा।
मैं उसी बयान को दोहरा रहा हूं जो मेरे जूनियर साथी यासीन चौधरी ने इससे पहले अपनी फेसबुक पोस्ट में कहा था। उन्होंने लिखा है, 'ज़ी न्यूज़, आजतक, टाइम्स नाऊ और न्यूज़ एक्स आपको कश्मीर की सच्चाई नहीं बताएंगे। मेहरबानी करके अपने दिमाग़ पर ज़ोर डालें।
कोई भी सरकार अपने नागरिकों को चोट नहीं पहुँचाना चाहेगी, और जब राज्य अपने ही नागरिकों को मारता-अपाहिज बनाता है तो दरअसल वह खु़द को ज़ख़्मी और बरबाद करता है। कोई भी सरकार अपने ही नागरिकों के इस दर्द से खुद को अलग नहीं कर सकती और इस संकट से पार पाने के लिए कोशिशें हो रही हैं और इसमें वक्त लगने जा रहा है।
तब तक हमें ऐसे आग लगाऊ गिरोहों से बचकर रहना होगा जो सिर्फ टीआरपी हासिल करने के लिए कश्मीर को आग के हवाले कर देना चाहते हैं।
आइए, उनके लिए दुआ करें जिन्होंने इस उत्पात में अपनी जान और आँखों की रौशनी गँवा दी है। आइए, कंधे से कंधा मिलाकर सच के साथ खड़े होते हैं। मेरे पास इंटरनेट की सुविधा नहीं है लेकिन आज जब मैंने अपनी टाइमलाइन देखी तो मुझे एहसास हुआ कि अब मुझे चुप्पी तोड़नी चाहिए। इन्ना लिल्लाही वा इन्ना-इलाही राजिऊन।"
(शाह फैसल ने 2009 में यूपीएससी की परीक्षा टॉप की थी। वह कुपवाड़ा के रहने वाले हैं और चरमपंथियों ने उनके शिक्षक पिता की उस वक्त हत्या कर दी थी जब फैसल महज़ 9 साल के थे। फैसल फिलहाल शिक्षा विभाग, जम्मू-कश्मीर के निदेशक हैं।)
ज़रा एक नज़र देखिये कि 'राष्ट्रवादी' किस तरह तुलना कर रहे हैं–
Courtesy: MediaVigil.com