धर्म-निरपेक्ष कि पंथ-निरपेक्ष?


 
पिछले हफ़्ते बड़ी बहस हुई. सेकुलर मायने क्या? धर्म-निरपेक्ष या पंथ-निरपेक्ष? धर्म क्या है? पंथ क्या है? अँगरेज़ी में जो 'रिलीजन' है, वह हिन्दी में क्या है—धर्म कि पंथ? हिन्दू धर्म है या हिन्दू पंथ? इसलाम धर्म है या इसलाम पंथ? ईसाई धर्म है या ईसाई पंथ? बहस नयी नहीं है. गाहे-बगाहे इस कोने से, उस कोने से उठती रही है. लेकिन वह कभी कोनों से आगे बढ़ नहीं पायी!

The Great Debate on Secularism via Constitution Day and Ambedkar
आम्बेडकर के बहाने, कई निशाने!

इस बार बहस कोने से नहीं, केन्द्र से उठी है! और बहस केन्द्र से उठी है, तो चलेगी भी, चलायी जायेगी! अब समझ में आया कि बीजेपी ने संविधान दिवस यों ही नहीं मनाया था. मामला सिर्फ़ 26 जनवरी के सामने 26 नवम्बर की एक नयी लकीर खींचने का नहीं था. और आम्बेडकर को अपने 'शो-केस' में सजाने का आयोजन सिर्फ़ दलितों का दिल गुदगुदाने और 'समावेशी' पैकेजिंग के लिए नहीं था! तीर एक, निशाने कई हैं! आगे-आगे देखिए, होता है क्या? गहरी बात है!आदिवासी नहीं, वनवासी क्यों?और गहरी बात यह भी है कि बीजेपी और संघ के लोग 'सेकुलर' को 'धर्म-निरपेक्ष' क्यों नहीं कहते? दिक़्क़त क्या है? और कभी आपका ध्यान इस बात पर गया कि संघ परिवार के शब्दकोश में 'आदिवासी' शब्द क्यों नहीं होता? वह उन्हें 'वनवासी' क्यों कहते हैं? आदिवासी कहने में दिक़्क़त क्या है? गहरे मतलब हैं!

Why 'Adivasi' becomes 'Vanvasi' in Sangh's lexicon?'
आदि' यानी प्रारम्भ से. इसलिए 'आदिवासी' का मतलब हुआ जो प्रारम्भ से वास करता हो! संघ परिवार को समस्या यहीं हैं! वह कैसे मान ले कि आदिवासी इस भारत भूमि पर शुरू से रहते आये हैं? मतलब 'आर्य' शुरू से यहाँ नहीं रहते थे? तो सवाल उठेगा कि वह यहाँ कब से रहने लगे? कहाँ से आये? बाहर से कहीं आ कर यहाँ बसे? यानी आदिवासियों को 'आदिवासी' कहने से संघ की यह 'थ्योरी' ध्वस्त हो जाती है कि आर्य यहाँ के मूल निवासी थे और 'वैदिक संस्कृति' यहाँ शुरू से थी! और इसलिए 'हिन्दू राष्ट्र' की उसकी थ्योरी भी ध्वस्त हो जायेगी क्योंकि इस थ्योरी का आधार ही यही है कि आर्य यहाँ के मूल निवासी थे, इसलिए यह 'प्राचीन हिन्दू राष्ट्र' है! इसलिए जिन्हें हम 'आदिवासी' कहते हैं, संघ उन्हें 'वनवासी' कहता है यानी जो वन में रहता हो. ताकि इस सवाल की गुंजाइश ही न बचे कि शुरू से यहाँ की धरती पर कौन रहता था! है न गहरे मतलब की बात!

Dharma, Panth, Religion and Secularism
धर्म-निरपेक्षता के बजाय पंथ-निरपेक्षता क्यों?

धर्म और पंथ का मामला भी यही है. संघ और बीजेपी के लोग सिर्फ़ 'सेकुलर' के अर्थ में 'धर्म' के बजाय 'पंथ' शब्द क्यों बोलते हैं? क्यों 'धर्म-निरपेक्ष' को 'पंथ-निरपेक्ष' कहना और कहलाना चाहते हैं? वैसे कभी आपने संघ या संघ परिवार या बीजेपी के किसी नेता को 'हिन्दू धर्म' के बजाय 'हिन्दू पंथ' बोलते सुना है? नहीं न! और कभी आपने उन्हें किसी हिन्दू 'धर्म-ग्रन्थ' को 'पंथ-ग्रन्थ' कहते सुना है? और अकसर आहत 'धार्मिक भावनाएँ' होती हैं या 'पंथिक भावनाएँ?''भारतीय राष्ट्र' के तीन विश्वासक्यों? इसलिए कि संघ की नजर में केवल हिन्दू धर्म ही धर्म है, और बाक़ी सारे धर्म, धर्म नहीं बल्कि पंथ हैं! और हिन्दू और हिन्दुत्व की परिभाषा क्या है? सुविधानुसार कभी कुछ, कभी कुछ! मसलन, एक परिभाषा यह भी है कि जो भी हिन्दुस्तान (या हिन्दूस्थान) में रहता है, वह हिन्दू है, चाहे वह किसी भी पंथ (यानी धर्म) को माननेवाला हो. यानी भारत में रहनेवाले सभी हिन्दू, मुसलमान, ईसाई और अन्य किसी भी धर्म के लोग हिन्दू ही हैं! और एक दूसरी परिभाषा तो बड़ी ही उदार दिखती है. वह यह कि हिन्दुत्व विविधताओं का सम्मान करता है और तमाम विविधताओं के बीच सामंजस्य बैठा कर एकता स्थापित करना ही हिन्दुत्व है. यह बात संघ प्रमुख मोहन भागवत ने दशहरे के अपने पिछले भाषण में कही. लेकिन यह एकता कैसे होगी? अपने इसी भाषण में संघ प्रमुख आगे कहते हैं कि संघ ने 'भारतीय राष्ट्र' के तीन विश्वासों 'हिन्दू संस्कृति', 'हिन्दू पूर्वजों' और 'हिन्दू भूमि'के आधार पर समाज को एकजुट किया और यही 'एकमात्र' तरीक़ा है.

Sangh's model of Secularism
तब क्या होगा सरकार का धर्म?

यानी भारतीय समाज 'हिन्दू संस्कृति' के आधार पर ही बन सकता है, कोई सेकुलर संस्कृति उसका आधार नहीं हो सकती. और जब यह आधार 'हिन्दू संस्कृति', 'हिन्दू पूर्वज' और 'हिन्दू भूमि' ही है, तो ज़ाहिर है कि देश की सरकार का आधार भी यही 'हिन्दुत्व' होगा यानी सरकार का 'धर्म' (यानी ड्यूटी) या यों कहें कि उसका 'राजधर्म' तो हिन्दुत्व की रक्षा, उसका पोषण ही होगा, बाक़ी सारे 'पंथों' से सरकार 'निरपेक्ष' रहेगी? हो गया सेकुलरिज़्म! और मोहन भागवत ने यह बात कोई पहली बार नहीं कही है. इसके पहले का भी उनका एक बयान है, जिसमें वह कहते हैं कि 'भारत में हिन्दू-मुसलमान आपस में लड़ते-भिड़ते एक दिन साथ रहना सीख जायेंगे, और साथ रहने का यह तरीक़ा 'हिन्दू तरीक़ा' होगा!तो अब पता चला आपको कि सेकुलर का अर्थ अगर 'पंथ-निरपेक्ष' लिया जाये तो संघ को क्यों सेकुलर शब्द से परेशानी नहीं है, लेकिन 'धर्म-निरपेक्ष' होने पर सारी समस्या खड़ी हो जाती है!

गोलवलकर और भागवत
अब ज़रा माधव सदाशिव गोलवलकर के विचार भी जान लीजिए, जो संघ के दूसरे सरसंघचालक थे. अपनी विवादास्पद पुस्तक 'वी, आर अॉवर नेशनहुड डिफ़ाइंड' में वह कहते हैं कि हिन्दुस्तान अनिवार्य रूप से एक प्राचीन हिन्दू राष्ट्र है और इसे हिन्दू राष्ट्र के अलावा और कुछ नहीं होना चाहिए. जो लोग इस 'राष्ट्रीयता' यानी हिन्दू नस्ल, धर्म, संस्कृति और भाषा के नहीं हैं, वे स्वाभाविक रूप से (यहाँ के) वास्तविक राष्ट्रीय जीवन का हिस्सा नहीं हैं…ऐसे सभी विदेशी नस्लवालों को या तो हिन्दू संस्कृति को अपनाना चाहिए और अपने को हिन्दू नस्ल में विलय कर लेना चाहिए या फिर उन्हें 'हीन दर्जे' के साथ और यहाँ तक कि बिना नागरिक अधिकारों के यहाँ रहना होगा.तो गोलवलकर और भागवत की बातों में अन्तर कहाँ है? भागवत भी वही बात कहते आ रहे हैं, जो गोलवलकर ने कही थी. और इसीलिए 'धर्म-निरपेक्षता' शब्द संघ की हिन्दू राष्ट्र की कल्पना में सबसे बड़ी बाधा है. हैं न गहरे मतलब!

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