नेशनल इमोशन कमीशन


 
बाप के मरने पर सभी रोते हैं। रामखेलावन जी भी, एकदम बिलख-बिलखकर रो रहे थे कि अचानक दो भारी डील-डौल के लोग उनके घर आये। रामखेलावन जी ने सोचा, ग़म में शरीक होने आये होंगे, इसलिए और ज़ोर-ज़ोर से दहाड़ मारने लगे। लेकिन उन पहलवान टाइप अजनबियों में से एक ने उन्हे बहुत ज़ोर से डांटा— "ख़बरदार, शोर मत मचाओ। हम यहां सरकारी काम से आये हैं।"

"सरकारी काम?"  रामखेलावन जी चकराये..

तभी दूसरे आदमी ने लैपटॉप खोला और पूरी गंभीरता से बोला–  "हम नेशनल इमोशन कमीशन से आये हैं। इससे पहले तुम्हारा कोई रिश्तेदार या परिचित कब मरा था?"

रामखेलावन जी ने जवाब दिया–  "दो महीना पहले मुगलसराय में रहने वाले चचेरे मौसा गुजर गये थे। .. चचेरे मौसा जी मतलब मां की चचेरी बहन के पति।"

"ठीक है.. ठीक है.. क्या उस वक्त भी रोये थे"

"जी हां..थोड़ा-थोड़ा"                       

"तो फिर आज इतना क्यों रो रहे हो। इस देश के लोग इतने कमीने हो गये हैं कि अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग संवेदनाएं दिखाते हैं। हंसने और रोने के मामले में भी अपनी मनमानी करते हैं। ये दोहरा चरित्र अब नहीं चलेगा।" 

एक ने कहा।

दूसरा बोला,

"मानवीय भावनाओं को लेकर सरकार बहुत संवेदनशील है। इसलिए इमोशंस को रेगुलेट किया जा रहा है। इमोशन कमीशन यानी राष्ट्रीय भावना आयोग का गठन इसी उदेश्य से किया गया है।"

रामखेलावन, "मैं समझा नहीं.."

"मतलब हमें यह पता चला है कि बाप समान मौसा के मरने पर तुम ठीक से नहीं रोये थे। लेकिन आज गला फाड़ रहे हो। यह ठीक नहीं है। सरकार चाहती है कि खान-पान और पहनावे की तरह भावनाएं व्यक्त करने के मामले में देश के सभी नागरिक विधिसम्मत आचरण करे। सरकार ने भावनाओं के मानकीकरण की प्रक्रिया शुरू कर दी है। यह उपलब्धि प्राप्त करने वाले हम दुनिया के पहले देश बनने वाले हैं। अगले तीन महीने में नेशनल इमोशन कमीशन देश के सभी नागरिकों को एक सूची दे देगा, जिसमें स्पष्ट तरीके से लिखा होगा कि किन मौकों पर अपनी भावनाएं, संवेदनाएं और विचार किस तरह अभिव्यक्त करने हैं। निर्देशों के हिसाब से आचरण ना करने पर कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाएगी।"
 
"ठीक है.. तीन महीने बाद की बात है। लेकिन मेरा तो अपना बाप मरा है, अभी तो रो लेने दीजिये।"

रामखेलावन ने कहा

"तुम एक ही शर्त पर रो सकते हो, अगर तुम्हारे पास कोई गवाह हो जो ये बता सके कि मुगलसराय वाले मौसा के मरने पर भी तुम ठीक से रोये थे।  उस दिन जितना रोये होगे आज भी उतना ही रोने को मिलेगा, उससे एक बूंद भी ज्यादा नहीं।"
मुस्टंडे ने कहा

कोई गवाह नहीं मिला, तो आयोग के अधिकारियों ने रामखेलवान जी के मुंह पर टेप लगा दिया। आज रामखेलवान जी के बाप की तेरहवी है। दूर वाले रिश्तेदार दूर बैठकर श्राद्ध की कचौड़ी खा रहे है। नजदीकी  रिश्तेदार उन्हे घेरकर गुमसुम खड़े हैं। रामखेलावन जी के मुंह पर अभी भी वही टेप चिपका हुआ है।
 
 

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