Tina Dabi and Rinku Rajguru
एक लडकी ने आज से कोई डेढ़ सौ साल पहले पुणे के भिडेवाड़ा में एक स्कूल की दहलीज़ पर पहला क़दम रखा। स्कूल की टीचर फ़ातिमा शेख़ ओर सावित्रीबाई फुले ने उस लड़की का नन्हा सा हाथ थामा और उसके कान में पहले शब्द कहे- ए, बी, सी, डी। भारतीय समाज के लगभग ढाई हज़ार साल के इतिहास की यह सबसे बड़ी क्रांति थी।
अब ज़रा ग़ौर से देखिए। यूपीएससी की सिविल सर्विस परीक्षा की इस साल की टॉपर टीना डाबी वही लडकी है। उसने भिडेवाड़ा में 1848 में खुले देश के पहले गर्ल्स स्कूल में क़दम रखा और उसके बाद क़दम दर क़दम आगे बढ़ती हुई वह नई दिल्ली के यूपीएससी के हेडक्वार्टर धौलपुर हाउस में सिविल सर्विस का इंटरव्यू देने पहुँची और टॉपर बनकर निकली। आईसीएससी की 12 वीं की इस साल की टॉपर आद्या मदी भी वही लड़की है। स्कूल एक्ज़ाम में साल दर साल लड़कों से बेहतर परफ़ॉर्म करने वाली वही लडकी है। सैराट फिल्म के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाली रिंकू राजगुरू भी वही है।
दरअसल, आपके पड़ोस की जो भी लडकी पढ़ रही है, नौकरी या बिज़नेस कर रही है, घर से बाहर निकल रही है, बाइक ओर स्कूटर या कार चला रही है, कला-संस्कृति के क्षेत्र में काम कर रही है, वे सब सावित्रीबाई और फ़ातिमा शेख़ की संतानें हैं।
और यह सब सिर्फ डेढ़ सौ साल में हो गया।
लेकिन 1848 में जब महात्मा ज्योतिबा फुले ने देश का पहला बालिका विद्यालय खोला और फ़ातिमा शेख और सावित्रीबाई फुले ने वहाँ पढ़ाने की ज़िम्मेदारी सँभाली, तो कुछ लोग थे जिन्हें यह पसंद नहीं आया। आज भी कुछ लोग हैं, जिन्हें लड़कियों का आगे बढ़ना, उनका स्वतंत्र हैसियत हासिल करना पसंद नहीं है।
1848 में वे महिला शिक्षिकाओं पर गोबर और गंदगी फेंक देके थे। शिक्षिकाएं थैली में दूसरी साड़ी लेकर जाती थीं, जिसे पहनकर वे पढ़ाती थीं। तब लोगों को लगता था कि लड़कियों को पढ़ाना धर्म और परंपरा के खिलाफ है। स्त्री शिक्षा को वे नर्क का द्वार मानते थे। इससे ब्राह्मणवाद पर संकट आ जाता है।
आज भी कुछ लोग हैं, जो स्त्री शिक्षा के विरोधी हैं। लड़कियाँ जब जींस पहनती हैं, तो उनकी संस्कृति ख़तरे में पड़ जाती है। वेलेंटाइन डे पर वे लोग डर जाते हैं और तोड़फोड़ करने लगते हैं। जाति तोड़कर प्रेम करने वालों की वे हत्या कर देते हैं। वे गर्भ में ही लडकियों को मार देते हैं। आरएसएस हम सबके बीच यह प्रचार करता है कि लडकियों को घर संभालना चाहिए।
सावित्रीबाई फुले और फ़ातिमा शेख की बेटियाँ उन पर हँसती हैं।