ओके साबुन उर्फ भारतीय लोकतंत्र


Image: Orijit Sen

पैंतीस साल से ज्यादा उम्र वाले हर भारतीय को दूरदर्शन पर आनेवाला वह विज्ञापन ज़रूर याद होगा। विज्ञापन नहाने के साबुन ओके का था, जिसकी शुरुआत एक जिंगल से होती थी—
 
जो ओके साबुन से नहाये, कमल सा खिल जाये
ओके नहाने का बड़ा साबुन
 
इस जिंगल के बोल पर एक चड्डीधारी नौजवान झूम-झूमकर साबुन मलता था। नहा-धोकर तृप्त हो जाने के बाद वह अनाम मॉडल हाथ में साबुन लिये गर्व से कहता था– सचमुच काफी बड़ा है। बड़ा होना ही उस साबुन की एकमात्र विशेषता थी। ओके साबुन ना जाने कब का गायब हो चुका, लेकिन मेरी बाल स्मृतियों में वह विज्ञापन आज भी ताजा है।

उन दिनों राजीव गांधी प्रधानमंत्री हुआ करते थे और दूरदर्शन राजीव दर्शन हुआ करता था। राजीव जी दिन में तीन बार दोहराते थे–  भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। हमें इस पर गर्व होना चाहिए। अपनी कल्पनाओं में मुझे ओके साबुन के मॉडल की जगह राजीव गांधी ही नज़र आते थे।

शरीर पर लोकतंत्र का साबुन मलते, झाग उड़ाते और बार-बार दोहराते—सचमुच काफी बड़ा है। वक्त के साथ मैं बड़ा होता गया और दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र और बडा लोकतंत्र होता चला गया। तीन दशक में मैने कच्चे,पक्के बहुत सारे प्रधानमंत्री देखे। लेकिन हर प्रधानमंत्री में एक बात आम थी। सबने अलग-अलग वक्त ज़रूर दोहराया—सचमुच काफी बड़ा है। भारत का लोकतंत्र इतना बड़ा है कि दुनिया का कोई और लोकतंत्र उसकी बराबरी नहीं कर सकता।

आज़ादी के बाद से लोकतंत्र के इस झाग में  नहाकर तमाम नेता बाग-बाग होते रहे हैं। मुझे भी हमेशा इस बात का कनफ्यूजन रहा कि भारत का लोकतंत्र आखिर कितना बड़ा है? बचपन मैने एक बार अपने मास्टर साहब से पूछा था कि भारत क्षेत्रफल में सातवें नंबर का देश है और जनसंख्या में दूसरे नंबर का तो फिर दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कैसे हुआ? मास्टर साहब ने डपट दिया—किताब में लिखा है तो ज़रूर होगा,  चुपचाप रट लो। दूसरे मास्टर साहब सचमुच लोकतांत्रिक थे। उन्होने समझाया–  लोकतंत्र का मतलब लोग। लोकतंत्र क्षेत्रफल से नहीं बल्कि लोगो से बनता है और लोग भी वैसे होने चाहिए जो वोट डाल सकें।

चीन में भारत से ज्यादा लोग रहते हैं, लेकिन उन्हे वोट डालने का अधिकार नहीं है, इसलिए वहां लोकतंत्र नहीं है। अमेरिका आकार में भारत से बड़ा है लेकिन वहां वोटर कम हैं इसलिए दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत है। बात समझ में आ गई। संख्या ही हमें बड़ा बनाती है और एक बार बड़ा बन जाने के बाद कुछ और करने की ज़रूरत नहीं रह जाती।

नेताओं ने कुछ दूरंदेशी दिखाई होती तो कमल निशान वाला ओके भारत का राष्ट्रीय साबुन बन गया होता। लेकिन नेताओं की उदासीनता की वजह से ऐसा हो नहीं पाया और बेचारा ओके कहीं गुम हो गया। गनीमत है कि हमारा लोकतंत्र अभी तक चल रहा है।

लोकतंत्र में जनता भगवान होती है। यही वजह है कि दुनिया ने जब भी यह कहा कि भारत में लोकतंत्र भगवान भरोसे है, लेकिन हमने ज़रा भी बुरा नहीं माना।

इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगाकर यह बता दिया था कि हमारा लोकतंत्र इतना बड़ा है कि जो भी उसकी सेहत पर सवाल उठाएगा वह मिटा दिया जाएगा। राष्ट्रीय नेता अलग-अलग वक्त में यह बताते आये हैं कि लोकतंत्र इतना बड़ा है कि उसके ख़तरे में होने की बात करना देशद्रोह माना जाएगा।

इसलिए पिछले 69 साल में सबसे बड़े लोकतंत्र का नारे में सबसे अच्छा, सबसे उदार या सबसे प्रगतिशील जैसा कुछ और नहीं जुड़ा। बड़ा होना ही अपने आप में काफी है, कुछ और लेकर कोई क्या करेगा! इस मामले में ओके साबुन और भारतीय लोकतंत्र में मुझे कमाल की समानता नज़र आती है।

नेताओं ने कुछ दूरंदेशी दिखाई होती तो कमल निशान वाला ओके भारत का राष्ट्रीय साबुन बन गया होता। लेकिन नेताओं की उदासीनता की वजह से ऐसा हो नहीं पाया और बेचारा ओके कहीं गुम हो गया। गनीमत है कि हमारा लोकतंत्र अभी तक चल रहा है।

वैसे अगर सबसे बड़े लोकतंत्र का क्रेडिट देना हो तो किसी दिया जाये? उन नेताओं को तो नहीं दिया जा सकता जो रात-दिन इसके बड़े होने का दंभ भरते रहते हैं। क्रेडिट हमारे बाप-दादाओं को ज़रूर है।

क्रेडिट इस देश में परिवार नियोजन कार्यक्रम की विफलता और इसके प्रति देशवासियों की अज्ञानता को भी है। लेकिन जो अज्ञानता हमें दुनिया में नंबर वन बनाये रखे, वह अज्ञानता नहीं है।

आबादी बढ़ाने वाले भी सच्चे देशभक्त हैं। अगर वे नहीं होते फिर हम भला किस तरह सीना तानकर यह बताते फिरते कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है।

अब उन ख़तरों पर गौर करना चाहिए जो भारत से दुनिया का सबसे बड़े लोकतंत्र होने का ताज छीन सकते हैं। ख़तरे दो ही हैं। पहला ख़तरा अमेरिका से है। अगर अमेरिका यह ठान ले कि उसे विश्व का सबसे पुराना लोकतंत्र होने के साथ सबसे बड़ा लोकतंत्र भी बनना है तो क्या होगा?

दो सौ साल तक जमकर बच्चे पैदा करने के बाद अमेरिका भारत के करीब पहुंच सकता है। लेकिन भारत भी खामोश थोड़े ना बैठा रहेगा।

कम से कम चार बच्चे पैदा करने की नसीहत देने वालो के मार्गदर्शन में अमेरिका को पछाड़ दिया जाएगा।

दूसरा ख़तरा चीन है। भगवान ना करे वहां कभी लोकतांत्रिक क्रांति हो।

वैसे फिलहाल दूर-दूर तक इसकी कोई संभावना नज़र नहीं आती। इसलिए सबसे बड़े लोकतंत्र का हमारा ताज एकदम सुरक्षित है। 
 

 

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