प्रति
राष्ट्रपति महोदय,
भारतीय गणतंत्र
महोदय
हम जैसे छात्र अपने गांव को छोडकर जब शहर पढाई करने आते हैं तो हमारे साथ माॅ-बाप के सपनों के साथ-साथ समाज की उम्मीदों बोझ भी होता है। BHU जैसे संस्थान में घुसते ही हजारो एकड में फैला यह कैम्पस हमें धरती पर स्वर्ग का एहसास कराता है। यहां प्रवेश के साथ ही हम अपने जीवन के तमान सपने बुनना शुरू कर देते हैं।
एक छात्र के रूप में हमारी जिम्मेदारी है कि अपने ज्ञान के साथ-साथ आसपास चेतना का भी विस्तार करें ।किताबों में लिखे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, समानता और न्याय जैसे शब्दों को जब हम BHU के धरातल पर ढूंढने की कोशिश करते हैं तो हमें प्रशासन के तानाशाही रवैये का शिकार होना पडता है।
हम छात्रों ने कैम्पस में स्थित लाइब्रेरी का समय पूर्व की भांति 24 घंटे करने की मांग किया। हमारी इस मांग में वर्णित सुविधाओं को विश्वविद्यालय आज भी अपने प्रवेश पुस्तिका के माध्यम से छात्रों को देने का झूठा दावा करता है। हमनें अपने पढने की इस मांग के लिए हर संभव लोकतांत्रिक तरीका अपनाया। 17 रातें बाहर पढाई कर विरोध दर्ज कराया वहीं लगभग 3000 स्टूडेंट्स से समर्थन में हस्ताक्षर भी करवाए लेकिन अंततः प्रशासन की उदासीनता से दुखी होकर हमें अनिश्चितकालीन भूख हडताल पर जाना पडा।
विरोध का लोकतांत्रिक तरीका होने के बावजूद बिना किसी जांच कमेटी के बनाए हम 9 छात्रों को दो शैक्षणिक सत्र के लिए निलंबित कर दिया गया। 9 दिनों की भूख हडताल के बाद देर रात 12 छात्रों को 16 थानों की पुलिस और पीएसी बुलाकर उठवा लिया गया। इस पुरे मामले में हमारा पक्ष जानने की भी कोशिश नहीं की गई। हम कैम्पस के सवालों को लोकतात्रिक तरीके से उठाते रहे क्योकि एक छात्र और नागरिक के रूप में यह हमारी जिम्मेदारी है।
BHU कैम्पस में ही एक छात्र के साथ अप्राकृतिक सामूहिक दुष्कर्म की घटना हुई जिसमें बीएचयू प्रशासन द्वारा आरोपियों को संरक्षण सामने आया लेकिन लाइब्रेरी आंदोलन के हम छात्र पीडित को न्याय दिलाने के लिए मजबूती से खडे रहे और अंततः आरोपी की गिरफ्तारी हुई। यही वजह है कि हाल ही में हुई मारपीट व आगजनी की घटना में बदले की भावना से प्रेरित होकर विश्वविद्यालय प्रशासन हमें फंसाने की कोशिश कर रहा है। बिना किसी सबूत के हमपर IPC की 307 समेत गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज कराया गया है। हमारे पास अपने बेगुनाही का प्रमाण होने के बावजूद कोई सुनवाई नहीं हो रही है।
हमारे लोकतांत्रिक मांगो का जिस प्रकार दमन किया गया उससे कैम्पस में कोई भी स्टूडेंट अपनी समस्याएं रखने में डर रहा है। इस तरह के अलोकतांत्रिक माहौल में देश में कैसी लोकतांत्रिक पीढी पैदा होगी। अपने मां-बाप के सपनों के साथ आए हम छात्र सामाजिक और मानसिक प्रताडना झेल रहें हैं, हमारे सपनों की मंजिले गिर रहीं है, हमें एक सामाजिक अपराधी की श्रेणी में खडा कर दिया गया है बस इसलिए क्योंकि हमने पढने के लिए लाइब्रेरी मांगी थी।
विश्वविद्यालय आलोचनात्म विश्लेषण की जगह होता है जहां हम पुराने नियमों और व्यवस्था को चुनौती देकर नई व्यवस्था लाने का प्रयास करते। इन्ही चुनौतियों की बदौलत मानव सभ्यता का इतना विकास संभव हो पाया है। लेकिन इस तरह की विश्वविद्यालयी व्यवस्था जहाॅ हमसे न्यूनतम लोकतांत्रिक अधिकारों के साथ हमारे मानवीय अधिकार भी छिने जा रहें हैं, शिक्षा के उद्देश्य और राष्ट्र की दिशा पर प्रश्नचिह्न है। लोकतंत्र के प्रहरी हमारे संस्थानों में ही जब बातचित के लिए जगह ना हो, बहस और चर्चा जैसे न्यूनतम लोकतांत्रिक क्रियाकलाप भी प्रतिबंधित हो तो देश व समाज में किस प्रकार के मूल्य स्थापित होंगे ये पूरे मानव समुदाय के लिए चिंता का विषय है।
आप हमारे विश्वविद्यालय के संरक्षक हैं। अतः आपसे निवेदन है कि इस मामले को संज्ञान में लेते हुए उचित निर्णय लेने की कृपा करें। BHU के अंदर हमारे लोकतांत्रिक मूल्य खतरे मे हैं जिसके रक्षा के लिए आपको अपनी भूमिका निभानी चाहिए।
दिनांक- 24/09/2016 आपके आभारी लाइब्रेरी आंदोलन के समस्त निलंबित छात्र (BHU)
प्रतिलिपि प्रेषित–
Prime minister of india
Chief minister of U.P.
Vice chancellor of BHU